इण्टरनेट विज्ञान की वह अद्भुत देन है, जिसने दुनिया को बदलकर रख दिया है। जहाँ इसके सामने सीमाएँ सिकुड़ी है, वहीं इसके माध्यम से ज्ञान और अभिव्यक्ति का फलक विस्तृत हुआ है। सूचनाओं के आदान-प्रदान में त्वरितता भी आई है, तो जीवन के विविध क्षेत्रों में सुविधाओं और सहूलियतों में भी बढ़ोतरी हुई है। इतना ही नहीं, अब यह राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने का एक सशक्त माध्यम भी बन चुका है। वर्तमान परिवेश में इण्टरनेट का महत्त्व इतना अधिक बढ़ गया है कि यह वर्तमान समाज का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है।
वस्तुत: इण्टरनेट (Internet), इण्टरनेशनल नेटवर्किंग (International Networking) का संक्षिप्त रूप है। यह दुनियाभर में फैले हुए छोटे-बड़े कम्प्यूटरों का विशाल और विश्वव्यापी जाल (Globle Network) है, जो विभिन्न संचार माध्यमों द्वारा समान नियमों का अनुपालन कर एक-दूसरे से सम्पर्क स्थापित करता है तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान सम्भव बनाता है। यह नेटवकों का नेटवर्क है। यह संसार का सबसे बड़ा नेटवर्क है, जो दुनियाभर में फैले व्यक्तिगत, सार्वजनिक, शैक्षिक, व्यापारिक तथा सरकारी नेटवकों के आपस में जुड़े होने से बनता है।
इण्टरनेट तक पहुँच का अधिकार | Right to the Internet as a Fundamental Right Essay in Hindi
डिजिटलाइजेशन के युग में इण्टरनेट संचार और सूचना प्राप्ति का एक विश्वसनीय माध्यम बन गया है। दशकों पूर्व इण्टरनेट तक पहुँच को बिलासिता का साधन माना जाता था, परन्तु वर्तमान में इण्टरनेट सभी की आवश्यकता बन गया है। इण्टरनेट की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सितम्बर, 2019 में केरल उच्च न्यायालय ने फहीमा शिरिन बनाम केरल राज्य के मामले में संविधान के अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत आने वाले निजता के अधिकार और शिक्षा के अधिकार का एक हिस्सा बनाते हुए इण्टरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया।
केरल के कोझीकोड में पढ़ने वाली एक छात्रा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस पी बी आशा में इण्टरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया। उल्लेखनीय है कि छात्रा को उसके कॉलेज हॉस्टल से इसलिए निष्कासित कर दिया गया था, क्योंकि वह हॉस्टल में प्रतिबन्धित समय के दौरान मोबाइल का प्रयोग कर रहे थी। छात्रा ने इसी विषय को लेकर केरल उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया था कि इस प्रकार का प्रतिबन्ध लिंग के आधार पर भेदभावपूर्ण था, क्योंकि यह ब्वॉयज हॉस्टल में समान रूप से लागू नहीं था।

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संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1) (क) प्रत्येक भारतीय नागरिक को बाकू तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार प्रदान करता है। बाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था का अनिवार्य अंग है। बाक की स्वतन्त्रता से आशय भाषण (बोलने) की स्वतन्त्रता से है, जबकि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की अवधारणा अत्यधिक व्यापक है। इसके अन्तर्गत अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के सभी अधिकार शामिल हैं। यद्यपि इसमें प्रेस की स्वतन्त्रता और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की स्वतन्त्रता का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, पर न्यायालय ने भाषण की स्वतन्त्रता को लोकतन्त्र का मूल अधिकार माना है। इसी प्रकार इण्टरनेट भी लोगों का अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का एक प्रमुख माध्यम है। अतः इसे भी अनुच्छेद 19(1) (क) के अन्तर्गत अधिकार माना जा सकता है।
मौलिक अधिकार ऐसे अधिकार हैं, जो व्यक्ति के जीवन के लिए अनिवार्य होते हैं तथा संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं। इण्टरनेट भी जीवन के लिए अब अनिवार्य हो चुका है। इण्टरनेट के बिना दुनिया में अब कोई भी काम सम्भव नहीं है। आज भारत दुनिया का सर्वाधिक डाटा खपत करने वाला देश बन गया है, जो इण्टरनेट की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है। अतः इसे एक मौलिक अधिकार के रूप में माना जा सकता है, क्योंकि इसके बिना जीवन अधूरा हो जाएगा।
इण्टरनेट की महत्ता
• इण्टरनेट संचार का एक अमूल्य उपकरण है और आज इस बात से कदापि इनकार नहीं किया जा सकता कि इण्टरनेट की उपलब्धता ने वर्तमान युग में संचार को अत्यधिक आसान एवं सुविधाजनक बना दिया है।
