भारत को विभिन्ता में एकता का देश कहा जाता है । क्योंकि यह विभिन्न वेषभूषा, विभिन्न बोली-भाषा, विभिन्न संस्कृति और विभिन्न तीज-त्यौहार को अपने में समाया हुआ है । भारत में यदि उत्सवों, पर्वो, त्योहारों की बात की जाए तो ऐसे बहुत से पर्व, उत्सव हैं जिसे पूरे भारत में मनाया जाता है, किंतु कुछ ऐसे पर्व भी हैं जिसे किसी क्षेत्र विशेष या राज्य विशेष में मनाया जाता है । जैसे पंजाब में बैसाखी, तमिलनाडु में पोंगल । इसी प्रकार केरल के मलयालीय संस्कृति का एक विशेष पर्व है ओणम।
यहाँ पढ़ें: करवा चौथ पर निबंध
ओणम दक्षिण, भारत विशेष कर केरल का एक प्रमुख त्यौहार और उत्सव है। जिस प्रकार पूरे भारत या यूं कहें उत्तर भारत में दीपावली का उत्सव होता है कुछ उसी प्रकार का उत्सव केरल में ओणम का होता है । केरल में इसे फ़सलों का पर्व या खुशियों का पर्व के रूप में मनाया जाता हैं । यह बहुत ही रंग-बिरंगा त्यौहार होता है क्योंकि इस पर्व पर नाना प्रकार के फूलों से रंगोली सजा कर धरती को सजाया जाता है । इस पर्व को भारत सरकार एवं रंग-बिरंगी राज्य सरकार दोनों का विशेष सहयोग प्राप्त भी होता है केंद्र सरकार इसे अंतरराष्ट्रीय पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने का प्रयास कर रहा है ।
ओणम कब मनाया जाता है – When is Onam Celebrated?
यह मलयालम महीने के चिंगम माह में मनाया जाता है जो मलयालम कैलेंडर का पहला महीना होता है । यह पर्व हिंदी महीने के सावन-भादो मास में पड़ता है जबकि अंग्रेजी महीने के अनुसार यह अगस्त-सितंबर में होता है।
यह पर्व चिंगम महीने के थिरुओणम नक्षत्र मैं मनाया जाता है जो हिंदी महीने के श्रावण-भादो महीने के श्रवण नक्षत्र में पड़ता है । श्रवण नक्षत्र को मलयालम में ओणम कहते हैं इसलिए इस पर्व का नाम ओणम पड़ गया ।
यह पर्व हस्ता नक्षत्र से श्रवण नक्षत्र तक 10 दिनों तक मनाया जाता है ।
यहाँ पढ़ें: विश्वकर्मा पूजा पर्व क्यों मनाया जाता है
ओणम पर्व मनाने के पीछे पौराणिक कारण – Traditional Reasons for celebrating Onam
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के 24 अवतार हुए इन अवतारों में से एक अवतार वामन अवतार का था । वामन अवतार कथा के अनुसार- -‘’भक्त प्रहलाद का नाती राजा बलि एक बलशाली और दान वीर राजा था । वह दैत्य वंश के होने के कारण कुछ उग्र स्वभाव का था और देवताओं के प्रति वैमनस्य रखने वाला था । यही कारण है की देवताओं पर शासन करने के उद्देश्य से एक बार उन्होंने 100 यज्ञ का संकल्प किया जब 99 यज्ञ पूरा हो गया और 100वां यज्ञ चल रहा था तब देवताओं ने भगवान विष्णु के शरण में जाकर बहुत ही अनुनय-विनय किया इस प्रार्थना के कारण भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेना स्वीकार किया ।
वामन रूप में वह राजा बलि के यज्ञशाला में पहुंचा । चूँकि राजा बलि एक दान वीर था उस छोटे कद के ब्राह्मण बालक वामन को देख कर वह दान लेने का अनुग्रह किया इस पर वामन ने राजा बलि से केवल तीन पग भूमि की मांग रखी।
राजा बलि सहर्ष तैयार हो गया और तीन पग भूमि देने का संकल्प पूरा किया । जैसे ही बामन ने संकल्प लिया वह अपना रूप बढ़ाते गये, और अपने शरीर को विशाल कर लिया इस विशाल शरीर से उन्होंने एक पग में ही सारी धरती को माप लिया तथा दूसरे पग में पूरे आकाश को माप लिया । अब तीसरे पग रखने के लिए कोई स्थान शेष नहीं बचा इस पर उन्होंने राजा बलि से पूछा कि तीसरा पग कहां रखे ?
