राष्ट्र निर्माण में नारी का योगदान पर निबंध | Rashtra Nirman Me Nari Ka Yogdan Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Role of Women in Nation Building in Hindi

राष्ट्र निर्माण में नारी का योगदान पर निबंध | Rashtra Nirman Me Nari Ka Yogdan Essay in Hindi

जब भारतीय ऋषियों ने अथर्ववेद में “माता भूमिः पुत्र अहं पृथिव्या” अर्थात् भूमि मेरी माता है और हम इस धरा के पुत्र हैं की प्रतिष्ठा की, तभी सम्पूर्ण विश्व में ‘नारी-महिमा’ का उद्घोष हो गया था। नेपोलियन बोनापार्ट ने नारी की महत्ता को बताते हुए कहा था कि “मुझे एक योग्य माता दे दो, मैं तुमको एक योग्य राष्ट्र दूंगा।”

‘नारी’ भारतीय जनजीवन की मूल पुरी है। यदि यह कहा जाए कि संस्कृति, परम्परा या धरोहर नारी के कारण ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित होती रही है, तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जब जब समाज में जड़ता आई है, नारी शक्ति ने ही उसे जगाने के लिए तथा उससे जूझने के लिए सन्तति तैयार करके आगे बढ़ने का संकल्प लिया है। ‘नारी’ विधाता की सर्वोत्तम और उत्कृष्ट सृष्टि है। 

नारी की सूरत और सौरत की पराकाष्ठा और उसकी गहनता को मापना दुष्कर ही नहीं, अपितु असम्भव भी है। सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक और साहित्यिक जगत में नारी के विविध स्वरूपों का न केवल बाह्य, अपितु अन्तर्मन के गूढ़लम माथ-सौन्दर्यात्मिक स्वरूप का मी रहस्योद्घाटन हुआ है। 

नारी प्रकृति एवं ईश्वर द्वारा प्रदत्त अद्द्भुत पवित्र साध्य’ है, जिसे अनुभव करने के लिए ‘पवित्र साधन’ का होना आवश्यक है। इसकी न तो कोई सीमा है और न ही कोई छोर यह तो एक बिराट स्वरूप है, जिसके समक्ष स्वयं विधाता भी नतमस्तक होता है। यह अमृत बरदान होने के साथ-साथ दिव्य औषधि भी है।

नारी ही यह सौंधी मिट्टी की महक है, जो जीवन की बगिया को महकाती है और न केवल व्यक्तिगत, यक्ति राष्ट्र-निर्माण एवं विकास में अपनी महती भूमिका निभाती है। नारी के लिए यह कहा जाए कि यह “विविधता में एकता है” तो कोई बड़ी बात नहीं होगी, क्योंकि महिलाओं के बाह्य स्वरूप, सौन्दर्य और पहनावे में विविधता तो होती है, लेकिन उनके मानस में एकाकार और केन्द्रीय शक्ति ईश्वर की तरह ‘एक’ ही होती है।

इसी शक्ति के इर्द-गिर्द सूर्य और अन्य ग्रहों की भाँति अनेक प्रकार के सद्गुण निरन्तर गतिमान रहते हैं; जैसे-विश्वास, प्रेम, करुणा, निष्ठा, दया, समर्पण, त्याग, बलिदान, ममता, शीतलता, स्नेह, कुशलता, कर्तव्यपरायणता, सहनशीलता, मर्यादा, समता, सृजनशीलता एवं सहिष्णुता इत्यादि। इन्हीं विविध शक्तियों के परिणामस्वरूप महिलाओं का राष्ट्र-निर्माण और विकास में अद्भुत और अतुलनीय योगदान पाया जाता है। महिलाओं के इस सतत् योगदान को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं।

Rashtra Nirman Me Nari Ka Yogdan Essay in Hindi
Rashtra Nirman Me Nari Ka Yogdan Essay in Hindi

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नागरिक निर्माण के रूप में योगदान

