Gufa ki Awaaz – एक बूढ़ा शेर जंगल में मारा – मारा फिर रहा था। कई दिनों से उसे खाना नसीब नही हुआ था। दरअसल बुढ़ापे के कारण अब वह शिकार नही कर पाता था। छोटे – छोटे जानवर भी उसे चकमा देकर भाग जाते थे।
जब भटकते – भटकते वह काफी थक गया तो एक स्थान पर रुक कर सोचने लगा कि क्या करूं? किधर जाऊं? कैसे बुझाऊं इस पेट की आग? काश ! मैं भी दूसरे शाकाहारी जानवरों की भांति घास – पात, फल – फूल खा लेने वाला होता तो आज मुझे इस प्रकार भूखे नही मरना पड़ता।
यहाँ पढ़ें : पंचतंत्र की 101 कहानियां – विष्णु शर्मा
अचानक उसकी नज़र एक गुफा पर पड़ी। उसने सोचा कि इस गुफा में अवश्य ही कोई जंगली जानवर रहता होगा। मैं इस गुफा में जाकर बैठ जाता हूँ, जैसे ही वह जानवर आएगा, मैं उसे खाकर अपना पेट भर लूंगा। शेर उस गुफा के अंदर जाकर बैठ गया और अपने शिकार की प्रतीक्षा करने लगा।
वह गुफा एक गीदड़ की थी। गीदड़ ने गुफा के करीब आते ही गुफा में जाते शेर के पंजों के निशान देखे तो वह तुरंत खतरा भांप गया। परंतु संकट सामने देखकर उसने अपना संयम नही खोया बल्कि उसकी बुद्धि तेजी से काम करने लगी कि इस शत्रु से कैसे बचा जाए?
गुफा की आवाज – Gufa ki Awaaz
और फिर उसकी बुद्धि में नई बात आ गई, वह गुफा के द्वार पर खड़ा होकर बोला “ओ गुफा ! गुफा”।
जब अंदर से गुफा ने कोई उत्तर न दिया तो गीदड़ एक बार फिर बोला – “सुन री गुफा ! तेरी – मेरी यह संधि है कि जब भी मैं बाहर से आऊंगा तो तेरा नाम लेकर तुझे बुलाऊंगा, जिस दिन तुम मेरी बात का उत्तर नही दोगी तो मैं तुम्हें छोड़कर किसी दूसरी गुफा में चला जाऊंगा”।
जवाब न मिलता देख गीदड़ बार – बार अपनी बात को दोहराने लगा।
अंदर बैठे शेर ने बार – बार गीदड़ के मुंह से यह बात सुनी, तो वह यह समझ बैठा कि यह गुफा गीदड़ के आने पर ज़रूर बोलती होगी। अत: अपनी आवाज़ को भरसक मधुर बनाकर वह बोला – “ अरे आओ – आओ गीदड़ भाई। तुम्हारा स्वागत है”।
“ अरे शेर मामा ! तुम हो। बुढ़ापे में तुम्हारी बुद्धि इतना भी नही सोच पा रही कि गुफाएं कभी नही बोलती।
गीदड़ यह कहकर तेजी से पलट कर भागा। शेर उसे पकड़ने के लिए गुफा से बाहर अवश्य आया, किंतु तब तक वह चालाक गीदड़ नौ दो ग्यारह हो चुका था।
कहानी से सीख – इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि संकट के समय भी बुद्धि का दामन नही छोड़ना चाहिए।
यहाँ पढ़ें: पंचतंत्र की अन्य मजेदार कहानियाँ