राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका पर निबंध | Role of Youth in Nation Building Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Role of Youth in Nation Building in Hindi

राष्ट्र निर्माण में युवा शक्ति | Role of Youth in Nation Building Essay in Hindi

राष्ट्र निर्माण से तात्पर्य राष्ट्र के विकास में सभी नागरिकों को शामिल करने की प्रक्रिया से है। भविष्य के साथ-साथ हमारे देश का वर्तमान भी इस युवा शक्ति के हाथ में है। इसलिए राष्ट्र की संरचना में युवाओं का योगदान महत्त्वपूर्ण है। युवावस्था वह समय होता है, जब रचनात्मक विचार तथा अन्य विचार मन में आते हैं, जिस समुदाय तथा जिस राष्ट्र में हम रहते हैं, उसे आकार देते हैं। राष्ट्र की नीतियों, योजनाओं और विकास कार्यों को युवाओं द्वारा सर्वोत्तम रूप से लागू किया जा सकता है। वे अत्यधिक उत्साही और ऊर्जा से परिपूर्ण होते हैं। यदि उनकी क्षमता का सही दिशा में उपयोग किया जाए, तो वे तेजी से राष्ट्र की प्रगति सुनिश्चित कर सकते हैं।

स्वतन्त्रता आन्दोलन और उसके पश्चात् युवाओं की भूमिका

“मुझे कुछ साहसी और ऊर्जावान युवा पुरुष मिल जाएँ, तो मैं देश में क्रान्ति ला सकता हूँ।”

आरम्भ से ही युवाओं के प्रेरणास्रोत रहे स्वामी विवेकानन्द का यह कथन राष्ट्र निर्माण में युवा शक्ति की भागीदारी को दर्शाता है। सचमुच स्वतन्त्रता आन्दोलन में मंगल पाण्डेय, रानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह, सुभाषचन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद, रामाप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला ख़ाँ तथा खुदीराम बोस आदि युवाओं ने अपना सर्वस्व न्यौछावर करके यह साबित कर दिया कि युवाओं के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत भारतमाता के इन बीर सपूतों के सामने अंग्रेजों की एक न चली। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी भारत को अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान एवं चीन द्वारा किए गए युद्धों का सामना करना पड़ा, जिसमें हमारे वीर जवानों की वीरता और साहस ने प्रत्येक भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया।

Role of Youth in Nation Building Essay in Hindi
Role of Youth in Nation Building Essay in Hindi

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भारतीय युवाओं की उपलब्धियाँ

अपने बड़े-बुजुर्गों के मार्गदर्शन में भारत के युवाओं ने देशभक्ति के अतिरिक्त अध्यात्म, धर्म, साहित्य, विज्ञान, कृषि, उद्योग आदि क्षेत्रों में भी पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया है। बिना युवा शक्ति के भारत सोने की चिड़िया न कहलाता और अपनी अनगिनत देनों से विश्व को अभिभूत नहीं कर पाता। 

अल्बर्ट आइन्स्टीन ने कहा था-“सम्पूर्ण मानवः जाति को उस भारत का त्राणी होना चाहिए, जिसने बिश्व को शून्य दिया।” मैक्स मूलर ने भी भारत की प्रशंसा करते हुए लिखा है, “यदि मुझसे पूछा जाए कि किस आकाश के नीचे मानव मस्तिष्क ने मुख्यतः अपने गुणों का विकास किया, जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या पर सबसे अधिक गहराई के साथ सोच-विचार किया और उनमें से कुछ ऐसे रहस्य ढूंढ निकाले, जिनकी ओर सम्पूर्ण विश्व को ध्यान देना चाहिए, जिन्होंने प्लेटो और काण्ट का अध्ययन किया, तो मैं भारतवर्ष की ओर संकेत करूंगा।”

भारत की इन महान उपलब्धियों के पीछे देश के युवा वर्ग का बहुत बड़ा योगदान था। आज देश के बड़े-बड़े शैक्षणिक संस्थानों या अन्य विश्वविद्यालयों से जुड़े छात्र-छात्राओं के आविष्कारों एवं शोधों की बदौलत भारत तेजी से विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है। इतना ही नहीं आज भारतीय छात्र-छात्राएँ विदेशों में भी जाकर विश्व के लोगों को अपनी प्रतिभाओं से अचम्भित कर रहे हैं। आज भारत के युवा वर्ग ने महात्मा गाँधी के इस कथन को अपने जीवन में चरितार्थ कर दिखाया कि “अपने प्रयोजन में दृढ विश्वास रखने वाला एक कृशकाय शरीर भी इतिहास के रुख को बदल सकता है।”

वर्तमान समय में युवाओं की दशा

आज इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश के युवा वर्ग में भारी असन्तोष व्याप्त है। स्कूल-कॉलेजों से शिक्षा प्राप्ति के बाद भी यहाँ के छात्र-छात्राओं का भविष्य अन्धकारमय है। न तो उन्हें मौकरी मिल पाती है और न ही उनका किताबी ज्ञान जीवन के अन्य कार्यों में ही उपयोगी सिद्ध हो पाता है। से गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार आदि समस्याओं के जाल में फँसते चले जाते हैं। कई बार तो प्रतिभाशाली युवा भी आरक्षण अथवा सरकार की अन्य गलत नीतियों का शिकार हो जाते हैं।

