भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पर निबंध | impact of western culture Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on impact of western culture in Hindi

भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पर निबंध | impact of western culture Essay in Hindi

ब्रिटिश काल से पूर्व की भारतीय संस्कृति पूर्णतः धार्मिक, आध्यात्मिक, परम्पराबादी अंग्रेजों के सम्पर्क में आकर भारतीय जीवन का स्वरूप भी काफी हद तक परिवर्तित हो गया। धार्मिकता, आध्यात्मिकता एवं त्यागमयता को भौतिकता के प्रति अग्रता होने से आपात पहुँचा। यूरोपीय विचारधारा से प्रभावित होने के कारण परम्पराओं के प्रति मोह कम होने लगा और नए वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण भाग्यवाद के प्रति अनास्था उत्पन्न होने लगी। इसके अतिरिक्त भारतीय संस्कृति के आन्तरिक गुणों-आदर्श, नैतिकता, बुद्धि आदि में भी परिवर्तन हुआ। 

इन तत्त्वों पर पाश्चात्य शिक्षा का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार-प्रसार के माध्यम से मैकॉले भारत में एक ऐसा वर्ग बनाना चाहता था जो जन्म एवं रंग से भारतीय हो, पर अन्य सभी दृष्टियों से अंग्रेज बन जाए। प्रारम्भ में भारतीय संस्कृति पश्चिमी संस्कृति की ओर झुकती प्रतीत हुई। भारत में अनेक लोग थे जिनके लिए पाश्चात्य संस्कृति आदर्श बन गई थी। वे उसकी नकल करने लगे थे। भारतीय समाज, धर्म व दर्शन में उनको कोई विश्वास नहीं था। ऐसा प्रतीत होने लगा था कि सम्पूर्ण भारत इस पश्चिमी संस्कृति का शिकार हो जाएगा।

पश्चिमी संस्कृति का गहन अध्ययन करने वाले भारतीयों ने पश्चिम की ओर इस अन्धे आकर्षण का विरोध किया। इन्होंने भारतीयों को अपनी संस्कृति और धर्म में विश्वास करने की प्रेरणा दी। 

इन शिक्षित सुधारवादी भारतीयों ने तर्क के आधार पर पश्चिमी संस्कृति का परीक्षण आरम्भ किया। उन्होंने प्राचीन के सर्वश्रेष्ठ का चयन किया तथा पाश्चात्य के श्रेष्ठ के साथ सामंजस्य बैठाया। उन्होंने अस्पृश्यता, पर्दा प्रथा, बहु-विवाह, बाल-विवाह, देवदासी प्रथा एवं निरक्षरता आदि सामाजिक कुप्रथाओं को समाप्त करने का बीड़ा उठाया, जिससे मध्यम वर्ग में सामाजिक चेतना जागृत हुई। 

इसके कातिरिक्त पाश्चात्य संस्कृति के भारतीय समाज के साथ सम्पर्क से प्राचीन भारतीय नैतिक विचार परिवर्तित होने लगे। सत्यरूप विवाह, खान-पान, बेशभूषा, आचार-विचार, शिष्टाचार, व्यवहार आदि पर पाश्चात्य प्रभाव झलकने लगा। जाति प्रथा की जकड़न ढीली पड़ने लगी। इस प्रकार पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति ने जीवन एवं चरित्र को एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया।

impact of western culture Essay in Hindi
impact of western culture Essay in Hindi

यहाँ पढ़ें : 1000 महत्वपूर्ण विषयों पर हिंदी निबंध लेखन
यहाँ पढ़ें : हिन्दी निबंध संग्रह
यहाँ पढ़ें : हिंदी में 10 वाक्य के विषय

सामाजिक प्रभाव

पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति के प्रभाव ने भारतीय समाज में क्रान्ति पैदा कर दी। मध्यकालीन सांस्कृतिक समन्वय के काल में भी सन्त कबीर, चैतन्य आदि ने इस बात का प्रयत्न किया था कि जाति प्रथा की कठोरता और छुआछत के भेदभाव को दूर करके समानता के आधार पर हिन्दू समाज को पुन: संगठित किया जाए, पर उनके प्रयत्नों का विशेष आशाप्रद परिणाम नहीं प्राप्त हुआ। यहीं पाश्चात्य सभ्यता ने हमारी जाति प्रथा पर प्रहार किया।

