भ्रष्टाचार पर निबंध | Corruption Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Corruption in Hindi

भ्रष्टाचार : चुनौतियाँ एवं समाधान | Corruption Essay in Hindi

भ्रष्टाचार एक बहुआयामी धारणा है। सामान्य शब्दों में भ्रष्टाचार को बुरा या बिगड़े हुए आचरण के रूप में जाना जाता है। पैसा आचरण, जो अनैतिक और अनुचित हो। समाज विज्ञानियों के अनुसार भ्रष्टाचार में धन की उपस्थिति और सार्वजनिक पद का दुरुपयोग यानी निजी लाभ के लिए सार्वजनिक शक्ति का इस प्रकार प्रयोग करना, जिससे कानून भग होता हो या समाज के मानदण्डों का विचलन होता हो, उसे भ्रष्टाचार कहते हैं। 

परीक्षा में शिक्षक द्वारा नकल करवाना, क्लर्क-चपरासी-अधिकारी या शिक्षक-प्रोफेसर द्वारा अटेंडेंस लगाने के बाद अपने कार्य से गायब रहना, भोजन में मिलावट या नकली दवाइयाँ बेचना, निर्णय लेने में देरी या आनाकानी करना, कर्तव्य तथा उत्तरदायित्व को अधिकार के रूप में प्रदर्शित करना, दहेज लेना तथा जाति-पन्य-गोत्र- लिंग या वंश के आधार पर पक्षपात करना इत्यादि भ्रष्टाचार के ही उदाहरण हैं।

आजाद भारत में भ्रष्टाचार दीमक की भाँति भारतीय अर्थव्यवस्था को खोखला बना रहा है। आज जीवन, समाज और सरकार का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा है, जहाँ भ्रष्टाचार का बोलबाला न हो। संसद से सड़क तथा मन्दिर से दफ्तर तर्क, आम आदमी से खास तक, जिसको जहाँ भी अवसर मिल रहा है, लूटने में लगे हैं।

भ्रष्टाचार : चुनौतियाँ

● भ्रष्टाचार एक विश्वव्यापी अवधारणा है। यह अत्यन्त प्राचीनकाल से ही प्रत्येक समाज में किसी-न-किसी रूप में विद्यमान रहा है।

● प्राचीन मिस्र, यूनान, बेबीलोनिया और रोमन समाजों में न्यायाधीशों एवं राज्याधिकारियों को रिश्वत दी जाती थी। मध्यकाल में रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा अनुग्रह का शुल्क लेने की प्रथा को मार्टिन लूथर किंग द्वारा भ्रष्टाचार की संज्ञा दी गई थी।

● भारत में प्राचीनकाल में कौटिल्य ने भी अपने अर्थशास्त्र में 50 प्रकार के गबन और भ्रष्ट तरीकों का वर्णन किया है। मध्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी, मोहम्मद बिन तुगलक और औरंगजेब द्वारा रिक्त रोकने के अनेक उपायों का जिक्र मिलता है।

● आधुनिक ब्रिटिश काल में तो पूरी फी-पूरी ‘ड्रेन ऑफ चेत्य’ व्योरों ही भ्रष्टाचार का नायाब नमूना पेश करती थी। यहाँ पुलिस, सरकारी अधिकारी, न्यायाधीश या व्यापारी की तो बात। (अलग थी। फ्लाइब और चारेन हेस्टिंग्स जैसे गवर्नर-जनरल भी इतने भ्रष्ट थे कि इनके देश वापसी पर इनके ऊपर मुकदमा चला।

● आगे चलकर प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान लगाए गए प्रतिबन्धों, नियन्त्रणों एवं सख्ती ने ऐसा अभाव पैदा किया कि रिश्वत पक्षपात और भ्रष्टाचार के लिए स्थान बनता चला गया। यद्यपि आम भारतीय जनता अभी भी उतना भ्रष्ट नहीं थी।

● इसी बीच राजनैतिक पटल पर गांधीजी ध्रुव तारे की भाँति अवतरित हुए, जिन्होंने एक बार फिर से स्वच्छ आदर्श और भारतीय नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना की। यद्यपि गांधीजी का यह आदर्श उच्च राजनैतिक अभिजात्य वर्गों में लगभग तीन चुनावों तक कायम रहा, लेकिन 1970 के दशक में इसमें भारी गिरावट दर्ज हुई। – इन्दिरा गाँधी के शासनकाल से जो संस्थागत राजनैतिक भ्रष्टाचार का आगाज हुआ, वह लगभग 25 लाख करोड़ रुपये के घोटालों के बावजूद आज भी जारी है।

