निबन्ध:मेरा प्रिय नेता- महात्मा गांधी | essay on Mahatma Gandhi in Hindi | मेरे प्रिय नेता

निबन्ध:मेरा प्रिय नेता- महात्मा गांधी | essay on Mahatma Gandhi in Hindi | मेरे प्रिय नेता

मेरे प्रिय नेता महात्मा गांधी जी हैं। महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द्र गांधी है। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचन्द्र गांधी और माता का नाम पुतली बाई था।

गांधी जी ने राजकोट के अल्फर्ड हाई स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद शामलदास आर्ट कॉलेज से स्नातक किया। जिसके बाद गांधी जी ने लंदन के विश्वविद्यालय से कानून में डिग्री हासिल की।

महात्मा गांधी का विवाह 13 साल की उम्र में कस्तूरबा गांधी से हुआ था। गांधी जी के चार बेटे हैं, जिनके नाम हरिलाल, मणिलाल, देवदास और रामदास

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अप्रैल 1893 में 23 साल के गांधी जी वकालत पूरी करने के बाद दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। 21 सालों तक दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान गांधी जी ने भेद-भाव और मानवाधिकारों के खिलाफ आवाज बुलंद की। इसी समय गांधी ने सत्याग्रह की पहल की थी। गांधी जी के अनुसार – “खुद को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है, खुद को दूसरों की सेवा में खो दो”

महात्मा गांधी 1915 में भारत वापस लौटे , जिसके बाद उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नरमदलीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु बनाया।

महात्मा गांधी ने 1917 में पहली बार बिहार के चंपारण जिले में सत्याग्रह का आगाज किया। जिसमें कई स्थानीय किसानों ने भाग लिया था। चंपारण सत्याग्रह भारत में गांधी जी का पहला सफल अभियान था।

इसके बाद उन्होंने 1918 में गुजरात में अहमदाबाद मिल आंदोलन शुरु किया। इसी साल गांधी जी ने गुजरात में खेड़ा सत्याग्रह का भी आगाज किया। दोनों की आंदोलन अपने हितों को साधने में कामयाब रहे।

वहीं गांधी जी ने 1919 में रालेट एक्ट का भी खुलकर विरोध किया और जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा दी गयी केसर-ए-हिंद की उपाधि भी वापस लौटा दी।

महात्मा गांधी ने 1921 को राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आंदोलन का आगाज किया, जिसे खिलाफत आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। गांधी जी का यह पहला आह्वाहन था, जिसमें देश के हर वर्ग मसलन अमीर, गरीब, किसान, छात्र, सरकारी कार्यकर्ता, वकील, शिक्षकों, डॉक्टरों सहित कई तबकों ने अपना योगदान दिया था। वहीं पहली बार मुस्लिम वर्ग ने भी खिलाफत आंदोलन के रुप में असहयोग आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी।

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मेरे प्रिय नेता

हालांकि उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित चौरी-चौरा नाम जगह पर यह अहिंसक आंदोलन हिसां में तब्दील हो गया, जिसके बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस लेने का एलान कर दिया। गांधी जी का मानना था कि- आपको “मानवता” में विश्वास नहीं खोना चाहिए। मानवता एक समुद्र है; अगर सागर की कुछ बूँदें गन्दी हैं, तो पूरा सागर गंदा नहीं हो जाता है।

आंदोलन केअंत के साथ ही ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी सहित असहयोग आंदोलन के कई नेताओं को हिरासत में ले लिया और नतीजतन गांधी जी आने वाले कई सालों तक सक्रिय राजनीति से दूर रहे। हालांकि उन्होंने 1927 में भारत आने वाले साइमन कमीशन का पुरजोर विरोध किया।

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महात्मा गांधी ने 26 जनवरी 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के दौरान पहली बार पूर्ण स्वराज का नारा देते हुए इस दिन को स्वतंत्रता दिवस घोषित किया। जिसके बाद गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को नमक सत्याग्रह शुरु किया। गांधी जी यह यात्रा डांडी मार्च के नाम से जानी जाती है। इस यात्रा में गांधी ने 78 लोगों के साथ गुजराज के साबरमती आश्रम से डांडी गांव तक 240 मील का सफर तय करने का एलाम किया था। गांधी जी ने 6 अप्रैल 1930 को गुजरात के डांडी पहुंच कर नमक कानून तोड़ाते हुए सविनय अविज्ञा आंदोलन का आगाज किया।

