- हलषष्ठी कब और क्यों मनाया जाता है – When and why is Hal Shashti Vrat celebrated?
- हलषष्ठी पर्व मनाने का पौराणिक कारण – Traditional Reason for celebrating Hal Shashti Puja
- हलषष्ठी पर्व मनाने की परम्परा अथवा रीति – Tradition and Rituals of celebrating Hal Shashti Puja
- हलषष्ठी पर्व का महात्म्य – Relevance of Hal Shashti Vrat
मर्यादा पुरूषोत्म भगवान श्री रामचन्द्र ने यूँ ही नहीं कहा है
‘जननी जन्मभूमिश्च स्वार्गादपि गरियसी ।’
वास्तव में माता एवं मातृभूमि द्वारा जो संतान के लिये त्याग और तपस्या किया जाता है । वही त्याग और तपस्या मॉं को स्वर्ग से भी उच्च स्थान देता है । मॉं हर क्षण अपने संतान के सुख, स्वास्थ्य के लिये ईश्वर से कामना करती रहती है । इसी कामना को लेकर माताएं कई-कई प्रकार से व्रत-उपवास रखती हैं । व्रत-उपवास भारतीय जीवन संस्कृति का अभिन्न अंग है ।
भारतीय माताओं की ममता का परिचायक है – ‘हलषष्ठी पर्व’ । यह पर्व पूरी तरह से संतानों के सुख समृद्धि की कामना से किया जाने वाला व्रत है जिसे मॉं कष्ट सह कर भी रखती हैं । यहॉं तक संतान की कामना रखने वाली महिलाएं भी इस व्रत को करती हैं । मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने पर उन्हें संतान सुख मिलता है ।
हलषष्ठी पर्व के उच्चारण में अपभ्रंश होने के कारण कई नामों से इसे जाना जाता है । कमरछठ, खमरछठ, हरषष्ठ, हलषष्ठ, हरछठ, हलछठ आदि नामों से इसे जाना जाता है । इस पर्व को उत्तर भारत में विशेष कर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है । यद्यपि यह ब्रजक्षेत्र का पर्व है किन्तु छत्तीसगढ़ में हलषष्ठी को, खमरछठ के नाम से गॉंव-गॉंव तक उत्साह पूर्वक मनाया जाता है । छत्तीसगढ़ में इसका उत्साह देखते ही बनता है ।
हलषष्ठी कब और क्यों मनाया जाता है – When and why is Hal Shashti Vrat celebrated?

हलषष्ठी पर्व प्रतिवर्ष भादो महिना के कृष्ण पक्ष के षष्ठी तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी के ठीक दो दिन पहले मनाया जाता है । इस पर्व को मनाने के पिछे मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ है । इस पर्व को बलराम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है । चूँकि बलराम का आयुध हल है, इसी आयुध के नाम पर बलराम का जन्म दिन हलषष्ठी के रूप में मनाया जाता है । कालांतर में हल कृषि का मुख्य औजार बन गया इसलिये इसे कृष्कों के सम्मान के पर्व के रूप में भी देखा जाता है ।
कहीं-कहीं इस पर्व को ‘हलषष्ठी महारानी का व्रत’ भी कहते हैं । ऐसा कहने के पीछे हलषष्ठी को धरती माता मान कर पूजा की जाती है । जिससे धन-धान्य बना रहे । लोगों में सुख-समृद्धि हो ।
इस पर्व में जो सगरी की पूजा की जाती है उसे माता पार्वती का रूप माना जाता है । अर्थात यह पर्व मॉं पार्वती की पूजा करने का व्रत है । जिसमें मॉं पार्वती से अपने संतान की सुख समृद्धि की कामना की जाती है ।
हलषष्ठी पर्व मनाने का पौराणिक कारण – Traditional Reason for celebrating Hal Shashti Puja
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार सभी जानते हैं कि भगवान कृष्ण की माता देवकी के छ: संतान को कंस ने जन्म लेते ही मार डाला था । देवकी सातवें संतान को गर्भ में धारण की हुई थी । मन में अत्यंत निराशा था कि एक भी संतान जीवित नहीं बची। तभी नारद के अंत: प्रेरणा से वह इसी निराशा में अपने भावी संतान की रक्षा की कामना से माता पार्वती को मन ही मन स्मरण करके व्रत रखी ।
चूँकि वह कारागार में थी इसलिये विधिवत पूजन तो नहीं किया किन्तु मानसिक व्रत किया । इसी कारण ईश्वरी प्रेरण से देवकी का गर्भ रोहणी के गर्भ स्थनांतरित हो गया और वही बलराम के रूप में जन्म लिया । चूँकि यह माता पार्वती के आशीर्वाद से हुआ । इसलिये हलषष्ठी में सगरी बना कर इसे मॉं पार्वती के रूप में पूजा करके संतान की स्वास्थ सुख की कामना की जाती है । चूँकि यह बलराम का जन्म दिन भी है इसलिये उनके जन्म दिन के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है ।
