मेरी माँ पर निबंध | Essay on My Mother in Hindi

मां….हर किसी की जिंदगी का यह पहला शब्द होता है। दुनिया में दस्तक देने के साथ ही हर बच्चे का नाता इस अनोखे रिश्ते से हमेशा के लिए कुछ इस कदर जुड़ जाता है कि जिंदगी में हर सुख और दुख में मां का नाम खुद-ब-खुद जुंबा पर आ जाता है।

अमूमन मां शब्द है तो बेहद छोटा, लेकिन एक अक्षर के शब्द कागज के कुछ पन्नों में समेटना लगभग नामुमकिन है।

हम एक शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है

हम कुंठित हैं तो वह एक अभिलाषा है

बस यही माँ की परिभाषा है।

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हर बच्चे के जन्म लेते ही उसका रिश्ता मां के साथ जुड़ जाता है। भूख लगने पर रोने से लेकर उंगली पकड़ कर चलना सीखने तक हर लम्हें में मां हमेशा बच्चे के साथ रहती है। कहते हैं मां के आंचल में खेलते-खेलते बच्चे कब बड़े हो जाते हैं, यह उन्हें खुद ही पता नहीं चलता है। मां के साथ इसी रिश्ते को एक कवि कुछ पंक्तियों में पिरोते हुए लिखते हैं कि-

घुटनों से रेंगते-रेंगते,

कब पैरो पर खड़ा हुआ,

तेरी ममता की छाव मे,

जाने कब बड़ा हुआ ।

सीधा साधा भोला भला,

मैं ही सबसे अच्छा हूँ,

कितना भी हो जांऊ बड़ा,

माँ! आज भी मैं तेरा बच्चा हूँ ।

कहते हैं बच्चे कितने भी बड़े क्यों न हो जाएं माता-पिता के लिए वो हमेशा बच्चे ही रहते हैं। चाहे हम कितना भी बन ठन कर घर के बाहर रौब झांड़ लें, लेकिन घर आते ही मां की डांट और फिर प्यार करने का अंदाज भला किसे पंसद नहीं होता है। बावजूद इसके हम अकसर बाहर से आते ही सारे काम भूलकर सबसे पहली आवाज मां को ही लगते हैं। मां की इन्हीं प्यारी सी अदाओं को याद करते हुए कवि अमित कुलश्रेष्ठ लिखते हैं-

अंधियारी रातों में मुझको

थपकी देकर कभी सुलाती

कभी प्यार से मुझे चूमती

कभी डाँटकर पास बुलाती

सब दुनिया से रूठ रपटकर

जब मैं बेमन से सो जाता

हौले से वो चादर खींचे

अपने सीने मुझे लगाती

Essay on My Mother in Hindi

कहा जाता है, मां हर बच्चे के जीवन में काफी अहम किरदार अदा करती है। अपना कर्तव्य पूरा करने के साथ-साथ मां बच्चे की पहली अध्यापक भी होती है। जोकि किताबी ज्ञान से परे बच्चों को जिंदगी से रुबरु कराती है।

जीने के तरीके से लेकर समाज के नियमों तक मां हर जगह बच्चों के साथ खड़ी मिलती है। कभी किसी अध्यापक के रुप में तो कभी दोस्त बनकर सबसे पहले बच्चों को सही गलत की पहचान कराने वाली मां ही होती है।

वहीं गलती करने पर हक से फटकार लगाना हो या फिर रुठ जाने पर मनाना, रोते समय आंसू पोछने से लेकर दुख में हिम्मत देने तक जिंदगी के हर पड़ाव में मां हमेशा बच्चों के साथ खड़ी मिलती है।

शायद यही वजह है कि खुशी में हों या तकलीफ में हमारे मुख से आज भी सबसे पहला नाम मां का ही निकलता है। मां के रुप में इसी अद्भुद रिश्ते को बंया करते हुए कवि जगदीश प्रसाद सारस्वत मां को भगवान से भी पहले बताते हैं-

माता कौशल्या के घर में जन्म राम ने पाया,

ठुमक-ठुमक आँगन में चलकर सबका हृदय जुड़ाया..

पुत्र प्रेम में थे निमग्न कौशल्या माँ के प्राण,

माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान..

दे मातृत्व देवकी को यसुदा की गोद सुहाई..

ले लकुटी वन-वन भटके गोचारण कियो कन्हाई,

सारे ब्रजमंडल में गूँजी थी वंशी की तान..

माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान..

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि जगदीश मां और भगवान का जिक्र करते हुए कहते हैं कि हर युग में भगवान राम से लेकर भगवान कृष्ण तक मां के मामता के आगे फीके से प्रतीत होते हैं। फिर चाहे वह राम को चलते देख माता कौशल्या का मुस्कुराना हो या फिर कृष्ण की शररातों पर माता यशोदा की प्रेमपूर्ण फटकार।

जिंदगी की पहली गुरु होने के साथ-साथ मां ही बच्चों की पहली दोस्त होती है और शायद दुनिया में वही एक पहली शख्सियत है, जिससे हम बिना किसी हिचकिचाहट के अपने दिन की सारी बात कह सकते हैं।

खुशी जाहिर करने से लेकर नाराजगी जताने तक और परेशानी बताने से लेकर आंसू बहाने तक जीवन के हर पड़ाव पर मां हमारी अहम दोस्त बनकर रास्ता दिखाती है।

मां का रिश्ता है बड़ा, दुनिया में अनमोल।

मन के खारे सिन्धु में, रहता यह मधु घोल।।

कई बार हम उनकी बातों से इत्तेफाक नहीं रखते हैं फिर भी उनकी सलाह को सबसे ज्यादा तवज्जों देते हैं। इसके कई उदाहरण हमारी रोजमर्रा के जीवन से भी मिल जाते हैं।

यहां मेरा ही उदाहरण ले लीजिए। बचपन में कभी मां ने बताया था कि, कहीं जाते समय अगर बिल्ली रास्ता काटे तो थोड़ी देर रुक जाना चाहिए…इस बात को कई साल बीत गए हैं। बेशक अब इन बातों में यकीन नहीं रहा लेकिन आज भी अगर कभी बिल्ली सामने से गुजरे तो मां की कही बात तुरंत याद आ जाती है और पैर खुद-ब-खुद ठहर जाते हैं।

जीवन तपती धूप है, तू शीतल सी धार

थपकी लोरी में छुपा मां का अनपढ़ प्यार।

तुझसे ही सांसे मिलीं तुझसे जीवन गीत

तुझ से ही रिश्ते जुड़े तू पावन सी प्रीति।

शायद इसी जुड़ाव के कारण ही मां को दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता कहा जाता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि, सिर्फ बच्चे ही मां की बातों को याद नहीं रखते हैं बल्कि मां भी बच्चों की फेवरेट ड्रेस से लेकर फेवरेट फूड तक हर छोटी-बड़ी जरुरतों की लम्बी लिस्ट हमेशा अपने साथ रखती है।

कई बार तो मां बिना कहे ही दिल की सारी बात समझ जाती है। विज्ञान की भाषा में इसे सिक्स सेन्स कहते हैं। यानी यह कहना गलत नहीं होगा कि बच्चों के मामले में मां का सिक्स सेन्स कमाल का होता है। अपने इसी हुनर के चलते दुनिया की हर मां कभी अपने बच्चों का चेहरा पढ़ने में माहिर होती है, तो कभी उनके साथ होने वाली हर अनहोनी पहले ही भांप जाती है।

यही कारण है कि मां को धरती पर भगवान के बाद का दर्जा दिया जाता है। मां, अम्मी और मदर….शब्द चाहे किसी भी मजहब का हो, लेकिन यह रिश्ता हर रंग में अनोखा होता है। इसी संदर्भ में कवियत्री अराधना शुक्ला जी लिखतीं हैं-

अम्मा, मम्मी मां कहो, मॉम कहो या मात।

धरती पर मां ईश है, मां अनुपम सौगात।।

Essay on My Mother in Hindi FAQ


विश्व मातृ दिवस कब मनाया जाता है

हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को अंतर्राष्ट्रीय मातृ दिवस के रुप में मनाया जाता है।

मदर्स डे की शुरुआत कैसे हुई?

मातृ दिवस की शुरुआत अन्ना जार्विस द्वारा की गयी थी। अन्ना ने 12 मई 1907 को अपने स्वर्गीय माता की याद में अमेरिका के पश्चिमी वर्जिनिया में मातृ दिवस मनाया था।

हैप्पी फादर्स डे कब मनाया था?

हर साल 19 जून को पिता दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 19 जून 1910 को हुई थी। 1972 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इस दिन को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया था।

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