राजा बलि दान वीर थे और अपने वचन के पक्के भी थे उन्होंने बहुत ही विनम्रता से कहा कि प्रभु तीसरा पग मेरे सिर माथे पर रख दीजिए बामन ने ऐसा ही किया इससे राजा बलि धरती से पाताल लोक में चला गया और पाताल लोक में निवास करने लग गया । किंतु भगवान विष्णु राजा बलि के दानवीरता एवं विनम्रता से प्रसन्न हुये ।
चूँकि राजा बलि अपने प्रजा से बहुत ही स्नेह करते थे इसलिये भगवान बिष्णु ने राजाबली को आर्शीवाद दिया कि-‘आप वर्ष में एक बार अपने प्रजा से मिलने धरती जरूर आ सकते हो ।‘ ऐसा माना जाता है कि राजा बलि की राजधानी केरल में ही थी और चिंगम मास के श्रवण नक्षत्र को राजा बलि अपनी प्रजा अर्थात केरल वासियों से मिलने के लिए आते हैं इसलिए केरल के लोग राजा बलि के स्वागत में यह ओणम का पर्व मनाते हैं ।
यहाँ पढ़ें: essay on Navratri in Hindi | नवरात्रि पर निबंध
ओणम पर्व मनाने की परंपराएं – Traditions of celebrating Onam
ओणम का पर्व पूरे केरल राज्य में हर्षोल्लास से मनाया जाता है । जिस प्रकार दीपावली 5 दिनों तक मनाया जाता है और पॉंचों दिन के त्यौहार का अलग-अलग नाम होता है, ठीक उसी प्रकार ओणम का त्योहार 10 दिनों तक मनाया जाता है और प्रतिदिन के पर्व का नाम अलग-अलग होता है ।
पहला दिन- अथम कहलाता है और ऐसा माना जाता है कि इसी दिन राजा बलि पाताल से केरल के लिए प्रस्थान करते हैं ।
दूसरा दिन- चिथिरा कहलाता है इस दिन फूलों की रंगोली बनाई जाती है जिसे पुकल्लम कहते हैं ।
तीसरा दिन– चौधी कहलाता है इस दिन पुक्कलम में और लेयर बनाई जाती है । अर्थात जो पुक्कलम पहले एक लेयर का फलों का वृत्ताकार रंगोली था उसमें 4-5 प्रकार के फूलों से अगली लेयर बनाई जाती हैं और यह लेयर हर एक दिन एक-एक करके बढ़ाई जाती है ।
चौथे दिन– को विशाकम कहते हैं, इस दिन से तरह-तरह की प्रतियोंगिताएं प्रारंभ होती है ।
पॉंचवे दिन– को अनिज्म कहते हैं इस दिन नौका प्रतियोगिता की तैयारी करते हैं ।
छठवां दिन– थ्रिकम कहलाता है इस दिन छुट्टीयां चालू हो जाती हैं ।
सातवाँ दिन– मूलम कहलाता है, इस दिन मंदिरों में स्पेशल पूजा पाठ आयोजित किया जाता है ।
आठवां दिन– पूरादम कहलाता है, इस दिन भगवान वामन एवं महाबली की मिट्टी की प्रतिमा घर में स्थापित की जाती है ।
नौवां दिन– उठ्रादुम कहलाता है मान्यता के अनुसार इसी दिन महाराजा बलि केरल में प्रवेश करते हैं ।
दसवां दिन– थिरूओणम कहलाता, इसी दिन मुख्य पर्व एवं उत्सव का समापन दिन होता है ।