● वर्ष 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था को उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के विश्वव्यापी राजनीतिक- अर्थशास्त्र से जोड़ा गया। तब तक सोभियत संघ का साम्यवादी महारूप के रूप में बिखराब हो चुका था। पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश पूँजीवादी विश्व व्यवस्था के अंग बनने की प्रक्रिया में प्रसव पीड़ा से गुजर रहे थे। साम्यवादी चीन बाजारोन्मुखी पूंजीवादी औद्योगीकरण के रास्ते विकास का नया मॉडल बन चुका था।

● पहले भ्रष्टाचार के लिए परमिट लाइसेंस राज को दोष दिया जाता था, पर जय से देश में वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण, विदेशीकरण, बाजारीकरण एवं विनियमन की नीतियाँ आई है, तब से घोटालों की बाढ़ आ गई है। इन्हीं के साथ बाजारवाद, भोगवाद, बिलासिता तथा उपभोक्ता संस्कृति का भी जबरदस्त विस्तार शुरू हुआ है।

Corruption Essay in Hindi
Corruption Essay in Hindi

यहाँ पढ़ें : 1000 महत्वपूर्ण विषयों पर हिंदी निबंध लेखन
यहाँ पढ़ें : हिन्दी निबंध संग्रह
यहाँ पढ़ें : हिंदी में 10 वाक्य के विषय

भ्रष्टाचार आकलन

विभिन्न राष्ट्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का आकलन करने हेतु वर्ष 1993 में जर्मनी में स्वतन्त्र अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंसी इण्टरनेशनल की स्थापना की गई। इस गैर-सरकारी संस्था के द्वारा ‘करप्शन परसेप्शन इण्डेक्स’ (CPI) के आधार पर वर्ष 1995 से भ्रष्टाचार के मामले में विभिन्न देशों की सूची जारी की जा रही हैं।

यह सूचकांक दुनियाभर के देशों और क्षेत्रों की रैंकिंग के आधार पर भ्रष्टाचार के सापेक्ष एक वार्षिक रिपोर्ट प्रदान करता है। रैंकिंग के इस सूचकांक में 0 से 100 के पैमाने का उपयोग किया जाता है, जिसमें शून्य (0) अत्यधिक भ्रष्ट स्थिति को दर्शाता है तथा 100 भ्रष्टाचार मुक्त स्थिति को दर्शाता है। इस सूचकांक के अन्तर्गत 13 अलग-अलग डेटा स्रोतों का उपयोग करके आकलन किया जाता है।

इस संस्था द्वारा जनवरी, 2020 में 180 देशों का भ्रष्टाचार बोध सूचकांक, 2019 जारी किया गया, जिसमें डेनमार्क 87 स्कोर के साथ शीर्ष पर है, जो विश्व का सबसे भ्रष्टाचार मुक्त देश है तथा भारत 41 स्कोर के साथ 80वें स्थान पर है। सोमालिया विश्व का सबसे भ्रष्ट देश है।

इसी प्रकार करप्शन परसेप्शन इण्डेक्स-2018 के अनुसार, जहाँ डेनमार्क सबसे कम भ्रष्ट था, वहीं उत्तरी कोरिया सर्वाधिक भ्रष्ट था तथा भारत 41 अंक हासिल कर 180 देशों की सूची में 78वाँ स्थान पर रहा। वहीं इससे पूर्व वर्ष 2017 में यह 40 अंक के साथ 81वें स्थान पर था।

भ्रष्टाचार के स्वरूप, कारण तथा प्रभाव

समाज में भ्रष्टाचार अनेक स्वरूपों में फैला हुआ है। इनमें से प्रमुख हैं-रिश्वत, भाई-भतीजाबाद, संरक्षण, पक्षपात, रिश्वत देने चाले के पक्ष में अवैध बेइमानी से युक्त कार्य करने के लिए नकद या वस्तु या उपहार लिया जाना, सम्बन्धियों को अनावश्यक पक्षपात द्वारा संरक्षण प्रदान किया जाना, दूसरे के धन को अपने प्रयोग में लाना, पक्षपात करना आदि।

सामाजिक विश्लेषण के अनुसार सामाजिक बन्धन और नातेदारी भ्रष्टाचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नातेदारी च जातिगत निष्ठाएँ सार्वजनिक सेवकों के मस्तिष्क में पहले से ही रहती हैं। ये इसे ‘बिचलन’ या भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि एक पारिवारिक दायित्व मानते हैं।

आज हमारे देश में धर्म, शिक्षा, राजनीति, प्रशासन, कला, मनोरंजन, खेलकूद इत्यादि सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार ने अपने पाँच फैला दिए हैं। सामान्यत: भारत में भ्रष्टाचार के निम्न कारण हैं।

धन की लालसा ने आज आर्थिक क्षेत्र में कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, रिश्वतखोरी आदि को बढ़ावा दिया है। नौकरी-पेशा वाला व्यक्ति अपने सेवा काल में इतना धन अर्जित कर लेना चाहता है, जिससे सेवानिवृत्ति के बाद का उसका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत हो सके। 

