- करवा चौथ कब मनाते है – When is Karwa Chauth celebrated?
- करवा चौथ क्यों मनाते हैं – Why is Karwa Chauth celebrated?
- करवा चौथ किस प्रकार मनाया जाता है – How is Karwa Chauth Celebrated?
- करवा चौथ का महत्व – Importance of Karwa Chauth
- “करवा चौथ” पर हिंदी निबंध | Short Essay On Karva Chauth In Hindi | Karva Chauth Par Nibandh |
भारतीय परिवार की पूर्णता नारी से ही है । भारतीय संस्कृति की धुरी होती है नारी । नारी से ही भारतीय संस्कृति संरक्षित है । भारतीय नारी के लिये परिवार से बढ़कर और कुछ नहीं उनका जीवन पति, बच्चे और परिवार ही होता है । कभी संतान के लिये तो कभी पति के लिये वह नाना प्रकार के व्रत नियम करती रहती है ।
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भारतीय पौराणिक इतिहास में सती अनुसुईया का नाम बहुत श्रद्धा से लिया जाता है, जिन्होंने अपने सतीत्व के बल पर सृष्टि के त्रिदेव ब्रह्मा, बिष्णु, और महेश तीनों को छोटे-छोटे बालक बना दिया हैं । रामचरित मानस में सति अनुसुईया माता सीता को पति का महत्व बताते हुई कहती हैं-
“एकै धर्म एक व्रत नेमा । काय वचन मन पति पद प्रेमा”
मतलब नारी के लिये एक ही व्रत, एक ही धर्म, एक ही नियम है कि वह अपने मन, वचन, और कर्म से केवल और केवल अपने पति से ही प्रेम करे । इसी भाव से भारतीय नारी अपने पति के दीर्घायु एवं स्वास्थ्य के कामना के लिये कई व्रत करती हैं जिनमें सब से अधिक प्रचलित व्रत ‘करवा चौथ’ (Karwa Chauth) है, जो आज एक व्रत होकर भी एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा है ।
‘करवा चौथ’ सुहागन स्त्रियों द्वारा किये जाना वाला एक व्रत है, जिसे भारत के विभिन्न हिस्सों में शहरी महिलाओं से लेकर ग्रामीण महिलाएं इसे उत्साह के साथ करती है । इस व्रत में एक विशेष प्रकार के मिट्टी का टोटीदार पात्र उपयोग में लाया जाता है, जिसे करवा कहते हैं । इसी के नाम से इसे करवा चौथ कह देते हैं । ऐसे इसे करक चतुर्थी कहा जाता है । करवा को माता गौरी का प्रतीक भी माना जाता है । वास्तव में माता गौरी को सौभाग्य की देवी मानते हैं । यह व्रत उन्हीं को समर्पित होता है ।
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करवा चौथ कब मनाते है – When is Karwa Chauth celebrated?
करवा चौथ प्रति वर्ष हिन्दी पंचाग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है । इस व्रत को केवल सुहागन स्त्रियां ही करती हैं किन्तु पूरे परिवार में उत्सव का माहौल रहता है । इस दिन महिलाएं सुबह से रात्रि चंद्र दर्शन होने तक निर्जला उपवास करती हैं ।
करवा चौथ क्यों मनाते हैं – Why is Karwa Chauth celebrated?
करवा चौथ (Karwa Chauth) व्रत करने के पिछे केवल और केवल एक ही उद्देश्य होता है हर पत्नी चाहती हैं कि उसका पति स्वस्थ एवं दीर्घायु हो । इसी कामना को लेकर यह व्रत किया जाता है । इस व्रत पर करवा चौथ की कई कहानियां कही जाती है जिसमें कोई न कोई करवा चौथ का व्रत करती हुई सति नारी अपने पति का जीवन बचाया । किन्तु वास्तव में कब और कैसे प्रारंभ हुआ इस विषय पर बहुत विद्वानों का मत है
देवासुर संग्राम के समय देवताओं के पत्नियों ने सबसे पहले इस व्रत को किया । बहुत विद्वानों का मत है कि सति सावित्रि द्वारा अपने पति सत्यवान के मृत्यु के पश्चात भी यमराज से जीवित करा ले ने के पश्चात से इस व्रत का प्रारंभ हुआ है ।
पौराणिक कथा के अनुसार सावित्रि नाम की एक सती नारी थी जो मन, वचन और क्रम से केवल और केवल अपने पति की सेवा किया करती थी । एक समय यमराज उनके पति सत्यवान को यमलोक लेने आ गये और सत्यवान का धरती में समय पूरा हो गया कह कर उसे ले जाने लगे अर्थात सत्यवान की मृत्यु हो गई ।
इस पर सावित्रि अपने पति के वियोग में बिलख-बिलख कर रोने लगी और यमराज से अपने पति के प्राण की भीख मांगने लगी किंतु यमराज पर उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ । सावित्रि यमराज से याचना करती हुई यमलोक तक पहुँच गई और अन्न-जल त्याग कर केवल अपने पति के प्राणों की भीख मांगती रही ।
सावित्रि के याचना से यमराज द्रवित हो गया और उसने कहा चूँकि जन्म और मृत्यु हर जीव का निश्चित होता है और सत्यवान का जीवन काल पूर्ण हो गया है इसलिये इसे जीवित करना संभव नहीं किंतु तुम्हारे इस पति प्रेम से मैं बहुत प्रसन्न हूँ, तुम सत्यवान के प्राण के अतिरिक्त कुछ भी वरदान मांग लो ।
सावित्रि अपने पति के प्राण मांगने के बदले में यमराज से खुद बहुपुत्रवती होने का वरदान मांग ली । यमराज प्रसन्नता में तथास्तु कह दिया । तब सावित्रि ने कहा देव आप ने मुझे पुत्रवती होने का वरदान दिया है । मैं एक सति नारी हूँ कभी किसी पराये पुरूष का मुख भी नहीं देखती हूँ, यदि आप मेरे पति के प्राण वापस नहीं किये तो आपका वरदान झूठा हो जायेगा ।
यमराज अपने वचन में बंध चुका था विवश होकर उसे सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े । इस दिन संयोग से कार्तिक कृष्ण चतुर्थी था इसलिये इसके बाद से ही नारियां अपने पति के प्राणों की रक्षा के निमित्त अन्न–जल त्याग कर यह व्रत करती हैं ।
माता गौरी को सौभग्य की देवी माना जाता है, उन्हीं से कुँवारी कन्यायें पति की इच्छा के लिये पूजा करती है तो सुहागन महिलाएं अपने सौभाग्य के लिये।
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करवा चौथ किस प्रकार मनाया जाता है – How is Karwa Chauth Celebrated?
