घने जंगल में एक शेर रहता था
उसके दो घनिष्ठ मित्र थे – एक कौआ और एक लोमड़ी।
शेर दिन भर शिकार करता और अपना पेट भरने के बाद शेष अपने दोस्तों के लिए छोड़ देता। मुफ्त में बिना हाथ – पैर हिलाए खाने को मिल जाने से वे बेहद खुश थे।
इस प्रकार मुफ्त की खाने से कौआ और लोमड़ी बहुत आलसी हो गए थे और परिश्रम करने की उनकी आदत छूट गई थी।
पास ही के गांव में एक लकड़हारा अपनी पत्नी के साथ रहता था। वे दोनों रोज जंगल में जाते और घंटो परिश्रम करके लकड़ियां काटकर घर लौटते।
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वापस लौटने के बाद लकड़हारे की पत्नी खाना बनाती और दोनों घर के बाहर बैठ कर खाते।
एक दिन शेर ने उन दोनों को घर के बाहर बैठकर खाना खाते हुए देख लिया।
उसकी नाक में दूर से ही स्वादिष्ट भोजन की गंध आ गई थी।
शेर उनके निकट पहुँचा तो बजाय उससे डरने के, दोनों ने उसका स्वागत किया और अपने साथ बैठने को कहा। शेर वही बैठ गया और उन दोनों के साथ उसने भी भोजन किया।
शेर उनका यह सदभाव देखकर खुश तो था ही, इससे भी बड़कर खुशी उसे स्वादिष्ट भोजन खाकर हुई थी।
पहली बार पका हुआ खाने को जो मिला था, वरना पहले तो कच्चा ही खा – चबाकर काम चलता था।
जंगल में वापस लौटने से पहले शेर ने उन दोनों को आतिथ्य सत्कार और स्वादिष्ट भोजन के लिए धन्यवाद किया।
जवाब में लकड़हारे की पत्नी ने उसे रोज वहीं आकर भोजन करने को कहा।
शेर के लिए तो यह सब आश्चर्य चकित कर देने जैसा था।
उसने जानवरों को कभी अपना भोजन बांटते हुए नही देखा था, बल्कि वे तो दूसरों का भोजन भी छीन कर खा जाते थे।
लकड़हारा दम्पति से मिले अपनत्व ने उसका दिल जीत लिया था।
lakadhara aur sher
उसने रोज उन्ही के पास जाकर भोजन करने की सोची।
अब शेर रोज वहां आता और उनके साथ भोजन करता।
धीरे – धीरे वह आलसी हो गया, यहां तक की शिकार करने से भी कतराने लगा।
शेर मे आया यह परिवर्तन उसके दोनों साथियों के लिए परेशानी का कारण बन गया, क्योंकि अब उन्हे बैठै – बैठे खाने को नही मिल रहा था। अक्सर उन्हे भूखा ही सोना पड़ता।
परेशान कौए और लोमड़ी ने शेर मे आए इस परिवर्तन का कारण पता लगाने की ठानी और उसकी गतिविधियों पर नजर रखने लगे।
एक दिन उन्होनें शेर को लकड़हारा दंपति के साथ बैठकर खाते देख लिया।
उन्होने शेर से वहीं जाकर मिलने का निश्चय किया। जैसे ही कौआ और लोमड़ी उनके निकट पहुँचे, लकड़हारा और उसकी पत्नी दौड़ कर एक पेड़ पर चढ़ गए।
उनकी यह हरकत देख शेर हैरान रह गया, बोला, “ तुम मुझे देख कर भाग क्यों गए? मैं तुम्हे नुकसान नही पहुँचाऊगा”।
जवाब में लकड़हारा बोला, “हम तुमसे नही डरते, हां तुम्हारे मित्रों से जरूर डर गए हैं। तुम पर हमे विश्वास है लेकिन तुम्हारे धूर्त मित्रो पर नही। ये तुमसे कहीं ज्यादा खतरनाक हैं।
इनकी धूर्त आदतों के बारे मे हम भलि भांति जानते हैं। इन्हे लेकर बहुत सी कहानियां हमने सुनी हैं। अब हम तब तक नीचे नही उतरेंगे जब तक तुम तीनों यहां हो”।
यह सुनकर शेर का दिल टूट गया और उसने अपने मित्रों से फिर कभी उससे न मिलने को कहा।
शिक्षा – धूर्तों से सतर्क रहने में ही भलाई है।
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