मानव कल्याण की भावना, कर्त्तव्य, सृजनशीलता एवं ममता को सर्वोपरि मानते हुए महिलाओं ने इस जगत में माँ के रूप में अपनी सर्वोपरि भूमिका को निभाते हुए राष्ट्र-निर्माण और विकास में अपने विशेष दावित्यों का निर्वहन किया है। महिलाएँ बच्चों को जन्म देकर उनका पालन-पोषण करते हुए उनमें संस्कार एवं सद्गुणों का उच्चतम विकास करती है तथा राष्ट्र के प्रति उनकी जिम्मेदारी को सुनिश्चित करती है, ताकि राष्ट्र-निर्माण और बिकास निर्बाध गति से होता रहे।

वीर भगत सिंह, चन्द्रशेखर, विवेकानन्द जैसी विभूतियों का देशहित में अवतार ‘माँ’ के स्वरूप की देन है। माता जीजाबाई, जयवन्ताबाई, पन्नाधाय जैसी अनेक माताओं का त्याग, समर्पण और बलिदान आज भी इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर अंकित है। माँ ही है, जो बहुआयामी व्यक्तित्व का निर्माण और विकास करती है।

पथ-प्रदर्शक के रूप में योगदान

माँ के बाद पत्नी का अवतार राष्ट्र-निर्माण और विकास के साथ पथ प्रदर्शक के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पत्नी चाहे तो पति को गुणवान और सद्गुणी बना सकती है। सदियों से देखने में आया है कि जब भी कभी देश पर संकट आया है, तो पत्नियों ने अपने पतियों के माथे पर तिलक लगाकर जोश, जुनून और विश्वास के साथ रणभूमि में भेजा है। यही नहीं पत्नी ‘हाड़ी’ रानी बनकर शीश काटकर दे देती है।

तुलसीदास जी के जीवन को आध्यात्मिक चेतना प्रदान करने में उनकी पत्नी रत्नावली’ का ही हाथ था। ‘विद्योत्मा’ ने कालिदास को संस्कृत का प्रकाण्ड महाकवि बनाया था। इसके अतिरिक्त यह कहना गलत नहीं होगा कि पति को भ्रष्टाचार, बेईमानी, लूट, गबन इत्यादि, जोकि राष्ट्र को खोखला बनाते हैं, जैसे कुकृत्यों से पत्नी ही दूर रखती है, जोकि देश की अर्थव्यवस्था के विकास के लिए आवश्यक भी है।

गृहिणी के रूप में योगदान

भारतीय समाज में महिलाएँ परिवार की ‘धुरी’ होती हैं, जो कि एक गृहिणी के रूप में राष्ट्र-निर्माण और विकास के रूप में अपनी उत्कृष्ट भूमिका निभाती हैं, जो कि ‘अन्नपूर्णा’ के ऐश्वर्य से अलंकृत और सुशोभित हैं। एक गृहिणी के रूप में वह सम्पूर्ण परिवार का सुचारू रूप से संचालन करती है तथा परिवार के संचालन हेतु बचत की प्रवृत्ति को भी विकसित करती हैं। 

वर्ष 1980, 1998, 2008 और 2014 में आई वैश्विक मन्दी से सभी देश ग्रसित हुए, परन्तु भारत बहुत अल्प रूप में, क्योंकि भारतीय महिलाओं की बचत की प्रवृत्ति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बचाया। ऐसा ही उदाहरण हमें वर्ष 2016 की नोटबन्दी के दौरान देखने को मिला। इसी के साथ ही लगभग 65% महिलाएँ कृषि एवं पशुपालन का कार्य करते हुए देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में योगदान देती हैं। इसके अतिरिक्त हस्तकलाओं का निर्माण करते हुए भी विकास कार्यों को गति प्रदान करती हैं। अतः यह भी राष्ट्र-निर्माण और विकास का हिस्सा हैं।

महिलाएँ ही संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं की संरक्षिका होती हैं। वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी इनका संचालन और संरक्षण करती रहती हैं। सम्पूर्ण विश्व में भारत को विश्व गुरु का दर्जा दिलाने में महिलाओं की ही भूमिका रही है। यही कारण है कि भारत को विविध व समृद्ध संस्कृति और परम्पराओं का देश कहा जाता है। 

