निःशक्तजन (दिव्यांग) : सशक्तीकरण का समावेशी आयाम | inclusiveness and empowerment of persons with disabilities Essay in Hindi
निःशक्तता एक ऐसी समस्या है, जो मनुष्य के जीवन को अभिशाप बना देती है। यह समस्या न केवल भारत में सम्पूर्ण विश्व में पाई जाती है। आधुनिकता का दम्भ भरने वाले समाज में आज भी निःशक्तता (विकलांगता) को हेरा दृष्टि से देखा जाता है। एक सभ्य समाज के लिए यह कलंककारी है। निःशक्तता वास्तव में, एक सामाजिक समस्या है, जिसे मानवीय दृष्टि से देखा जाना चाहिए। भारतीय समाज में प्राय: निःशक्तजनों (विकलांगों/दिव्यांगों को तिरस्कृत होते हुए देखा जा सकता है। इतना ही नहीं वरन इन्हें कभी-कभी पारिवारिक सदस्यों द्वारा तिरस्कृत किया जाता है। समायोजनपूर्ण व्यवहार की अपेक्षा करने वाला निःशक्त व्यक्ति परिवार से ही लगातार तिरस्कृत होने के कारण कुण्ठित होने लगता है। फलस्वरूप शारीरिक निःशक्तता के साथ-साथ वह मानसिक रूप से भी निःशक्त (दिव्यांग/विकलांग) होने लगता है।
निःशक्तता एवं उसके प्रकार
शरीर के किसी अंग अथवा मस्तिष्क के बाधित अथवा अपूर्ण विकास को निःशक्तता के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो मानव समाज की एक संवेदनशील समस्या है, जिसका सामना निःशक्तजनों को करना पड़ता है। निःशक्तजनों को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, यातायात आदि तक पहुँच बनाने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे ये सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े रह जाते हैं। इस सम्बन्ध में अन्धेपन एवं बधिरता से ग्रस्त हेलेन केलर ने कहा कि “दृष्टिहीनों की प्रगति में मुख्य बाधा दृष्टिहीनता नहीं, अपितु दृष्टिहीनों के प्रति समाज की नकारात्मक सोच है।”
भारत में निःशक्तता की समस्या न केवल अधिक है, बल्कि इसमें धीरे-धीरे वृद्धि ही हो रही है। वर्ष 2001 की जनगणना के आँकड़ों में निःशक्तजनों की कुल संख्या जहाँ 2.19 करोड़ थी, वहीं वर्ष 2011 की जनगणना में यह बढ़कर 2.68 करोड़ है। देश के कुल विकलांगों में पुरुषों का 55.9% तथा महिलाओं का 44.1% है। देश की कुल आबादी में निःशक्तजनों की आबादी 2.21% है। वर्ष 2011 की जनगणना में 8 प्रकार के निःशक्तजनों (दिव्यांगों) को शामिल किया गया है; जैसे दृष्टिहीनता, मूकता, बधिरता, चलन क्रिया में असमर्थ, मानसिक मन्दता, मानसिक रुग्णता, बहुविकलांगता एवं अन्य कोई।
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निःशक्तता के स्वरूप
निःशक्तता के प्राय: दो रूप होते हैं
1. शारीरिक निःशक्तता
2. मानसिक निःशक्तता
शारीरिक निःशक्तता में उस निःशक्तता को शामिल किया जाता है जो शारीरिक अंगों के अविकसित रह जाने अथवा दुर्घटना इत्यादि में अंग विशेष के समाप्त हो जाने से उपजती है। शारीरिक निःशक्तता में दृष्टिबाधित निःशक्तता, अल्पदृष्टि निःशक्तता, बाकू निःशक्तता, श्रवण निःशक्तता, चल निःशक्तता इत्यादि उपश्रेणियाँ हैं, जबकि मानसिक निःशक्तता की दो उपश्रेणियाँ हैं-मानसिक रुग्णता और मानसिक मन्दता।
वर्ष 1995 के पूर्व तक भारत में निःशक्तता के अन्तर्गत मानसिक निःशक्तता को लेकर कोई प्रावधान नहीं था। वर्ष 1995 में निःशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों की रक्षा और पूर्ण सहभागिता) अधिनियम के लागू होने के बाद मानसिक निःशक्तता को भी अन्य निःशक्तताओं के साथ सम्मिलित किया गया। इस अधिनियम के अन्तर्गत किसी शामसिक विकार से पीड़ित व्यक्ति को मानसिक रुग्णता तथा मस्तिष्क के बाधित विकास अथवा अपरिपक्व मस्तिष्क बाले व्यक्तियों को मानसिक मन्दता की श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।
संवैधानिक स्थिति
भारतीय संविधान में यद्यपि निःशक्तजनों के लिए कोई विशेष अनुवन्ध नहीं है तथापि प्रस्तावना में एक लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना की परिकल्पना की गई है। इसी के साथ नागरिकों में किसी भी आधार पर भेदभाव न करने का निर्देश दिया गया है। इसके अतिरिक्त संविधान के अनुच्छेद-41 में राज्य को वृद्ध, बीमार तथा बाधितों के लिए विशेष प्रभावी उपबन्ध करने का निर्देश दिया गया है।
