भारत में साम्प्रदायिकता पर निबंध | Communalism in India Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Communalism in India in Hindi

भारत आरम्भ से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्‘ अर्थात् सम्पूर्ण जगत एक परिवार है, के सिद्धान्त का प्रतिपादन करता हुआ विश्व को प्रेम एवं शान्ति का सन्देश देता रहा है, किन्तु इसके बाबजूद भी विश्व के अन्य देशों की भाँति यहाँ भी सामप्रदायिकता की समस्या घर कर गई है, जो देश की शान्ति और एकता को भंग करने का प्रयास कर रही है।

साम्प्रदायिकता से तात्पर्य उस संकीर्ण मनोवृत्ति से है, जो धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर पूरे समाज तथा राष्ट्र के व्यापक हितों के विरुद्ध व्यक्ति को केवल अपने व्यक्तिगत धर्म के हितों को प्रोत्साहित करने तथा उन्हें संरक्षण देने की भावना को महत्त्व देती है। यह व्यक्ति में सर्वमान्य सत्य की भावना के विरुद्ध व्यक्तिगत धर्म और सम्प्रदाय के आधार पर परस्पर घृणा, द्वन्द्व, ईर्ष्या तथा द्वेष को जन्म देती है। यह भावना अपने धर्म के प्रति अन्धभक्ति तथा परधर्म एवं उनके अनुयायियों के प्रति नफरत की भावना उत्पन्न करती है। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और अलीगढ़ में हुए दंगे साम्प्रदायिक हिंसा के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

वास्तव में, साम्प्रदायिकता एक विचारधारा है, जो बताती है कि समाज धार्मिक समुदायों में विभाजित है, जिनके हित एक-दूसरे से भिन्न हैं और कभी-कभी उनमें पारस्परिक उग्र विरोध भी होता है। साम्प्रदायिकता का अंग्रेजी पर्याय Communlism है, जो अपने मूल शब्द Commune (कम्यून) से उत्पन्न हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ मिल जुलकर भाईचारे के साथ रहना होता है, लेकिन इतिहास की कुछ उन विशिष्ट अवधारणाओं में साम्प्रदायिकता भी शामिल है, जो अपना वास्तविक अर्थ अपने मूल अर्थ से भिन्न रखती है।

साम्प्रदायिकता का मूल आधार धर्म | Communalism in India Essay in Hindi

साम्प्रदायिकता की विचारधारा मूलत: धार्मिकता से जुड़ी होती है। धर्म के साथ मेल करके ही साम्प्रदायिकता की विचारधारा पल्लवित होती है। साम्प्रदायिक व्यक्ति वे होते हैं, जो राजनीति को धर्म के माध्यम से चलाते हैं। साम्प्रदायिक ब्यक्ति धार्मिक नहीं होता है, बल्कि वह ऐसा व्यक्ति होता है, जो राजनीति को धर्म से जोड़कर राजनीति रूपी शतरंज की चाल खेलता है।

साम्प्रदायिकता का इतिहास

भारत पर विदेशी मुसलमानों के आक्रमण लगभग 8वीं सदी में प्रारम्भ हो गए थे, परन्तु महमूद गजनबी और मुहम्मद गोरी जैसे मुस्लिम आक्रमणकारी धार्मिक आधिपत्य स्थापित करने की अपेक्षा आर्थिक संसाधनों को लूटने में अधिक रुचि रखते थे। कुतुबुद्दीन ऐबक के समय में ही ‘इस्लाम धर्म’ ने भारत में अपना पैर जमाया। इसके पश्चात् मुगलों ने अपने साम्राज्य को संगठित करने की प्रक्रिया में इस्लाम को मुख्य हथियार बनाते हुए धर्म परिवर्तन के प्रयत्न किए तथा हिन्दू एवं मुस्लिम समुदाय के बीच साम्प्रदायिक झगड़ों को भड़काने का प्रयास किया।

Communalism in India Essay in Hindi
Communalism in India Essay in Hindi

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साम्प्रदायिकता के प्रेरक तत्त्व

1857 की क्रान्ति में हिन्दू-मुस्लिम साथ-साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े थे। अतः 1857 के विद्रोह और बहावी आन्दोलन के पश्चात् अंग्रेजों ने मुसलमानों के प्रति दमन और भेदभाव की नीति अपनाई, परन्तु 1870 ई. के पश्चात् भारतीय राष्ट्रवाद के उमरने तथा नव शिक्षित मध्यम वर्ग की राजनीतिक प्रक्रियाओं और सिद्धान्तों से परिचित होने के कारण अंग्रेजों ने मुसलमानों के दमन की नीति त्याग दी तथा उनमें चेतना का प्रसार कर तथा उन्हें आरक्षण एवंसमर्थन देकर मजबूत करने का प्रयास किया, जिससे मुसलमानों को राष्ट्रवादी ताकतों के विरुद्ध प्रयुक्त किया जा सके।

