बहुत पुरानी बात है, वर्धमानक नामक एक ग्रामीण व्यापारी अपनी बैलगाड़ी में बैठकर मथुरा की ओर जा रहा था। बैलगाड़ी को खींचने वाले बैलों के नाम संजीवक व नंदक थे। दोनों बैल अपने मालिक से बहुत प्रेम करते थे।
व्यापारी की बैलगाड़ी जब यमुना के खादर से गुजर रही थी, तभी अनजाने में संजीवक के पैर दलदल में जा धंसे।
बैल ने बाहर निकलने का बहुत प्रयास किया परंतु उसे सफलता नही मिली। व्यापारी ने भी उसे बाहर निकालने की बहुत कोशिश की, किंतु कोई फायदा नही हुआ। आखिरकार उसने संजीवक को वहीं छोड़ दिया और आगे बढ़ गया।
अब संजीवक उदासी में सोच रहा था, “ मैंने उम्र भर अपने मालिक की सेवा करी और उसने मुझे इसका यह ईनाम दिया”। उसने स्वयं को भाग्य के भरोसे छोड़ दिया।
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उसके पास दो ही विकल्प थे – या तो दलदल में फंसा रहकर प्राण त्याग दे या अंतिम दम तक बचने का प्रयास करे। उसने अपना खोया हुआ साहस बटोरा और बलिष्ठ शरीर की मांसपेशियों की सारी ताकत लगाकर बाहर निकलने का प्रयास किया। अब की बार वह सफल रहा और बाहर निकल गया।
अब उसकी कोई मंजिल न थी और वर्धमानक के पास वह लौटना नही चाहता था। वह यूं ही नदी के किनारे चलने लगा।
कुछ दूर चलने पर जंगल आ गया, जहां उसने भर पेट हरी घास खाई और नदी का ताजा पानी पिया। वह वहीं जंगल में रहने लगा और कुछ ही समय में और भी हट्टा – कट्टा हो गया। अब वह शेर की तरह गर्जना करना भी सीख गया था।
एक दिन जंगल का राजा शेर जिसका नाम पिंगलक था, नदी किनारे पानी पीने वहां आया, तभी उसने ज़ोरदार गर्जना सुनी, ऐसी आवाज़ पिंगलक शेर ने पहले कभी न सुनी थी, अत: वह डरकर अपनी गुफा में जाकर छिप गया।
पिंगलक शेर के दो भेड़िये मंत्री थे, जिनके नाम दमनक और कर्टक थे। जब दमनक को पता चला कि शेर किसी चीज़ से डर गया है तो उसने पूछा, “ महाराज ! आप किसे देखकर इतना भयभीत हैं, मुझे बताइए, मैं उसे आपके सामने पेश कर दूँगा। आप तो जंगल के राजा हैं, इस प्रकार डर कर छिप जाना आपको कतई शोभा नही देता”।
फिर अत्यंत संकोच तथा हिचक के साथ शेर ने उसे अपने डर का कारण बताया। तब दमनक ने उससे कहा कि वह गर्जना भरी आवाज़ के उस स्त्रोत का पता लगा कर रहेगा।
कुछ दिन बाद संजीवक बैल को साथ लेकर दमनक भेड़िया शेर के सामने उपस्थित हुआ और बोला, “महाराज ! यह है वह प्राणी जो गर्जना करता है। इसका कहना है कि इसे भगवान शिव ने यहां भेजा है”।
संजीवक से मिलकर शेर बहुत प्रसन्न हुआ। अब उसका अधिकांश समय संजीवक के साथ ही गुजरता था। धीरे – धीरे शेर सरल स्वभाव का हो गया, उसने शिकार करना छोड़ दिया। शेर की यह हालत देख दमनक और कर्टक तथा जंगल के दूसरे जानवर चिंतित हो गए।
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तब दमनक ने समस्या से मुक्ति पाने के लिए एक उपाय सोचा। वह शेर के पास जाकर बोला, “ महाराज ! संजीवक आपके राज्य पर बुरी नजर रखता है तथा आपको मारकर स्वयं राजा बनना चाहता है”।
फिर अगले दिन दमनक ने संजीवक के पास जाकर अलग कहानी सुनाई। वह बोला, “ शेर ने तुम्हें मारकर तुम्हारा माँस जंगल के जानवरों में बांट देने की योजना बनाई है। इससे पहले की वह तुम्हें मार दे, तुम अपने नुकीले सींगों से उसका प्राणांत कर दो”।
दमनक की यह बात सुनकर संजीवक को बेहद क्रोध आ गया और वह शेर के सामने जाकर भयंकर आवाज़ मे गर्जना करने लगा। संजीवक की यह हरकत शेर को पसंद नही आई और उसने दहाड़ते हुए उस पर छलांग लगा दी। दोनो ही ताक़तवर थे, उनमे भयंकर युद्ध होने लगा। संजीवक ने अपने पैने सींगों से शेर को मारने का प्रयास किया, लेकिन शेर ने अपने मजबूत व भारी पंजों से प्रहार कर उसे मार डाला।
उसे मारकर शेर को दुख हुआ, क्योंकि संजीवक उसका मित्र था। लेकिन दमनक ने उसे विश्वास दिला दिया था कि वह धोखेबाज है, इसलिए उसे ऐसा करना पड़ा। शेर ने बाद में दमनक को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
शिक्षा – चतुर प्राणी अपनी स्वार्थ – सिध्दि की राह ढूंढ ही लेता है।
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