ईद पर निबन्ध | Essay on Eid in Hindi | Eid Par Nibandh

दुनिया में मुख्य रुप से छह धर्म हैं- हिन्दू, इस्लाम, सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध धर्म। इन सभी धर्मों के अपने कई मशहूर त्योहार होते हैं, जिन्हें साल में एक बार बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसी कड़ी में एक नाम इस्लाम धर्म के खास त्योहार ईद-उल-फितर का भी शामिल है।

दरअसल ईसाई धर्म के बाद इस्लाम धर्म दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है और इस धर्म के लोग लगभग दुनिया के हर देश में रहते हैं। यही कारण है कि ईद के पर्व को समूची दुनिया में काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।

इस्लाम धर्म के कैलेंडर के अनुसार ईद के पावन पर्व की शुरुआत में दसवें महीने शव्वाल-अल-मुकर्रम के पहले दिन से होती है। इस दिन सभी लोग रात में चांद का दीदार करते हैं, जिसे चांद रात कहा जाता है। चांद देखने के बाद अगले दिन से रमजान के पवित्र मीने का आगाज होता है।

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हालांकि यह चांद दुनिया के हर कोने में एक साथ नहीं दिखता है। उदाहरण स्वरुप सऊदी अरब में यह चांद एक रात पहले दिखता है और भारत में अगली रात को चांद दिखने के बाद रमजान की शुरुआत होती है।

रमजान-उल-मुबारक पूरे एक महीने तक चलता है। जिसमें इस्लाम धर्म के लोग तड़के सुबह उठकर सूर्योदय के पहले सेहरी का सेवन करते हैं। सेहरी खाने के बाद पूरे दिन निराजली उपवास रखा जाता है और शाम को सूर्यास्त के बाद वलीमे के जरिए व्रत खोला जाता है।

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जहां सेहरी में सुबह के समय ज्यादातर खजूर, काजू, बादाम आदि फलहारी चीजें खायी जाती हैं, वहीं वलीमें में सभी लजीज पकवानों के साथ रोजा खोलते हैं। ईद को कविता में समेटते हुए कवि अफरोज आलम के शब्दों में-


ईद पर शायरी

हर साल में एक बार माहे रमजान के बाद आता है ईद

ज़कात फ़ितरा मुफ़लिसों की मदद सीखा जाता है ईद।

करते है सभी फ़लक के चाँद का दीदार

गले मिलके मुबारकबाद देकर सेवइयां खाकर मनाते हैं ईद।

मिटाता है दिलो से नफ़रत और अदावत को।

पैगाम प्रेम और भाईचारे का लाता है ईद।


वास्तव में ईद-उल-फितर की शुरुआत इस्लाम धर्म की नींव रखने वाले पैगम्बर मोहम्मद ने की थी। पैगम्बर साहब ने 624 में जंग-ए-बदर के बाद सऊदी अरब के मदीना में पहली ईद मनायी थी। जिसके चलते आज भी इस्लाम परंपरा के अनुसार ईद का आगाज सऊदी के मदीना से ही होता है।

पैगम्बर मोहम्मद के अनुसार जब वे पहली बार मक्का से मदीना पहंचे तो उन्होंने देखा वहां के लोग साल में दो त्योहार काफी हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। उसी से प्रेरित होकर मोहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म के दो महत्वपूर्ण त्योहार, ईद-उल-फितर और ईद-अल-अदहा की शुरुआत की। ईद-उल-अदहा को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है।

पैगम्बर साहब के अनुसार, इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ कुरान शरीफ में भी ईद का जिक्र करते हुए रमजान के महीनें को खुदा का पवित्र मास बताया गया है। इस दौरान खुदा के बंदे व्रत रखकर और सजदा पढ़कर पर्वरदीगार से जेड़ने की कोशिश करते हैं।

ईद के पर्व को दुनिया भर में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जहां हिन्दी भाषा में इसे ईद-उल-फितर कहा जाता है, वहीं अरबी में ईद-अल-फित्र, बंगाली में रोजार ईद, कश्मीरी भाषा में छोटी ईद और तुर्की में रमजान बेरामी कह कर पुकारा जाता है।

रमजान में एक महीनें तक कठिन निराजली उपवास का नियम पूर्वक पालन करने के बाद 29वें दिन चांद का दीदार करते हुए ईद मनाई जाती है। अमूमन ईद का चांद लाल रंग के अर्ध गोलाकार आकृति का होता है, जो आसानी से हर किसी को अपनी सुंदरता से आकर्षित कर लेता है।

ईद के चांद का दीदार करने के बाद सभी लोग चांद से दुआ मांगते हैं और एक-दूसरे को गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते हैं। यहीं से ईद के जश्न का सिलसिला शुरु होता है, जोकि दो दिनों तक चलता है। दरअसल ईद का चांद पहले सऊदी अरब में दिखता है और अगले दिन दुनिया के बाकी हिस्सों में भी लोग इसका दीदार करते हैं, जिसके चलते दो दिनों तक ईद मनायी जाती है। ईद के संदर्भ में कवि अशोक शर्मा वशिष्ठ लिखते हैं-


