- Importance of Basant Panchmi- वसंत पंचमी का महत्व
- Vasant Panchmi in Folk Tales – पौराणिक कथाओं में वसंत पंचमी
- When Shree Rama reached Shabri’s hut- जब शबरी की कुटिया में पहुंचे प्रभु राम
- Historical significance of Vasant Panchmi- इतिहास के पन्नों में वसंत पंचमी
- When the whole country celebrates Basant Panchmi- जब वसंत में सराबोर होता है देश
- Colors of Basant Panchmi scattering abroad- देश के बाहर भी बिखरते है वसंत के रंग
- Reference
ऋतुओं की फेहरिस्त में वसंत का हमेशा से एक खास स्थान रहा है। इसीलिए वसंत को सभी ऋतुओं का राजा कहा जाता है। जिसका आगाज होता है वसंत पंचमी का पावन पर्व से।
हिन्दू धर्म में माघ महीने को देवताओं का महीना माना जाता है। माघ के आगाज के साथ ही त्योहारों का सिलसिला भी शुरू हो जाता है, जो माघ मेले से लेकर मकर संक्रान्ति और फिर वसंत पंचमी तक चलता है। माघ महीने की पंचमी तिथि (पाँचवे दिन) को ही वसंत पंचमी का पर्व समूचे देश में बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
Importance of Basant Panchmi- वसंत पंचमी का महत्व
भारत की छह ऋतुओं (बसंत ऋतु,ग्रीष्म ऋतु , वर्षा ऋतु , शरद ऋतु , हेमन्त ऋतु और शिशिर ऋतु) में वसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। कवि दिनेश शुक्ला के शब्दों में-
कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन बसंत?
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ बसंत।
चूड़ी भरी कलाइयाँ, खनके बाजू-बंद,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीगे छंद।
सरसों के फूलों से लहलहाते खेत, अलसी की महक, सर्दियों की आलसी धूप और हर तरफ फैली हरियालीवसंत के आगाज की दास्तां बयां करती है। वसंत पंचमी के दस्तक देते ही वसंत ऋतु का आगाज हो जाता है। होली के ठीक चालीस दिन पहले पड़ने वाले इस पर्व के दिन मुख्य रूप से माता सरस्वती की पूजा होती है। साथ ही नारायण और प्रेम के देवता कामदेव की भी अराधना की जाती है।
दरअसल वसंत ऋतु का आगाज भले ही वसंत पंचमी के दिन होता है और पतझड़ में अपने पत्ते छोड़ चुके पेड़-पौधों में नए अंकुर फूटने लगते हैं,लेकिन पेड़ों को दोबारा हरा-भरा होने में लगभग चालीस दिन का समय लगता है। आखिरकार होली के त्योहार तक वसंत ऋतु अपने शिखर पर होती है। हर तरफ फैली हरियाली और फूलों की चादर ओढ़े धरती का नजारा सीधा लोगों के दिल पर दस्तक देता है।
वसंत पंचमी का त्योहार देश के हर कोने में बेहद धूम-धाम से मनाया जाता है। पीले रंग के वस्त्र में वसंत पंचमी का लुत्फ उठाते लोग और हर तरफ पीली सरसों से लहलहाते खेत वसंत के नजारे में चार चाँद लगा देते हैं। इसीलिए पीले रंग को इस पर्व की पहचान बताया जाता है।
Vasant Panchmi in Folk Tales – पौराणिक कथाओं में वसंत पंचमी

पुराणों और शास्त्रों में वसंत पंचमी के कई जिक्र मिलते हैं। शास्त्रों में इसका उल्लेख ऋषि पंचमी के रूप में किया गया है। वैसे तो वसंत पंचमी मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। उपनिषदों में इसे सरस्वती की उत्पत्ती का दिन कहा गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव की आज्ञा से ब्रम्हा ने सृष्टि का सृजन तो किया लेकिन धरती पर चारो तरफ व्यापत मौन उन्हें रास नहीं आया।