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन विवाहित सौभाग्यवती महिलाएं सुबह से निर्जलाव्रत रखती हैं, और व्रत रखे-रखे शाम की पूजा की तैयारी करती हैं । अपने-अपने क्षेत्र में प्रचलित व्यंजन बनाती है । शाम से ही चन्द्रमा के उदय होने की प्रतिक्षा करती हैं ।
शाम को अपने छत, ऑंगन या खुले स्थान जहां से चन्द्रमा को देखा जा सके, उस स्थान पर शुद्ध आसन लगाकर शिव परिवार अर्थात माता पार्वती के साथ उनके पति भगवान भोले नाथ, पुत्रों गणेशजी एवं कार्तिक की प्रतिमा लगा कर स्थापित करते हैं साथ ही टोटीदार बने मिट्टी के पात्र जिसे करवा कहते हैं को सजा कर रखा जाता है ।
शुभ मुर्हुत में विधि-विधान से पूजा की जाती है । पूजन पश्चात छलनी पर दीपक रख कर क्रमश: चौथ के चाँद को और अपने पति को देखा जाता है । चूँकि महिलाएं निर्जला व्रत रखे रहतीं हैं, इसलिये व्रत का परायण करते हुये अपने पति के हाथों कुछ घूँट पानी पीती हैं । इस प्रकार इस व्रत से पति-पत्नी के बीच प्रेम भाव और अधिक प्रगाढ़ होता है ।
करवा चौथ का व्रत आज कल पर्व के रूप में मनाया जाने लगा है । इस व्रत को पहले मुख्य रूप से उत्तर भारत के कुछ राज्यों में ही रखा जाता था किन्तु अब इसका प्रचलन धीरे-धीरे पूरे भारत में हो रहा है । जैसे कि हर पर्वो पर बाजार गुलजार हो जाता है इस पर्व पर भी विशेष रूप से बाजार सजते हैं ,
जहां से महिलायें करवा चौथ के लिये पूजन की सामाग्री, अपने सास के लिये उपहार खरीदती हैं, वहीं पति भी अपने पत्नियों के लिये उपहार खरीदते हैं । व्रत पूजन की तैयारी के लिये घर में नाना प्रकार के व्यंजन भी बनाये जाते हैं जिससे घर में एक खुशी का माहौल, उत्सव का माहौल होता है । जॉर्डन महिलायें इसे पति दिवस के रूप मनाती हैं ।
करवा चौथ का महत्व – Importance of Karwa Chauth
चूँकि इस व्रत को महिलायें अपने पति के लिये करती हैं और व्रत का परायण अपने पति के हाथों पानी पीकर करती हैं । इससे पति-पत्नी के मध्य संबंध निश्चित रूप और अधिक मजबूत होता है । इसी व्रत के परायण करने के पश्चात महिलायें अपनी सास को उपहार भी देती हैं इससे सास-बहू के संबंधों में मधुरता आती है ।
सास-बहू का संबंध ही परिवार के लिये नींव के समान होता है । यदि सास-बहू के बीच संबंध मधुर होगा तो निश्चित रूप से परिवार खुश हाल होगा । इस प्रकार इस पर्व का धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ पारिवारिक महत्व भी है । यदि पति-पत्नी के बीच संबंध अच्छा होगा, दोनों के मध्य सहज प्रेम होगा तो दोनों तनाव रहित जीवन व्यतित करेंगे जिससे निश्चित रूप से पति-पत्नी दोंनो की जीवन प्रत्याशा बढ़ेगी अर्थात दोनों के आयु लंबी होगी । इस प्रकार यह पर्व अपने उद्देश्य में कहीं न कहीं व्यवहारिक रूप से सफल होता है ।
अन्य पर्वो के भांति इस पर्व में भी समान्य दिनों के अपेक्षा अधिक ख़रीददारी की जाती है जिससे बाजार में रौनक रहती है । इस प्रकार यह देश के आर्थिक विकास में भी अपना योगदान देने में सफल रहता है ।
इस व्रत के करने से समाज में नारीयों के प्रति दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन होता है घरेलू हिंसा में कमी आती है । लोगों के मन मस्तिष्क में स्वभाविक रूप से यह बात आती है कि -जिस नारी का पूरा जीवन परिवार में खप जाता हो ऐसे नारियों का सम्मान किया ही जाना चाहिये । ऐसे भी हमारे धर्म ग्रन्थों में कहा गया है- ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:’ ।
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