- वृद्ध (वरिष्ठ) नागरिकों की समस्याएँ पर निबंध | Senior Citizen Essay in Hindi
- मान-सम्मान की समस्या
- आर्थिक समस्या
- वृद्धों को बोझ मानने की समस्या
- वरिष्ठ नागरिकों की समस्या के कारण
- वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं का समाधान
- Senior citizen Day paragraph.”वरिष्ठ नागरिक दिवस” अनुच्छेद लिखें। Aao Hindi Seekhen video
- निष्कर्ष
वृद्ध (वरिष्ठ) नागरिकों की समस्याएँ पर निबंध | Senior Citizen Essay in Hindi
जीवन को मुख्यत: तीन अवस्थाओं में बाँटा गया है, ये अवस्थाएँ हैं बाल्यावस्था, युवावस्था तथा वृद्धावस्था। जिस प्रकार शैशव अर्थात् बाल्यावस्था के बाद युवावस्था आती है, ठीक उसी प्रकार युवावस्था के बाद वृद्धावस्था आती है। बाल्यावस्था किसी भी व्यक्ति के जीवन का स्वर्णिम काल होती है। यही कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने बचपन को फिर से जीने की इच्छा रखता है।
जीवन में सृजनात्मकता तथा रचनात्मकता का संचार करने वाली युवावस्था साहस, उमंग और जोश से भरी होती है। साधारणत: अपने जीवन की अधिकांश उपलब्धियाँ मनुष्य इसी अवस्था में अर्जित करता है, इसलिए हर कोई सदैव युवा रहने का स्वप्न देखता है।
वृद्धावस्था को जीवन का अन्तिम पड़ाव एवं समस्या से घिरी हुई अवस्था माना जाता है, क्योंकि इस अवस्था में वृद्धों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप वे दूसरों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में असमर्थ रहते हैं। समय की रफ्तार के साथ-साथ समाज में नए परिवर्तन होने लगे हैं।
नई पीढ़ी के लोग पुराने विचारों के लोगों का उनके जीवन में हस्तक्षेप उपयुक्त नहीं समझते हैं। इस कारण युवा पीढ़ी उनके विचारों एवं अनुभवों की उपेक्षा करती है। वृद्धों की उपयोगिता भी समाज में कम होती नजर आने लगी है, जिसके निम्नलिखित कारण है-
- शारीरिक समस्या वृद्धावस्था जीवन का सान्ध्यकाल होती है। इस अवस्था में मनुष्य की शारीरिक क्षमता में कमी आ जाती है, जिससे उसकी निर्भरता दूसरों पर बढ़ जाती है। शरीर की सभी इन्द्रियों की गति धीमी पड़ जाती है और व्यक्ति धीरे-धीरे उन पर अपना नियन्त्रण खोने लगता है। शरीर कमजोर और अशक्त बन जाता है। छोटी-छोटी बीमारियाँ भी व्यक्ति को बहुत असहाय बना देती है। जो व्यक्ति युवावस्था में अपने स्वास्थ्य के प्रति बेहद सचेत होते हैं, वृद्धावस्था में भी रोगों से बच नहीं पाते। इस अवस्था में व्यक्ति का रोगमुक्त रहना लगभग असम्भव होता है, इसीलिए चिकित्सको से नियमित रूप से परामर्श करना उनके जीवन का अंग बन जाता है।
- मानसिक समस्या यह सत्य है कि उम्र के इस पड़ाव पर वरिष्ठ नागरिकों की अपनी अनेक शारीरिक व्याधियाँ सिर उठा लेती हैं, परन्तु यह उनकी वास्तविक समस्या नहीं है। उनकी वास्तविक समस्या मानसिक है। सरकारी अथवागैर-सरकारी संगठनों में चेतनभोगी कर्मचारियों को एक निर्धारित आयु के बाद सेवानिवृत्त कर दिया जाता है। यह मान लिया जाता है कि अब व्यक्ति शारीरिक और मानसिक श्रम के योग्य नहीं रहा, चाहे वह व्यक्ति स्वस्थ हो क्यों न हो। इसके बाद उसके जीवन में अनेक कठिनाइयाँ आने लगती है। जैसे ही व्यक्ति की आर्थिक उपयोगिता में कमी आती है, यह सामाजिक रूप से भी अनुपयोगी समझ लिया जाता है।
