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Akbar Birbal Story in Hindi | akbar ne ki parakh akbar birbal ki kahani
जब बादशाह अकबर को राज काज से थोड़ा समय मिलता था, तो वह बीरबल के साथ हल्के-फुल्के विषय पर बातचीत करते थे। इस प्रकार दरबार का बोझिल माहौल खुशनुमा बन जाता था। बादशाह अकबर प्राय बीरबल से घुमा फिरा कर सवाल पूछते और बीरबल भी उसी तरह घुमा फिरा कर जवाब देते। ऐसी स्थिति में सभी मंत्रियों और दरबारियों का खूब मनोरंजन होता था।
दरअसल बादशाह अकबर अपने प्रिय मंत्री बीरबल की बुद्धि को हमेशा तेज बनाए रखते थे। वे जानते थे जो लोग अपनी बुद्धि का जितना अधिक प्रयोग करते हैं, वे उतनी ही जाती है।
1 दिन दरबार से फुर्सत पाने के बाद अकबर ने बीरबल से टेढ़ा सा सवाल पूछा।उन्होंने कहा, “ बीरबल, तुम्हारे लिए एक सवाल है। देखें कि तुम क्या जवाब देते हो। अगर तुम्हें सोने के सिक्के और न्याय के बीच किसी एक का चुनाव करना हो, तो तुम किसे सुनोगे?”
बीरबल ने कुछ क्षण तकविचार किया, फिर बोले, “ जहांपनाह मैं तो अपने लिए सोने के सिक्के ही चुन लूंगा।” यह सुनकर अकबर चौक गए।

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बादशाह अकबर पहली बार बीरबल के उत्तर से निराश हुए। सोच भी नहीं सकते थे कि बीरबल न्याय के स्थान पर सोने के सिक्कों का चुनाव करेंगे। अकबर ने बीरबल से कहा, “ मुझे तुम्हारा उत्तर सुनकर बहुत सदमा हुआ। मैं यह नहीं जानता था कि तुम धन के इतने बड़े लालची हो, मैं तो हमेशा यह सोचता था कि तुम दूसरों की भलाई चाहते हो, इसलिए न्याय का साथ दोगे, तुम एक बार ठीक से सोच लो। मैं तुमसे फिर से वही सवाल पूछता हूं, क्या तुम अपना जवाब बदलना चाहोगे?”
बीरबल ने कहा, “ जहांपना, माफ करें, मैं अपना उत्तर नहीं बदलना चाहता, क्योंकि मैंने कुछ गलत नहीं कहा। मैं अब भी यही कहूंगा कि मैं न्याय के बदले सोने के सिक्के लेना चाहूंगा।”
यह सुनकर बादशाह अकबर को बहुत बुरा लगा। बोले, “तुम बिना सोचे विचारे ऐसा जवाब क्यों दे रहे हो? क्या तुम हमारे राज्य का आदर्श वाक्य भी भूल गए? क्या हम अपने नागरिकों को यह नहीं कहते कि हम सदा न्याय प्रदान करेंगे। मुझे यह जानकर बहुत दुख हुआ कि तुम्हारे लिए न्याय कोई मायने नहीं रखता।
मैं तो सोचता था कि मेरे प्रिय होने के कारण तूम मेरे राज्य के बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति हो। तुम हमेशा दूसरों को न्याय दिलवाने की हर कोशिश में मेरे साथ रहोगे।”बीरबल बहुत धैर्य से बादशाह अकबर की सारी बातें सुन रहे थे। जब अकबर ने अपनी बात समाप्त की तो बीरबल बोले, “ जहांपना, क्षमा चाहूंगा। मैं आपको नीचा नहीं दिखाना चाहता था। लेकिन सच तो यही है कि मैं अपने लिए सोने के सिक्के ही चुनता।
“ जहांपना मैं जानता हूं कि आप एक न्यायप्रिय शासक है।आप हमेशा दुखी और असहाय लोगों को न्याय देते हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि बादशाह अकबर के रहते राज्य में कभी किसी के साथ अन्याय नहीं हो सकता। मैं एक गरीब आदमी हूं। मेरे पास बहुत ज्यादा धन और बहुमूल्य सामान नहीं है। मुझे अपने परिवार की उचित देखरेख भी करनी होती है। यही कारण है कि मैंने सोने के सिक्कों का लाजवाब सुना।”
बीरबल के जवाब से बादशाह अकबर संतुष्ट हो गए थे। वास्तव में कोई निर्धन आदमी न्याय के बजाय सोने के सिक्के की लेना चाहेगा, क्योंकि उसके द्वारा तो हर काम हो सकते हैं।
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