प्रस्तावना- Essay on Lord Rama in Hindi | भगवान श्री राम पर निबंध
भारत भूमि को पुण्य भूमि कहा जाता है क्योंकि यहां ईश्वर मनुष्य तन धारण कर चरित्र किए हैं । भगवान श्री राम हमारे आदर्श हैं । उनका चरित्र हमें मर्यादा पूर्ण जीने की कला सिखाता है । सामाजिक और पारिवारिक व्यवहार का व्यवहारिक ज्ञान कराता है । आदर्श शासन तंत्र के रूप में आज राम राज्य को ही जाना जाता है । श्री राम को हम भगवान मान नित्य पूजन करते हैं ।
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जन्म-
श्री राम, भगवान विष्णु के दसवें अवतार हैं । काल गणना के चतुर्युग में त्रेता युग में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के नौमी तिथि को हुआ । भगवान के इस जन्मदिन को हम लोग रामनवमी के नाम से पर्व के रूप में मनाते हैं । श्री राम का जन्म अयोध्या नगरी में हुआ । उनके पिता का नाम दशरथ एवं माता का नाम कौशल्या था । उनकी दो विमाताएं थी कैकेयी और सुमित्रा ।
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बाल्यकाल
श्रीराम बाल्यकाल से मर्यादित और अनुशांसित थे । अपने व्यवहार के बल पर केवल अपने परिवार अपितु पूरे नगर में सबके चहेते थे । प्रतिदिन सोकर उठते ही अपने माता-पिता का प्रणाम करते थे । अपने छोटे भाइयों को बड़े ही सहज भाव से स्नेह पूर्वक साथ रखते थे और साथ खेला करते थे । खेल खेलते समय भी वे इस बात का ध्यान रखते थे कि किसी भी बात उनके छोटे भाई या अन्य साथी खिलाड़ियों के मन को किसी भी प्रकार दुख न पहुँचे ।
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शिक्षा-दीक्षा
उनके समय में आज के जैसे स्कूल नहीं होते थे, उस समय गुरुकुल हुआ करता था । गुरुकुल गुरुजी और विद्यार्थियों का साझा आवास होता था। श्री राम अपने भाइयों सहित गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल में पढ़ाई करने गए । जहां सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक ज्ञान बहुत कम समय में प्राप्त किए । गुरु द्वारा सिखाये गए सभी प्रकार की शिक्षा में अल्पकाल में ही दक्ष हो गए । राजनीति, अध्यात्म, नैतिक शिक्षा, युद्ध शिक्षा आदि सभी प्रकार के शिक्षा में दक्ष हुए ।
पिता के आज्ञा पालन
श्री राम अभी शिक्षा अध्ययन कर गुरुकुल से लौटे ही थे । विश्वामित्र ऋषि राजा दशरथ के अपने यज्ञ रक्षा के लिए श्री राम को मांगने के लिए आ गए । गुरु वशिष्ठ के समझाने पर राजा ने अपने दो पुत्र राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र के यज्ञ रक्षा हेतु भेजने पर सहमत हो गए । अपने पिता के आदेश पर दोनों भाई विश्वामित्र के साथ चल दिए और जाते समय रास्ते ताड़का नामक राक्षसी जो उनके रास्ते रोक लिए थे उनको मार गिराए । वहां पहुँच कर बड़े ही साहस से यज्ञ रक्षा करते हुए मारीच और सुबाहु नामक दैत्यों को परास्त किया ।
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विवाह
जिस समय श्री राम और लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र के यज्ञ रक्षा में थे उसी समय जनकपुर नामक राज्य मे राजा जनक अपनी पुत्री सीता के विवाह का स्वयंवर का आयोजन किया । इसमें सीता के साथ विवाह करने का एक अनोखा शर्त रखा गया था कि आयोजन में रखे गए एक धनुष को उठा कर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाना है । इस स्वयंवर में ऋषि विश्वामित्र को निमंत्रण दिया था इसलिए वे राम और लक्ष्मण को लेकर वहां गए थे ।
