भारत के इतिहस में प्राचीन काल से ही धरती को मां समझा जाता रहा है। जो सदियों से अपने हरे-भरे मैदानों, बर्फ से ढ़के पहाड़ों, समुद्र की उफान मारती लहरों के लिए मशहूर है। हालांकि वर्तमान में धरती की यह खूबसूरती कई वजहों से खतरें में पड़ गयी है, जिसका एक प्रमुख कारण प्रदूषण भी है।
धरती पर उत्पन्न होने वाले कई हानिकारक तत्वों के कारण हवा और पानी प्रदूषित हो रहे हैं, जिसका असर प्रकृति सहित धरती पर रहने वाले जीवों पर देखा जा सकता है। अमूमन पृथ्वी पर प्रदूषित करने में कई प्राकृतिक और मानवीय कारण जिम्मेदार हैं।
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Essay on pollution in hindi || प्रदूषण पर निबंध हिंदी में
प्रदूषण के प्राकृतिक कारण
विवर्तनिक गतिविधि (tectonic activity), ज्वालामुखी विस्फोट(volcanic eruptions), भूस्खलन (landslides), भूकंप जैसे कई प्रकृतिक आपदाओं के चलते पृथ्वी असंतुलित हो जाती है और नतीजतन कई हानिकारक तत्व हवा और पानी में मिलकर धरती के जीवों को नुकसान पहुंचाते हैं। उदाहरण के लिए जहां ज्वालामुखी फटने से कार्बनडाई ऑक्साइड, कार्बनमोनो ऑक्साइड, सल्फरडाई ऑक्साइड और मीथेन जैसी हानिकारण गैसें हवा को प्रदूषित करतीं हैं, वहीं विवर्तनिक गतिविधि और भूकंप से होने वाले भस्खलन का मलबा नदियों के पानी को दूषित करता है।
प्रदूषण के मानवीय कारण
मानवीय कारणों से होने वाले प्रदूषणों के लिए वाहन से निकलने वाले धुएं के रुप में विशैली गैसें, पराली जलाना, भारी मात्रा में प्लास्टिक का इस्तेमाल, बिजली उत्पादन के लिए कोयला जलाना और कारखानों से निकलने वाले पदार्थ जिम्मेदार हैं।
लिहाजा उपरोक्त कारणों के चलते प्रदूषण वर्तमान में एक वैश्विक समस्या बन गया है। यही नहीं बड़े शहरों में होने वाले प्रदूषण का असर दूर आर्किटक और अंटार्कटिक में भी देखा जा रहा हैं, जहां बर्फ काफी तेजी से पिघल रही है। एक अध्ययन के अनुसार प्रदूषण से बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग के चलते जहां एक ओर बर्फ तेजी से पिघल रही है, वहीं समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण आने वाले कुछ सालों में दुनिया की मशहूर शहर मसलन – लंदन, न्यूयॉर्क, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, मालदीव और इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता समुद्र में डूब जाएगी।
प्रदूषण के प्रकार
वायु प्रदूषण–
आमतौर पर हवा में घुलने वाले हानिकारक पदार्थ आसानी से नजर नहीं आते हैं लेकिन खासकर सर्द मौसम में कोहरे में मिलने वाले इन प्रदूषकों को देखा जा सकता है। कोहरे और प्रदूषण के समीकरण को आम भाषा में धुंध कहा जाता है। जिससे न सिर्फ लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है बल्कि इससे स्वास्थय पर भी काफी बुरा प्रभाव पड़ता है।
वायु प्रदूषण के कारण अस्थमा (सांस के मरीज), फेफड़ों में कैंसर, आंखों में जलन जैसी बिमारियां होती हैं। कई बार वायु प्रदूषण प्राकृतिक आपदा का भी रुप धारण कर लेता है। उदाहरण के लिए 1984 में होने वाले भोपाल गैस त्रासदी में एक फैक्ट्री से गैस लीक होने के चलते 8000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी थी, वहीं कई लोग गंभीर रुप से घायल भी हुए थे।
वहीं ज्वालामुखी विस्फोट भी वायु प्रदूषण में वृद्धि करता है। इस विस्फोट से निकलने वाली सल्फरडाई ऑक्साइड गैस कई बार जानलेवा साबित है। अप्रैल 2020 में इंडोनेशिया में स्थित एनाक क्राकातोआ (anak Krakatoa – child of Krakatoa) के विस्फोट के चलते जहां आस-पास रहने वाली जनसंख्या में कई गंभीर बिमारियां पाई गयीं वहीं महीनों तक सूर्य की रौशनी पूरी तरह से धरती पर न पहुंच पाने के कारण पर्यावरण को भी भारी नुकसान हुआ।
इसके अलावा वाहन से निकलने वाली गैसें भी बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण में वृद्धि करतीं हैं। देश की राजधानी दिल्ली इसका एक बड़ा उदाहरण है। जहां बड़ी तादाद में वाहन होने के कारण सर्दियों में धुंध एक आम समस्या बन जाती है। दिल्ली सरकार की ऑज-इवन योजना और क्नॉट प्लेस पर लगा स्मॉग टॉवर वायु प्रदूषण का ही परिणाम है। एक सर्वे के मुताबिक गंभीर वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली में रहने वाले लोगों की उम्र 10 साल कम हो जाती है।