सामाजिक- शैक्षिक-धार्मिक योगदान सभ्यता, संस्कृति, संस्कार और परम्परा महिलाओं के कारण ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित होते हैं। अतः महिलाओं के सामाजिक- शैक्षिक-धार्मिक कार्य व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र को सशक्त बनाते हैं। कहा भी गया है. कि ‘सशक्त महिला सशक्त समाज की आधारशिला है। माता बच्चे की प्रथम शिक्षिका होती है, जो बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए उत्तरदायी होती है। यह शिक्षिका परिवार से निकलकर समाज में शिक्षा का दान करती है। देश की प्रथम शिक्षिका ‘सावित्री बाई फुले’ एक अनुकरणीय उदाहरण है। 

वैदिक सभ्यता की मैत्रेयी, गार्गी, विश्ववारा, घोषा, लोपामुद्रा और विदुषी नामक महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान हेतु आज भी पूजनीय है, जिन्होंने राष्ट्र-निर्माण और विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया।

स्वतन्त्रता आन्दोलन में योगदान

पराधीनता राष्ट्र-निर्माण और बिकास में न केवल बाधक होती है, अपितु यह राष्ट्र को अस्थिरता प्रदान करती है। यही कारण रहा है कि भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में महिलाओं ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर भारत का नव-निर्माण करवाया। हमारे स्वतन्त्रता आन्दोलन में अनेक महिलाओं ने अपना अमूल्य योगदान देते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। कैप्टन लक्ष्मी सहगल, अरुणा आसफ अली, मैडम भीखाजी कामा, सरोजिनी नायडू, ऐनी बेसेण्ट और दुर्गा भाभी जैसी न जाने कितनी ही महिलाओं ने राष्ट्र-निर्माण और बिकास में अपना अमूल्य योगदान दिया।

राजनैतिक क्षेत्र में योगदान

देश की राजनीति की दिशा और दशा इस बात पर निर्भर करती है कि उसका संचालन करने वाला व्यक्ति कैसा है, इसी क्रम में महिलाओं ने यह सिद्ध करके दिखाया कि वे राजनैतिक विकास में अपनी भागीदारी बखूबी निभा सकती है श्रीमती ‘विजयालक्ष्मी पण्डित’ विश्व की प्रथम महिला थी, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्षा बनीं। सरोजिनी नाय सुचेता कृपलानी, इन्दिरा गाँधी इत्यादि अनेक महिलाओं ने राजनैतिक प्रतिभा का प्रयोग राष्ट्र-निर्माण और विकास में किया है, जो एक महत्त्वपूर्ण और सार्थक कदम है। 

वर्तमान समय में भी राजनैतिक क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका अत्यन बढ़ गई है और इस क्षेत्र में भी महिलाएँ बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका के साथ न्याय कर रही हैं; जैसे-वित्तमन्त्री निमंत सीतारमन, ममता बनर्जी, मायावती, स्मृति ईरानी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, हरसिमरत कौर, बसुन्धरा राजे सिन्धिया द्रौपदी मुर्मू, प्रतिभा पाटिल, मृदुला सिन्हा आदि प्रमुख राजनीतिक हस्तियाँ हैं, जिन्होंने अपने कार्यों से देश का सम्मान बढ़ाया है तथा देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने में अपना योगदान दिया है तथा वर्तमान में भी दे रही हैं।

प्रशासनिक क्षेत्र में योगदान

• किसी भी राष्ट्र का प्रशासन उस राष्ट्र की प्रगति और विकास का सूचक होता है। यदि प्रशासनिक दक्षता और कुशलता सुदृढ़ है, तो राष्ट्र की प्रगति और विकास सुनिश्चित है। प्रथम महिला आई.ए.एस अन्ना जॉर्ज हो या प्रथम महिला आई.पी.एस किरण बेदी, इन सभी ने देश एवं समाज की प्रगति में अपना बहुमुखी योगदान दिया है। वर्तमान समय में अनेक महिलाएँ भारतीय प्रशासनिक सेवा और राज्य प्रशासनिक सेवाओं में न केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. अपितु सर्वोच्च रैंक प्राप्त कर समाज और देश का गौरव भी बढ़ा रही हैं।