- इस अवस्था में प्रवेश करते ही मानसिक तनाव की स्थिति बनने लगती है। लोगों से सम्पर्क न रहना तथा सहयोगी या मित्रों का निधन हो जाना मानसिक तनाव का महत्त्वपूर्ण कारण है। सर्वविदित है कि यदि पति या पत्नी में से किसी एक की मृत्यु हो जाती है तो उनमें हीनभावना की वृद्धि हो जाती है तथा आत्मविश्वास का अभाव-सा दिखने लगता है, जिससे मानसिक विकृति, अकेलापन आदि जैसे दोषों का निर्माण होता है।
- स्वास्थ्य की समस्या शारीरिक बदलाव के अनुसार, मानसिक परिवर्तन भी होता है। इस अवस्था में प्रवेश करते ही स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ उभरने लगती है। उन्हें अनेक प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। शरीर में शिथिलता आ जाने से दवाएँ भी असरकारक नहीं होती है, जिससे वृद्ध व्यक्ति अधिकतर स्वास्थ्य की समस्या से जूझता रहता है।
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मान-सम्मान की समस्या
वृद्धावस्था में एक ओर तो सीमित धन की उपलब्धता के कारण आर्थिक कष्ट उठाना पड़ता है, तो दूसरी ओर समाज एवं परिवार की नजरों में ‘बोझ’, ‘अनुपयोगी’ तथा ‘फालतू’ आदि समझे जाने से उसे मानसिक पीड़ा होती है। जो व्यक्ति कुछ समय पहले तक सबके लिए विशिष्ट था, महत्त्वपूर्ण था, अचानक ही उसे बोझ समझा जाने लगता है। उसके मान-सम्मान एवं भावनाओं का महत्व बहुत कम हो जाता है।
भागदौड़ भरी जिन्दगी मैं युवा पीढ़ी उससे दूरी बना लेती है और वह अकेला रह जाता है। जब व्यक्ति मानसिक रूप से स्वयं को अकेला पाता है, तो वह उसके जीवन का सबसे कठिन समय होता है। व्यक्ति का अस्तित्व तथा उसके उपयोगी होने की भावना से व्यक्ति में प्रेरणा शक्ति तथा आत्म-विश्वास का संचार होता है, परन्तु जब इस आत्मविश्वास जनित शक्ति का ह्रास हो जाता है, तो व्यक्ति की स्थिति बड़ी दयनीय हो जाती है। यही परिस्थिति वृद्धावस्था का सबसे बड़ा अभिशाप है।
आर्थिक समस्या
यह समस्या वृद्धों की एक महत्त्वपूर्ण समस्या है। वृद्धों को आर्थिक समस्या का अनुभव होने लगता है। इस अवस्था में कार्यक्षमता में कमी आ जाती है, जिससे दूसरों पर निर्भरता बढ़ने लगती है और युवाओं अथवा परिवार के सदस्यों द्वारा उन्हें अकेला छोड़ दिया जाता है।
वृद्धों को बोझ मानने की समस्या
आज युवा पीढ़ी की मानसिकता यह हो गई है कि वृद्ध व्यक्ति परिवार पर बोझ होते हैं, इसीलिए आजकल तो बच्चे अपने वृद्ध माता-पिता को घर से निकालकर उन्हें एक अपमानजनक जीवन जीने के लिए असहाय छोड़ देते हैं। यही कारण है कि आज भारत में भी ‘ओल्ड एज होम’ की अवधारणा बलवती होती जा रही है। जो बृद्ध माता-पिता बिल्कुल अकेले रह जाते हैं, उनके लिए ‘ओल्ड एज होम’ जाने के अतिरिक्त कोई और मार्ग शेष नहीं बचता और जो लोग इनका हिस्सा नहीं बनते तथा परिवार से दूर अकेले रहने का जोखिम उठाते हैं, उन्हें आपराधिक तत्वों का शिकार बनना पड़ता है।
वरिष्ठ नागरिकों की समस्या के कारण
