- •तीन तलाक कानून : महिलाओं के आत्मसम्मान की दिशा में ऐतिहासिक कानून
- तीन तलाक क्या है? | Triple Talaq Essay in Hindi
- शाह बानो प्रकरण मुआवजा प्राप्ति के लिए याचिका
- तीन तलाक प्रथा के विरुद्ध याचिका दायर (2016)
- उच्चतम न्यायालय का फैसला
- अधिनियम में प्रावधान
- तीन तलाक कानून के पक्ष में तर्क
- तीन तलाक कानून के विपक्ष में तर्क
- ट्रिपल तलाक पर निबंध| Essay on tripal talaq in Hindi| 2019 video
- निष्कर्ष
•तीन तलाक कानून : महिलाओं के आत्मसम्मान की दिशा में ऐतिहासिक कानून
स्त्री एवं पुरुष किसी भी समाज के दो अभिन्न अंग होते हैं। किसी एक के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, “जिस प्रकार एक पक्षी एक पंख से नहीं उड़ सकता, उसी प्रकार एक समाज महिलाओं की उपेक्षा करके विकसित नहीं हो सकता।” वस्तुतः एक सभ्य व विकसित समाज की सबसे बड़ी पहचान यह होती है कि उस समाज में महिलाओं का जीवन आत्मसम्मान से परिपूर्ण हो। इसी सन्दर्भ में मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को समाप्त करने हेतु भारतीय संसद ने तीन तलाक कानून या मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) कानून, 2018 बनाया है, ताकि मुस्लिम समाज की महिलाएँ स्वाभिमान के साथ अपना जीवन जी सके।
तीन तलाक क्या है? | Triple Talaq Essay in Hindi
तीन तलाक को तलाक-ए-बिद्दत भी कहा जाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कोई भी मुस्लिम पति अपनी पत्नी को सिर्फ तीन बार तलाक-तलाक बोलकर अपनी शादी तोड़ सकता है। गौरतलब है कि इस्लाम में एक पुरुष और एक स्त्री अपनी इच्छा से एक-दूसरे के साथ पति-पत्नी के रूप में रहने का फैसला करते हैं तो वह ‘निकाह’ कहलाता है।
इसकी तीन शर्तें हैं-पहली, पुरुष वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारियों को उठाने की शपथ ले, दूसरी, एक निश्चित रकम जो • आपसी बातचीत से तय हो. उसे मेहर के रूप में स्त्री को दे और तीसरी, इस नए सम्बन्ध की समाज में घोषणा हो जाए। ये शर्तें स्त्री-पुरुष को समान अधिकार देती हैं, लेकिन कुछ रूढ़िवादी लोगों ने धर्म और प्रथा की गलत व्याख्या को बढ़ावा दिया है, जिस कारण वर्षों से महिलाओं का शोषण होता रहा है, जबकि वास्तविकता यह है कि मुस्लिम पवित्र ग्रन्थ कुरान शरीफ में यद्यपि तलाफ की बात लिखी हुई है, लेकिन तीन तलाक की नहीं।
इसमें लिखा है कि तलाक तभी जायज है, जब तलाक देते समय पति और पत्नी दोनों परिवारों के सदस्य बीच-बचाव के लिए उपस्थित हो और दोनों के बीच सुलह की सभी कोशिशें असफल सावित हो गई हो। कहने का तात्पर्य है कि इस पवित्र ग्रन्थ में अन्तिम समय तक सुलह की कोशिश की गई है, लेकिन कुछ रूढ़िवादी धार्मिक पैरोकारों ने इसकी ग़लत व्याख्या कर दी, जिस कारण यह प्रथा समाज पर वर्षों से एक काला धब्बा के समान जारी थी।
तीन तलाक पर कानून बनना सामाजिक सुधार की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है. लेकिन यह कानून अचानक नहीं बन गया है, बल्कि एक क्रमिक प्रक्रिया का परिणाम है। इसमें मुस्लिम समाज की जागरूक व स्वाभिमानी महिला; जैसे-शाह बानो, शायरा बानो इत्यादि तथा न्यायालय व भारतीय संसद ने इसमें अहम भूमिका निभाई है।
शाह बानो प्रकरण मुआवजा प्राप्ति के लिए याचिका
इन्दौर की शाह बानो एक मुस्लिम महिला और पाँच बच्चों की माँ थी, जिन्हें 1978 में उनके पति ने तलाक दे दिया था। अपनी और अपने बच्चों की जीविका का कोई साधन न होने के कारण शाह बानो ने पति से गुजारा लेने के लिए न्यायालय की शरण ली और अन्ततः माननीय उच्चतम न्यायालय ने शाह बानों के पक्ष में अपना निर्णय दिया। लेकिन इस निर्णय का भारत के रूढ़िवादी मुसलमानों ने पुरजोर विरोध किया। फलतः तत्कालीन सरकार ने एक वर्ष के अन्दर मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, 1986 पारित कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था।
इस कानून (1986) ने एक तरफ जहाँ मुस्लिम समाज की बेसहारा महिलाओं को उनके न्याय से वंचित कर दिया, यहीं दूसरी ओर भारत में चोट बैंक व तुष्टिकरण की राजनीति को बल मिला।
