भारत जब ब्रिटिश सरकार के अधीन था, तब ‘उठो, जागो और तब तक नहीं सको, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए जैसा सन्देश देकर भारतीयों को जगाने वाले महापुरुष, स्वामी विवेकानन्द अपने ज्ञान तथा अध्यात्म के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध थे। उन्होंने भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को विश्व पटल पर अलग पहचान दिलाई। भारतीय युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे आज भी ज्यादातर शिक्षित भारतीय युवाओं के आदर्श है।
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जीवन परिचय | Swami Vivekananda Essay in Hindi
स्वामी विवेकानन्द, जिनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था, का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता के निभुलिया नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त एक प्रख्यात अटॉनी थे। समृद्ध परिवार में जन्म लेने के कारण उन्होंने अच्छे स्कूलों में शिक्षा प्राप्त की तथा स्कूली शिक्षा के बाद कलकत्ता के प्रसिद्ध प्रेसीदेसी कॉलेज में डाखिला लिया। उस कॉलेज में पढ़ने के दौरान उनकी आध्यात्मिक भूख जागृत हुई और वे ईश्वर, विश्व, मानव इत्यादि के महस्य जानने के लिए व्याकुल रहने लगे।
इसी दौरान उन्हें किसी ने रामकृष्ण परमहंस के बारे में बताया, जिनकी विद्वत्ता एवं प्रवचनों की चर्चा कलकत्ता की शिक्षण संस्थाओं के साथ-साथ सम्भ्रान्त समाज में भी होने लगी थी।
नरेन्द्रनाथ ने भी उनसे मिलने का विचार किया। सैन्द्रनाथ ने परमहंस से अपनी पहली ही मुलाकात में प्रश्न किया, “क्या आपने ईश्वर को देखा है? परमहंस ने इस प्रश्न को मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “हाँ, मैंने ईश्वर को बिल्कुल वैसे ही देखा है, जैसे मैं तुम्हे देख रहा हूँ।” परमहंस के इस उत्तर से नरेन्द्रनाथ न केवल सन्तुष्ट हो गए, बल्कि उसी समय उनको अपना गुरु भी मान लिया। इसी घटना के बाद उन्होंने संन्यास लेने का निर्णय लिया। संन्यास ग्रहण करने के बाद जब वे एक परिब्राजक के रूप में भारत भ्रमण पर थे, तब खेतड़ी के महाराज ने उन्हें विवेकानन्द नाम दिया।
रामकृष्ण परमहंस से मिलने से पूर्व स्वामी विवेकानन्द हरबर्ट स्पेसर के नास्तिकवाद से प्रभावित के समय के साथ-साथ स्वामी विवेकानन्द में नास्तिकवाद का विकास होता जा रहा था।
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शिकागो का महान् सम्बोधन
1893 ई. में जब संयुक्त राज्य अमेरिका के शिकागों में विश्व धर्म सम्मेलन का आयोजन हुआ, तो खेतड़ी के महाराज ने विवेकानन्द जी को भारत के प्रतिनिधि के तौर पर उसमें भाग लेने के लिए भेजा। 11 सितम्बर, 1893 को इस सभा के स्थागत भाषण में स्वामी जी ने श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए जैसे ही कहा- “प्रिय बहनो एवं भाइयों” Dear Sisters and Brothers of America), वैसे ही तालियों की गड़गड़ाहट से वहाँ का वातावरण गूंजने लगा।
सारे लोग आश्चर्यचकित थे, पृथ्वी के ठीक दूसरे छोर से आया हुआ एक व्यक्ति पराए देश के लोगों को अपना भाई-बहन मानकर सम्बोधित कर रहा था तथा अपने सम्बोधन में स्त्रियों को पहला स्थान दे रहा था। उसके बाद जब उन्होंने हिन्दू धर्म एवं भारत के अध्यात्म की बात करनी शुरू की, तो अमेरिका ही नहीं दुनियाभर के विद्वज्जनों का बड़ा समूह चुपचाप उन्हें सुनता रहा।
यह धार्मिक सम्मेलन 27 सितम्बर तक चला। इन सत्रह दिनों में उनके व्याख्यान सुनने बालों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती रही। धार्मिक ही नहीं, साहित्यिक, सामाजिक एवं वैज्ञानिक जगत के लोग भी उनके व्याख्यान को सुनने के लिए आने लगे।विश्व-धर्म सम्मेलन की यह घटना उन दिनों की है, जब भारत ब्रिटिश संस्कार के अधीन था। पश्चिम जगत के स्लोग भारतीयों को हीन दृष्टि से देखते थे। उनका मानना या फि भारत में विद्वानों का नितान्त अभाव है एवं यह देश हर सामन में पिछड़ा है। स्वामी विवेकानन्द भारत के पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने पश्चिम जगत के लोगों का भ्रम दूर कर भारतीय शा एवं विद्वत्ता का का सारी दुनिया में बजाया।
