एक बार की बात है, जंगल में एक घने पेड़ पर बनाए घोंसले में कौए का एक जोड़ा अपने बच्चों के साथ चैन से रहता था। उनका घोंसला बहुत सुंदर व मजबूत था, वह पेड़ की मजबूत शाखा पर बना था।
इसी पेड़ पर एक मोटा बंदर भी रहता था। Kauwa aur Bandar उसके रहने का कोई ठिकाना नही था, कभी किसी शाखा पर सो जाता तो तभी किसी पर। इसी तरह उसके दिन गुजरते थे।
एक दिन तेज तूफान के साथ मूसलाधार वर्षा होने लगी, ठंडी हवा भी चलने लगी। चारों ओर पानी ही पानी हो गया।

इस खराब मौसम में भी कौंओं का जोड़ा अपने बच्चों के साथ घोसलों में सुरक्षित था, लेकिन बंदर को कोई सुरक्षित स्थान न मिला।
वह वर्षा में भीगता हुआ ठंड से कांपता रहा।
उसे अफसोस भी हो रहा था और गुस्सा भी आ रहा था कि क्यों उसने नहीं अपना स्थाई बसेरा बनाया, कम से कम मौसम की मार तो न झेलनी पड़ती।
कौए ने जब उसकी ऐसी दयनीय हालत देखी तो बोला, “तुम इतने मोटे – ताजे होते हुए भी अपने रहने का ठिकाना क्यों नही बनाते? हमें देखो, हमारे पास मौसम की मार से बचने के लिए यह घोंसला है… और एक तुम हो। इतने हट्टे – कट्टे होते हुए भी कोई स्थाई बसेरा नही बना पाए हो।
तुम एक डाल से दूसरी डाल पर डेरा डालते रहने के बजाय अपना घर क्यों नही बना लेते। ईश्वर ने तुम्हे दो हाथ दिए हैं, उनका सदुपयोग क्यों नही करते”।
Kauwa aur Bandar
मौसम की मार झेल रहा बंदर वैसे ही क्रोध में भरा बैठा था। कौए की यह बात सुन कर बंदर का पारा गरम हो गया, वह गुस्से में बोला, “तू मूर्ख काला कौआ, तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे सलाह देने की मैं क्या करुं क्या नही। लगता है तुम तमीज भूल गए हो। अभी तुम्हे बताता हूँ कि अपनो से बड़ों से कैसे बात की जाती है”।
यह कहकर बंदर नें पेड़ की एक शाखा तोड़ी और कौए के घोंसले को तोड़ना शुरु कर दिया। थोड़ी ही देर में घोंसले के तिनके बिखर गए।
कौए के बच्चे नीचे गिर कर मर गए लेकिन कौए का जोड़ा किसी तरह जान बचाकर उड़ गया।
अब उन्हें अपने बच्चों की मौत के साथ बंदर को सलाह देने का भी दुख था। इसके अलावा वे और कर भी क्या सकते थे। उजड्ड को सीख देने का परिणाम तो भोगना ही था।
शिक्षा – किसी के व्यक्तिगत मामलों में दखल नहीं देना चाहिए।