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तीन तलाक प्रथा के विरुद्ध याचिका दायर (2016)
उत्तराखण्ड के काशीपुर की रहने वाली शायरा नाम की एक महिला को उसके पति ने 10 अक्टूबर, 2015 को स्पीड पोस्ट से एक पत्र भेजा, जिसमें उसने तीन बार तलाक लिखकर शायरा से सम्बन्ध तोड़ लिए थे। फलस्वरूप शायरा ने तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2016 में याचिका दायर की अक्टूबर, 2016 में केन्द्र सरकार ने भी सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता ‘शायरा’ की मांगों का सैद्धान्तिक तौर पर समर्थन करते हुए एक हलफनामा दायर किया था।
इस प्रकार, प्रसिद्ध ‘शाह बानो मामले के तीन दशक बाद शायरा मामले ने एक बार फिर से लैंगिक समानता बनाम धार्मिक कट्टरपन्थ की बहस को जागृत कर दिया और तीन तलाक पर पूरे देश में जोरदार बहस छिड़ गई और अन्ततः उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2017 में ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
उच्चतम न्यायालय का फैसला
मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता बाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने अगस्त, 2017 में 3-2 के बहुमत से ‘एकसाथ तीन तलाक’ अर्थात् एक ही बार में तीन तलाक बोलकर वैवाहिक सम्बन्ध बिच्छेद कर लेने बाले लगभग 1400 वर्ष पुराने विवादास्पद मुस्लिम रियाज़ को समाप्त करने के पक्ष में फैसला सुनाया, जोकि महिलाओं के आत्मसम्मान की दिशा में एक ऐतिहासिक निर्णय सिद्ध हुआ।
उल्लेखनीय है कि इस महत्त्वपूर्ण मामले की सुनवाई करने वाले पाँचौ न्यायाधीश अलग-अलग समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जिसमें जस्टिस जगदीश सिंह खेहर (सिख समुदाय), कुरियन जोसेफ (ईसाई समुदाय), आर.ए.एफ नरीमन (पारसी समुदाय), यू. यू ललित (हिन्दू समुदाय) और अब्दुल नजीर (मुस्लिम समुदाय) से सम्बन्धित थे। इस फैसले में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर ने कहा कि यह 1400 वर्ष पुरानी परम्परा है, जो इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है, अत: न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इन दोनों न्यायाधीशों ने इस मामले पर संसद द्वारा कानून बनाए जाने हेतु सहमति व्यक्त की।
वहीं दूसरी तरफ न्यायाधीश कुरियन जोसेफ, जस्टिस आर. ए. एफ. नरीमन और यू.यू. ललित ने ‘एक बार में तीन तलाक’ को असंवैधानिक ठहराते हुए इसे खारिज कर दिया। इन तीनों जजों ने तीन तलाक को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन माना। विदित है कि संविधान का अनुच्छेद 14 सभी नागरिकों को ‘विधि के समक्ष समानता का अधिकारप्रदान करता है। न्यायालय का कहना है कि ‘तलाक-ए-बिद्दत’ इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है, अत: इसे अनुच्छेद 25 के अन्तर्गत धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार का संरक्षण प्राप्त नहीं हो सकता।
इसी के साथ न्यायालय ने शरीयत 1937 की धारा-2 में दी गई एक बार में तीन तलाक की मान्यता को रद्द कर दिया। देश की सर्वोच्च अदालत में। इसको असंवैधानिक बताते हुए इस पर 6 महीने की रोक लगा दी है। साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा है कि संसद इस पर कानून बनाए और यदि इस अवधि में ऐसा कानून नहीं लाया जाता है, तब भी तीन तलाक पर रोक जारी रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद इस सन्दर्भ में भारत सरकार द्वारा संसद में कई बार विधेयक व अध्यादेश लाया गया तथा इसमें अन्तिम सफलता वर्ष 2019 में मिली, जब मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोबिन्द ने मंजूरी दे दी।
अधिनियम में प्रावधान
इस अधिनियम के अन्तर्गत तीन तलाक को सिविल मामलों की श्रेणी से बाहर कर आपराधिक श्रेणी में डाला गया है तया तीन तलाक को गैर-कानूनी घोषित किया गया है।