वैज्ञानिक क्षेत्र में योगदान

आत्मविश्वास, लगन, मेहनत, कर्मठता, सृजनशीलता और बुद्धि कौशल के कारण महिलाओं के लिए वैज्ञानिक खोजों और अनुसन्धान क्षेत्र अछूता नहीं है। आज अनेक महिलाएँ रक्षा विशेषज्ञ और वैज्ञानिकों के रूप में अपना योगदान राष्ट्र-निर्माण और विकास में दे रही हैं। डॉ. टेसी थॉमस ने अग्नि 5 मिसाइलों की योजना का प्रतिनिधित्व करते हुए ‘भारत की मिसाइल बुमैन और अग्नि पुत्री’ का सम्मान प्राप्त किया है। इसके अतिरिक्त सुनीता विलियम्स, कल्पना चावला ने भी अन्तरिक्ष के क्षेत्र में देश का नाम रोशन किया है। इन सबके अतिरिक्त ऐसी बहुत सी महिलाएँ वैज्ञानिक विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हुए राष्ट्र-निर्माण और विकास में अपना योगदान दे रही है। 

साहित्यिक क्षेत्रों में योगदान

साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य के माध्यम से राष्ट्र-निर्माण और बिकास उच्चतम स्तर पर किया जा सकता है, क्योंकि साहित्य के द्वारा न केवल बुद्धि-कौशल वरन् व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास किया जा सकता है। यह साहित्यिक कर्म यदि महिलाओं के द्वारा हो तो यह सोने पर सुहागा होता है, क्योंकि महिलाओं में विद्यमान ‘मर्म’ साहित्य को गुणवत्तापूर्ण बनाता है। 

अनेक महिलाओं ने साहित्य-सृजन के द्वारा राष्ट्र-निर्माण और विकास में अपना विशेष योगदान दिया है; जैसे-महादेवी वर्मा, अमृता प्रीतम, मीरा, आशापूर्णा देवी, महाश्वेता देवी, झुम्पा लाहिड़ी, सुभद्रा कुमारी चौहान, मैत्रेयी पुष्पा, ममता कालिया, पद्मा सचदेव इत्यादि। इन्होंने ऐसा कालजयी साहित्य लिखा, जो व्यक्तित्व के विकास के साथ-साथ आध्यात्मिक और नैतिक विकास को भी बल प्रदान करता है, जिसमें चेतना और राष्ट्र-निर्माण के स्वर मुखरित होते हैं।

उपर्युक्त क्षेत्रों के अतिरिक्त महिलाएँ मेडिकल, इन्जीनियरिंग, बैंकिंग, कला एवं खेल के क्षेत्र में भी अपने योगदान से राष्ट्र का गौरव बढ़ा रही हैं, जिनमें से प्रमुख है- अरुन्धति भट्टाचार्य, शोभना भरतिया, लता मंगेशकर, दीपिका पादुकोण, आशा भोसले, सानिया मिर्जा, पी.बी. सिन्धु, मैरीकॉम, बछेन्द्रीपाल, सन्तोष यादव, अरुणिमा सिन्हा इत्यादि।

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Rashtra Nirman Me Nari Ka Yogdan Essay in Hindi

निष्कर्ष

अत: हम कह सकते हैं कि महिलाओं ने अपने सत्र्तव्य, कर्मठता और सृजनशीलता के माध्यम से राष्ट्र-निर्माण और विकास में अपना अभूतपूर्ण योगदान दिया है। आज नारी भी पुरुषों के समान ही सुशिक्षित, सक्षम और सफल है, चाहे वह क्षेत्र सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, खेल, कला, इतिहास, भूगोल, खगोल, चिकित्सा, सेवा, मीडिया या पत्रकारिता आदि कोई भी हो।

नारी की उपस्थिति योगदान, सोम्पता उपलब्धियाँ मार्मिकता और सृजनशीलता स्वयं एक प्रत्यक्ष परिचय देती है। परियार और समाज को संभालते हुए राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नारी ने सदैव ही विजय पताका लहराते हुए राष्ट्र-निर्माण और विकास में अपना विशेष और अभूतपूर्व योगदान दिया है। यही कारण है कि यह सृजना, अन्नपूर्णा देवी, युगदृष्टा और युग सृष्टा होने के साथ ही ‘स्वयंसिद्धा’ भी है।

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reference
Rashtra Nirman Me Nari Ka Yogdan Essay in Hindi

मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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