विश्य-धर्म सम्मेलन के समापन के बाद स्वामी जी ने विश्व के अनेक देशों की यात्रा की। वे जहाँ भी गए, वों के लोगों ने उनका स्वागत किया। नबम्बर, 1894 में उन्होंने न्यूयॉर्क में वेदान्त समिति की स्थापना की। वे 1897 ई. में उस स्वदेश बापस आए, तो देशवासियों ने भी उनका शानदार स्वागत किया। 1 मई, 1897 को उन्होंने कलकता में तथा 9 दिसम्बर, 1898 को कलकत्ता के निकट हुगली नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसमें उन्हें सिस्टर निवेदिता का उल्लेखनीय सहयोग प्राप्त हुआ।
वर्तमान में इस संस्था की शाखाएँ विश्व के अनेक देशों में हैं। यह संस्था शिक्षा एवं समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए विश्वभर में विख्यात है। इसके अतिरिक्त विवेकानन्द साहित्य के प्रकाशन एवं इसके प्रसार के साथ-साथ योग एवं अध्यात्म के प्रचार-प्रसार में भी इस संस्था की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
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विवेकानन्द के सन्देश
विवेकानन्द के सन्देश ने पश्चिम के विशिष्ट बौद्धिकों जैसे-विलियम जेम्स, निकोलस टेसला, नेल्सन रॉकपेल्य लियो टॉल्स्टॉय, रोम्या रोला इत्यादि को प्रभावित किया। प्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार एएल बॉशम ने विचकानन्द को पहला व्यक्ति बताया, जिन्होंने पूर्व की आध्यात्मिक संस्कृति के मित्रतापूर्ण प्रत्युत्तर का आरम्भ किया और उन्हें आधुनिक विश्व को आकार देने वाला घोषित किया।
अरविन्दो घोष, सुभाषचन्द्र बोस, सर जमशेदजी टाटा, रवीन्द्रनाथ टैगोर तथा महात्मा गाँधी जैसे महान व्यक्तियों में स्वामी विवेकानन्द को भारत की आत्मा को जागृत करने वाला और भारतीय राष्ट्रपाद के मसीहा के रूप में देखा। स्वामी विवेकानन्द पहले अन्तर्राष्ट्रवादी नेता थे, जिन्होंने ‘सीग ऑफ नेशस’ के जन्म से भी पहले 1897 ई. में अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों गठबन्धनों और कानूनों का आह्वान किया, जिससे राष्ट्रों के बीच समन्वय स्थापित किया जा सके।
स्वामी जी ने अपने जीवनकाल में विश्व के अनेक स्थानों पर अध्यात्म, भारतीय सनातन धर्म, योग इत्यादि विषयों पर अनेक व्याख्यान दिए। उनके व्याख्यानों के संग्रह को रामकृष्ण मिशन ने अनेक पुस्तकों के रूप में प्रकाशित किया है। स्वामी जी ने कई पुस्तकों की भी रचना की, जिनमें ‘राजयोग’, ‘कर्मयोग’, ‘ज्ञानयोग’ एवं भक्तियोग’ प्रमुख है। भारतीय नारियों की दशा में सुधार के लिए उन्होंने अनेक कार्य किए। उनका मानना था कि किसी भी देश की प्रगति तभी सम्मय है जब यहाँ की नारियाँ शिक्षित हो। नारियों के महत्व को दशनि के लिए उन्होंने कन्या पूजन की परम्परा की शुरुआत की।। स्वामी जी के निम्नलिखित उपदेश आज भी युवाओं का मार्गदर्शन करने एवं उन्हें प्रेरित करने में सक्षम है
“जी सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो, इससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो।” “तुम अपनी अन्तस्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।”
स्वामी जी रामकृष्ण मिशन के माध्यम से सदा गरीबों की मलाई एवं सेवा में जुटे रहे। वर्ष 1901-02 में जब कलकत्ता में प्लेग फैला, तो उन्होंने रोगियों की खूब सेवा की। लोगों की सेवा करते समय उन्होंने अपने स्वास्थ्य क भी ध्यान नहीं रखा, जिसके कारण उनका स्वास्थ्य निरन्तर गिरता चला गया और अन्तत: 4 जुलाई, 1902 को मात्र 38 वर्ष की अवस्था में उनका देहाना हो गया।
इस प्रकार, मानवता के मसीहा ने मानव सेवा के लिए ही अपने जीवन की आहुति दे दी। जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1985 को अन्तर्राष्ट्रीय युवा वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया, तब उसी वर्ष से भारत सरकार ने स्वामी जी के जन्मदिन 12 जनवरी को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की। स्वामी जी का दर्शन, उनका जीवन तथा उनके कार्यों में निहित उनके आदर्श भारतीय युवकों के लिए प्रेरणा का एक विशाल स्रोत है। भारतीय युवा स्वामी विवेकानन्द के पदचिन्हों पर चलकर अपने भवि निर्माण के साथ-साथ देश को समृद्ध करने के लिए प्रयासरत रहते हैं।
स्वामी विवेकानंद निबंध हिंदी में | Essay on Swami Vivekanand in Hindi | स्वामी विवेकानंदजी की जीवनी video
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Swami Vivekananda Essay in Hindi