व्यापारी वर्ग सोचता है कि जाने कब घाटे की स्थिति आ जाए, इसलिए जैसे भी हो उचित-अनुचित तरीके से अधिक-से-अधिक धन कमा लिया जाए।।

औद्योगीकरण ने अनेक विलासिता की वस्तुओं का निर्माण किया है। इनको सीमित आय में प्राप्त करना सबके लिए सम्भव नहीं होता। इनकी प्राप्ति के लिए भी अधिकतर लोग भ्रष्टाचार की ओर उन्मुख होते हैं। कभी-कभी वरिष्ठ अधिकारियों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के कारण भी कनिष्ठ अधिकारी या तो अपनी भलाई के लिए इसका विरोध नहीं करते या न चाहते हुए भी अनुचित कार्यों में लिप्त होने को विवश हो जाते हैं। 

इन सबके अतिरिक्त गरीबी, बेरोजगारी, सरकारी कार्यों का विस्तृत क्षेत्र, महंगाई, नौकरशाही का बिस्तार, लालफीताशाही, अल्प वेतन, प्रशासनिक उदासीनता, भ्रष्टाचारियों को सजा में देरी, अशिक्षा, अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धा महत्त्वाकांक्षा इत्यादि कारणों से भी भारत में भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी हुई है। पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने एक बार कहा था “उन मन्त्रियों से सावधान रहना चाहिए, जो बिना पैसों के कुछ नहीं कर सकते और उनसे भी, जो पैसे लेकर कुछ भी करने की इच्छा रखते हैं।”

भ्रष्टाचार की वजह से जहाँ लोगों का नैतिक एवं चारित्रिक पतन हुआ है, वहीं दूसरी ओर देश को आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ती है। आज प्रष्टाचार के फलस्वरूप अधिकारी एवं व्यापारी वर्ग के पास काला धन अत्यधिक मात्रा में एकत्र हो गया है। इस काले धन के कारण ही अनैतिक व्यवहार, मद्यपान, येश्यावृत्ति, तस्करी एवं अन्य अपराधों में सतत वृद्धि हुई है।

भ्रष्टाचार के कारण लोगों में अपने उत्तरदायित्व से भागने की प्रवृत्ति बढ़ी है। वर्तमान समय में देश में सामुदायिक हितों के स्थान पर व्यक्तिगत एवं स्थानीय हितों को महत्त्व दिया जा रहा है।

सम्पूर्ण समाज भ्रष्टाचार की गिरफ्त में है। सरकारी कार्यालय भ्रष्टाचार के केन्द्र बन चुके हैं। राजनीतिक स्थिरता एवं एकता खतरे में है। नियम एवं कानूनों की अवहेलना सामान्य बात हो गई है। भ्रष्टाचार के कारण आज देश की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। लोग पैसों के लालच में देश की सुरक्षा को खतरे में डालने को तैयार है। सेना सम्बन्धी गोपनीय दस्तावेजों को दूसरे देशों को उपलब्ध करा दिया जाता है।

अत: अब यह अत्यन्त आवश्यक हो गया है कि भ्रष्टाचार पर जल्द-से-जल्द लगाम लगाई जाए। इसके लिए हमें बेस माथरसन की कही गई पंक्ति से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है कि “भ्रष्टाचार के अपराध का सह-अपराधी अकसर हमारी स्वयं की उदासीनता होती है।”

समाधान

भ्रष्टाचारियों के लिए भारतीय दण्ड संहिता में दण्ड का प्रावधान है तथा समय-समय पर भ्रष्टाचार निवारण के लिए समितियाँ भी गठित हुई हैं और इस समस्या के निवारण हेतु भ्रष्टाचार निरोधक कानून भी पारित किया जा चुका है, फिर भी अब तक इस पर नियन्त्रण स्थापित नहीं किया जा सका है। स्वतन्त्रता के बाद से अब तक देश में हुए अनेक घोटाले भ्रष्टाचार के उदाहरण हैं, जिसमें प्रमुख हैं

– वर्ष 1948 का जीप घोटाला, वर्ष 1971 का नागरबाला घोटाला, वर्ष 1986 का बोफोर्स घोटाला (1987), चारा घोटाला (1996), कोयला घोटाला (2006-09), टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला (2009-10), कॉमन वेल्थ घोटाला (2010), सहारा घोटाला (2012), विजय माल्या प्रकरण (2014-15), पीएनबी घोटाला (2018) आदि।