निःशक्तजनों के सशक्तीकरण हेतु सरकार के प्रयास सरकार ने निःशक्तजनों के सशक्तीकरण हेतु समय-समय पर प्रयास किए हैं। सरकार द्वारा मानसिक रूप से अस्वस्थ दिव्यांगों के लिए विशेष प्रावधान सहित वर्ष 1995 में विकलांगों के प्रति समाज के दायित्वों के निर्धारण हेतु विकलांग व्यक्ति (समान अवसर अधिकारों का संरक्षण एवं पूर्ण सहभागिता) अधिनियम पारित किया गया, जो वर्ष 1996 से लागू हुआ।
इस अधिनियम के अन्तर्गत दिव्यांगों के लिए शिक्षा, रोजगार, सामाजिक सुरक्षा के प्रावधान शामिल किए गए, इसके साथ ही समूह (ग) तथा समूह (घ) के पदों पर नियुक्ति में विकलांगों को आरक्षण देने का प्रावधान किया गया जाकि उन्हें सशक्त बनाकर नई पहचान दी जा सके। इतना ही नहीं वर्ष 1999 में ऑटिज्म, सेरीब्रल पाल्सी, मानसिक मन्दबुद्धि एवं बहुविकलांगता वालों के कल्याण के लिए अलग से राष्ट्रीय न्यास का गठन किया गया, ताकि इनकी समस्याओं को सुना जा सके।
इसके अतिरिक्त निःशक्तजनों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर, केन्द्र सरकार ने वर्ष 2012 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मन्त्रालय के अन्तर्गत दिव्यांगजन (विकलांगजन सशक्तीकरण विभाग बनाया, जिससे इनके लिए अलग से कुछ पैमाने निर्धारित कर विकास में सहभागी बनाया जा सके। इसके अतिरिक्त निःशक्तजनों के शैक्षिक अधिकार व अवसरों के उन्नयन की दृष्टि से राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2015′ महत्त्वपूर्ण पहल रही है, जिसमें शिक्षा व्यवस्था के सभी क्षेत्रों में दिव्यांगों को उचित स्थान दिया गया है।
इसके अतिरिक्त इन लोगों को अधिक सशक्त बनाने हेतु संसद ने वर्ष 2016 में विकलांगजन अधिकार विधेयक, 3016 पारित किया है, जिसमें दिव्यांगों की श्रेणी को बर्तमान में 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है। सरकार द्वारा | नौकरियों में आरक्षण को 39% से बढ़ाकर 4% कर दिया गया है। इसके साथ ही इसमें निःशक्त महिलाओं और बच्चों की आवश्यकताओं का विशेष उल्लेख किया गया है। वर्ष 2015 में अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के अवसर पर ‘सुगम्य भारत | अभियान’ की शुरुआत की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य निःशक्तजनों के लिए बाघामुक्त एवं सुखद बातावरण तैयार करना है।
सरकार द्वारा शैक्षिक सशक्तीकरण के अन्तर्गत कक्षा 9 से एमफिल/पीएचडी और विदेशों में अध्ययन हेतु 5 छात्रवृत्ति योजनाएँ नामतः प्री मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना, पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना, उच्चश्रेणी छात्रवृत्ति, निःशक्तजनों के लिए राष्ट्रीय फैलोशिप और राष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना तथा समुद्रपारीय छात्रवृत्ति योजनाएँ कार्यान्वित की जा रही है। विशिष्ट निःशक्तजनों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, भारत सरकार ने विशिष्ट निःशक्तताओं के लिए 7 राष्ट्रीय संस्थान स्थापित किए हैं। ये मानव संसाधन विकास में संलग्न हैं और निःशक्तजनों के लिए पुनर्वास एवं अनुसन्धान तथा विकास सेवाएँ उपलब्ध करा रहे हैं।
राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) नेल्लोर (आन्ध्र प्रदेश), देवानगीर (कर्नाटक) और नागपुर (महाराष्ट्र) में 4 नए संयुक्त क्षेत्रीय केन्द्र स्थापित किए गए हैं। आइजोल में एक दिव्यांगता अध्ययन केन्द्र स्थापित किया जा रहा है।
निःशक्तों को शिक्षा से जोड़ने हेतु ऑनलाइन ‘सुगम्य पुस्तकालय’ प्रारम्भ किया गया है, ताकि ये बटन क्लिक के माध्यम से पुस्तकों को पढ़ सकें। इनकी नौकरियों एवं स्वरोजगार के क्षेत्र में भागीदारी बढ़ाने हेतु वर्ष 2016 में विक अधिकारिता विभाग के परामर्श से एनएचएफडीसी द्वारा दिव्यांगों के लिए एक जॉब पोर्टल की भी शुरुआत की गई है।
यह पोर्टल एकल मंच पर निःशुल्क नौकरी के अवसर, स्वरोजगार ऋण, शिक्षा ऋण तथा कौशल प्रशिक्षण आदि के प्रे प्रतिबद्ध है। इतना ही नहीं सरकार द्वारा संचालित कार्य योजना की जानकारी सुगमता से निःशक्तजनों को हो सके, झार के लिए वर्ष 2017 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मन्त्रालय ने ‘दिव्यांग साथी मोबाइल एप्प’ की शुरुआत की है।