गांधी जी द्वारा नमक सत्याग्रह पूरा होने के बाद देश में कई प्रसिद्ध नेताओं के नेतृत्व में नमक सत्याग्रह फैलने लगा। जिसके कारण ब्रिटिश सरकार के वायसराय लॉर्ड इरविन ने गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया।

कांग्रेस द्वारा पहले गोलमेज सम्मेलन का बहिष्कार करने के बाद गांध-इरविन समझौता हुआ। इस समझौते के अंतर्गत गांधी जी सविनय अविज्ञा आंदोलन वापस लेने पर राजी हो गए। जिसके बाद गांधी जी ने लंदन में आयोजित दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भी भाग लिया।

महात्मा गांधी ने 1942 में कांग्रेस के बंबई अधिवेशन में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का उद्देश्य पूरी तरह से ब्रिटिश सरकार और ब्रितानी वस्तुओं का बहिष्कार करना था। इसी दौरान गांधी जी ने सामूहिक सत्याग्रह के स्थान पर व्यक्तिगत सत्याग्रह की पहल की, जिसमें विनोबा भावे पहले और जवाहरलाल नेहरु दूसरे सत्याग्रही बने। भारतीय स्वतंत्रता के विषय में गांधी जी कहते थे कि – पहले वो आपकी उपेक्षा करेंगे, फिर आप पर हसेंगे, फिर आपसे लड़ेंगे और अंत में आप जीत जायेंगे

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ही गांधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया। वहीं आंदोलन की प्रसिद्धि के चलते ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी सहित आंदोलन के मुख्य नेताओं को गिरफ्तार कर पुणे रवाना कर दिया। जिसके बाद कई स्थानीय नेताओं ने आंदोलन का नेतृत्व किया।

आखिरकार 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी की घोषणा हुई, जिसके साथ ही विभाजन की विभीषिका का मंजर दिल दहला देने वाला था। वहीं गांधी जी देश के विभाजन के पूरी तरह से खिलाफ थे। इस दौरान गांधी जी बंगाल के नोआखली में भड़के दंगों को शांत कराने और जरुरतमंदों को राहत मुहैया कराने में जुट गये। गांधी जी के शब्दों में – आपको “मानवता” में विश्वास नहीं खोना चाहिए। मानवता एक समुद्र है; अगर सागर की कुछ बूँदें गन्दी हैं, तो पूरा सागर गंदा नहीं हो जाता है।

वहीं आजादी के महज कुछ महीनों बाद ही 30 जनवरी 1948 को एक हिन्दू राष्ट्रवादी नाथूराम गोडसे ने बड़ला हाउस में गोली मारकर गांधी जी की हत्या कर दी और महात्मा गांधी ने गोली लगने के साथ ही इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। जिस जगह गांधी जी को गोली लगी थी, उसे गांधी स्मृति के नाम से जाना जाता है। गांधी जी के शब्दों में – “जियो ऐसे जैसे कल आपका आखिरी दिन हो, जी भर जियो और सीखो ऐसे जैसे कि आपको यहां हमेशा रहना है।“

गांधी जी भले ही इस दुनिया से चले गए, लेकिन उनकी सीख, उनके सत्य, शांति और अंहिसा के विचार वर्तमान हालातों पर भी बिल्कुल सटीक बैठते हैं। आतंकवाद के रुप में अंहिसा से लेकर झूठ, फरेब, धोखाधड़ी से भरपूर इस दुनिया को गांधी के आदर्शों पर चलने की बेहद जरुरत है। गांधी जी का मानना था कि- आप जो सुधार दुनियाँ में देखना चाहते हो, आप खुद उस सुधार का हिस्सा होने चाहिए।

गांधी जी मर कर भी हमेशा के लिए दुनिया में अमर हो गए। उनका कथन- मेरा जीवन मेरा संदेश है, जो वाकई वर्तमान में एक कठोर सच्चाई है।

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2 thoughts on “निबन्ध:मेरा प्रिय नेता- महात्मा गांधी | essay on Mahatma Gandhi in Hindi | मेरे प्रिय नेता”

  1. Sir Mahatma Gandhi ka birth 1869 ko hua tha. Or aap essay me likh rahe ho ki 1969 ki hua tha, to phir death kab hui thi

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