हमारे देश में वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं के बढ़ने के अनेक कारण है
संयुक्त परिवार प्रणाली का विघटन संयुक्त परिवारों का अशान्त व घुटन भरा माहौल और नगरों की ओर तेजी से प्रस्थान करती हुई युवा पीढ़ी की अपने बुजुगों के प्रति उदासीनता ने आज हमारे देश में गम्भीर समस्या उत्पन्न कर दी है। यह वही देश है जहाँ कि संस्कृति में परिवार के बुजुर्ग को भगवान के समान माना जाता है, किन्तु संयुक्त परिवार प्रणाली के विघटन के कारण आज की नई युवा पीढ़ी न तो बड़ों के अनुशासन में रहना चाहती है और न ही आदर-सम्मान करना चाहती है।
भौतिक सुख-सुविधाओं की वृद्धि
औद्योगीकरण व संस्कृतीकरण के फलस्वरूप भौतिक सुख-सुविधाओं में वृद्धि होने के कारण आज की युवा पीढ़ी के रहन-सहन एवं जीवन-शैली में तीव्र बदलाव देखा जा रहा है। इस युग में व्यक्ति अपने कार्यों में इतना अधिक व्यस्त हो गया है कि वह अपने वर्तमान समय में परिवार के सदस्यों के साथ बैठने की आवश्यकता ही नहीं समझता, जिसकी पीड़ा सबसे अधिक बुजुर्गों को ही झेलनी पड़ती है। वर्तमान समय में, परिवार की अवधारणा केवल पति-पत्नी एवं बच्चों तक ही सीमित होने लगी है और वृद्ध समाज एवं परिवार के क्षेत्र या सीमा से बाहर होते जा रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी अपनी भौतिक सुख-सुविधाओं को अधिक महत्त्व देती है और वृद्धों को कम।
व्यक्ति के पास अपने आराम की हर वस्तु को खरीदने के लिए पैसा होता है; लेकिन वृद्धों की बीमारियों के लिए नहीं।। इस पीढ़ी को अकेले रहने की तलफ पाई जाती है और वे इन वृद्धों को भूल जाते हैं।
नई-पुरानी पीढ़ी के बीच का फासला
नई-पुरानी पीढ़ी के बीच के फासले को ही पीढ़ी अन्तराल कहा जाता है। देखा जाता है कि पीढ़ी अन्तराल के कारण पीढ़ियों के आचार-विचार, जीवन-शैली एवं सोच में अन्तर होता है। यद्यपि नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से न केवल जीवन शैली वरन जीवन दर्शन भी पाती है, फिर भी न जाने क्यों पुरानी पीढ़ी बोझ सी लगती है।
धन का महत्त्व
आज वर्तमान युग में धन का महत्व इतना अधिक बढ़ गया है कि लोगों के पास धन कमाने अतिरिक्त किसी दूसरे पर ध्यान देने का समय ही नहीं है। बच्चे बड़े होकर माता-पिता को तभी अपनाते हैं, जब पास धन होता है। धन समाप्त हो जाने के बाद उनके लिए वृद्धों का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है और ये बोझ बनकर जाते हैं।
व्यक्तिगत स्वार्थ
वर्तमान युग में नई पीढ़ी स्वार्थी हो गई है। यह अपना स्वार्थ देखकर ही कार्य करती है। यह अपने परिवार के वृद्धों की देखभाल तभी करती है, जब यह समझती है कि उन्हें धन-दौलत व सम्पत्ति प्राप्त हो सकती है। उनके अन्दर अपने बुजुर्गों के प्रति सेवा, दया, त्याग आदि की भावना कम होती जा रही है, क्योंकि यह वृद्धों की सेवा है कर्तव्य को अपनी स्वतन्त्रता में बाधक मानते हैं। अतः अपने स्वार्थ के चलते थे वृद्धों की अनदेखी कर देते हैं।
वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं का समाधान
