- कबीर दास जीवनी | Kabirdas biography in hindi | Kabirdas ki jivani | कबीर दास का जीवन परिचय
- शुरुआती जीवन – कबीर दास जीवनी, kabirdas life story
- कबीर दास के गुरु संत रामानंद(kabir das guru)
- कबीर दास का निजी जीवन(kabirdas family)
- भक्तिकाल के कवि के रूप में कबीर दास ((kabir das poet)
- कबीर दास की कृतियां(kabirdas rachnaye)
- कबीर दास की वाणी (kabir dasvani)
- धर्म पर कबीर दास की राय(kabir das on god)
- कबीर दास की विरासत(kabir das legacy)
- गुरु ग्रंथ साहिब में कबीर दास की कृतियां(kabir das guru granth sahib)
- कबीर दास का निधन(kabir das mrityu)
- kabir das jeevani in hindi – FAQ
- What did Kabir say about God? – भगवान के बारे में कबीर ने क्या कहा?
- Who looked after Kabir in his childhood? – बचपन में कबीर की देखभाल कौन करता था?
- What are the ideas of Kabir? – कबीर के विचार क्या हैं?
- What does the term Kabir connote? – कबीर शब्द का अर्थ क्या है?
- What is the main theme of the song of Kabir Das? – कबीर दास के गीत का मुख्य विषय क्या है?
- Who started the Bhakti movement in India? – भारत में भक्ति आंदोलन की शुरुआत किसने की?
- Who was Kabir discuss his teaching? – कबीर उनके शिक्षण की चर्चा किसने की थी?
- What is the contribution of Kabir to Bhakti movement? – कबीर का भक्ति आंदोलन में क्या योगदान है?
कबीर दास जीवनी – मध्यकालीन इतिहास की 15वीं सदी में जहां समूचे हिंदुस्तान की सरहदों पर मुगल साम्राज्य का झंडा बुलंद हो रहा था, वहीं इन सरहदों के भीतर भक्ति आंदोलन अपने चरम पर था। इस दौरान देश के अलग-अलग कोनों में मीराबाई, गुरु नानक, रामानुज, एकनाथ, सलीम चिश्ती जैसे अनेक सूफी संतों और कवियों ने अपने संदेशों से भक्ति के एक नए युग का आगाज कियाथा। भक्ति युग के मशहूर संतों की इस फेहरिस्त में निर्गुण भक्ति शाखा के कवि प्रसिद्ध कवि कबीर दासका नाम भी शामिल है।
कबीर दास जीवनी | Kabirdas biography in hindi | Kabirdas ki jivani | कबीर दास का जीवन परिचय
नाम | कबीर दास |
जन्म तिथि | 1440 |
जन्म स्थान | काशी, उत्तर प्रदेश |
गुरु | रामानंद |
निधन | 1518 |
रचनाएं | कबीर ग्रंथावली |
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शुरुआती जीवन – कबीर दास जीवनी, kabirdas life story
कबीर दास के जन्म समय को लेकर इतिहासकारों में खासे मतभेद हैं। प्रयाप्त साक्ष्यों के अभाव में कुछ जानकारों ने कबीर के जीवनकाल को 1398 से 1448 के बीच माना है, वहीं कुछ इतिहासकारों के अनुसार कबीर दास का जीवनकाल 1440 से 1518 तक था। (kabir das birth date)
एतिहासिक कहानी के मुताबिक काशी के ब्राह्मण परिवार में एक बालक का जन्म हुआ। हालांकि अविवाहित माता की संतान होने के नाते उस बालक की माता ने उसे एक टोकरी में रख कर तालाब में डाल दिया। कुछ ही समय बाद मुस्लिम वर्ग से ताल्लुक रखने वाली दम्पत्ति नीरु और नीमा की नजर तालाब में तैरते उस बालक पर पड़ी। पेशे से जुलाहे का काम करने वाले नीरू और नीमा निःसंतान थे। लिहाजा उन्होंने उस बालक को पालने का फैसला किया और ये बालक कोई और नहीं बल्कि कबीर दास ही थे।
वहीं कुछ जानकारों के अनुसार, कबीर के परिवार ने धर्मांतरण कर मुस्लिम धर्म को स्वीकार किया था। यही कारण था कि मुस्लिमधर्म की रूढ़िवादी सोच से अनभिज्ञ कबीर दास ने नाथ परंपरा (शिव योगी) में खासी दिलचस्पी दिखाई।
