bandar aur lakdi ka khunta
कुछ बंदर एक पेड़ पर बैठे हुए थे। वहीं पास में मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा था। एक बढ़ई लकड़ी के एक बड़े लठ्टे को बीच में से चीर रहा था। तभी भोजन के लिए अवकाश हो गया। उस बढ़ई ने चीरे हुए भाग के बीच में एक बड़ी सी खूंटी फसा दी। और अपने साथियों के साथ भोजन करने चल दिया।
पेड़ पर बैठे बंदरों ने जब देखा कि सभी लोग चले गए हैं तो वे पेड़ से नीचे उतर कर मंदिर के निकट आ गए। वे वहां पड़ी चीजों और औजारों से खेलने लगे। उनमे से एक बंदर कुछ ज्यादा ही खुराफाती था।
वह उस आधे चिरे हुए टुकड़े के पास जा पहुँचा और उसके ऊपर जाकर बैठ गया। उसने अपनी टांगों को लठ्टे के दोनो और टिका दिया, उसकी पूँछ चिरे हुए हिस्से के बीच लटकने लगी थी।

अब उस नटखट बंदर ने चिरे हुए भाग के बीच फंसी खूटी को खींचना शुरु कर दिया। कुछ देर बाद वह खूंटी अचानक ही बाहर आ गई और लठ्टे के दोनो चिरे हुए हिस्से आपस मे चिपक गए। बंदर की पूँछ बीच में ही दब गई थी। अब वह चीखता चिल्लाता उछल कूद करने लगा था। जब वह किसी तरह से वहां से निकला तो उसकी पूँछ नदारद थी, वह तो चिरे हुए लठ्टे के बीच मे दबी पड़ी थी।
शिक्षा – कुछ भी करने से पहले सोच – विचार अवश्य करें।
यहाँ पढ़ें: पंचतंत्र की अन्य मजेदार कहानियाँ