प्रस्तावना | Essay On Who I Am in Hindi | मैं कौन हूँ पर निबंध हिंदी मे | Who Am I Essay in Hindi
मैं कौन हूँ ? मेरा परिचय क्या है ? यह मेरे लिए खुद एक प्रश्न है । जब मैं अपने बारे में सोचता हूँ तो यह प्रश्न अपने आप से स्वाभाविक तौर पर उठता है कि लोग जो मुझे समझते हैं, मैं वैसा ही हूँ या अंदर से कुछ और हूँ । लोग मुझे मेरे प्रचलित नाम के अतिरिक्त कई नामों से जानते हैं । कुछ लोग मुझे अंतर्मुखी कहते हैं, कुछ लोग शरारती कहते है, कुछ लोग गुस्सैल कहते हैं तो कुछ लोग नटखट प्यारा कहते हैं यहां तक कि कुछ लोग मुझे घमंडी भी कहते हैं । यह तो लोगों की अपनी-अपनी नजरिया है । पर मैं वास्तव हूँ कौन यह तो मैं ही अनुभव कर सकता हूँ ।
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मेरा खुद का परिचय मेरी नजर में-
एक मनुष्य होने के नाते सारे मानवीय भावनाएँ भी मेरे अंदर स्वाभाविक रूप से है । समय-समय पर अलग-अलग भावनाएं मेरे अंदर से प्रकट होती है । जो लोग मेरी जिस भावना से परिचित होते हैं, उसे ही मेरा स्वभाव मान कर उसी के अनुसार मेरा परिचय निर्धारित कर लेते हैं लेकिन यह मेरा वास्तविक परिचय नहीं है ।
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मैं हर परिस्थिति के अनुकूल अपने आप को ढाल लेता हूं । घर परिवार में पारिवारिक सदस्यों के घुल-मिल कर रहता हूं । स्कूल में अपने सहपाठियों के साथ आसानी से सामंजस्य बना लेता हूं । इसलिए स्कूल में मेरे बहुत सारे मित्र हैं । मैं तो अपनी नजर में सामाजिक व्यक्ति हूँ, जिसे समाज से सरोकार है । मैं अपने मित्रों की खुशी से खुश होता हूं और दुख से दुखी । इसलिए मैं एक भावुक व्यक्ति हूँ ।
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मेरी प्रकृति
मैं हर परिस्थिति में स्वयं को खुश रखने का प्रयास करता हूँ । प्रतिकूल परिस्थिति मुझे तकलीफ दे सकता है किन्तु तोड़ नहीं सकता । सुख-दुख को मैं दिन-रात के जैसे जीवन में आने वाला क्रमिक घटना मानता हूँ । जिस प्रकार प्राकृतिक घटनाएं क्रियाएं अनवरत अपने क्रम से जारी है उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के स्वभाव का का भी स्वयं का क्रम है । यही मानकर मैं दूसरों के कामों में हस्तक्षेप नहीं करता न मैं यह चाहता कि कोई मेरे कामों में हस्तक्षेप करे । मैं अपना निर्णय स्वयं लेना पसंद करता हूँ । अपने निर्णय के लिए दूसरों से ज्यादा सलाह लेना मुझे पसंद नहीं ।
मेरे स्वभाव
मुझे लोगों के साथ घुलमिल कर रहना ज्यादा पसंद है, किन्तु उनके व्यक्तिगत कामों में हस्तक्षेप करना या अनावश्यक सलाह देना कतई पसंद नहीं है । मैं अपने व्यक्तिगत बातों की चर्चा दूसरों से करना पसंद नहीं करता इसलिए लोग मुझे अंतर्मुखी कह देते हैं । मैं जहां तक हो सके दूसरों का सम्मान करता हूँ और अपने लिए भी सम्मान की इच्छा रखता हूं इसलिए कुछ लोग मुझे आत्माभिमानी भी कह देते हैं ।
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निष्कर्ष
सारा जगत अच्छाई और बुराई से अटा पड़ा है । मैं भी सांसारिक आदमी हूं मुझ में भी कुछ अच्छाई है तो निश्चित रूप से कुछ न कुछ बुराई भी । जब-जब मुझे अपनी बुराई का ज्ञान होता है, उसे सुधारने का भरसक प्रयास करता हूँ । किन्तु लोभ, लालच, तृष्णा जैसे बुराई बार बार मुझ पर आक्रमण करते हैं और हर बार मैं इनसे बच कर निकलने का प्रयास करता हूं । कुल मिलाकर मैं एक सांसारिक आदमी हूं, सामाजिक व्यक्ति हूं जिसे समाज और संसार से सरोकार है ।
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reference
Essay On Who I Am in Hindi