- विश्वकर्मा पूजा | Vishwakarma Pooja | essay on Vishwakarma Puja in Hindi
- विश्वकर्मा पूजा कब और क्यों मनाते हैं | When and why is Vishwakarma Pooja celebrated? | विश्वकर्मा पूजा पर निबंध
- विश्वकर्मा एवं उनके वास्तुशास्त्र – Vishwakarma and his Vastu Shastra
- विश्वकर्मा पूजा मनाने की परम्परा – Tradition of Vishwakarma Pooja
- विश्वकर्मा पूजा का महत्व – Significance of Vishwakarma Pooja
- Hindi Essay on ‘Vishwakarma Puja’ | ‘विश्वकर्मा पूजा | विश्वकर्मा जयंती’ पर निबंध
विश्वकर्मा पूजा | Vishwakarma Pooja | essay on Vishwakarma Puja in Hindi
विश्वकर्मा पूजा (Vishwakarma Puja) – जीवन में हर व्यक्ति खुशी और आनंद चाहता है । इसी चाहत को पूरा करने के लिये वह लगातार कुछ न कुछ करने का प्रयास करता है । इसी बात को ध्यान में रखकर कि लोगों को कैसे खुश रखा जाये ? इन्हें खुशी का अवसर कैसे दिया जाये ? हमारे पूर्वज मनिषियों ने भारतीय संस्कृति में विभिन्न पर्व, विभिन्न उत्सव, विभिन्न जयंती का विधान किया है।
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यह संस्कृति लोगों को खुशी देने के साथ-साथ कोई न कोई शिक्षा अवश्य देती है । मानव समाज के लिये हित में काम करने वाले देव, मुनी, आदि को याद करते हुये उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर देती है । यही परम्परा के रूप में, संस्कृति के रूप में निश्चल, निर्मल नदी की तरह प्रवाहित है । संस्कृति के इसी प्रवाहित नदी में से एक है ‘विश्वकर्मा जयंती’ ।
जब हम कोई दृश्य देखते हैं तो उनकी सुंदरता का हमारे मन मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है । सुंदर दृश्य देखने के लिये हम पर्यटक के रूप में सारा विश्व ही छान मारते हैं । जब हम किसी प्राचीन इमारत को, प्राचीन मंदिर को देखते हैं तो उनके शिल्प को देखकर अनायास ही उनके शिल्पकार को याद कर बैठतें हैं ।
“क्या शिल्प है ! जिसने भी बनाया है बहुत बढ़िया बनाया है” । यह शिल्प के प्रति हमारे आकर्षण को दिखता है । आर्किटेक्ट का सुंदर-सुंदर निर्माण किसे नहीं भाता ? सृष्टि के पहले आर्किटेक्ट, शिल्पकार के रूप में भगवान विश्वकर्मा (Vishwakarma Puja) को माना जाता है । इसे देवशिल्पी कह कर संबोधित किया जाता है । देवशिल्पी ने देवताओं के लिये विभिन्न भव्य महल, विभिन्न उपयोगी हथियार आदि बनायें हैं । इसी देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा के प्रकट दिवस को विश्वकर्मा पूजा या विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है ।
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विश्वकर्मा पूजा कब और क्यों मनाते हैं | When and why is Vishwakarma Pooja celebrated? | विश्वकर्मा पूजा पर निबंध
पौराणिक मान्यता के अनुसार हिन्दू पंचाग के ‘कन्या संक्रांति’ के दिन सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के सातवें धर्म पुत्र के रूप में विश्वकर्माजी का जन्म हुआ । इनके जन्म के संबंध मे एक और मान्यता है । इस मान्यता के अनुसार विश्वमाकर्मा ब्रह्मा पुत्र न होकर आठवें वसु महर्षि प्रभास के पुत्र थे एवं उनकी मात्रा भुवना थी, जो ब्रह्मविद्या की जानकर थी । मत-मतांतर के कारण ये भेद आ जाते हैं । किन्तु इसमें कोई भेद नहीं कि भगवान विश्वकर्मा वास्तु के अधिष्ठाता देवता हैं । उनके वास्तु शिल्पकला ही आज वास्तुशास्त्र के रूप जाना एवं माना जाता है ।
जिस प्रकार मकर संक्रांति अंग्रेजी महीने के 14 जनवरी को पड़ता है ठीक उसी प्रकार ‘कन्या संक्रांति’ 17 सितम्बर को पड़ता है । इस लिये विश्वकर्मा पूजा Vishwakarma Pooja प्रति वर्ष 17 सितम्बर को शिल्पकारों, वास्तुकारों, इंजिनियर्स, राजमिस्त्रीयों आदि के द्वारा मनाया जाता है । किन्तु कुछ राज्यों में यह 16 सितम्बर को भी मनाया जाता है ।
विश्वकर्मा के कला कृति के रूप स्वर्ग, जिसे इन्द्रपुरी भी कहते हैं प्रसिद्ध है । रावण की राजधानी स्वर्ण लंका, जो कुबेर की नगरी थी विश्वकर्मा ने बनायी थी । इनके पुष्पक विमान भी इन्होंने ही बनाये । महाभारत कालिन पाण्डवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ, भगवान कृष्ण की राजधानी द्वारिकापुरी इन्हीं का निर्माण है।
