निजता का अर्थ है कि कोई व्यक्ति स्वयं को किस हद तक दुनिया में बाँटना चाहता है। यह किसी व्यक्ति के सन्दर्भ में कुछ जानकारियाँ छिपाने या उन्हें गुप्त रखने तक ही सीमित नहीं है। निजता वह अधिकार है, जो किसी व्यक्ति की स्वायत्तता और गरिमा की रक्षा हेतु आवश्यक होता है। वस्तुत: यह कई अन्य महत्त्वपूर्ण अधिकारों की आधारशिला है।
निजता का अधिकार हमारे लिए एक आवरण की भाँति है, जो हमारे जीवन में होने वाले अनावश्यक और अनुचित हस्तक्षेप से हमें बचाता है। यह हमें अवगत कराता है कि हमारी सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक स्थिति क्या है? वह निजता ही है जो हमें निर्णित करने का अधिकार देती है कि हमारे शरीर पर किसका अधिकार है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में निजता का महत्त्व और भी बढ़ गया है।
सामान्य रूप से निजता में दो पक्ष आते हैं-एक वह जिसके बारे में निजी जानकारियाँ माँगी जा रही हैं और दूसरा वह जो निजी जानकारी माँग रहा है। कठिनाइयाँ तब पैदा होती हैं, जब निजी जानकारियाँ राज्य द्वारा माँगी जाती हैं। यही कारण है कि आज निजता के अधिकार को लेकर बहस हो रही है। समय-समय पर निजता के अधिकार पर प्रश्न उठते रहे और सर्वोच्च न्यायालय विभिन्न मामलों में इसकी व्याख्या करता रहा है।
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निजता के अधिकार की संवैधानिक स्थिति | Right to Privacy Essay in Hindi
वर्ष 1954 में एम शर्मा बनाम सतीश चन्द्र मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि अमेरिका के संविधान की तरह भारतीय संविधान में निजता को मौलिक अधिकार के रूप में पहचान नहीं मिली है। इस मामले में अपराध प्रक्रिया विधान, 1898 की धारा-96 की वैधता को चुनौती दी गई थी, जिसमें राज्य को छापेमारी का अधिकार प्राप्त है।
वर्ष 1962 में खड़क सिंह बनाम उत्तर प्रदेश मामले में इसी तरह का प्रश्न उठा कि उत्तर प्रदेश पुलिस नियमन के अन्तर्गत निगरानी का अधिकार वैधानिक है या नहीं। उच्चतम न्यायालय ने इसे संविधान के अनु. 21, जीवन व व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अधिकार के अन्तर्गत अवैध घोषित किया और स्पष्ट रूप से कहा कि चूँकि निजता एक संविधान प्रदत्त अधिकार नहीं है, इसलिए किसी के जाने-जाने पर नजर रखना, जिससे निजता का अतिक्रमण होता हो, मौलिक अधिकारों का हनन नहीं है।
इस पर न्यायमूर्ति के सुब्बाराव ने असहमति जताई। उन्होंने स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अधिकार का अर्थ केवल घूमने से नहीं है, बल्कि निजी जीवन में भी हस्तक्षेप से स्वतन्त्रता है। भले ही मौलिक अधिकारों में निजता को सम्मिलित नहीं किया गया हो, किन्तु फिर भी यह व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का एक अभिन्न अंग है।
वर्ष 2012 में केन्द्र सरकार ने निजता के अधिकार व डी. एन. ए. प्रोफाइलिंग विधेयक, 2007 के अन्तर्गत न्यायमूर्ति ए. पी. शाह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, जिसे इन दोनों मुद्दों पर अपनी राय देनी थी। समिति ने स्पष्ट रूप से अनुशंसा की कि ऐसा कोई कानून बनाने से पहले निजता के अधिकार का एक मजबूत कानून निर्मित करना चाहिए।
वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय में आधार की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका दायर की गई। न्यायमूर्ति चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने 11 अगस्त, 2015 को निर्णय दिया कि आधार का प्रयोग केवल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और एलपीजी कनेक्शनों के लिए ही किया जाए।
कुछ ही दिनों पश्चात् तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एच. एस. दत्तू की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ ने मनरेगा सहित कई अन्य योजनाओं में आधार के प्रयोग की अनुमति दे दी। तत्पश्चात् शीर्ष न्यायालय में एक और याचिका दायर की गई कि क्या आधार मामले में निजता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है और क्या निजता एक मौलिक अधिकार है?
संविधान का भाग-8 जो कुछ अधिकारों को ‘मौलिक’ मानता है, में निजता के अधिकार का वर्णन नहीं किया गया है। इन सभी बातों का संज्ञान लेते हुए जुलाई, 2017 में 9 जजों की संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई आरम्भ कर दी और निम्न बिन्दुओं पर विचार शुरू किया
• निजता के अधिकार का दायरा क्या है?
• निजता का अधिकार सामान्य कानून द्वारा संरक्षित अधिकार है या एक मौलिक अधिकार है?
• निजता की श्रेणी कैसे तय होगी?
•निजता पर क्या प्रतिबन्ध है?
● निजता का अधिकार, समानता का अधिकार है या फिर अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का?
