‘दहेज’ शब्द अरबी भाषा के ‘जहेज’ शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है, जिसका अर्थ होता है-भेंट या सौगात। भेंट में काम सम्पन्न हो जाने पर स्वेच्छा से अपने परिजन या कुटुम्ब को कुछ उपहार अर्पित करने का भाव निहित रहता है। वास्तम में, दहेज और ‘स्त्रीधन’ की प्राचीन हिन्दू परम्परा से सम्बन्धित है। विवाह के समय कन्यादान में क्यू के पिता, जबकि स्त्रीधन में घर के पिता, कपड़े एवं गहने दूसरे सम्बन्धित पक्ष को देते हैं वह दहेज होता है।
सांस्कारिक हिन्दू विवाह प्रणाली के अनुसार विवाह हमेशा के लिए सम्पन्न होता है, जिसे स्त्री-पुरुष के जीवित रहते भंग नहीं किया जा सकता अर्थात् हिन्दू समाज में विवाह एक संस्कार है, जो के साथ ही समाप्त हो सकता है, जबकि अन्य समाज में विवाह एक समझौता है, इसलिए यहाँ इसे भंग करने का भी प्रावधान है।
प्राचीन भारतीय हिन्दू समाज में दहेज की प्रथा का स्वरूप स्वेच्छावादी था। कन्या के पिता तथा उसके पक्ष के सदस्य स्वेच्छा एवं प्रसन्नता से अपनी पुत्री को जो ‘पत्रम् पुष्पम् फलम् तोयम्’ प्रदान करते थे, उसमें वाध्यता नहीं थी। सामर्थ्य के अनुसार दिया गया ‘दान’ था। तुलसीदास ने रामचरितमानस’ में पार्वती के विवाह के दौरान उनके पिता हिमवान द्वारा दहेज दिए जाने का वर्णन किया है।
“दासी दास तुरंग रथ नागा। धेनु बसन मनि वस्तु विभागा। अन्न कनक भाजन भरि जाना। दाइज दीन्ह न जाइ बखाना।।”
उपरोक्त पंक्तियों का अर्थ है–सेविका, सेवक, घोडे, रथ, हाथी, गायें, वस्त्र आदि बहुत प्रकार की वस्तुओं के साथ-साथ अनाज और सोने के बर्तन गाड़ियों में लदबाकर दहेज में दिए गए, जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता।
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दहेज प्रथा का वर्तमान स्वरूप | Dowry System Essay in Hindi
आज दहेज का स्वरूप पूरी तरह परिवर्तित हो गया है। वर का पिता अपने पुत्र के विवाह में कन्या के पिता की सामर्थ्य-असामर्थ्य, शक्ति-अशक्ति, प्रसन्नता अप्रसन्नता आदि का विचार किए बिना उससे दहेज के नाम पर धन वसूलता है। दहेज, विवाह बाज़ार में बिकने वाले घर का वह मूल्य है, जो उसके पिता की सामाजिक प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिति को देखकर निश्चित किया जाता है।
जिस प्रथा के अन्तर्गत कन्या का पिता अपनी सामर्थ्य से बाहर जाकर, अपना घर-द्वार बेचकर अपने शेष परिवार का भविष्य अन्धकार में धकेलकर दहेज देता है, यहाँ दहेज लेने वाले से उसके सम्बन्ध स्नेहपूर्ण कैसे हो सकते हैं। ‘मनुस्मृति’ में वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष वालों से दहेज लेना राक्षस विवाह के अन्तर्गत रखा गया है, जिसका वर्णन ‘मनु’ ने इस प्रकार किया है।
“”कन्या प्रदानं स्वाच्छन्यादासुरो धर्म उच्येत्त।”
इस प्रकार यहाँ कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को धन आदि दिया जाना दानव धर्म बताया गया है। अतः वर्तमान समय में दहेज प्रथा भारतीय समाज में व्याप्त एक ऐसी कुप्रथा है, जिसके कारण कन्या और उसके परिजन अपने भाग्य को कोसते रहते हैं।
माता-पिता द्वारा दहेज की राशि न जुटा पाने पर कितनी कन्याओं को अविवाहित ही जीवन बिताना पड़ता है, तो कितनी ही कन्याएँ अयोग्य या अपने से दोगुनी आयु वाले पुरुषों के साथ ब्याह दी जाती है। इस प्रकार, एक ओर दहेज रूपी दानव का सामना करने के लिए कन्या का पिता गलत तरीकों से धन कमाने की बात सोचने लगता है, तो दूसरी ओर कन्या भ्रूण हत्या जैसे पापों को करने से भी लोग नहीं चूकते हैं।
महात्मा गांधी ने इसे ‘हृदयहीन गुराई’ कहकर इसके विरुद्ध प्रभावी लोकमत बनाए जाने की वकालत की थी। जवाहरलाल नेहरू ने भी इस का खुलकर विरोध किया था। राजा राममोहन राय, महर्षि दयानन्द आदि समाज सेवकों ने भी इस घृणित कुप्रथा को उखाड़ फेंकने के लिए लोगों का आह्वान किया था। प्रेमचन्द ने उपन्यास ‘कर्मभूमि’ के माध्यम से इस कुप्रथा के कुपरिणामों को देशवासियों के सामने रखने का प्रयास किया।