अंग्रेजों के शासनकाल से पूर्व जाति प्रथा अपने समस्त प्रतिबन्धों तथा नियमों के साथ हिन्दू जीवन में पूर्णतया समाहित हो चुकी थी। परन्तु अंग्रेजी शासनकाल में कुछ इस प्रकार के कारकों या शक्तियों का इस देश में विकास हुआ, जिनके कारण जाति प्रथा के संरचनात्मक तथा संस्थात्मक दोनों ही पहलुओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए, यातायात के साधनों के विकास के फलस्वरूप नगरों एवं गाँवों के बीच दूरियाँ समाप्त हो गई। ग्रामीण और शहरी लोगों के बीच भी दूरियाँ समाप्त हो गई तथा ग्रामीण व शहरी लोगों के मध्य विचारों का आदान-प्रदान हुआ, जिससे गाँवों में जाति-पाँति के प्रति उतनी अधिक कट्टरता नहीं रही।

अस्पृश्यता को समाप्त करने के विचार का जन्म पाश्चात्य संस्कृति के ही प्रभाव के कारण सम्भव हो सका। पाश्चात्य शिक्षा और मूल्यों ने समानता के सिद्धान्त को भारत के सामाजिक बातावरण में पैदा किया। नगरों की उन्नत सामाजिक परिस्थितियों ने अछूतों को भी उनके अधिकारों के सम्बन्ध में सचेत किया। इस जागरूकता को आर्य समाज, ब्रह्मसमाज, रामकृष्ण मिशन और विशेष रूप से गाँधीजी ने और सक्रिय किया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता को भेदभाव मानते हुए इसका अन्त करने की बात की गई है।

पाश्चात्य संस्कृति ने धीरे-धीरे भारतीय रहन-सहन, रीति-रिवाज और प्रथाओं को प्रभावित किया। बेशभूषा, खान-पान, बोलने तथा अभिवादन करने के तरीकों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए। पाश्चात्य संस्कृति, शिक्षा और विचारधाराओं ने न केवल दुनिया को राष्ट्रीय जीवन के सम्पर्क में ला दिया, बल्कि देश के अन्दर विभिन्न विपरीत समूहों में एक सांस्कृतिक समानता को भी उत्पन्न किया। इस सांस्कृतिक समानता से भारतीय जीवन में एकता और राष्ट्रीयता की नवीन लहर दिखाई दी।

धार्मिक जीवन पर प्रभाव

भारत में पश्चिमी संस्कृति के प्रचार-प्रसार के पूर्व धर्म एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता था। धार्मिक रीति-रिवाजों एवं पाखण्डों ने व्यक्ति के जीवन को जकड़ रखा था। धार्मिकता के नाम पर कुसंस्कारों एवं कुरीतियों ने व्यक्ति का स्वतन्त्र होकर जीना ही मुश्किल कर दिया था। जातिगत भेदभाव, सती-प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल-विवाह, विधवाओं पर अत्याचार, धार्मिक कर्मकाण्ड, पाप निवारण के नाम पर लोगों का शोषण आदि अनेकानेक रूढ़ियों एवं अन्धविश्वासों के कारण भारतीय समाज हजारों वर्षों से अज्ञानता के अन्धकूप में पड़ा हुआ था।

पाश्चात्य शिक्षा, धर्म तथा आदर्शों एवं मूल्यों ने इस स्थिति में सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अन्धविश्वास एवं श्रद्धा का स्थान बुद्धि, विवेक और तर्क ने ले लिया तथा उदारता और स्वतन्त्र विचार, कट्टरता और शास्त्रवाद पर विजयी होने लगे। प्राचीन विश्वासों, परम्पराओं और सिद्धान्तों को विज्ञान, तर्क, समालोचना और विश्लेषण की कसौटी पर कसा गया और उनमें से अनेकों अवांछनीय तत्त्वों, लक्षणों और परम्पराओं की निन्दा कर उन्हें त्याग दिया गया। जैसे-मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, पुरोहित प्रभुता आदि। 

पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति के प्रभाव से भारतीय समाज के अनेक लोग ईसाई दृष्टिकोण, रहन-सहन और खान-पान की ओर झुके। भारतीय दर्शन के स्थान पर पाश्चात्य दर्शन और बाइबिल का गहन अध्ययन किया गया। सौभाग्य से इस प्रवृत्ति के विरुद्ध प्रतिक्रिया प्रारम्भ हुई और राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द और अरविन्द घोष जैसे धार्मिक और सामाजिक सुधारकों ने अपने आन्दोलनों से इस प्रवृत्ति का अन्त कर दिया।

राजा राममोहन राय ने बंगाल में ब्रह्म समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य समाज सुधार तथा धर्म सुधार था। राजा राममोहन राय के बाद महर्षि देवेन्द्र नाथ ठाकुर तथा केशव चन्द्र सेन ने ब्रह्म समाज के संचालन का काम अपने ऊपर,ले लिया। 