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कबीर दास के गुरु संत रामानंद(kabir das guru)
भक्ति आंदोलन के मशहूर संत रामानंद के शिष्य रहे कबीर दास अपने जन्म का जिक्र करते हुए कहते हैं कि-
“काशी में पगरट भये, रामानंद चेताये”
काशी नगरी में स्थित संत रामानंद भक्ति काल के मशहूर कवि थे। अद्वैतवाद में आस्था रखने वाले संत रामानंद का मानना था कि हर इंसान के मन में एकभगवान रहता है। रामानंद हिंदू धर्म की वैष्णव परंपरा के साथ इस्लाम धर्म की सूफी परंपरा में भी खासा विश्वास रखते थे। वहीं रामानंद के शिष्य कबीर दास भी गुरु को ईश से बढ़कर मानते हैं और गुरु के महत्व को रेखांकित करते हुए कहते हैं कि-
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।
कबीरा ते नर अंध हैं, गुरु को कहते और।
हरि रुठें गुरु ठौर है, गुरु रुठे नहीं ठौर।।
इरफान हबीब के अनुसार, फारसी भाषा में लिखि किताब दास्तां-ए-मज़हिब कबीर दास के सम्पूर्ण जीवनकाल का संक्षिप्त वर्णन बयां करती है। दास्तां-ए-मज़हिब में कबीर दास को बैरागी करार देते हुए रामानंद का शिष्य बताया गया है। कबीर दास का जिक्र करते हुए इस किताब में लिखा है कि, “कबीर दास एकेश्वरवाद में विश्वास रखते हैं और राम उनके भगवान हैं।”
कबीर दास का निजी जीवन(kabirdas family)
कबीर दास जीवनी के निजी जीवन को लेकर भी इतिहास खासा उलझा हुआ है। जहां कुछ इतिहासकार कबीर दास के वैवाहिक जीवन को सिरे से खारिज करते हुए उन्हें बैरागी संत करार देते हैं, वहीं कुछ जानकारों के अनुसार कबीर दास का विवाह (kabir das marriage) हुआ था। उनकी पत्नी का नाम लोई तथा बेटी का नाम कमाली और बेटे के नाम कमल था।
हालांकि सदियों बाद आज भी काशी नगरी में कबीर के निशान मौजूद हैं। दरअसल वाराणसी में स्थित कबीर चौरा और कबीर मठ, कबीर दास के जीवन का बेहद खूबसूरत चित्रण प्रस्तुत करता है। वहीं थोड़ी दूर पर स्थित नीरु टीला, नीरु और नीमा के उस घर की झलक पेश करता है, जहां कबीर पले-बढ़े और उनका बचपन गुजरा था।
भक्तिकाल के कवि के रूप में कबीर दास ((kabir das poet)
एतिहासिक तथ्यों के अनुसार कबीर दास पढ़े-लिखे नहीं थे। जिसके कारण भक्तिकाल के मशहूर कवि कबीर दास ने कभी अपनी रचनाएं खुद नहीं लिखीं। दरअसल इतिहासकारों के अनुसार कबीर अपने उपदेशों में जो कुछ भी बोलते थे, उनके शिष्यों कबीर के उन कथनों को पन्नों पर उतार देते थे। कबीर दास जीवनी
कबीर की भाषा सधुक्कड़ी एवं पंचमेल खिचड़ी हैं। कबीर दास की रचनाओं में राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा के शब्दों की बहुलता के साथ हिंदी भाषा की सभी बोलियां शामिल हैं।
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कबीर दास की कृतियां(kabirdas rachnaye)
कबीर दास के शिष्य धर्मदास ने उनकी वाणियों का संग्रह “बीजक” नाम के ग्रंथ मे किया है। बीजक के तीन भाग हैं – साखी , सबद (पद ), रमैनी
साखी (kabir das sakhi) शब्द संस्कृत भाषा के साक्षी से निकला है। कबीर दास की शिक्षाओं और सिद्धांतों का निरूपण अधिकतर साखी में हुआ है, वहीं ज्यादातर साखियां दोहों में लिखी गयीं हैं।
इसके अलावा सबद एक गेय पद है, जिसे संगीत की पंक्तियों में सूचीबद्ध किया गया है। सबद में कबीर के प्रेम और साधना के भाव निहित हैं, जिसके कारण इसमें उपदेशात्मकता के बजाए भावावेश की प्रधानता है।