दहेज प्रथा उन्मूलन सम्बन्धी कानून एवं महिलाओं की स्थिति भारत में दहेज निषेध कानून, 1961 और घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के लागू होने के बावजूद दहेज न देने अथवा कम दहेज देने के कारण प्रतिवर्ष लगभग 5,000 बहुओं को मार दिया जाता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान समय में भारत में लगभग प्रत्येक 100 मिनट में दहेज से सम्बन्धित एक हत्या होती है। अधिकांश दहेज हत्याएँ पति के घर के एकान्त में और परिवार के सदस्यों के सहयोग से होती हैं, इसलिए अधिकांश मामलों में अदालत प्रमाण के अभाव में दहेज हत्यारों को दण्डित भी नहीं कर पाती हैं। कभी-कभी पुलिस छानबीन करने में इतनी शिथिल हो जाती है कि न्यायालय भी पुलिस अधिकारियों की कार्य-कुशलता और सत्यनिष्ठा पर सन्देह प्रकट करते हैं।
अतः दहेज प्रथा अर्थात् दहेज प्रताड़ना से बचाव के लिए आईपीसी की धारा 498 ए में प्रावधान किया गया है। इसमें पति या उसके रिश्तेदारों के ऐसे सभी बर्ताव को शामिल किया गया है, जो किसी महिला को मानसिक या शारीरिक हानि पहुचाएँ या उसे आत्महत्या करने पर मजबूर करता हो। इसके लिए दोषी पाए जाने पर पति को अधिकत्तम तीन वर्ष की सजा का प्रावधान है। वर्ष 2015 में इससे सम्बन्धित 1,18,403 मामले सामने आए थे। अतः इसे लेकर वर्ष 2017-18 में सर्वोच्च न्यायालय ने पुनर्विचार कर शक्त बनाया है।
दहेज हत्या पर समाजशास्त्रियों के निम्नलिखित विचार हैं
• मध्यम वर्ग की स्त्रियों के उत्पीड़न की दर निम्न वर्ग या उच्च वर्ग की स्त्रियों से अधिक होती है।
• लगभग 70% पीड़ित महिलाएँ 21-24 वर्ष आयु समूह की होती है अर्थात् ये केवल शारीरिक रूप से ही नहीं, अपितु सामाजिक एवं भावात्मक रूप से भी अपरिपक्च होती हैं।
• वह समस्या निम्न जाति की अपेक्षा उच्च जाति की अधिक है।
• हत्या से पहले युवा वधू को कई प्रकार से सताया एवं अपमानित किया जाता है, जो पीड़िता के परिवार के सदस्यों के सामाजिक व्यवहार के अव्यवस्थित स्वरूप को दर्शाता है।
• दहेज हत्या के कारणों में सबसे महत्त्वपूर्ण समाजशास्त्रीय कारक, अपराधी पर बातावरण का दबाव या सामाजिक तनाव है, जो उसके परिवार के आन्तरिक एवं बाह्य कारणों से उत्पन्न होता है।
• लड़की की शिक्षा के स्तर और दहेज के लिए की गई उसकी हत्या में कोई पारस्परिक सम्बन्ध नहीं होता। नववधू की हत्या में परिवार की रचना निर्णायक भूमिका निभाती है।
• अन्य महत्त्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक कारक जैसे-हत्यारे का सत्तावादी व्यक्तित्व, प्रबल प्रकृति और उसके व्यक्तित्व का असमायोजन है।
दहेज प्रथा पर निबंध/ Dahej pratha par nibandh/essay on dowry system in Hindi video
निष्कर्ष
दहेज सम्बन्धी कुप्रथा का चरमोत्कर्ष यदि दहेज हत्या है, तो इसके अतिरिक्त महिलाओं के बिरुद्ध हिंसा के अन्य स्वरूपों का प्रदर्शन भी सामने आता है, जिसमें पत्नी को पीटना, लैंगिक या अन्य दुर्व्यवहार, मानसिक एवं शारीरिक प्रताड़ना आदि शामिल हैं।
भारत की पवित्र धरती से दहेज रूपी विप वृक्ष को समूल उखाड़ फेंकने के लिए देश के युवा वर्ग को आगे आना होगा। युवाओं के नेतृत्व में गाँव-गाँव और शहर-शहर में सभाओं का आयोजन करके लोगों को जागरूक करना होगा, ताकि वे दहेज लेने व देने जैसी बुराइयों से बच सके। साथ ही युवाओं को यह प्रण लेना होगा कि हम ना दहेर लेगे और ना देंगे। ताकि समाज में लोगों हृदय परिवर्तन हो सके।
प्रेस और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी इस कुप्रथा को दूर करने में खुलकर सहयोग करने की आवश्यकता है। इस प्रकार, समाज में फैली सामाजिक बुराई दहेज प्रथा के नाम पर नारियों पर हो रहे अत्याचार को हमें समाप्त करना होगा।
सामाजिक मुद्दों पर निबंध | Samajik nyay
reference
Dowry System Essay in Hindi