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महिला आरक्षण पर निबंध | Women Reservation Essay in Hindi

सम्पूर्ण विश्व में महिला सशक्तीकरण एवं महिला सम्बन्धी नीतियों का मुख्य लक्ष्य महिलाओं को राजनीतिक रूप से सशक्त करना रहा है। विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के 72 वर्षों बाद भी भारतीय नारी • लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में पीछे छूट गई है। भारतीय संविधान द्वारा स्त्री-पुरुष को समान दर्जा दिए जाने के बाद भी देश की महत्त्वपूर्ण राजनीतिक संस्थाओं में स्त्री की भागीदारी 20% से भी कम है।

भारतीय समाज में स्त्रियों के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार की समाप्ति एवं उनकी राजनीतिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए 12 सितम्बर, 1996 को पहली बार महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था, जो तब से लेकर आज तक राजनीतिक दलों की राजनीति का शिकार है। मार्च, 2010 में राज्यसभा में यह विधेयक पारित हो जाने के बाद “महिलाओं को 33% आरक्षण देने की नीति पर काफी विवाद हो गया। वर्ष 2017 तक इस विधेयक पर पूर्णत: सहमति नहीं बन पाई। परिणाम यह हुआ, कि लोकसभा ने इसे भारी मतभेद के कारण अभी तक पारित नहीं किया है।

महिलाओं को दोयम दर्जे का प्राणी न केवल भारतीय, बल्कि पूरे विश्व के पुरुष प्रधान समाजों में माना जाता रहा है। यही कारण है कि आज भी विश्व की अधिकांश संसदीय व्यवस्था वाले देशों में महिलाओं की हिस्सेदारी 20% से भी कम है।

इण्टर पार्लियामेण्ट्री यूनियन की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 193 देशों में मात्र 50 देशों की संसदों में महिलाओं की भागीदारी 30% या उससे अधिक है। शेष देशों में महिलाओं की भागीदारी 30% से नीचे है। विश्व के एक चौथाई देशों में महिला सांसदों की भागीदारी 14% से कम है। विश्व में खाण्डा, क्यूबा तया बोलीविया ऐसे देश हैं, जहाँ 50% से अधिक महिलाओं की भागीदारी है।

संयुक्त राष्ट्र के मानकों के अनुसार संसद में महिलाओं की भागीदारी 30% होनी चाहिए। चीन, रूस, कोरिया, फिलीपीन्स आदि देशों में महिलाओं को 33% आरक्षण का पहले से ही प्रावधान किया हुआ है, जबकि फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, नॉर्वे आदि देशों की राजनीतिक पार्टियों ने भी महिलाओं को 33% आरक्षण दे रखा है। 

भारत वर्तमान में महिला आरक्षण को लेकर कानून बनाने में असफल रहा है। इसके बावजूद 17वीं लोकसभा (2019) में महिला सांसदों की संख्या 62 से बढ़कर 78 हो गई है, जो कुल सासदों का 14.39% है। अतः भारत को इसे और बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि भारत की भागीदारी अपने पड़ोसी देश चीन, पाकिस्तान व चांग्लादेश से कम है।। 

Women Reservation Essay in Hindi
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महिला आरक्षण की आवश्यकता क्यों ?

भारत में जहाँ एक ओर स्त्रियाँ आर्थिक रूप से पुरुष के अधीन रही हैं, वहीं दूसरी ओर सार्वजनिक जीवन में भी उनकी स्थिति अत्यधिक असन्तोषजनक रही है। इस असन्तोषजनक स्थिति को समाप्त करने के लिए आवश्यक है कि उनकी राजनीतिक स्थिति को सुदृद किया जाए। राजनीतिक स्थिति से तात्पर्य यही है कि ऐसे अनेक निकायों में, जो निर्णयकारी है और जिन निकायों में राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक नीतियों को निर्धारित किया जाता है, महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

बिना आरक्षण महिलाओं की राजनीतिक स्थिति को सुदृढ़ कर पाना अत्यधिक कठिन है, क्योंकि अधिकांश राजनीतिक दल पुरुष प्रधान मानसिकता वाले हैं, जो चुनावों में सामान्यतया महिलाओं को अपना उम्मीदवार नहीं बनाते। महिला प्रमुख पार्टियाँ भी पुरुष प्रधान समाज के कारण पुरुषों को ही उम्मीदवार बनाने के लिए बाध्य हैं। सरकार के विधायी एवं कार्यकारी अंगों में भी महिलाओं की भागीदारी न के बराबर है। अत: वे स्त्री के अधिकारों के सम्बन्ध में आवाज़ नहीं उठा पाती, इसलिए यह आवश्यक है कि विधायी संस्थाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व हेतु एक सुनिश्चित प्रतिशत स्थान आरक्षित किया जाए।

महिला आरक्षण विधेयक के अनुसार, संसद में 33.3% सीटें महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होगी। चुनाव के लिए लॉटरी के द्वारा एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएँगी। वास्तव में, भारतीय राजनीति में आरक्षण का प्रावधान अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का परिणाम था। अंग्रेज़ों ने भारत परिषद् अधिनियम, 1909 के माध्यम से पहली बार मुसलमानों को पृथक् एवं प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व दिया।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद संविधान के अनुच्छेद-15(4) एवं अनुच्छेद-16(4) के अतिरिक्त अनुच्छेद- 330 से लेकर अनुच्छेद-342 तक भारतीय समाज में सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए विभिन्न प्रकार के आरक्षणों की व्यवस्था की गई है, किन्तु अभी तक गठित किसी भी समिति या आयोग ने महिलाओं के लिए स्वतन्त्र रूप से आरक्षण प्रदान करने की कभी भी संस्तुति नहीं की। महिलाओं को आरक्षण देने सम्बन्धी मुद्दा पहली बार राजीव गांधी ने उठाया था।