इस समस्या के समाधान के लिए नारायण ने दर्गा रूपी आदिशक्ति का आवाह्न किया और आदिशक्ति सरस्वती के रूप में अवतरित हुईं। हाथ में वीणा लिए सफेद रंग में रंगी शांति की प्रतीक सरस्वती ने जैसे ही अपनी वीणा बजायी, वीणा की धुन समूची सृष्टि में गुंजायमान हो उठी। इस धुन के साथ ही पक्षियों का कोलाहल, कल-कल बहती नदियों की धारा के साथ ही चारों तरफ संगीत की मधुर धुन ने जैसे धरती में जान फूंक दी। तभी से माघ पंचमी का ये दिन वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाने लगा और सरस्वती की अराधना इस दिन का अभिन्न अंग बन गया।
ऋगवेद में सरस्वती का जिक्र करते हुए लिखा है- “प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु” जिसका अर्थ है सरस्वती हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं।
वेदों में सरस्वती का जिक्र ज्ञान की देवी के अलावा संगीत की देवी, वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित कई नामों से किया गया है।
When Shree Rama reached Shabri’s hut- जब शबरी की कुटिया में पहुंचे प्रभु राम

इसके अलावा प्राचीन महाकाव्य रामचरितमानस में भी वसंत पंचमी के महत्व का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि सीता हरण के बाद भगवान राम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ दण्डकारण्य से होते हुए वसंत पंचमी के ही दिन शबरी नामक भीलनी की कुटिया में पहुंचे थे, जहां शबरी ने फूल बिछाकर और अपने झूठे बेर खिला कर भगवान राम का स्वागत किया था। आज भी गुजरात के डांग जिले में स्थित शबरी के आश्रम में वसंत पंचमी के दिन भगवान राम का भव्य पूजन किया जाता है।
Historical significance of Vasant Panchmi- इतिहास के पन्नों में वसंत पंचमी
पौराणिक महत्व के साथ-साथ वसंत पंचमी के कई एतिहासिक महत्व भी है। दरअसल इतिहास के पन्नों की कई कहानियों में वंसत पंचमी का जिक्र किया गया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
चंदबरदाई द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रंथ पृथ्वीराज रासो में उल्लेखित ये पंक्तियां चंदबरदाई ने पृथ्वीराज से उस समय कही थी जब पृथ्वीराज ने मुहम्मद गोरी पर शब्दभेदी बाण चलाया था। दरअसल पृथ्वीराज चौहान की आँखे निकलवाने के बाद मोहम्मद गोरी ने उनके शब्दभेदी बाण की कला देखने की मंशा जाहिर की। तभी पृथ्वीराज के गुरु चंदबरदाई ने भरे दरबार में इन्हीं पंक्तियों के जरिए उन्हें गोरी पर बाण चलाने का परामर्श दिया था। आश्चर्य की बात यह है कि यह मशहूर एतिहासिक घटना वसंत पंचमी के दिन ही घटी थी।
सिखों के लिए वसंत पंचमी के त्योहार का एतिहासिक महत्व है। सिख समुदाय की मान्यता है कि इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह का विवाह हुआ था। इसके अलावा सिख समुदाय में प्रसिद्ध कूका पंथ की स्थापना करने वाले गुरू रामसिंह कूका का जन्म भी 1816 ई. में वसंत पंचमी पर पंजाब के लुधियाना में हुआ था।
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When the whole country celebrates Basant Panchmi- जब वसंत में सराबोर होता है देश

विविधाताओं से भरे भारत में वसंत पंचमी का हर राज्य में अपनी परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार काफी धूम-धाम से मनाया जाता है।
पूर्वी भारत के राज्य असम, त्रिपुरा सहित पश्चिम बंगाल में वसंत पंचमी का त्योहर पर श्रद्धालु मंदिरों में माता सरस्वती के भव्य पूजन का आयोजन करते हैं। खासकर बंगाल में सरस्वती की पूजा के बाद बूँदी के लड्डू और मीठे चावल का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इसके अलावा वसंत पंचमी के दिन स्कूलों में शारदा की वंदना की जाती है।