ईद का त्योहार,

मोहब्बत का त्योहार

करवाता प्यार का इजहार

लाता रिश्तों में निखार

फैलाता प्रेम की व्यार


अगले दिन सभी सुबह उठकर ईद की नमाज अदा करते हुए खुदा की इबादत करते हैं। ईद को भाईचारे का त्योहार बी कहा जाता है। इस दिन लोग सजदा पढ़ने के बाद सारे गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे के गले लगते हैं और ईद मुबारक कहते हैं।

हालांकि ईद का जश्न इस्लाम में दो तरह से मनाया जाता है। जहां सुन्नी मुस्लमान मस्जिदों में तेज आवाज में नमाज पढ़ने के बाद इमाम द्वारा निय्यत और तकबीर की परंपरा पूरी की जाती है। वहीं शिया मुस्लमान निय्यत से ही इबादत का आगाज करते हुए पांच तकबीरों को पढ़ते हुए दुआ मांगते हैं।

ईद के दिन गरीबों और जरुरतमंदों में कपड़े, गहने और खाना बांटने का रिवाज भी है। यह परंपरा इस्लाम धर्म में सदियों से चली आ रही है, ताकि समाज का हर तबका ईद का जश्न मना सके और कोई इस पावन पर्व पर भूखा न सोए।

इस दिन कई जगहों पर मेले लगते हैं। सभी लोग नए कपड़े पहनकर अपने परिवार के साथ ईद के जश्न का लुत्फ उठाते हैं। इस दिन घरों में स्वादिष्ट और जायकेदार पकवान बनते हैं। ज्यादातर जगहों पर ईद के सिवईंया बनाने का भी रिवाज है।


रमज़ान के रोज़ों से दिल को पाक बनाइये,

ईद के शीर खोरमें को फिर प्यार से खिलाइये।

दुश्मन को भी अपना तुम प्यारा दोस्त बनाइये,

पाक कुरान की आयतों को दिल से तो लगाइये।


ईद का जश्न हर देश में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। जहां ईद के दिन दुनिया के कई देशों में राष्ट्रीय अवकाश होता है, वहीं ईद का सबसे भव्य जश्न पश्चिम एशियाई देशों मसलन सऊदी अरब, इरान, इराक, कतर और संयुक्त अरब अमीरात में मनाया जाता है।

इस दौरान सऊदी अरब स्थित मक्का और मदीना में श्रद्धालुओं की खूब भीड़ लगती है। वहीं संयुक्त अरब अमीरात में खासकर दुबई शहर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। घर के बड़े-बुजुर्ग बच्चों को ढ़ेरों तोहफे भेंट करते हैं और सभी लोग नए कपड़े पहन कर अपने सगे संबंधियों के घर ईद की मुबारकबाद देने के लिए जाते हैं। ईद पर मिलने वाले तोहफों को आमतौर पर ईदी कहा जाता है।

इसके अलावा अन्य मध्य एशियाई देश – ईजराइल, यमन, बहरीन, जॉर्डन, लेबनान, सीरिया और फीलिस्तीन में भी ईद का त्योहार काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।

भारत और पाकिस्तान में ईद का त्योहार लगभग एक जैसा ही मनाया जाता है। यहां ईद के पहले महिलाएं हाथों में मेंहदी लगवाती हैं और पूरा परिवार बाजारों में जमकर खरीददारी करता है। ईद के दिन घरों में बिरयानी, पुलाव, कोरमा जैसे लाजवाब पकवान पकाए जाते हैं। वहीं मीठे में खोया और मेवे से भरपूर सिवईंया, खीर, शीर खुर्मा परोसा जाता है। साथ ही सभी बच्चों को तोहफे के रुप में ईदी दी जाती है। श्रीलंका में भी ईद के दिन फालूदा, समोसा और गुलाब जामुन जैसी स्वादिष्ट मीठाईंयों का स्वाद लिया जाता है। ईद के शानदार जश्न को याद करते हुए कवि अब्दुल अहद साज लिखते हैं-


वो बच्चों की आंखों में सपने सुनहरे, हसीनों के हाथों पें मेंहदी के पहरे।

सजीली दुकानों में रंगों के लहरे, वो ख़ुश्बू की लडियां उजालों के सहरे।।

उमंगें भरी चाँद रातें सुहानी। बहुत याद आती हैं ईदें पुरानी।।


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EID FAQ

ईद पर निबंध कैसे लिखें?

ईद एक धार्मिक त्योहार है जिसे पूरी दुनिया में मुसलमान मनाते हैं। यह रमजान के पवित्र महीने के अंत का प्रतीक है । 30 दिन के रोजे के बाद ईद उस महीने के बाद पहला दिन होता है जब मुसलमान रोजा नहीं रखते और अपने दिन का पूरा आनंद लेते हैं। ईद पर एक निबंध के माध्यम से, हम त्योहार और उसके उत्सव के माध्यम से जाना जाएगा ।

क्यों मनाई जाती है ईद ?

मक्का से मोहम्मद पैगंबर के प्रवास के बाद पवित्र शहर मदीना में ईद-उल-फितर का उत्सव शुरू हुआ। माना जाता है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में जीत हासिल की थी। इस जीत की खुशी में सबका मुंह मीठा करवाया गया था, इसी दिन को मीठी ईद या ईद-उल-फितर के रुप में मनाया जाता है।

ईद कितने प्रकार की होती है?

कुछ लोगों का मानना है कि मुसलमान सिर्फ़ दो ही ईद मनाते हैं, ईद-उल-फ़ितर और ईद-उल-अज़हा.

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