वहीं रमैनी (kabirdas ramaini) चौपाई और छंद में लिखी गयी है। जिसमें कबीर के रहस्यवादी और दार्शनिक विचारों का संग्रह है।
इसके अलावा कबीर ग्रंथावली (kabir das granth) में कबीर की सभी रचनाएं मौजूद हैं।
कबीर दास की वाणी (kabir dasvani)
कबीरा खड़ा बाजार में, माँगे सबकी खैर
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर
दोहे और कविताओं (kabir das dohe) के रूप में कबीर की वाणी 21वीं सदी में भी उतनी की सार्थक सिद्ध होती है, जितनी शायद 15वीं सदी (kabir das era) में थी। कबीर दास की कविताएं सदी के हालातों को भी बखूबी बयां करतीं हैं। मसलन उस दौर में मुगल साम्राज्य अपनी बुलंदी पर था और दिल्ली सल्तनत में मुस्लिम शासन होने के कारण दिल्ली के बाहर दूसरे धर्म के लोगों के साथ दुर्व्यवहार आम हो चुका था। इन्हीं हालातों को बयां करते हुए कबीर कहते हैं कि-
पोथी पढ़ि – पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
इसके अलावा देश में व्याप्त जातिप्रथा जैसी कुरीतियों पर चोट करते हुए कबीर दास ज्ञान को जीवन में सर्वोपरी बताते हैं-
जाती न पूछो साधु की, पूछि लीजिय ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
वहीं कबीर दास समय को बेहद महत्वपूर्ण मानते हुए जीवन में समय की भूमिका को रेखांकित कर कहते हैं कि-
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में परलय होयगी, बहुरि करे सो कब
इसी कड़ी में कबीर दास ने अपनी कई रचनाओं में मानव जीवन के महत्वों को समझाया है। यही कारण है कि कबीर दास के कथन सदियां बीतने के साथ ही मानव जीवन पर और भी ज्यादा सच साबित होती हैं। मसलन
दोस पराए देखि करि, चले हसन्त हसन्त।
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।।
रात गंवाई सोय कर, दिवस गंवायो खाय।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥
धर्म पर कबीर दास की राय(kabir das on god)
अमूमन कबीर दास की कौम और वर्ग को लेकर इतिहास के पन्ने भले ही अनसुलझे हैं,लेकिन धर्म को लेकर कबीर दास की राय बिल्कुल स्पष्ट है। दरअसल अपने ईश्वर को हरि और राम (kabirdas on ram) कह कर पुकारने वाले कबीर दास किसी भी धर्म के आडंबरों में विश्वास नहीं रखते थे।
जहां एक तरफ कबीर दास हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और व्रत – तप पर तंज कसते हुए कहते हैं कि-
दुनिया ऐसी बावरी, पाथर पूजन जाय।
घर की चाकी कोई न पूजे, जाका पीसा खाय।।
वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम धर्म की इबादत और पांच वक्त की नमाज अदा करने पर निशाना साधते हुए कबीर कहते हैं कि-
कांकर पाथर जोरि कर, मस्जिद लई चुनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बांग दे, का बहरा भया खुदाय।।
हालांकि आडंबरों से परे कबीर दास हर इंसान के मन में ईश्वर की कल्पना करते हैं। कबीर दास का मानना है कि जहां लोग मोह-माया रूपी बाहरी दुनिया में भगवान को ढूंढ़ते हैं, वो खुदा तो लोगों के मन में बसता है। इस संदर्भ में कबीर दास कहते हैं-
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
कहे कबीर हरि पाइए, मन ही की परतीत
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय।।
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कबीर दास की विरासत(kabir das legacy)