ऐसी स्थिति में युवा को सही मार्गदर्शन भी नहीं मिल पाता, फलस्वरूप युवा वर्ग भ्रमित एवं कुण्ठाग्रस्त होकर पूरी व्यवस्था का विरोध करने के लिए आन्दोलन करने लगता है। कुछ राजनीतिज्ञ युवाओं द्वारा चलाए गए आन्दोलनों में रुचि लेने लगते हैं, तो कुछ ऐसे आन्दोलनों को जीवित रखने के लिए असामाजिक तत्त्वों की सहायता लेने में भी संकोच नहीं करते। जब ये असामाजिक तत्त्व लूट या आगजनी करते हैं, तो इन विध्वंसक गतिविधियों हेतु युवाओं को दोषी ठहराया जाता है। पहले से ही कुण्ठित युवा और अधिक कुण्ठित हो जाते हैं, जिससे उनमें असन्तोष की भावना और भी बढ़ जाती है।

युवा असन्तोष का परिणाम उत्तेजनापूर्ण आन्दोलनों के रूप में सामने आता है। ये क्रुद्ध युवा, घोर अन्याय से उत्पीड़ित महसूस करते हैं या जो विद्यमान ढाँचों एवं अवसरों से नाराज होते हैं, सामाजिक रूप से सत्तारूद व्यक्तियों पर युवा उत्तेजनापूर्ण आन्दोलन के रूप में कुछ परिवर्तन लाने के लिए दबाव डालते हैं।

युवा शक्ति का आह्वान

वर्ष 1979 में ‘जयप्रकाश नारायण’ ने छात्र समुदाय को संगठित कर शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्ति लाने हेतु एक विशाल अभियान चलाया था, जिसमें युवा वर्ग को सन्देश देते हुए उन्होंने कहा था-“निश्चय ही देश का राजनीतिक चेहरा बदल चुका है, पर विद्यार्थियों की समस्याएँ वैसी ही हैं। उनके मन में असन्तोष की जो चिंगारियाँ हैं, ये अब प्रकट हो रही है। यदि इस असन्तोष को रचनात्मक दिशा न दी गई, तो अराजकता पैदा होगी और देश का भविष्य अस्थिर हो जाएगा। हमारा प्रवास शैक्षिक क्रान्ति की ज्योति जलाकर छात्र- मानस को स्वस्थ दिशा में मोड़ने का है।”

यदि किसी देश का युवा वर्ग जाग जाए और रचनात्मक कार्यों में जुट जाए, तो उस देश को समृद्ध और उन्नत होने से कोई नहीं रोक सकता। अन्ना हजारे के द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध किए गए देशव्यापी आन्दोलन और दिल्ली में निर्भया काण्ड के बाद बलात्कार के कानून में परिवर्तन की माँग तथा शिक्षा की माँग को लेकर वर्ष 2019-20 में जेएनयू, जामिया मिलिया तथा देश के अन्य विश्वविद्यालयों में छात्रों ने आन्दोलन किया।

इस प्रकार समय-समय पर एकजुट होकर देशभर के युवाओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि आज भी भारत की युवा पीढ़ी सोई नहीं है, उन्हें भी देश-दुनिया की उतनी ही चिन्ता है, जितनी देश के बड़े-बुजुगों को देश के लिए यह भावना हितकर है, किन्तु प्रत्येक कार्य व संकल्प हेतु नैतिक व जीवन-मूल्यों का होना अत्यावश्यक है। आज भारत के युवाओं को ‘अब्दुल कलाम’ की इन पंक्तियों से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।

“आकाश की ओर देखो। हम अकेले नहीं हैं। सारा ब्रह्माण्ड हमारे लिए अनुकूल है और जो सपने देखते हैं और मेहनत करते हैं, उन्हें यह उनका हक प्रदान करता है।”

‘स्वामी विवेकानन्द’ ने युवा शक्ति का आह्वान करते हुए कहा था-“समस्त शक्तियाँ तुम्हारे अन्दर हैं। तुम कुछ भी कर सकते हो और सब कुछ कर सकते हो, यह विश्वास करो मत विश्वास करो कि तुम दुर्बल हो । तत्पर हो जाओ। जरा-जीर्ण होकर थोड़ा-थोड़ा करके क्षीण होते हुए मरने की बजाय बीर की तरह दूसरों के अन्य कल्याण के लिए लड़कर उसी समय मर जाना क्या अच्छा नहीं है?” आज भारत के युवाओं को विवेकानन्द के बिचारों से सीख लेकर उन्हीं के बताए मार्ग पर चलने की आवश्यकता है, तभी वे बेहतर भारत का निर्माण कर सकते हैं।

आज आवश्यकता है उन्हें होने की इस कसौटी पर जाँचने की कि क्या ये अनीति से लड़ते हैं, दुर्गुणों से दूर रहते हैं, काल की चाल को बदल सकते हैं, क्या उनमें जोश के साथ होश भी है, क्या उनमें राष्ट्र के लिए बलिदान की आस्या है, क्या मे समस्याओं का समाधान निकालते हैं, क्या वे प्रेरक इतिहास रचने वाले हैं और क्या ये कही बातो को करके दिखाते है? अतः आज युवाओं को महात्मा गाँधी के कड़े इस कथन के मर्म को समझने और उसे जीवन में उतारने की आवश्यकता है।

“खुद वो बदलाव बनिए जो दुनिया में आप देखना चाहते हैं।”

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मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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