वरिष्ठ नागरिकों के एकाकीपन को दूर करने के लिए परिवार के सदस्यों को उनके साथ समय बिताना चाहिए। परिवार के बच्चों को उनके साथ वार्तालाप करने तथा खेलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। वरिष्ठ नागरिकों के लिए मिलने-बैठने के स्थान, क्लब आदि की व्यवस्था होनी चाहिए। परिवार के सदस्यों को वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि वरिष्ठ नागरिकों में गैर-संक्रमणीय रोग सामान्य रूप से पाए जाते हैं।
अत: आयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रम के तहत् जिम्मेदारीपूर्वक उपचार की यथासम्भव उचित व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहिए। अस्पतालों में वरिष्ठ नागरिकों को विशेष सुविधाएँ मिलनी चाहिए। इनके लिए निःशुल्क तथा तत्काल स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता को सरकार द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, हालाँकि राष्ट्रीय वृद्धजन स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम संचालित है, जिसे कठोरता से लागू करने की आवश्यकता है। वरिष्ठ नागरिक हमारे समाज के सम्माननीय अंग हैं। उनका सम्मान हमारी सामाजिक सभ्यता का परिचायक है। अतः प्रत्येक स्थान पर उन्हें उचित आदर दिया जाना चाहिए।
बड़े-बुजुर्गों से परिवार में अनुशासन बना रहता है, जो परिवार के सभी सदस्यों के हित में होता है। अकसर प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने के लिए बुजुगों के अनुभव बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं। वर्तमान में जब पति-पत्नी दोनों को धनोपार्जन के लिए नौकरी पर जाना पड़ता है, तो घर में बुजुर्गों के होने से छोटे बच्चों का पालन-पोषण करने में सहायता मिलती है। घर में तनावपूर्ण स्थिति होने पर बुजुर्ग उसे आसानी से संभाल लेते हैं और सभी सदस्यों को भावनात्मक रूप से सुरक्षा प्रदान करते हैं। अत: वरिष्ठ नागरिकों का साथ मिलना हमारे लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि रॉबर्ट ब्राउनिंग ने वृद्धावस्था के बारे में लिखा है “मेरे साथ रहो, रुको वृद्ध हो अभी जीवन का सर्वोत्तम शेष है।”
Senior citizen Day paragraph.”वरिष्ठ नागरिक दिवस” अनुच्छेद लिखें। Aao Hindi Seekhen video
निष्कर्ष
उम्रभर कड़ा परिश्रम करने के बाद वृद्धावस्था व्यक्ति के आराम करने की अवस्था होती है। वह जीवनभर दूसरों की जरूरतों को पूरा करने और अपने कर्तव्यों को निभाने में ही लगा रहता है। वृद्धावस्था में उसे अपने ऊपर ध्यान देने का भरपूर समय मिलता है, परन्तु आधुनिक दौर में स्थिति विपरीत है। सभी व्यक्तियों को यह मानसिक रूप से स्वीकार कर लेना चाहिए कि वृद्धावस्था एक न एक दिन सबके जीवन में आती है।
वृद्धों के साथ सम्मानजनक व्यवहार न करना पूर्णतः अनैतिक है, इसीलिए हमें उनका महत्त्व समझते हुए उनका सम्मान करना चाहिए और उनकी सेवा करनी चाहिए। उनकी उपस्थिति तथा मार्गदर्शन परिवार और समाज दोनों के लिए कल्याणकारी है। यदि आज हम उनका सम्मान करेंगे, तभी हम अपनी आने वाली पीढ़ी से सम्मान पाने के अधिकारी होंगे।
सामाजिक मुद्दों पर निबंध | Samajik nyay
reference
Senior Citizen Essay in Hindi