•. तीन तलाक संज्ञेय अपराध मामले का प्रावधान, यानि पुलिस बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है, लेकिन तब जब महिन्या स्वयं शिकायत करेगी।
• खून या शादी के रिश्ते वाले सदस्यों के पास भी केस दर्ज कराने का अधिकार होगा। पड़ोसी या कोई अनजान इस मामले में केस दर्ज नहीं करा सकता है।
• इस कानून के अनुसार मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है, जमानत पीड़ित महिला का पक्ष सुनने के बाद ही दो जाएगी। पीड़ित महिला के अनुरोध पर मजिस्ट्रेट समझौते की अनुमति दे सकता है। मजिस्ट्रेट को सुलह कराकर शादी बरकार रखने का अधिकार दिया गया है।
• पीड़ित महिला अपने पति से गुजारा भत्ते का दावा कर सकती है। इसकी रकम मजिस्ट्रेट तय करेगा। पीडित महिला नाबालिग बच्चों को अपने पास रख सकती है, इसके बारे में फैसला मजिस्ट्रेट लेगा।
* यदि कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप से या किसी अन्य विधि से तीन तलाक देता है तो उसकी ऐसी कोई भी उद्घोषणा शून्य और अवैध होगी।
• यह कानून सिर्फ तलाक-ए-बिद्दत यानी एकसाथ तीन बार तलाक बोलने पर ही लागू होगा।
तीन तलाक कानून के पक्ष में तर्क
• इस कानून के समर्थकों का कहना है कि यह कानून राजनीति, धर्म या सम्प्रदाय का प्रश्न नहीं है, बल्कि महिलाओं के सम्मान और न्याय का प्रश्न है।
• तीन तलाक की कुप्रथा उन सामाजिक बुराइयों में से एक है, जो महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक सिद्ध करती है। दुनिया में ऐसी कोई भी प्रथा धर्मसम्मत नहीं मानी जा सकती, जो पति को पत्नी को एक क्षण में छोड़ने का अधिकार देती हो, इसलिए तीन तलाक प्रथा को कानून बनाकर समाप्त किया गया है।
● भारत के अतिरिक्त कई ऐसे देश हैं, विशेषकर इस्लामिक देश, जहाँ पर तीन तलाक को प्रतिबन्धित किया गया है। सबसे पहले मिन्न में तीन तलाक को गैर-कानूनी बनाया गया। पाकिस्तान, सूडान, साइप्रस, जॉर्डन, ईरान, संयुक्त अर अमीरात इत्यादि देशों में भी तीन तलाक पूर्णतया प्रतिबन्धित है।
तीन तलाक कानून के विपक्ष में तर्क
तीन तलाक कानून के पक्ष में जहाँ समर्थकों ने अपने तर्क प्रस्तुत किए तो वहीं इसके विपक्ष में भी तर्क प्रस्तुत किए गए। जिन लोगों इसका विरोध किया है, उनका कहना है कि तलाक देने वाले पति को तीन साल के लिए जेल भेज दिया। जाएगा तो वह पत्नी एवं बच्चे को गुजारा भत्ता कैसे देगा। विरोधियों का कहना है कि इस अधिनियम में मुस्लिम महिल्य को गुजारा भत्ता देने की बात की गई है, लेकिन उस गुजारे भत्ते के निर्धारण का तौर-तरीका नहीं बताया गया है। वर्ष 1986 के मुस्लिम महिला सम्बन्धी एक कानून के अन्तर्गत तलाक पाने वाली महिलाओं को गुजारा भत्ता मिल रहा है।
इस नबीन कानून के आ जाने से पुराने कानून के माध्यम से मिलने बाला भत्ता बन्द हो सकता है। इनका कहना है कि इस कानून का मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ दुरुपयोग किए जाने की सम्भावना अधिक है, क्योंकि इस कानून में तीन तलाक | साबित करने की जिम्मेदारी केवल महिला पर है। महिलाओं के साथ अगर पुरुषों को भी इसको साबित करने की जिम्मेदारी दी जाती है तो कानून ज्यादा सख्त होगा।
ट्रिपल तलाक पर निबंध| Essay on tripal talaq in Hindi| 2019 video
निष्कर्ष
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष व लोकतान्त्रिक गणतन्त्र में तीन तलाक का जारी रहना एक दांग के समान था। तीन तलाक प्रथा के बिरुद्ध कानून बनाने से वैधानिक रूप से मुस्लिम महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिलेगा, अब महिलाओं को तलाक का भय नहीं रहेगा। इस कानून के लागू होने से मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाली मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी संस्थाएँ अन्य सामाजिक सुधारों की दिशा में सकारात्मक पहल करेंगी और अन्ततः इस कानून से मुस्लिम महिलाओं की गरिमा की रक्षा होगी, उन्हें कानूनी सुरक्षा मिलेगी और उन्हें सम्मान से जीने का अधिकार मिलेगा।
सामाजिक मुद्दों पर निबंध | Samajik nyay
reference
Triple Talaq Essay in Hindi