यह पर्व केरल के एक मात्र वामन मंदिर जो त्रिक्काकरा में है, से प्रारंभ होता है । ओणम में प्रत्येक घर में पुक्कलम अर्थात फूलों की रंगोली डाली जाती है । पुक्कलम वृत्ताकार बनाया जाता है जिसमें हर एक दिन नया आवरण अर्थात लेयर बनाया जाता है ।
युवतियां, महिलायें सफेद साड़ी पहनकर, अपने वेणी में फूलों का गजरा लगाकर सज-धज कर इसी पुक्कलम के चारों ओर इक्कठ्ठे होकर तिरूवाथिरा कलि नृत्य करती हैं, यह नृत्य केरल का एक प्रसिद्ध नृत्य है । सारा दृश्य ऐसा लगता है मानों धरती को दुल्हन के रूप में सजाया गया हो और मंगल गान किया जा रहा हो । इस पुक्कलम के बीच में त्रिक्काकरप्पन (वामन अवतार में विष्णु), राजा महाबली तथा उसके अंग रक्षकों की प्रतिष्ठा होती है जो कच्ची मिट्टी से बनायीं जाती है। इसे प्रतिस्थापित कर पूजा की जाती है ।
राजा बलि अपनी प्रजा से बहुत ही स्नेह रखते थे और दानी भी थे इस कारण इस दिन धनवान लोग निर्धनों को दान करते हैं और अपने अधीनस्थ कर्मचारियों, नौकरों को प्रसन्न करते हैं । मंदिरों में भी कई प्रकार से उत्सव किए जाते हैं ।
इस दिन नौकायन प्रतियोगिता विशेष तौर पर आयोजित की जाती है इसे सर्प नौका कहते हैं क्योंकि इस नौका की लंबाई की तुलना में चौड़ाई बहुत ही कम होती है और यह जब चलता है तो ऐसे लगता है कि मानो कोई सर्प चल रहा हो । सर्प नौकायन प्रतियोगिता का धूम होता है इसे राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित किया जाता है और जल सेना भी कभी-कभी नौकायन करते हैं । इस अवसर पर हाथियों का जुलूस भी निकाला जाता है ।
कुल मिलाकर यह पर्व बहुत आकर्षक, उत्साहवर्धक और आनंददायक होता है । इस उत्सव को देखने भारत के विभिन्न हिस्सों से लोग बड़ी संख्या में आते हैं साथ ही विदेशी पर्यटक भी इस अवसर पर इस उत्सव का आनंद उठाते हैं । इस पर्व पर पूरे 10 दिन तक गरीब-अमीर सभी साथ मिलकर हँसी-खुशी से उत्सव मनाते हैं लोगों की खुशीयॉं देखने लायक होती हैं ।
इस प्रकार इस पर्व का केवल पौराणिक महत्व ही नहीं अपितु इसका सांस्कृति महत्व भी है । ओणम एक प्राचीन परम्परा है । यह लंबे समय से केवल अपनी संस्कृति के बल पर चल रही है । यह पर्व लोगों में ख़ुशियाँ भरता है, नई उत्साह के साथ जीवन को जीने की प्रेरणा देता है । भारत के विविधता में एक नया रंग भरने के साथ भारतीय संस्कृति को सक्षम बनाता है ।
और त्योहारों के बारे में जानने के लिए हमारे फेस्टिवल पेज को विजिट करें Read about more Indian Festivals, please navigate to our Festivals page.
ओणम पर 10 लाइन का निबंध l 10 Lines Essay On Onam In Hindi l Essay On Onam Festival l Onam l
Related Essay on Festivals
References
Onam Wikipedia
ओणम Wikipedia