उसी प्रकार स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1875 ई. में आर्य समाज की स्थापना की तथा शुद्धि आन्दोलन चलाया। स्वामी दयानन्द भारत में न केवल वैदिक धर्म की ही स्थापना करना चाहते थे, बल्कि भारतीय सामाजिक ढाँचे को जन्म पर आधारित जाति प्रथा के स्थान पर कर्म पर आधारित वर्ग-व्यवस्था के रूप में बदलना चाहते थे।

 स्वामी विवेकानन्द ने वेदान्त की एक नवीन और वास्तविक व्याख्या करते हुए धर्म से दूर न जाकर धर्म के आधार पर ही भारत को समानता, प्रेम और भातृभाव का नया पाठ पढ़ाया। इस प्रकार पाश्चात्य सभ्यता संस्कृति से प्रभावित भारतीय समाज सुधारकों प्रयासों ने भारतीयों में आत्मविश्वास तथा अपनी गौरवमयी परम्पराओं के प्रति श्रद्धा उत्पन्न की, जिससे देश में राष्ट्रीय चेतना का संचार हुआ।

आर्थिक जीवन पर प्रभाव

पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति का जितना प्रभाव आर्थिक क्षेत्र पर पड़ा, उतना शायद किसी भी क्षेत्र पर नहीं पड़ा। इसका मूल कारण यह था कि अंग्रेज भारत में व्यापारिक उद्देश्य लेकर आए थे, संयोग से उन्हें राज्य भी मिल गया। अपनी राजसत्ता का लाभ उठाकर उन्होंने अपने व्यापार को बढ़ाने तथा अधिकाधिक व्यापारिक लाभ कमाने के प्रयास प्रारम्भ कर दिए। अंग्रेजी राज की स्थापना के बाद गाँवों की परम्परागत आत्मनिर्भरता में कमी आई।

ग्रामीण लघु उद्योगों का महत्त्व मशीनीकरण के कारण कम होने लगा। जमींदारी प्रथा के विकास से कृषकों की आर्थिक दशा दयनीय होने लगी। मिल और मशीनों की स्थापना शहरों में की जाने लगी, जिससे काम करने के लिए लोग गाँवों से शहरों की ओर पलायन करने लगे। 

मिल मालिकों का मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना था। अतः ये मजदूरों का शोषण करते थे। इतना ही नहीं अंग्रेजों ने भारतीय भू-सम्पदा, मानव सम्पदा और कृषि सम्पदा का काफी दोहन किया और अपने व्यापार को समृद्ध किया। उन्होंने यातायात और संचार के साधन निर्मित किए, जिससे सारा भारत एक-दूसरे से जुड़ सका, पर इसके पीछे भी आर्थिक शोषण का उद्देश्य छिपा था। इस शोषण ने धीरे-धीरे कृषक एवं श्रमिक आन्दोलनों का सूत्रपात किया। जिसके चलते राष्ट्रीयता की भावना और अधिक बलवती हुई।

शिक्षा पर प्रभाव

भारत जैसे विशाल देश के शासन प्रबन्ध का संचालन करने हेतु ब्रिटिश सरकार को बड़ी संख्या में व्यक्तियों की आवश्यकता थी जोकि नौकरशाही व्यवस्था के अन्तर्गत सरकारी कार्यालयों आदि में क्लर्क के रूप में कार्य कर सके। इसलिए भारतीयों को शिक्षित करना आवश्यक था। इस शिक्षा प्रसार का उद्देश्य अपने स्वार्थों की पूर्ति थी न कि भारतीयों का कल्याण। यह शिक्षा किताबी शिक्षा मात्र थी जिसका तकनीकी शिक्षा से कोई सम्बन्ध न था, फिर भी शिक्षा के क्षेत्र में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभावों को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।

ईसाई धर्म प्रवर्तकों ने इस देश में अंग्रेजी शिक्षा का प्रारम्भ किया। 1835 ई. में लॉर्ड विलियम बैण्टिक के शासनकाल में लॉर्ड मैकॉले ने स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम द्वारा शिक्षा देने का विधान किया। इससे शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ। कुछ समय के पश्चात् इसी शिक्षा पद्धति ने भारतीयों को जागृत करने में अधिक सहयोग दिया।

अंग्रेजी साहित्य जो राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत था, भारतीयों में राष्ट्र-प्रेम जागृत करता रहा जिसके परिणामस्वरूप भारतीयों ने अपने देश की परतन्त्रता की बेड़ियों को काटने के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन प्रारम्भ किया। भारतीयों के मानसिक विकास में यह शिक्षा पद्धति अत्यन्त सहायक सिद्ध हुई। 

