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बीरबल की बुद्धिमानी | अकबर बीरबल की कहानियाँ | Akbar Birbal Story in Hindi | Birbal ki Budhimani akbar birbal ki kahani
एक बार की बात है, बीरबल की किसी बात से बादशाह को गुस्सा आ गया। उन्होंने बीरवल को दरबार से निकाल दिया और आगरा से दूर चले जाने का हुक्म दिया, और बीरबल से कहा “ फिर कभी मुझे अपना चेहरा मत दिखाना।”
बीरबल ने कहा, जैसी आपकी आज्ञा, जहांपनाह!” फिर वे चुपचाप वहां से चले गए। कुछ दिनों बाद बादशाह अकबर को एहसास हुआ कि उनसे भारी भूल हो गई। उन्हें बीरबल की बहुत याद आ रही थी।
उन्होंने अपने नौकरों को भेजा कि वे बीरबल को वापस ले आएं, लेकिन उनका कोई पता नहीं चला। बीरबल अपने घर पर भी नहीं थे। यह कोई नहीं जानता था कि वे कहा चले गए।
बादशाह अकबर ने उन्हें खोजने का बहुत प्रयास किया, लेकिन बीरबल के बारे में उनके परिवार वालों को भी कोई जानकारी नहीं थी। एक दिन अकबर के दरबार में एक साधु महाराज अपने दो शिष्यों के साथ पधारे।
शिष्यों ने दावा किया कि उनके गुरु जी दुनिया के सबसे बुद्धिमान आदमी हैं। बादशाह अकबर ने सोचा कि क्यों न वे उस साधु को बीरबल की जगह रख लें।लेकिन वे पहले उसकी परीक्षा लेना चाहते थे।
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बादशाह ने दरबारियों से कहा कि वे साधु से कठिन सवाल पूछें। फिर दरबारियों द्वारा सवाल पूछे गए।
एक मंत्री ने पूछा, “इस संसार में सबसे श्रेष्ठ क्या है?”
“ज्ञान!” साधु ने कहा।
दूसरे मंत्री ने पूछा, “इस दुनिया में सबसे गहरा क्या है?” ।
“एक स्त्री का हृदय।” साधु महाराज ने कहा।
तीसरे मंत्री ने पूछा, “ऐसा क्या है, जिसे खोने के बाद कभी पाया नहीं जा सकता?”
“जीवन।” साधु ने मुस्कराते हुए जवाब दिया।
मंत्री ने पूछा, “रात को सुनाई देने वाला सबसे मधुर स्वर क्या है?”
“भगवान से की गई प्रार्थना के स्वर “
मंत्री ने पूछा, “वह क्या है, जिसकी गति पवन से भी तेज है?”
“इन्सान की सोच ।”
मंत्री ने पूछा, “इस धरती पर सबसे मीठा क्या है?”
“एक बालक की मुस्कान।”
इस तरह सभी मंत्री बारी-बारी से सवाल पूछते रहे और साधु महाराज फटाफट सभी प्रश्नों के उत्तर देते गए। सभी दरबारी ‘वाह-वाह’ करने लगे।
बादशाह अकबर ने सोचा कि उन्हें साधु से खूब कठिन प्रश्न करना चाहिए, इसलिए उन्होंने उस साधु से पूछा, “किसी राज्य को चलाने के लिए कौन-सा गुण होना चाहिए?” “चतुराई । ” साधु ने कहा।
फिर बादशाह अकबर ने साधु से दूसरा सवाल पूछा, “एक राजा का सबसे बड़ा दुश्मन क्या है?” “उसका स्वार्थ।” साधु महाराज बोले।
बादशाह अकबर ने साधु से अगला सवाल पूछा, “क्या तुम कोई जादुई करिश्मा दिखा सकते हो?”
साधु ने कहा, “मैं उस व्यक्ति को आपके सामने ला सकता हूँ, जिससे आप मिलने की इच्छा रखते हैं। ” यह सुनते ही बादशाह अकबर उत्साहित हो उठे। उन्हें कई दिनों से बीरबल की बहुत याद आ रही थी। आज उन्हें अपने मन की बात कहने का अवसर मिल गया।
बादशाह बोले, “मुझे अपने बीरबल की बहुत याद आ रही है। मैं उससे मिलना चाहता हूं।” साधु ने उसी समय अपनी नकली दाढ़ी और मूंछ उतार दी। बीरबल ही साधु के वेश में वहां आए थे। समस्त दरबारी बीरबल को देखकर चकित रह गए।
बादशाह अकबर अपने बीरबल को अपने सामने देखकर खुशी से झूम उठे। उन्होंने बीरबल के सहायक बने शिष्यों को भी इनाम देकर दरबार से विदा किया।
पिछली बहस के बारे में न तो बादशाह अकबर ने कुछ कहा और न ही बीरबल कुछ बोले। उन दोनों का रिश्ता कुछ ऐसा ही था। वे लोग जानते थे कि भले ही आपस में किसी विषय को लेकर कितनी भी बहस कर लें या लड़ लें, मगर एक-दूसरे के बिना चैन से कदापि नहीं रह सकते।
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