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मूर्ख मेंढक पंचतंत्र की कहानी | murkh mendhak Panchtantra ki kahani in Hindi
मेंढको का राजा अपने झुंड के साथ एक कुएं में रहता था वह अपने रिश्तेदारों को ना पसंद करता था। उनसे परेशान होकर एक दिन उसने कुआं छोड़ने का फैसला लिया। जब वह कुएं से बाहर निकल रहा था उसे एक नाग दिखा। वह नाग एक बांबी से बाहर आ रहा था। मेंढक उसके पास गया और बोला, “मै मेंढको का राजा हूं और मैं चाहता हूं कि हम दोस्त बन जाए।”

नाग बोला, “हम दोस्त नहीं बन सकते क्योंकि मैं मेंढको का शिकार करता हूं।”
इस पर मेंढक बोला, “मेरी दोस्ती स्वीकार कर लो। फिर तुम्हें रोज एक मेंढक खाने को मिलेगा।”
थोड़ा विचार करने के बाद नाग मेंढक की बात मान गया। उसने अपने नए दोस्त मेंढक से पूछा, “तुम कुएं से बाहर कैसे आए?”
मेंढक ने नाग को कुए के अंदर जाने का गुप्त मार्ग दिखाया। उसके बाद उसने नाग को बोला, “तुम सिर्फ मेरे उन रिश्तेदारों को खाना जिन्हें में ना पसंद करता हूं। मेरे दोस्तों को मत खाना।”
नाग रोज एक एक कर के मेंढक राजा के रिश्तेदारों को खा गया फिर उसने मेंढक के मना करने के बावजूद उसके दोस्तों को खाना शुरु कर दिया।
अंत में एक समय ऐसा आया जब मेंढक राजा के अलावा कोई नहीं बचा था। नाग ने उससे कहा, “मुझे कहीं से भी मेंढक दो वरना मैं तुम्हें खा जाऊंगा।”
नाग से डरकर मेंढक अपनी जान बचाकर भागा। उसने कुएं से बाहर आने का रास्ता बंद कर दिया अपने रहने के लिए तो उसने दूसरा स्थान खोज लिया। परंतु अब वह बिल्कुल अकेला था। उधर भोजन ना मिलने से नाग की कुए के अंदर मौत हो गई।
नैतिक शिक्षा :– अपने दुश्मनों से कभी मदद नहीं लेनी चाहिए।
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