इस क्रम में अंग्रेजों ने सर सैय्यद अहमद को अपना सबसे बड़ा मोहरा बनाया। वर्ष 1909 का मार्ले मिण्टो सुधार तथा वर्ष 1932 का कम्युनल अवार्ड साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने हेतु लाया गया था।

प्रसिद्ध इतिहासकार बिपिन चन्द्र का मानना है कि कांग्रेस ने प्रारम्भ से ही चोटी से एकता (Units from the top) की नीति अपनाई, जिसके अन्तर्गत मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के मुसलमानों (जिन्हें मुसलमान समुदाय का नेता माना जाता था) को अपनी ओर करने का प्रयत्न किया गया। हिन्दू और दोनों के द्वारा जनता की साम्राज्य विरोधी भावनाओं की सीधी अपील करने के स्थान पर यह मध्यम एवं उच्च वर्ग के मुसलमानों पर छोड़ दिया गया कि ये मुस्लिम वर्ग को आन्दोलन में सम्मिलित करें। इस प्रकार ‘चोटी से एकता’ उपागम साम्राज्यवाद से लड़ने के लिए हिन्दू-मुस्लिम एकता को प्रोत्साहित नहीं कर पाया।

सम्भवत: प्रारम्भ में राष्ट्रय नेतृत्व में यह अप्रत्यक्ष सहमति थी कि हिन्दू, मुसलमान और सिख पृथक् समुदाय हैं, जिनमें केवल राजनीतिक एवं आर्थिक मामलों में एकता है, परन्तु धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रयाओं में नहीं।

इस प्रकार साम्प्रदायिकता के बीज 20मीं शताब्दी के प्रथम चतुर्थांश में बोए गए। पाकिस्तान का नारा मुस्लिम लीग ने लाहौर में सर्वप्रथम 1940 में दिया। मुस्लिम जनता के विभिन्न समूहों में पाकिस्तान के बारे में विभिन्न मत थे-मुसलमान कृषकों के लिए पाकिस्तान का अर्थ था- “हिन्दू जमींदारों के शोषण से मुक्ति” मुसलमान व्यापारी वर्ग के लिए इसका अर्थ या “सुव्यवस्थित हिन्दू व्यापारिक तन्त्र से छुटकार”, जबकि मुसलमान बुद्धिजीवी वर्ग के लिए इसका अर्थ था। ‘बेहतर रोजगार के अवसर | भारत के सन्दर्भ में माना जाता है कि हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता के राजनीतिक एवं सामाजिक दोनों स्रोत थे और

उनमें संघर्ष का उत्तरदायी केवल धर्म ही नहीं था, आर्थिक स्वार्थ और सांस्कृतिक एवं सामाजिक रीति-रिवाज भी  प्रमुख कारक थे, जिन्होंने दोनों समुदायों के बीच की दूरी की गढ़ा दिया और यह दूरी धीरे-धीरे उग्र होकर घृणा, द्वेष, प्रतिशोध पर आधारित साम्प्रदायिक हिंसा में तब्दील हो गई।

साम्प्रदायिकता के कारण

साम्प्रदायिकता धर्म की अपेक्षा राजनीति से अधिक प्रेरित होती है। साम्प्रदायिक तनाव के कर्ताधर्ता राजनीतिज्ञों का एक वर्ग होता है, जो पाखण्डी धार्मिक व्यक्तियों के एक वर्ग को साथ लेकर अपनी राजनीतिक स्थिति को सुदृढ करने एवं स्वयं को समृद्ध बनाने के लिए प्रत्येक अवसर का लाभ उठाना चाहता है और जनसामान्य के आगे स्वयं को अपने समुदाय के सबसे बड़े हिमायती के रूप में प्रस्तुत करता है। वास्तव में, साम्प्रदायिक हिंसा धार्मिक कट्टरवादियों द्वारा भड़काई जाती है तथा इसकी पहल असामाजिक तत्वों द्वारा की जाती है। राजनीति में सक्रिय व्यक्ति इसे समर्थन देते हैं, निहित स्वार्थी तत्त्वों द्वारा इसे वित्तीय सहायता दी जाती है तथा पुलिस और प्रशासकों की निर्दयता के कारण यह तेजी से फैलता है।