• इण्टरनेट ने दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले उन विद्यार्थियों के लिए भी बेहतर शिक्षा का विकल्प खोल दिया है, जिनके पास अब तक इस प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।
इण्टरनेट के माध्यम से किसी भी प्रकार की सूचना को कुछ ही मिनटों में प्राप्त किया जा सकता है। इण्टरनेट ने लोगों में जागरूकता का संचार कर दिया है। सूचना तक आसान पहुँच के कारण सामान्य जन अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक हुए हैं।
• यह सरकार की जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ाता है तथा साथ-ही-साथ सरकारी योजनाओं के सफल कार्यान्वयन में सहायक है।
• यह राजनीति एवं लोकतन्त्र में नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने में मदद करता है।
• शिक्षा के क्षेत्र में इण्टरनेट की भूमिका आज अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो गई है। इसमें बिल्कुल भी सन्देह नहीं है कि वर्तमान में लगभग सभी अपनी समस्याओं और प्रश्नों के लिए सर्वप्रथम गूगल का ही सहारा लेते हैं। इण्टरनेट पर लगभग सभी विषयों की बहुत सारी जानकारी उपलब्ध है, जिसे आवश्यकतानुसार कभी भी खोजा जा सकता है।
• देश में शिक्षा के समक्ष जो सबसे बड़ी बाधा है, वह शिक्षा की लागत है, किन्तु इण्टरनेट ने इस बाधा को काफी हद तक कम कर दिया है, साथ ही इण्टरनेट के माध्यम से तत्काल एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। इण्टरनेट ने शिक्षक और विद्यार्थियों के मध्य संचार को सुगम बनाने का कार्य किया है।
भारत में इण्टरनेट की उपलब्धता के समक्ष कठिनाइयाँ
निगत कुछ वर्षों में कई निजी और सरकारी सेवाओं का डिजिटलाइजेशन किया गया है और जिनमें से कुछ तो सिर्फ ऑनलाइन ही उपलब्ध है, जिसके कारण उन लोगों को असमानता का सामना करना पड़ता है, जो डिजिटली निरक्षर हैं। विश्वसनीय सूचना, आधारभूत ढांचे और डिजिटल साक्षरता की कमी से उत्पन्न होने वाला डिजिटल विभाजन सामाजिक और आर्थिक पिछडेपन का कारण हो सकता है।
● डिजिटल विभाजन को पूरे भारत के सामाजिक-आर्थिक स्पेक्ट्रम अर्थात् ग्रामीण और शहरी भारत, अमीर और गरीब भारत की जनसांख्यिकीय प्रोफाइल (भूढ़े और जवान, पुरुष और महिला) के बीच देखा जा सकता है।
● वर्तमान में भारत में डिजिटल साक्षरता की दर 2096 से कम है।
इण्टरनेट के अधिकार की प्रासंगिकता
इण्टरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार का रूप देना, डिजिटल असमानता को कम करने हेतु उठाए गए कदम के रूप में देखा जा सकता है। साथ ही इण्टरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा देने से अन्य अधिकारों; जैसे-शिक्षा का अधिकार, निजता का अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार आदि को सहायता मिली है।
इस कदम से डिजिटल विभाजन को कम करने में भी सहायता मिलती है। ध्यातव्य है कि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2016 में इण्टरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने की घोषणा की थी और साथ ही कहा था कि इण्टरनेट से लोगों को पृथक् करना मानवाधिकारों का उल्लंघन और अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के विरुद्ध है।
अतः इसे ध्यान में रखते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 10 जनवरी, 2020 को जम्मू-कश्मीर में लगी इण्टरनेट की पाबन्दियों पर रोक लगाते हुए कहा कि इण्टरनेट का उपयोग जम्मू-कश्मीर के लोगों का मौलिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत आता है, इसलिए सरकार इसे अनिश्चितकाल तक बन्द नहीं कर सकती।
निष्कर्ष
इस प्रकार, इण्टरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में केरल हाईकोर्ट द्वारा मान्यता देना तथा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जम्मू-कश्मीर में लगी इण्टरनेट की पाबंदियों पर रोक लगाना एक सराहनीय कदम है। निश्चय ही यह कदम न केवल मौलिक अधिकारों को सहारा देगा, बल्कि यह देश में डिजिटल असमानता को कम करने में भी महायता करेगा, किन्तु इसका पूर्ण लाभ तभी प्राप्त होगा, जब इसके समक्ष खड़ी बाधाओं; जैसे—-डिजिटल साक्षरता और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी आदि को समय रहते दूर कर दिया जाए।
सामाजिक मुद्दों पर निबंध | Samajik nyay
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Right to the Internet as a Fundamental Right Essay in Hindi