कबीर दास द्वारा पढ़-लिख न पाने के कारण उनकी साहित्यिक विरासत उनके दो शिष्यों- भगोड़ा और धर्मदासने लिखी है। वहीं उनकी कई रचनाओं को क्षतिमोहन सेन ने गानों (kabir dasamratvani)में तब्दील कर दिया, जिनका बाद में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा अंग्रेजी अनुवाद किया गया। इसी सिलसिले में कबीर दास के कथन न सिर्फ भारत बल्कि देश-विदेश में भी गए जाने लगे।
हालांकि अरविंद कृष्ण मल्होत्रा ने दोबारा कबीर दास की कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया। इसके अलावा कबीर दास jivani के अनुयायियों को कबीर पंथ का नाम दिया गया, जिन्होंने कालांतर में कबीर दास की विरासत को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
गुरु ग्रंथ साहिब में कबीर दास की कृतियां(kabir das guru granth sahib)
सिख धर्म की नींव रखने वाले और सिखों के पूज्य, गुरु नानक देव जी का नाम भी भक्तिकाल की प्रभावशाली शख्सियतों में शुमार है। गुरु नानक देव जी (kabirdas and guru nanakdev) भी कबीर दास से खासा प्रभावित थे। गुरु नानक देव जी न सिर्फ अपने उपदेशों में कबीर दास और उनकी रचनाओं का जिक्र करते थे बल्कि उन्होंने सिख धर्म के आदिग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में भी कबीर दास की कई कृतियों को शामिल किया है।
हालांकि कई जानकार गुरु नानक देव और कबीर दास की मान्यताओं को विपरीत करार देते हैं। बावजूद इसके गुरु ग्रंथ साहिब में कबीर की रचनाओं का समागम उनकी विरासत की गवाही पेश करता है।
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कबीर दास का निधन(kabir das mrityu)
कबीर दास ने वाराणसी के पास स्थित मगहर में आखिरी सांस ली। दरअसल उस दौर में मगहर(kabirdas death) को लेकर लोगों में मान्यता थी कि, काशी में देह त्यागने पर स्वर्ग की प्राप्ती होती है, तो वहीं मगहर में मरने पर नरक मिलता है। इसी प्रचलन को गलत सिद्ध करने के लिए कबीर दास अपने अंतिम समय में मगहर चले गए, जहां उन्होंने साल 1518 में इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। और इसी के साथ कभी हाथ में कलम न उठाने वाले कबीर दास कवि के रूप में हमेशा के लिए अमर हो गए।
kabir das jeevani in hindi – FAQ
Who is the father of Kabir Das? – कबीर दास के पिता कौन हैं?
संत कबीर का जन्म 1398 ई। में बनारस शहर में हुआ था। उनके पिता नीरू पेशे से मुस्लिम और बुनकर थे। बनारस एक हिंदू तीर्थस्थल था, जो हमेशा साधुओं द्वारा फेलाया जाता था।
What was the philosophy of Kabir Das? – कबीर दास के दर्शन क्या थे?
उन्होंने आत्मान की वैदिक अवधारणा पर विश्वास किया, लेकिन मूर्ति पूजा के हिंदू रीति-रिवाज को खारिज कर दिया, जिसमें भक्ति और सूफी दर्शन दोनों में स्पष्ट विश्वास था। कबीर को सम्राट सिकंदर लोदी के सामने लाया गया और उन पर दैवीय शक्तियों के कब्जे का दावा किया गया। उसे 1495 में वाराणसी से भगा दिया गया था।
What is Kabir still respected for? – कबीर का अभी भी क्या सम्मान है?
कबीर को कबीर दास और कबीरा के नाम से भी जाना जाता है, उनका जन्म और पालन पोषण नीरू और नीमा द्वारा एक मुस्लिम बुनकर परिवार में हुआ था। वह एक रहस्यवादी कवि और संगीतकार थे और हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण संतों में से एक थे और मुसलमानों द्वारा एक सूफी भी माने जाते थे। उनका सम्मान हिंदुओं, मुस्लिमों और सिखों द्वारा किया जाता है।
What did Kabir say about God? – भगवान के बारे में कबीर ने क्या कहा?