अंग्रेजी भाषा के अध्ययन एवं ज्ञान से विश्व के अन्य भागों में भारत के सम्पर्क बढ़े तथा अपनी सैकड़ों वर्षों की अज्ञान निद्रा को त्यागकर जागृत हुए। यद्यपि इस शिक्षा के प्रसार से भारतीयों को अत्यधिक लाभ पहुँचा तथा भारत में आधुनिक युग के जन्म का श्रेय अधिकांशतः इस शिक्षा सम्बन्धी सुधार को दिया जा सकता है।

स्त्रियों पर प्रभाव

पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति के प्रभाव के कारण भारत में 19वीं शताब्दी में धार्मिक तथा सामाजिक सुधार आन्दोलन प्रारम्भ हुए, जिनके द्वारा भारतीय समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के प्रयास किए गए। भारतवर्ष में पश्चिम का प्रभाव स्त्रियों पर बहुत अधिक पड़ा। उनकी दशा में सुधार हुआ। 

हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार माना जातारहा है। पतिपरमेश्वर की धारणा स्त्रियों के मन से जुड़ी रहने के कारण तलाक जैसी बातें समाज में लगभग अशोभनीय एवं अस्वीकृत मानी जाती थी, किन्तु अब विवाह को न धार्मिक संस्कार माना जाने लगा, अपितु जातिगत विवाह होना भी आवश्यक नहीं रहा। पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण ही बाल विवाह एवं सती प्रथा पर रोक लग गई एवं विधवा विवाह को भी मान्यता मिलने लगी।

पाश्चात्य विचारों के प्रभाव से स्त्रियों ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुष से समानता की मांग की। भारत में स्त्रियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं थी। उनके लिए रामायण पढ़ लेने का ज्ञान होना पर्याप्त समझा जाता था। 

स्त्रियों की शिक्षा के लिए सुधारकों को बड़ा संघर्ष करना पड़ा। सबसे पहले कलकत्ता विश्वविद्यालय ने स्त्रियों उच्च शिक्षा की स्वीकृति दी। अतः धीरे-धीरे स्त्रियों में उच्च शिक्षा बढ़ने लगी। अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से भारतीय स्त्रियों पर अंग्रेजी सभ्यता का प्रभाव पड़ा। इस प्रभाव से कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए जैसे-पर्दा प्रथा का बहिष्कार, पुरुषों के साथ समानता की माँग आदि।

Essay on impact of western culture in India।। भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पर निबंध video

impact of western culture Essay in Hindi

निष्कर्ष

अत: निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ब्रिटिश शासनकाल में पश्चिमी विचारधारा एवं पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव भारत के विभिन्न क्षेत्रों में दृष्टिगोचर हुआ। भारतीय समाज, धर्म, अर्थव्यवस्था, शिक्षा तथा स्त्रियों की दशा में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए। इस प्रकार, महिलाओं के उत्थान में पश्चिमी विचारधारा का प्रभाव विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है।

सामाजिक मुद्दों पर निबंध | Samajik nyay

भारत पर निबन्धप्रदूषण पर निबंध
पर्यावरण पर निबंधभ्रष्टाचार पर निबंध
सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर निबंधतीन तलाक पर निबन्ध
समान नागरिक संहिता पर निबन्ध103 वां संविधान संशोधन अधिनियम पर निबन्ध
इंटरनेट का अधिकार एक मौलिक अधिकार पर निबन्धपक्षपातपूर्ण मीडिया पर निबंध
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंधनिजता का अधिकार पर निबंध
भारत में साम्प्रदायिकता पर निबंधजाति प्रथा पर निबंध
दहेज प्रथा पर निबंधमहिला आरक्षण पर निबंध
भारत में धर्मनिरपेक्षता पर निबंधराष्ट्र निर्माण में नारी का योगदान पर निबंध
भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पर निबंधविविधता में एकता पर निबंध
समाज पर सिनेमा का प्रभाव पर निबंधभ्रष्टाचार पर निबंध
राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका पर निबंधक्षेत्रवाद पर निबंध
आतंकवाद पर निबंधजनसंख्या वृद्धि पर निबंध
वरिष्ठ नागरिकों पर निबंधनक्सलवाद पर निबंध
भारत में बेरोजगारी की समस्या पर निबंधदिव्यांगता:सशक्तिकरण का समावेशी आयाम पर निबंध
मानवाधिकार संरक्षण की आवश्यकता पर निबंध


impact of western culture Essay in Hindi

मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

Leave a Comment