वहां अनेक बलशाली राजा उपस्थित थे सबने बारी-बारी उस धनुष को उठाने का प्रयास किए किंतु असफल रहे । अंत में जब राजा जनक हमाश हो गए कि कोई धनुष नहीं उठा पाए तब गुरु विश्वामित्र के आदेश श्री ने उस धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय धनुष टूट गए । इस प्रकार श्री राम का विवा जनक की पुत्री सीता से संपन्न हुआ ।
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माता-पिता के आज्ञा का पालन करते हुए वनवास जाना
विवाह के बाद अयोध्या में लौट के आने के कुछ वर्षों बाद उनके पिता राजा दशरथ अपने स्थान पर श्री राम को राजा बनाना चाहा इसके लिए सभी तैयारी कर ली गई थी । श्री राम राजतिलक के पूर्व संध्या में ही उनकी विमाता कैकई ने अपने पति दशरथ वरदान के रूप में अपने पुत्र भरत को राजा बनाने और राम को चौदह वर्ष तक नगर से दूर वन में वास करने की मांग की ।
अपने वचन पालन करने के लिए न चाहते हुए भी दशरथ विवश थे राम को वनवास में भेजने के लिए किंतु वह मुख से राम को आदेश न दे सकते थे न देना चाहते थे । जैसे राम को इस बात का ज्ञान हुआ वह स्वेच्छा से अपनी विमाता की इच्छा और अपने पिता के वचन पालन की रक्षा के लिए चौदह वर्ष के वनवास के लिए निकल पड़े । उनके इस वनवास यात्रा में उनकी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण हठ पूर्वक साथ हो लिए ।
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वनवास काल –
श्री राम अपने वनवास काल में केवल दो काम किए एम सज्जनों का सत्कार और दूसरा दुर्जनों का विनाश । वनवास काल के पूरे चौदह वर्ष में मार्ग में निवास करने वाले साधु-संतों का दर्शन करते उनकी सेवा करते और उनके पूजा-पाठ, यज्ञ-हवन में बाधा उत्पन्न करने वाले दुर्जनों दैत्यों का विनाश करते । वनवास के अभी दो वर्ष शेष थे कि इसी समय दैत्यों के राजा रावण ने छल पूर्वक उनकी पत्नी सीता को हरण करके अपनी राजधानी लंका ले गया ।
सीता की खोज करते हुए रास्ते में इनकी मित्रता सुग्रीव से हुआ और यहीं हनुमान जी मिले । इन वानरों की सहायता पता लगा लिया गया सीता में लंका में अपने सतीत्व की रक्षा करती हुई संघर्षरत है । तब राम ने लंका में आक्रमण करने के लिए समुद्र मेें सेतु बनवाया और लंका पर चढ़ाई कर उस अजेय दैत्यराज रावण का वध कर दिया ।
राम राज्य की स्थापना
वनवास अवधि पूर्ण होने पर श्री लौट कर अयोध्या आए और अयोध्या नगरी की राजा हुए । इनकी राजतंत्र की व्यवस्था इतनी अच्छी थी कि इस व्यवस्था को ही राम राज्य की संज्ञा दे दी गई । इनके राज्य में कोई ऊँच-नीच, छोटे-बड़े का भेद नहीं था । इस राज्य न कोई निर्धन था न ही कोई दुखी । राज राज्य का प्रभाव न केवल मनुष्यों पर था अपितु जीव-जंतुओं पर भी था । कहा जाता है राम राज्य में शेर और बकरी एक ही घाट में पानी पीते थे ।
Hindi essay on Lord Rama || Bhagwaan Ram par Nibandh || निबंध भगवान राम पर video
उपसंहार
श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है । श्री राम अपने जीवन चरित्र से हमें जीवन जीने की कला सीखा गए हैं कि हमें कैसे परिवार के साथ व्यवहार करना चाहिए, कैसे पड़ोसी से व्यवहार करना चाहिए, कैसे मित्रों से व्यवहार करना चाहिए, यहां तक शत्रुओं के साथ कैसे मर्यादित व्यवहार करना चाहिए यह सीखाएं हैं । हमें श्री राम के जीवन चरित्र को अपने जीवन में उतारना चाहिए।
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reference
Essay on Lord Rama in Hindi