भगवान, कबीर के धर्म के केंद्र बिंदु थे और कबीर ने उन्हें विभिन्न नामों से संबोधित किया। उनकी राय में अकेले भगवान राम, रहीम, गोविंद, अल्लाह, खुदा, हरि आदि थे, लेकिन कबीर के लिए, ‘साहेब’ उनका पसंदीदा नाम था। उन्होंने कहा कि भगवान हर जगह था और उसका नाम असीमित है।
Who looked after Kabir in his childhood? – बचपन में कबीर की देखभाल कौन करता था?
यह माना जाता है कि उन्होंने बचपन में अपने गुरु रामानंद नाम से अपने सभी आध्यात्मिक प्रशिक्षण प्राप्त किए। एक दिन, वह गुरु रामानंद के एक प्रसिद्ध शिष्य बन गए। कबीर दास के घर ने छात्रों और विद्वानों को उनके महान कार्यों के रहने और अध्ययन के लिए समायोजित किया है।
What are the ideas of Kabir? – कबीर के विचार क्या हैं?
कबीर द्वारा व्यक्त किए गए प्रमुख विचारों में शामिल हैं:
प्रमुख धार्मिक परंपराओं की अस्वीकृति।
ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म और इस्लाम दोनों की बाहरी पूजा के सभी रूपों की आलोचना।
पुरोहित वर्गों की आलोचना और जाति व्यवस्था।
निराकार परमपिता परमात्मा में विश्वास करते हैं।
मोक्ष प्राप्त करने के लिए भक्ति या भक्ति पर जोर दिया।
What does the term Kabir connote? – कबीर शब्द का अर्थ क्या है?
कबीर नाम अरबी अल-कबीर से आया है जिसका अर्थ है ‘द ग्रेट’ – इस्लाम में भगवान का 37 वां नाम है। कबीर की विरासत को आज कबीर पंथ ने आगे बढ़ाया है, जो एक धार्मिक समुदाय है जो उन्हें इसके संस्थापक के रूप में पहचानता है और संत मत संप्रदायों में से एक है
What is the main theme of the song of Kabir Das? – कबीर दास के गीत का मुख्य विषय क्या है?
कबीर संगठित धर्मों की औपचारिकता से बचते हैं, लेकिन उन्होंने अपने व्यक्तिगत सत्य में “भगवान” को खोजने की कोशिश की। यह दर्शन आज ऐसे लोगों के साथ है जो हमारे विभिन्न धर्मों में सामान्य आधार खोजने की कोशिश करते हैं, जैसा कि विवरणों पर ध्यान केंद्रित करने के विपरीत है।
Who started the Bhakti movement in India? – भारत में भक्ति आंदोलन की शुरुआत किसने की?
आंदोलन की शुरुआत Saiva Nayanars और Vaisnava Alvars से हुई, जो 5 वीं और 9 वीं शताब्दी CE के बीच रहते थे। उनके प्रयासों ने अंततः 12 वीं -18 वीं शताब्दी सीई द्वारा पूरे भारत में भक्ति कविता और विचारों को फैलाने में मदद की।
Who was Kabir discuss his teaching? – कबीर उनके शिक्षण की चर्चा किसने की थी?
कबीर ने अपने अनुयायियों से कहा कि वे शिक्षक को गोविंद (भगवान) के रूप में मानें। यह गुरु ही शिष्य को ईश्वर से उत्पन्न ज्ञान के प्रकाश तक ले जा सकता है। और भगवान को पाने का एकमात्र मार्ग भक्ति या भक्ति का मार्ग है। शुद्ध विचारों और शुद्ध हृदय के साथ व्यक्ति स्वयं को ईश्वर की ओर समर्पित कर सकता है।
What is the contribution of Kabir to Bhakti movement? – कबीर का भक्ति आंदोलन में क्या योगदान है?
कबीर दास पहले भारतीय संत हैं जिन्होंने हिंदू और इस्लाम को एक सार्वभौमिक मार्ग देकर समन्वित किया है जिसका अनुसरण हिंदू और मुसलमान दोनों कर सकते हैं। उनके अनुसार प्रत्येक जीवन का दो आध्यात्मिक सिद्धांतों (जीवात्मा और परमात्मा) के साथ संबंध है।
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Reference-
2020, कबीर दास जीवनी, विकिपीडिया