उड़ीसा में वसंत पंचमी को श्री पंचमी या सरस्वती पूजा कहा जाता है। यहां सरस्वती पूजा के प्रति लोगों की श्रद्धा का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इस दिन यहां सभी स्कूलों, कालेजों सहित सभी शिक्षण संस्थानों में हवन और यज्ञ का आयोजन किया जाता है, जिसमें सभी छात्र और शिक्षक भाग लेते हैं।
गुजरात में कच्छ के क्षेत्र में श्रद्धालु राधा कृष्ण की अराधना कर प्रेम के पर्व के रूप में वसंत पंचमी का त्योहार मनाते हैं। यहां श्रद्धालु केसरी, पीले और गुलाबी रंग के वस्त्र पहन कर पूरे हर्षोल्लास से वसंत का स्वागत करते हुए आम की पत्तियों से बना फूलों का हार एक-दूसरे को पहनाते हैं।
मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ में वसंत पंचमी के दिन शिव पार्वती की पूजा की जाती है। जिसके पीछे मान्यता है कि वसंत पंचमी के ही दिन पार्वती ने कल्पों से योग निद्रा में डूबे महादेव को जगाने के लिए प्रेम के देवता कामदेव से सहायता माँगी थी। कामदेव ने अपनी पत्नी रति के सहयोग से महादेव की योग निद्रा भंग कर दी, जिसके बाद महादेव ने अपने क्रोध से कामदेव को भस्म कर दिया।
कामदेव की मृत्यु के साथ सृष्टि से प्रेम भी नष्ट हो गया। जिसके बाद पार्वती की अराधना पर महादेव ने कामदेव को फिर से जीवन दान दिया और सृष्टि पुनः प्रेम रस से सृजित हो उठी। यही कारण है वसंत पंचमी के दिन को कामदेव का दूसरे जन्मदिवस के रूप में मनाते हुए शिव पार्वती की अराधना की जाती है।
राजस्थान में भी लोग चमेली के फूलों से वसंत का भव्य स्वागत करते हैं। वहीं महाराष्ट्र में वसंत पंचमी के दिन नव विवाहित जोड़ों के मंदिर में दर्शन कर पहली वसंत पंचमी के पूजन की प्रथा है।
पंजाब में धूम-धाम से मनाए जाने वाले त्योहारों की फेहरिस्त में वसंत पंचमी का नाम भी शामिल है। नए साल में लोहड़ी के बाद यह सिख समुदाय के लिए सबसे खास त्योहार है। इस दिन पंजाब में जगह-जगह मेले लगते हैं। लोग पीले कपड़ों में इस त्योहार का लुत्फ उठाते हैं।
इस दिन हर घर में मीठे चावल, मक्के की रोटी, सरसों का साग बनना एक आम बात है। यही नहीं पंजाब में पतंग प्रतियोगिता वसंत पंचमी का अभिन्न अंग है। यहां वसंत पंचमी के दिन पंतग उड़ाना काफी शुभ माना जाता है। सिख समुदाय के लिए इस त्योहार का खास महत्व होता है। यही कारण है कि न सिर्फ पंजाब में बल्कि देश-विदेश के सभी गुरुद्वारों में वसंत पंचमी के दिन भंडारों के साथ कई धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
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Colors of Basant Panchmi scattering abroad- देश के बाहर भी बिखरते है वसंत के रंग
वसंत पंचमी का त्योहार महज देश के भीतर ही नहीं बल्कि कई पड़ोसी देशों में भी मनाया जाता है। नेपाल और बांग्लादेश में वसंत पंचमी को सरस्वती पूजा के नाम से मनाया जाता है। इन देशों में इस दिन सभी शिक्षण संस्थानों में सार्वजनिक छुट्टी होती है, साथ ही मंदिरों में सरस्वती की भव्य पूजा का आयोजन किया जाता है। माता सरस्वती की इस पूजा में छात्र-छात्राएं बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।
वहीं मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया में वसंत पंचमी का त्योहार काफी धूम-धाम से मनाया जाता है। इंडोनेशिया में वसंत पंचमी को “हरि राया सरस्वती” के नाम से जाना जाता है। बाली सहित पूरे इंडोनेशिया के शिक्षण संस्थानों सहित कई सार्वजिन स्थलों पर सुबह सूर्योदय के साथ दोपहर तक माता सरस्वती की अराधना की जाती है।
Reference-
2020,Vasant Panchami, Wikipedia
2020, बसंत पचमी का पर्व, विकिपीडिया