आधार, तकनीक और निजता के अधिकार का सम्बन्ध
नौ जजों की संवैधानिक पीठ ने सूचना, (जो आधार कार्ड सम्बन्धित है) के बारे में कहा कि सूचना की निजता, निजता के अधिकार का ही एक रूप है। निजता को न केवल सरकार से वरन् गैर-सरकारी तत्त्वों से भी ख़तरा है और पीठ ने कहा था कि हम सरकार से ये सिफारिश करते हैं कि डाटा की सुरक्षा हेतु समुचित व्यवस्था की जाए।
जिसके पश्चात् सरकार द्वारा डाटा को पूर्णतः सुरक्षित करने की दिशा में 12 अंकों के आधार नम्बर के स्थान पर 16 नम्बर की वर्चुअल आईडी प्रदान करने की बात कही गई। सरकार द्वारा यह कदम आधार डाटा के लीक होने की खबर के बाद उठाया गया। जिसमें यह कहा गया कि यूआईडीएआई (UIDAI) हर आधार कार्ड की एक वर्चुअल आईडी तैयार करने का अवसर देगा।
इससे व्यक्ति को अपने आधार डिटेल हेतु 12 अंकों के आधार नम्बर के स्थान पर 16 नम्बर की वर्चुअल आईड देनी होगी, जिसे सभी एजेन्सियों के लिए मानना बाध्यकारी होगा। यूआईडीएआई व्यक्ति को स्वयं की वर्चुअल आईडी बनाने की सुविधा देगा। जिसमें प्रत्येक आधार नम्बर के लिए टोकन जारी किया जाएगा तथा इस टोकन के आधार पर ही एजेन्सिया आधार डिटेल को सत्यापित कर सकेंगी।
निजता के मौलिक अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय
24 अगस्त, 2017 को उच्चतम न्यायालय ने देश के प्रत्येक नागरिक को प्रभावित करते हुए अपने ऐतिहासिक फैसले में निजता के अधिकार को संविधान के अन्तर्गत मौलिक अधिकार घोषित किया। अपने फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जीने का अधिकार, निजता का अधिकार और स्वतन्त्रता के अधिकार को अलग-अलग करके नहीं, अपितु एक समग्र रूप में देखा जाना चाहिए। न्यायालय के शब्दों में- “निजता मनुष्य के गरिमापूर्ण अस्तित्व का अभिन्न अंग है। यद्यपि संविधान में इसका उल्लेख नहीं है तथापि निजता का अधिकार वह अधिकार है जिसे संविधान में गढ़ा नहीं गया, बल्कि मान्यता दी गई है।”
निजता की श्रेणी को स्पष्ट करते हुए न्यायालय ने कहा कि निजता के अधिकार में व्यक्तिगत रुझान और पसन्द को सम्मान देना, पारिवारिक जीवन की पवित्रता, शादी का फैसला, बच्चे पैदा करने का निर्णय, जैसी बातें सम्मिलित हैं। किसी का अकेले रहने का अधिकार भी उसकी निजता के अन्तर्गत आएगा। निजता का अधिकार किसी व्यक्ति की निजी स्वायत्तता की सुरक्षा करता है और जीवन के सभी अहम पहलुओं को अपने तरीके से निर्धारित करने की स्वतन्त्रता देता है। न्यायालय ने यह भी कहा की यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक जगह पर हो तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह निजता का दाबा नहीं कर सकता।
अन्य मूल अधिकारों की भाँति ही निजता के अधिकार में भी युक्तियुक्त निर्बंन्धन की व्यवस्था लागू रहेगी, लेकिन निजता का उल्लंघन करने वाले किसी भी कानून को उचित और तर्कसंगत होना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि निजता को केवल सरकार से ही ख़तरा नहीं, बल्कि गैर-सरकारी तत्त्वों द्वारा भी इसका हनन किया जा सकता है। अत: सरकार डाटा संरक्षण का पर्याप्त प्रयास करे।
न्यायालय ने सूक्ष्म अवलोकन करते हुए कहा है कि “किसी व्यक्ति के बारे में जानकारी एकत्र करना, उस पर काबू पाने की प्रक्रिया का पहला कदम है।” अत: ऐसी सूचनाएँ कहाँ रखी जाएंगी, उनकी क्या श होंगी, किसी प्रकार की चूक होने पर जवाबदेही किसकी होगी, इन सभी पहलुओं पर गौर करते हुए कानून बनाया जाना चाहिए।
निजता का अधिकार(Right to privacy) /ESSAY video
निष्कर्ष
इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय ने इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया है, क्योंकि अब तक निजता को गौण महत्त्व वाला माना जाता था. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले के माध्यम से यह चरितार्थ कर दिया कि क्यों इसे अन्तिम जन की अदालत कहा जाता है। न्यायालय की नजर में निजता वह यौगिक है जो किसी की खानपान सम्बन्धी आदतें, किसी की साथी चुनने की आजादी, समलैंगिकता का सवाल, बच्चा पैदा करने सम्बन्धी निर्णय जैसे तत्त्वों से मिलकर बना है। स्पष्ट है कि आने बाले दशक में यह निर्णय कई अन्य महत्त्वपूर्ण फैसलों की आधारशिला बन्ने का कार्य करेगा।
न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि किसी के कल्याण के नाम पर उससे उसके अधिकार नहीं छीने जा सकते है। जनता सरकार की आलोचना कर सकती है, अपने मानवाधिकारों के हनन को लेकर सड़क पर उतर सकती है। निजता का अधिकार का यह फैसला एक नागरिक को उनके सभी अधिकारों के प्रति सचेत करता है।
स्वतन्त्रता हमारे संविधान का मूलभूत तत्व है। जीवन और स्वतन्त्रता प्राकृतिक रूप से प्रदत्त अधिकार हैं, जो हमारे संविधान में शामिल हैं। संविधान के मूलभूत अधिकारों के सन्दर्भ में स्वतन्त्रता को निजता के बिना नहीं पाया जा सकता। है। अतः अनुच्छेद 14, 19 और 21 के स्वर्णिम त्रिकोण के नियम के अनुसार निजता एक मौलिक अधिकार है।
सामाजिक मुद्दों पर निबंध | Samajik nyay
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Right to Privacy Essay in Hindi