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अकबर-बीरबल की दूसरी मुलाकात | अकबर बीरबल की कहानियाँ | Akbar Birbal Story in Hindi | akbar birbal ki dusri mulakat akbar birbal ki kahani
बहुत दिन बीत गए महेश दास भट्ट प्राय: बादशाह अकबर द्वारा दी गई सान श्री अंगूठी को उलट-पलटकर देखा करता था। वो अंगूठी अत्यंत मूल्यक थी।
उसे अच्छी तरह याद था कि बादशाह अकबर ने उसे अंगूठी की निशानी दिखाकर कभी मिलने के लिए कहा था।
महेश दास भट्ट पहले कभी राजधानी नहीं गया था और न ही वह वहां किसी को जानता था।
परंतु एक दिन महेश दास भट्ट ने निश्चय कर लिया कि वह बादशाह अकबर से मिलने जाएगा। उसने शहर जाने के लिए अपना सामान बांधा और राजधानी आगरा के लिए रवाना हो गया।
जब महेश दास भट्ट महल पर पहुंचा, तो एक दरबान ने दरबार में जाने से रोक लिया। तब महेश ने उस बादशाह अकबर की दी हुई अंगूठी दिखाई. और कहा, “बादशाह ने कुछ दिनों पहले मुझे यह अंगूठी दी थी और कहा था कि तुम्हें जब भी फुरसत मिले, मुझसे मिलने के लिए शाही दरबार चले आना।”
अंगूठी देखते ही लालची दरबान का लालच जाग उठा। उसने महेश दास भट्ट से कहा, “सुनो भाई, मैं तुम्हें एक ही शर्त पर दरबार में जाने दूंगा।”
“ठीक है भाई, अपनी शर्त बताओ।” महेश बोला। तब दरबान ने महेश से कहा, “अगर बादशाह अकबर से भेंट करने के बाद तुम्हें कोई इनाम मिला, तो उसमें से आधा हिस्सा मुझे देना होगा।”
दरबान की यह बात सुनकर महेश दास भट्ट हैरान रह गया, लेकिन उसने लालची दरबान की शर्त मान ली।

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जब महेश अंदर पहुंचा, तो अकबर का शाही दरबार लगा हुआ था। महेश दरबार और महल की सुंदरता देख मोहित हो उठा। सारे दरबारी अपने-अपने स्थानों पर विराजमान थे। दरबार की शोभा निराली थी।
“तुम यहां क्या करने आए हो, नौजवान?” बादशाह ने पूछा। ‘जहांपनाह! मैं महेश दास भट्ट हूं। कुछ दिनों पहले आपसे मेरी भेंट हुई थी और आपने मुझसे दरबार में आने के लिए कहा था। ”
लेकिन बादशाह अकबर को याद नहीं आया कि उससे कहां भेंट हुई थी। तब महेश ने वो अंगूठी दिखाई और जंगल में रास्ता भटकने वाली सारी घटना बादशाह अकबर को याद दिलाई।
वह अंगूठी देखते ही बादशाह अकबर को याद आ गया कि वे किस तरह शिकार खेलते हुए जंगल में रास्ता भटक गए थे और महेश दास भट्ट की हाजिर जवाबी के कारण उसे अपनी अंगूठी देते हुए उन्होंने शाही दरबार में आने का निमंत्रण दिया था।
बादशाह अकबर महेश दास भट्ट को अपने सामने देखकर बहुत प्रसन्न हुए। वे महेश की हाजिर जवाबी के दीवाने हो चुके थे। उन्होंने खुश होकर कहा, “जो तुम्हारे जी में आए, वह इनाम मांग लो। “
महेश दास भट्ट को दरबान की बात अच्छी तरह याद थी, उसने कहा, “जहांपनाह! मुझे पचास कोड़े लगवाए जाएं।” यह सुनकर सभी दरबारी हैरान रह गए।
बादशाह अकबर समझ गए कि महेश की इस बात में भी कोई राज छिपा है। अतः उन्होंने एक दरबारी से महेश की इच्छा पूरी करने को कहा। जब महेश को पच्चीस कोड़े लग गए, तो उसने दरबारी को रोक दिया।
फिर उसने दरबान वाला किस्सा सबको बता दिया। यह सुनकर बादशाह अकबर को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने लालची दरबान को दरबार में हाजिर होने का हुक्म दिया।
जब दरबान दरबार में हाजिर हुआ, तो बादशाह अकबर ने उसे पचास कोड़े मारने और पांच साल तक कैद में रखने की सजा दी।
बादशाह अकबर ने महेश दास भट्ट की समझदारी तथा हाजिर जवाबी से खुश होकर उसे अपना दीवान बना दिया और ‘बीरबल’ के नाम से पुकारने लगे। दरबान को अपने लालच का फल मिल गया और महेश दास भट्ट ‘बीरबल’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
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