भारत में साम्प्रदायिकता के उदय एवं विकास में औपनिवेशिक शासन की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है। उनकी फूट डालो और शासन करो” की नीति, जिसने 1857 के बाद साम्प्रदायिक रूप धारण किया, इसका सबसे बड़ा आधार है। तत्कालीन परिस्थितियों में हिन्दू संगठनों व मुस्लिम लीग की रणनीति तथा कांग्रेस के तुष्टीकरण ने भी इसके विकास में विशेष भूमिका निभाई है।

किसी देश का आर्थिक विकास और यहाँ के साम्प्रदायिक विचार में उपस्थिति में व्युत्क्रमानुपाती सम्बन्ध देखा गया हैं। यदि आर्थिक विकास की गति तीव्र है, तो उत्पादक गतिबिधियों में संलग्न होने के कारण ऐसी विचारधारा अधिक विकसित नहीं हो पाती है। जबकि अल्प विकास की स्थिति में गरीबी और बेरोजगारी जैसी स्थितियाँ बनने लगती है। जिससे व्यक्ति में बेचैनी, कुण्ठा और आक्रामक रवैया आने लगता है और जब यह बेचैनी साम्प्रदायिक विचारों के साथ मिल जाती है, तो साम्प्रदायिक बन जाती है।

राजनीतिक अवसरबाद भी साम्प्रदायिकता का एक महत्त्वपूर्ण कारक है। आधुनिक राजनीति में सत्ता का मार्ग जनता की संख्या पर आधारित होता है। इसलिए जनता की आस्था जीतने के लिए नेता धर्म या सम्प्रदाय का सहारा लेने सगते हैं, जिससे राजनीति में बिखण्डन की प्रवृत्ति जन्म लेती है। जैसे-जैसे मत की भूमिका बढ़ती है यह और प्रभावी होता जाता है।

आधुनिक तार्किक शिक्षा का अभाव साम्प्रदायिकता के विकास में उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है, क्योंकि शिक्षा का महत्व इस बात में है कि कोई व्यक्ति भावनात्मक आधार पर निर्णय न लेकर वैज्ञानिकता के आधार पर निर्णय ले। आधुनिक तार्किक शिक्षा नए विचारों को जन्म देती है, जिसमें एक-दूसरे समूह के सांस्कृतिक अस्तित्व की मान्यता स्वीकार करने लगता है। इसे सांस्कृतिक सापेक्षताबाद की स्थिति कहते हैं। ऐसी स्थिति में यदि सभी व्यक्ति इस मानसिक स्तर को प्राप्त कर लें तो सम्प्रदायवाद, अलगाववाद आदि भावनाएँ समाप्त हो सकती हैं।

यही बात भारत के कुछ हिन्दू और मुस्लिम कट्टरपन्थियों एवं संगठनों के लिए भी कहीं जा सकती है, जो धर्म के नाम पर अपने ही देश में द्वेषपूर्ण भावनाएँ भड़काते रहते हैं। चाहे कश्मीर में हिंसा का मामला हो या ‘राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद’ का विवाद हो या फिर बाराणसी में ‘काशी-विश्वनाथ मन्दिर’ और उसके बराबर स्थित मस्जिद का विवाद, वर्ष 2015 से देश में बढ़े मॉब लिचिंग की घटना, वर्ष 2020 की दिल्ली दंगा आदि।

इस तरह के सभी प्रकरणों ने दोनों समुदायों के रिश्तों में खटास पैदा की है। प्रेस और संचार माध्यम भी अपने-अपने तरीकों से साम्प्रदायिक तनावों को बढ़ाने में योगदान देते हैं। उनके द्वारा अफवाहों पर आधारित तथ्यों की गलत प्रस्तुति आग में घी जैसा काम करती है।

सरकारी प्रयास

देश में सम्प्रदायिकता के निवारण हेतु कानूनी, संवैधानिक व प्रशासनिक माध्यम से कई प्रयास किए गए है।

वर्ष 1962 में पहली बार साम्प्रदायिक विशेष की भावना पर नियन्त्रण के लिए राष्ट्रीय एकता परिषद् का गठन किया गया।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के गठन का प्रावधान किया गया, जिससे अल्पसंख्यकों की समस्याओं को अधिक बेहतर तरीके से समझा जा सके। साम्प्रदायिक सद्भावना के निर्माण हेतु विशेष पुरस्कारों की घोषणा की गई है; जैसे- कमौर सम्मान, राजीव गाँधी एकता सम्मान, साम्प्रदायिक सौहार्द अचाई आदि।

