एक बार की बात है। आदिवासियों का एक सरदार था, उसे जंगल मे जाकर चिड़ियाएं पकड़ने का बेहद शौक था।
एक दिन जंगल में दो तोते उसके जाल में फंस गए। वह उन तोतों को देखकर बहुत खुश हुआ कि उन्हे बोलना सिखाएगा और उसके बच्चे इन तोतों के साथ खेला करेंगे।
जब वह दोनों तोतों को लेकर अपने घर लौट रहा था, तभी न जाने कैसे एक तोता उसकी पकड़ से छूटकर आसमान में फुर्र हो गया।
राजा थोड़ी देर तक को उसके पीछे भागा, फिर थक – हारकर वह घर की ओर एक ही तोते के लेकर लोट चला।
उस तोते को उसने अपनी बोली में बोलना सिखाया और केवल कुछ ही समय में तोता सरदार की बोली में बोलने लगा।
उधर, जो तोता सरदार की पकड़ से छूट गया था, एक संत के पास जा पहुँचा। उसने तोते को पाल लिया और उसे पूजा – पाठ के पवित्र मंत्र सिखाए।
यह संत जंगल के एक छोर पर रहता था तो आदि वासियों का सरदार दूसरे छोर पर।
एक दिन नज़दीकी राज्य का राजा घोड़े पर सवार होकर जंगल के उस छोर पर जा पहुँचा, जहां सरदार का घर था। जब राजा उसके घर के निकट पहुंचा तो बाहर पिंजरे में बैठा तोता बोला, “देखो, कोई आया है, इसे पकड़ो और मार डालो”।
तोते के ऐसे अभद्र शब्द सुन कर राजा ने वहां रुकना मुनासिब न समझा और घोड़े पर सवार होकर उस दूसरे छोर पर जा पहुँचा, जहां संत की कुटिया थी। उस कुटिया के बाहर दूसरा तोता भी पिंजरे में बैठा था।
उसने जब राजा को आते देखा तो बोला, “आइए महानुभाव, आपका स्वागत है। कृपया आसन ग्रहण करें, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ” ?
संगत का प्रभाव – sangati ka asar

इस प्रकार राजा का सत्कार करने के बाद उसने संत को आदर से पुकारा, “गुरु जी, घोड़े पर सवार होकर कोई आंगतुक आया है। बाहर आकर उन्हें आदर सहित भीतर ले जाइए। उनके भोजन – पानी की भी व्यवस्था करें”।
राजा ने जब तोते को इन आदरपूर्वक शब्दों में बोलते सुना तो वह दंग रह गया। तुरंत उसकी समझ मे आ गया कि वातावरण, प्रशिक्षण और संगत का असर कितना गहरा होता है। दोनो तोतों की मिसाल उसके सामने थी।
शिक्षा – व्यक्ति की असल पहचान उसकी संगत से ही होती है।