वहीं दिल्ली में स्थित कारखानों से निकलने वाला धुंआ भी खासा हानिकारक होता हैं। जिसका असर दिल्लीवासियों के साथ-साथ आस-पास के कई शहरों में भी देखने को मिलता है। आगरा में ताजमहल के सफेद संगमरमर का पीला होना वायु प्रदूषण का ही अंजाम है।
यही नहीं वायु प्रदूषण सीधे तौर पर मानसून की हवाओं और बादलों के निर्माण को भी प्रभावित करता है, जिसके कारण हाल के दिनों में मानसून पैटर्न में काफी बदलाव देखा जाता सकता है।
जल प्रदूषण–
जल ही जीवन है- जैसी पंक्तियां हम हमेशा से सुनते आए हैं। खासकर भारत में जहां जल और नदियों को पूजा जाता है, वहीं गंगा और गोदवरी जैसी नदियों को देश की लाइफलाइन माना जाता है। ऐसे में इस नदियों में होने वाला जल प्रदूषण देश के एक बड़ी जनसंख्या को नुकसान पहुंचाता है।
इसी कड़ी में पहाड़ी इलाकों में होने वालाभूस्खलन इस नदियों को प्रदूषित करने का अहम कारण है। 2013 में उत्तराखंड त्रासदी से लेकर 2021 में चमोली भूस्खलन तक ने गंगा और उसकी सहायक नदियों, जिनपर देश की 40 फीसदी आबादी निर्भर है, को भारी मात्रा में दूषित किया था। वहीं ग्लोबल वार्मिंग के चलते नदियों में बाढ़ जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर देती है। असम में ब्रह्मपुत्रा की बाढ़ और केरल की बाढ़ त्रासदी इसका उदाहरण है।
नदियों में होने वाले प्रदूषण के अलावा कई जगहों पर इक्ठ्ठा पानी भी जल प्रदूषण के साथ-साथ अनगिनत बिमारियों को जन्म देता है। मलेरिया जल प्रदूषण से उत्पन्न होने वाली ऐसी ही एक भयानक बिमारी है, जिसके कारण हर साल कई लोगों की मौत हो जाती है।
वहीं पृथ्वी पर होने वाले इस जल प्रदूषण से समुद्र की सतह भी अछूती नहीं है। जहां एक तरफ समुद्र में जाने वाला प्लास्टिक और कचड़ा समुद्री जीव-जंतुओं के लिए जान का खतरा उत्पन्न कर रहा है, वहीं महासागर अम्लीकरण (ocean acidification) के चलते कोरल ब्लीचिंग जैसी घटनाएं आम हो गयीं हैं।
इसी कड़ी में हिंद महासागर और आर्किटिक महासागर में हुए ऑयल लीक की घटनाओं ने समुद्री जीवन को काफी नुकसान पंहुचाया है। वहीं तेजी से होता शहरीकरण ने भी जल प्रदूषण में खासा इजाफा किया है। उदाहरण के लिए राजधानी दिल्ली के कारखानों से निकलने वाला कचड़ा यमुना नदी के पानी को प्रदूषित कर ऑक्सीजन की मात्रा को कम कर देता है। नतजीतन यमुना का नाम देश की प्रदूषित नदियों की फेहरिस्त में शुमार हो गया है।
भूमि प्रदूषण–
वायु और जल के अलावा भूमि प्रदूषण में भी मानवीय कारक अहम भूमिका निभाते हैं। जहां प्लास्टिक के जहरीले कैमिकल्स मिट्टी में मिल जाते हैं, तो वहीं फसलों में इस्तेमाल होने वाले पेस्टिसाइड और कैमिकल्स मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर देते हैं। जिसका प्रभाव सीधे तौर पर फसलों की उपज पर देखा जा सकता है।
अन्य प्रदूषण –
वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और भूमि प्रदूषण के अलावाप्रकाश प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण भी पर्यावरण संतुलन को बिगाड़ने का काम करते हैं। एक सर्वे के मुताबिक महानगरों में रात के समय अत्यंत लाइट जलने कारण पेड़-पौधे सहित कई जीव-जंतुओं का शयन चक्र(sleeping cycle) प्रभावित हो रहा है।
हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 18 शहर एशिया में स्थित हैं, जिसमें से 13 सिर्फ भारत में हैं। वहीं राजधानी दिल्ला और चीन की राजधानी बीजिंग दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर हैं।
ऐसे में जाहिर है प्रदूषण की रोकथाम के लिए दुनियाभर की सरकारें प्रयासरत हैं। 2015 में फ्रांस की राजधानी पैरिस में हुआ पैरिस समझौता इसी का एक उदाहरण हैं, जिसमें प्रदूषण को कम करने के लिए ग्रीन ऊर्जा, सौर्य ऊर्जा और कार्बन न्यूट्रैलिटी जैसे लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं, जिसके तहत स्थायी पर्यावरण (sutainable environment) की संकल्पना को अंजाम दिया जाएगा। महात्मा गांधी के शब्दों में – “पृथ्वी पर इतना कुछ है कि वह सभी की आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है, पर इतना नहीं है कि एक भी व्यक्ति के लालच को पूरा कर सके।“
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