प्रधानमन्त्री इन्द्रकुमार गुजराल के शासनकाल में महिला आरक्षण विधेयक को पारित करवाने की पूरी कोशिश की गई। उसके बाद भाजपा के नेतृत्व वाली गठबन्धन सरकार ने विधेयक को संसद में प्रस्तुत किया, लेकिन हर बार लोकसभा एवं विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण देने का मामला विभिन्न राजनीतिक दलों के मध्य तीव्र मतभेद होने के कारण पारित नहीं हो सका।

इन दलों की माँग ‘आरक्षण में आरक्षण देने की है, जिसका अर्थ है- महिलाओं के लिए आरक्षित 99% सीटों में भी एक-तिहाई सीटें अल्पसंख्यक, दलित एवं पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित करना। वर्ष 2016 में बिहार सरकार ने राज्य स्तरीय नौकरियों में महिलाओं को 35% आरक्षण प्रदान कर महिला आरक्षण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है।

इससे पूर्व बिहार सरकार पंचायत चुनावों में महिलाओं को 50% आरक्षण प्रदान कर चुकी है। इसके अतिरिक्त भारत के अन्य राज्यों में भी यह प्रावधान किया गया है, जो महिला आरक्षण की दिशा में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। के महिला आरक्षण के सन्दर्भ में सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि उन्हें पर्याप्त आरक्षण क्यों मिलना चाहिए? समाज का सुधारवादी या प्रगतिशील वर्ग मानता है कि आरक्षण के माध्यम से पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त होने से समाज का पर्याप्त विकास सम्भव है, जबकि समाज के रूढ़िवादी वर्ग का मानना है कि विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर उसका बुरा प्रभाव पारिवारिक प्रणाली पर पड़ेगा, जिससे समाज के विकास की नींव कमजोर हो जाएगी।

उत्तर वैदिककाल से ही महिलाओं की सामाजिक एवं राजनीतिक प्रस्थिति निरन्तर निम्न होती गई। ‘मनु’ जैसे नीति निर्धारक ने तो स्त्रियों के बारे में स्पष्ट रूप से घोषणा कर दी कि-

पिता रक्षति कौमार्य, भर्ता रक्षति यौवने। रक्षन्ति स्थविरे पुनाः, न स्त्री स्वातन्त्र्य मर्हति ।।

अर्थात्, “बचपन में स्त्री की रक्षा पिता करता है, जवानी में पति तथा बुढ़ापे में पुत्र इसलिए स्त्रियाँ स्वतन्त्रता के योग्य ही नहीं हैं।” धीरे-धीरे मध्यकाल तक आते-आते उनके सभी अधिकार छीन लिए गए। उन्हें पुरुषों के उपयोग की मस्तुमात्र बना दिया गया। पर्दा प्रथा के आगमन के साथ-साथ उनकी स्थिति और दयनीय होती गई, लेकिन समय के साथ आधुनिक काल में पाश्चात्य शिक्षा के विकास एवं प्रसार के बाद महिलाओं के लिए एक बार फिर विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है। ऐसी स्थिति में महिलाओं को अपने सर्वांगीण विकास के लिए हरसम्भव कोशिश करनी चाहिए और पुरुष वर्ग को उनकी इस कोशिश में ईमानदारीपूर्वक सहायता करनी चाहिए। 

महिलाओं की वर्तमान स्थिति व उपलब्धियाँ

शिक्षा के क्षेत्र में अपनी क्षमता का परिचय देने के बाद स्त्रियों ने जीवन के अन्य क्षेत्रों; जैसे- व्यवसाय, प्रशासर आदि में भी अपना प्रभाव दिखाना प्रारम्भ कर दिया है, इसके बावजूद उन्हें यह महसूस हो रहा है कि राजनीति में पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त किए बिना उन्हें अपने सम्पूर्ण विकास के लिए अनुकूल वातावरण प्राप्त नहीं हो सकता। सत्ता में सशक्त भागीदारी के विना विकास असम्भव है।

अच्छा तो यह होता कि महिलाओं को विधायिकाओं में आरक्षण देने की अपेक्षा शैक्षिक एवं आर्थिक क्षेत्र में विकास के पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाते तथा समाज में ऐसा बातावरण निर्मित किया जाता, जिससे स्त्रियाँ स्वयं को प्रासंगिक एवं स्वतन्त्र महसूस करती तथा देश के विकास में पुरुषों के समकक्ष भागीदार बनती, लेकिन पुरुष मानसिकता प्रधान समाज में संकीर्ण विचारधारा के कारण लोग उन्हें घरों की चहारदीवारी में ही कैद रहने का समर्थन करते हैं, क्योंकि बास्तव में, उन्हें अपनी सत्ता पर खतरा नजर आता है। अतः वर्तमान में महिलाओं की विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने की क्षमता व योग्यता, दृढ संकल्प कार्यप्रणाली ने पुरुषों को प्रभावित किया है। ऐसी स्थिति में आरक्षण को बढ़ावा देना प्रासंगिक साबित होगा। 

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Women Reservation Essay in Hindi

निष्कर्ष

इस प्रकार, सभ्यता के आरम्भ से ही मानव समाज के विकास में ‘आधी आबादी’ की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। है और हमेशा रहेगी। ऐसी स्थिति में किसी भी समाज का पूर्ण विकास समाज के आधे सदस्यों को अलग-थलग करके नहीं किया जा सकता। अतः समय की माँग है कि समाज के चतुर्मुखी एवं समग्र विकास के लिए आधी आबादी को सहयोगी बनाया जाए और उसकी सहभागिता के लिए यदि आरक्षण आवश्यक हो, तो इस प्रणाली को भी क्रियान्वित किया जाए।

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मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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