भ्रष्टाचार निवारण हेतु सरकार ने वर्ष 1964 में चार विभागों की स्थापना की, जो हैं कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग में प्रशासनिक सतर्कता विभाग, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), राष्ट्रीयकृत बैंकों/सार्वजनिक उपक्रमों/मन्त्रालयों/विभागों में घरेलू / सतर्कता इकाइयाँ तथा केन्द्रीय सतर्कता आयोग।

इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय न्यायिक परिषद् का गठन भी भ्रष्टाचार को रोकने हेतु किया गया है। भ्रष्टाचार के निवारण हेतु लोकपाल संस्था का गठन भी किया जा चुका है। जस्टिस पी सी घोष को इस संस्था का प्रमुख नियुक्त किया गया है। इन सभी बातों के अतिरिक्त भ्रष्टाचार की समस्या के | 

समाधान हेतु निम्न बातों का पालन भी आवश्यक है

• सबसे पहले इसके कारणों, जैसे- गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ापन आदि को दूर किया जाना चाहिए।
• सूचना के अधिकार का प्रयोग कर विभिन्न योजनाओं पर जनता की निगरानी भ्रष्टाचार को मिटाने में कारगर सिद्ध होगी।

इसके कई उदाहरण हाल ही में मिल चुके हैं।

● भ्रष्ट अधिकारियों को सजा दिलवाने के लिए दण्ड प्रक्रिया एवं दण्ड संहिता में संशोधन कर कानून को और कठोर बनाए जाने की आवश्यकता है।
●भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाए जाने की जरूरत है। इसके लिए सामाजिक, आर्थिक, कानूनी एवं प्रशासनिक उपाय अपनाए जाने चाहिए।
●जीवन मूल्यों की पहचान कराकर लोगों को नैतिक गुणों, चरित्र एवं व्यावहारिक आदशों की शिक्षा के द्वारा भी भ्रष्टाचार को काफी हद तक कम किया जा सकता है
●उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों के बारे में पूरी जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए, ताकि दागदार एवं भ्रष्ट लोगों को उच्च पदों पर आसीन होने से रोका जा सके।
●भ्रष्टाचार देश के लिए कलंक है और इसको मिटाए बिना देश की वास्तविक प्रगति सम्भव नहीं है। इसके लिए देश के प्रत्येक व्यक्ति को भ्रष्टाचार मिटाना अपना कर्तव्य समझना होगा।।

भ्रष्टाचार पर निबंध/essay on corruption in hindi/essay on corruption/corruption essay/bhrashtachar video

Corruption Essay in Hindi

निष्कर्ष

अतः जिस प्रकार देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए अन्ना हजारे द्वारा किए गए प्रयासों का काफी अच्छा परिणाम लोकपाल के रूप में सामने आया है। उसी प्रकार, यदि देश का युवा वर्ग अपना कर्त्तव्य समझकर भ्रष्टाचार का विरोध करने लगे, तो वह दिन दूर नहीं, जब भारत से भ्रष्टाचार रूपी दानव का अन्त हो जाएगा। इसके लिए बड़ों के द्वारा युवा वर्ग का सही मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम ने कहा है

“यदि किसी देश को भ्रष्टाचार मुक्त और सुन्दर मन वाले लोगों का देश बनाना है, तो मेरा दृढतापूर्वक मानना है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य -माता, पिता और गुरु यह कार्य कर सकते हैं।”

सामाजिक मुद्दों पर निबंध | Samajik nyay

भारत पर निबन्धप्रदूषण पर निबंध
पर्यावरण पर निबंधभ्रष्टाचार पर निबंध
सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर निबंधतीन तलाक पर निबन्ध
समान नागरिक संहिता पर निबन्ध103 वां संविधान संशोधन अधिनियम पर निबन्ध
इंटरनेट का अधिकार एक मौलिक अधिकार पर निबन्धपक्षपातपूर्ण मीडिया पर निबंध
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंधनिजता का अधिकार पर निबंध
भारत में साम्प्रदायिकता पर निबंधजाति प्रथा पर निबंध
दहेज प्रथा पर निबंधमहिला आरक्षण पर निबंध
भारत में धर्मनिरपेक्षता पर निबंधराष्ट्र निर्माण में नारी का योगदान पर निबंध
भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पर निबंधविविधता में एकता पर निबंध
समाज पर सिनेमा का प्रभाव पर निबंधभ्रष्टाचार पर निबंध
राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका पर निबंधक्षेत्रवाद पर निबंध
आतंकवाद पर निबंधजनसंख्या वृद्धि पर निबंध
वरिष्ठ नागरिकों पर निबंधनक्सलवाद पर निबंध
भारत में बेरोजगारी की समस्या पर निबंधदिव्यांगता:सशक्तिकरण का समावेशी आयाम पर निबंध
मानवाधिकार संरक्षण की आवश्यकता पर निबंध

reference
Corruption Essay in Hindi

मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

Leave a Comment