शिक्षा में कल्याण के अतिरिक्त स्वावलंबन योजना चलाई जा रही है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक 25 लाए दिव्यांगजनों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है। इसमें स्वरोजगार में सरकारी व गैर-सरकारी संगठन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 12 मई, 2020 को घोषित आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत निःशक्तों को ₹1000 प्रतिमा कोरोना संकट के दौरान देने का प्रावधान किया गया है।
इस प्रकार, विभिन्न क्षेत्रों में भागीदारी सुनिश्चित करने के प्रयास के कारण ही इनकी भागीदारी नौकरियों में बढ़ी है। वर्ष 2018 में भारतीय निःशक्त क्रिकेटरों ने शानदार प्रदर्शन कर पाकिस्तान को हराकर ब्लाइण्ड क्रिकेट वर्ल्ड कप 2018 अपने नाम किया। यहीं वर्ष 2019 में इंग्लैंड हराकर पहली टी- 20 दिव्यांग विश्व क्रिकेट सीरीज पर कब्जा किया।
खेल जगत में देश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों में भारतीय दिव्यांग महिला अरूणिमा सिन्हा प्रमुख है, जो माउर एवरेस्ट फतह करने वाली पहली दिव्यांग महिला है। वर्ष 2016 की पैरा ओलम्पिक में रजत पदक जीतने वाली दीपा मलिक प्रमुख हैं, जिन्हें वर्ष 2019 का राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार दिया गया है, भाला फेंक खिलाड़ी सुन्दर सिंह गुर्जर प्रमुख है, जिसने नवम्बर, 2019 में दुबई में सम्पन्न विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियन में स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
इसके अतिरिक्त ब्लाइण्ड क्रिकेट में 32 शतक लगाने वाले शेखर नायक, प्रसिद्ध डॉक्टर सत्येन्द्र सिंह, क्लासिकल डांसर सुधा चन्द्रन, संगीतकार रवीन्द्र जैन आदि प्रमुख प्रतिभावान व्यक्ति है।
इस प्रकार इनकी उपलब्धियों से यह स्पष्ट होता है, निःशक्तजनों में अपार क्षमताएँ होती है तथा ये प्रेरणादायक भी
होते हैं। केबल इन्हें अवसर देने की आवश्यकता होती है। अतः इन्हीं सब लक्षयों को ध्यान में रखकर समावेशी विकास को बढ़ावा देने के साथ नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकी के उपयोग के साथ छोटी-छोटी योजनाएं चलाई जा रही है।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास निःशक्तजनों के सम्बन्ध में समाज में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से ही प्रतिवर्ष 3 दिसम्बर को विकलांग दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की मुहिम का एक हिस्सा है, जिसका उद्देश्य निःशक्तजनों को मानसिक रूप से सबल बनाना तथा अन्य लोगों में उनके प्रति सहयोग की भावना का विकास करना है।
एक दिवस के रूप में इस योजना को मनाने की औपचारिक शुरुआत वर्ष 1992 में हुई थी। जबकि इससे एक वर्ष पूर्व 1991 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने 3 दिसम्बर से प्रतिवर्ष इस तिथि को ‘अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस’ के रूप में मनाने की स्वीकृति प्रदान कर दी थी।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, वर्तमान समय में विश्वभर में लगभग एक अरब जनसंख्या विकलांग है। इस सन्दर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सभी देशों में विकलांगों की समस्याएँ अलग-अलग होने के बावजूद उनकी मूल समस्या एक जैसी है, जिसमें बदलाब लाकर ही ऐसे व्यक्तियों को सशक्त किया जा सकता है।
इस प्रकार यह एक शुभ संकेत है कि न केवल भारत, बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी निःशक्तजनों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी है। इसी का परिणाम है कि वर्तमान में विकलांगों को दिव्यांग जैसे शब्दों से सम्मानपूर्वक पुकारा जाता है। इतना ही नहीं इससे सामाजिक समावेश की प्रक्रिया आसान हुई है तथा निर्भरता की संस्कृति भी कम हुई है। अतः निःशक्तजनों के कल्याण के लिए केन्द्र सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों के सन्दर्भ में यह कहना अधिक उचित होगा कि दिव्यांगों के कल्याण एवं सशक्तीकरण का कार्य तभी पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकता है. जब इसमें समाज की भूमिका मानवीय तथा सामंजस्यपूर्ण होगी, तभी सशक्तीकरण के साथ समावेशी विकल्प के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा।
समावेशी शिक्षा | विकलांग बच्चो की राष्ट्रीय शिक्षा नीत्ति inclusive education in hindi video
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reference
inclusiveness and empowerment of persons with disabilities Essay in Hindi