हलषष्ठी पर्व मनाने की परम्परा अथवा रीति – Tradition and Rituals of celebrating Hal Shashti Puja

हलषष्ठी व्रत धारण करने वाली महिलायें इस दिन दो चीजों से परहेज करती हैं एक हल चले हुये जमीन पर चलना और हल से उत्पन्न अन्न को खाना तथा दूसरा गाय के दूध और इस दूध से बने किसी भी चीज को खाना ।
व्रती महिला सुबह उठकर इस बात का ध्यान रखती हैं कहीं धोखे से भी वह हल चले जमीन पर न जाये । इस दिन पूजन के लिये भैस के दूध-दही का प्रयोग किया जाता है गाय का नहीं । भोजन प्रसाद के रूप ऐसे अन्न का उपयोग करते हैं जो ऐसे स्थान पर उगे हो जहॉं हल नहीं चलाया गया है । यही कारण है कि इस दिन पसहर चावल, जो तालाब या नदी किनारे पाये जाते हैं का उपयोग किया जाता है । उन स्थानों से शाक-भाजी चुनकर लाया जाता है जो स्वयं उगे हों अथवा बिना हल के प्रयोग के उगाये गये हों ।
व्रती महिलायें पूजन सामाग्री के रूप में भैस का दूध, दही, महुँवा, लाई-लावा, फूल, नारियल आदि सजा कर गांव या मोहल्ले में एक स्थान पर इक्कठा होती हैं । वहॉं पर लगभग सवा दो हाथ लंबा-चौड़ा और लगभग सवा हाथ गहराई का गढ्ढा बनाया जाता है इसे सगरी कहते हैं, इस सगरी के किनारों को कुश-काशी से सजाया जाता है फिर इसमें जल भर कर इसमें गंगाजल, भैस का दूध, भैस का दही, मधुरस आदि मिला देते हैं ।
पूजन कराने के लिये गॉंव का पुरोहित आता है जो इस सगरी को ही हलषष्ठी मइया या पार्वती मानकर विधि-विधान से पूजा कराता है पूजा में मॉं पार्वती के लिये श्रृंगार सामाग्री भेट की जाती है, साथ ही संतान सुख के लिये बच्चों के खिलौने भी सगरी में भेट किये जाते हैं । भैस का दूध, दही, महुँवा, लाई-लावा, फूल, नारियल आदि से पूजा की जाती है । पूजन के पश्चात हलषष्ठी व्रत कथा का श्रवण किया जाता है । माता पार्वती से महिलायें कामना करती हैं कि जिस प्रकार आपका परिवार प्रसन्न एवं स्वस्थ है उसी प्रकार हमारे परिवार भी प्रसन्न एवं स्वस्थ हों ।
छठ तिथि को यह पर्व मनाये जाने के कारण इस व्रत में छ: की संख्या का विशेष महत्व है । पूजा में छ: प्रकार के अन्न चना, गेहूँ, तिवड़ा, अरहर, धान का लाई के साथ भूना हुआ महुँवा चढ़ाया जाता है । बच्चों के छ: प्रकार के खिलौने चढ़ाये जाते हैं । व्रती छ: प्रकार की भाजी से बना प्रसाद ग्रहण करता है । हलषष्ठी व्रत कथा में छ: अध्याय सुने जाते हैं ।
पूजन करने के बाद अपने बच्चों को मॉं पार्वती का आर्शीवाद देने के लिये छोटे-छोटे नये कपड़ों के टुकडे को सगरी के जल से भीगा कर रख लिया जाता है । इसी कपड़े के टुकड़े को घर जाकर बेटे के दाई पृष्ठ भुजा पर एवं बेटी के बाई पृष्ठ भुजा पर सात बार स्पर्श कराते हैं । इसे स्थानीय भाषा में पोता मारना कहते हैं ।
हलषष्ठी पर्व का महात्म्य – Relevance of Hal Shashti Vrat
भारतीय आस्था एवं मान्यता के अनुसार हलषष्ठी का व्रत करने से अति उत्तम फल मिलता है । इस व्रत को करने से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है । संतान स्वस्थ व सम्पन्न रहती है । इसके अतिरिक्त सभी प्रकार के रोग-शोक दूर होते हैं और सुख-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है ।
हलषष्ठी का पर्व हमारे भारतीय संस्कृति का एक अनमोल धरोहर है जो मातृशक्ति के ममत्व अक्षुण बनाये हुये है । यह पर्व समाज को मॉं के महत्व को समझाने में अहम है । यह पर्व एक मॉं का संतान के प्रति त्याग और समर्पण को प्रदर्शित करता है । बच्चे अपनी मॉं के इस तपस्या को ध्यान में रखे और अपनी माता की सेवा सदैव करे ।
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References
हलषष्ठी Wikipedia
Hal Shashti Wikipedia