अस्त्रों में देव राज इन्द्र का वज्र इन्हीं का निर्माण था, जिसे दधिचि ऋषि के हड्डियों से बनाया गया था । अभी वर्तमान के जगन्नाथपुरी के प्रथम जगन्नाथ बलभद्र एवं सुभाद्रा की मूर्ति स्वयं विश्वकर्मा ने ही बनायें हैं । मान्यता के अनुसार भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान बिष्णु का सूदर्शन चक्र, और यमराज का दण्ड विश्वकर्माजी ही ने बनाये हैं । इस प्रकार इमारत कला, अस्त्र कला, मूर्ति कला आदि कलाओं के आदि शिल्पकार भगवान विश्वकर्माजी ही थे । इसलिये इसे प्रथम आर्किटेक्ट, प्रथम इंजीनियर आदि कह सकते हैं ।
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विश्वकर्मा एवं उनके वास्तुशास्त्र – Vishwakarma and his Vastu Shastra
भारतीय मान्यता के अनुसार वास्तुशास्त्र, एक निर्माण विज्ञान है जिनके जनक भगवान विश्वकर्मा हैं । इसमें वास्तु कला अर्थात निर्माण के विभिन्न सिद्धांत एवं दर्शन हैं । वास्तुशास्त्र का संबंध सीधा-सीधा भारतीय ज्योतिष विज्ञान से है । इस वास्तु शास्त्र में भवन निर्माण के संबंध में छोटी-छोटी बातों तक को सम्मिलित किया गया ।
निर्माण विधि के साथ-साथ जिन बातों का विशेष उल्लेख हैं उसमें दिशा का ज्ञान । किस दिशा में किस उपयोग का कक्ष होना चाहिये और क्यों होना चाहिये इसका बारिकियों के साथ उल्लेख किया गया है । इमारत में कौन सी वस्तु किस दिशा में रखें ? कौन सी वस्तु घर में रखें ? कौन सी वस्तु घर में न रखें ? इन सभी बातों का उल्लेख इसमें मिलता है । यहां तक यदि वास्तु के अनुसार सही दिशा में भवन निर्माण न किया जा सके तो इसके क्या उपाय करने चाहिये ? इस बात का भी उल्लेख इस वास्तुशास्त्र में किया गया है ।
वास्तुशास्त्र की आज केवल लोकमान्यता ही नहीं अपितु उपयोगिता भी है । आज भी लोग बड़े पैमाने में वास्तुशास्त्र का अनुकरण करते हैं।
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विश्वकर्मा पूजा मनाने की परम्परा – Tradition of Vishwakarma Pooja
विश्वकर्मा पूजा (Vishwakarma Puja) पर कई तरहों का आयोजन किया जाता है । ज्यादातर आयोजन फ़ैक्टरियों में होता है । इस दिन फ़ैक्टरियों, वर्क शॉप आदि स्थानों पर वर्करों की काम से छुट्टी होती है । इस दिन फ़ैक्टरियों, वर्क शॉप के मालिक, अधिकारी, कर्मचारी सभी मिलकर हँसी-खुशी से पर्व को मनाते हैं ।
इसके लिये पहले फ़ैक्टरियों, वर्क शाम में काम आने वाले औजारों, मशीनों की पूजा की जाती है । विधिवत भगवान विश्वकर्मा के चित्र स्थापित कर वैदिक रीति से पूजा करते हैं । पूजा के पश्चात सभी लोग मिलकर मीठाई बांट कर अपनी खुशी जाहिर करते हैं । उत्सव मनाने के लिये कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं । राजमिस्त्री जैसे छोटे शिल्पकार भी इस उत्सव को अपनी श्रद्धा से मनाते हैं ।
देश के कुछ क्षेत्रों में सार्वजनिक रूप से पंडाल सजाकर भगवान विश्वकर्मा की मिट्टी की प्रतिमा स्थापित कर उसी प्रकार पूजा करते हैं जिस प्रकार गणेश जी, माता दुर्गा की स्थापना की प्रतिमा की पूजा करते हैं ।
इस परम्परा में यह उत्सव 5 दिनों का होता है । ‘कन्या संक्रांति से ठीक 4 दिन पूर्व अर्थात 13 सितम्बर को भगवान विश्वकर्माजी की प्रतिमा स्थापित की जाती है । पॉंच दिनों तक भगवान विश्वकर्मा की पूजा दोनों समय विधि पूर्वक किया जाता है । प्रत्येक दिन रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं । इस प्रकार इस उत्सव का 5 दिनों तक धूम रहती है ।
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विश्वकर्मा पूजा का महत्व – Significance of Vishwakarma Pooja
शिल्प ज्ञान के बिना निर्माण कार्य कैसे संभव है ? निर्माण के बिना विकास भी कहां हो सकता है ? शिल्पज्ञान के बिना दुनिया तरक्की नहीं कर सकती । मानव सम्भ्यता का विकास भी रूक जायेगा । शिल्प से निर्माण, निर्माण से विकास होता है और विकास मनुष्य के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक उत्थान के लिये आवश्यक है । शिल्प ज्ञान के आदि शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा की पूजा आवश्यक है जिनकी प्रेरणा और आर्शीवाद से मानव अपने शिल्पकला निखार सकते हैं । यही कारण है शिल्प से जुड़े शिल्पकार और इससे जुड़े उद्योग इंजिनियर्स, वर्कशाप, फैक्ट्री आदि में इनकी पूजा की जाती है ।
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Reference
Vishwakarma Pooja Wikipedia
विश्वकर्मा पूजा Wikipedia