राष्ट्रीय साम्प्रदायिक प्रतिष्ठान की स्थापना की गई है, जिसका उद्देश्य साम्प्रदायिक सद्भाव, भाईचारा तथा राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना है। धार्मिक संस्थान (दुरुपयोग की रोकथाम) कानून, 1988 बनाया गया है, जिसका उद्देश्य किसी भी धार्मिक स्थल की पवित्रता को बनाए रखना तथा राजनीतिक तथा साम्प्रदायिक कार्यों के लिए दुरुपयोग किए जाने से रोकना है।

पूजा स्थल (विशेष स्थल) कानून, 1991 बनाया गया है, जिसमें पूजा के किसी भी स्थल की स्थिति जो 15 अगस्त

1947 को विद्यमान थी, को बदलने पर रोक लगाई गई है। साम्प्रदायिक हिंसा के शिकार लोगों के लिए केन्द्रीय योजना संचालित है, जिसके अन्तर्गत मुआवजे के अतिरिक्त 3 लाख रुपये की सहायता देती है।

अन्य प्रयास

साम्प्रदायिक हिंसा के समाधान हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण प्रभावी कदमों की आवश्यकता है; जैसे-साम्प्रदायिक मानसिकता वाले राजनीतिज्ञों को चुनाव लड़ने से वंचित करना, धर्मान्ध लोगों के विरुद्ध निरोधात्मक कार्यवाही करना, पुलिस विभाग को राजनीतिज्ञों के नियन्त्रण से मुक्त करना, पुलिस के खुफिया विभाग को शक्तिशाली बनाना, पुलिस बल की पुनर्संरचना करना, पुलिस प्रशासन को अधिक संवेदनशील बनाना, पुलिस अधिकारियों के प्रशिक्षण के अन्तर्गत उन्हें धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाने के योग्य बनाना आदि। भारत एक ऐसा देश रहा है, जहाँ मुसलमान बाहरी आक्रमणकारी के रूप में तो अवश्य आए, लेकिन एक बार आने के बाद वे बाहरी नहीं रह गए।

उन्होंने इस देश को ही अपना ही देश माना और यहाँ की संस्कृति को बहुत गहराई तक आत्मसात् किया दीन-ए-इलाही धर्म चलाया और अवध के नवाब वाजिदअली शाह तो एक ही दिन गम का त्यौहार मुहर्रम और खु का त्यौहार होली पड़ने पर, दोनों ही मनाते थे।

कारण स्पष्ट था, क्योंकि मजहब अपनी जगह है और इसानियत व आत्मीयता अपनी जगह कोई भी मजहब किसी को बैमनस्य नहीं सिखाता। ‘अमीर खुसरो’ ने अपनी मसनवी ‘नूर सिपह’ में लिखा है. ए पूछते हैं कि भारत के प्रति मेरे मन में श्रद्धा क्यों है? भारत मेरी जन्मभूमि और मेरा देश है। पैगम्बर ने कहा है कि अपने दे से प्रेम करना मजहब का एक हिस्सा है।” धर्म के आधार पर लोगों को विभाजित करने का कार्य केवल निजी स्वार्थों के पूर्ति करने वाले असामाजिक एवं निकृष्ट कोटि के लोग ही करते हैं।

Essay on Communalism in Hindi | साम्प्रदायिकता पर निबंध | Sampradayikta par nibandh video

Communalism in India Essay in Hindi

 निष्कर्ष

इस प्रकार सम्प्रदायिकता, जो एक सामाजिक बुराई व धार्मिक जहर है, को समाप्त करने हेतु सरकार, राजनीतिक दल, गैर-सरकारी संगठनों, नागरिक समाज को मिलकर प्रयास करना होगा तथा प्रत्येक नागरिक को इतना सुदृढ एवं विवेकशील बनना होगा कि उचित-अनुचित, नैतिक-अनैतिक, तार्किक अतार्किक आदि के बीच अन्तर की स्पर पहचान कर सके, जिससे राष्ट्रीय एकता एवं मानवीयता की गरिमा बरकरार रहे।

हम सबको स्वामी विवेकानन्द की कही बात को आचरण में लाने की आवश्यकता है–“हम भारतीय सभी धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन् सभी धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार भी करते हैं।” तभी धर्म-निरपेक्षता व राष्ट्रीय एकता को स्थापित कर धार्मिक सद्भाव की समृद्ध परम्परा को बनाए रखा जा सकेगा।

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reference
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मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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