- रक्षाबंधन पर्व भाई बहन का त्योहार – Rakshabandhan is a festival of brother and sister
- रक्षाबंधन कब मनाते है – When is Rakshabandhan Celebrated?
- रक्षाबंधन की परम्पराऍं – Rituals of Rakshabandhan
- रक्षाबंधन की व्यापकता – Rakshabandhan Prevalence
- रक्षाबंधन मनाने के कुछ पौराणिक कारण – Traditional Reasons of celebrating Rakshabandhan
- References
रक्षाबंधन पर्व भाई बहन का त्योहार – Rakshabandhan is a festival of brother and sister
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होने से पहले एक पारिवारिक प्राणी है । मनुष्य का जन्म परिवार में होता है, परिवार में वह वृद्धि करता है । परिवार का आधार संबंध और संबंध का आधार प्रेम, आपसी सामंजस्य और सहयोग होता है । इन संबंधो को और अधिक मजबूत करने के लिये हमारी संस्कृति में कई प्रकार के पर्व, कई प्रकार के व्रत को शामिल किया गया है । एक माता अपने संतान की भलाई के लिये कई-कई व्रत करती है । एक पत्नी अपने पति के लिये कई-कई व्रत करती है । कई व्रत पर्व के रूप में भी मनाया जाता है ।
मनुष्य अपने परिवार में जन्म के तुरंत पश्चात अपने मॉं-पिता से परिचित होता है । इसके बाद जिस संबंध से वह परिचित होता है वह है भाई-बहन का संबंध । प्रत्येक व्यक्ति का शैशव काल अपने भाई-बहन के सानिध्य में ही व्यतित होता है । भाई-भाई, भाई-बहन, बहन-बहन का संबंध जीवन का प्रारंभिक और मजबूत संबंध होता है । विशेष कर भाई-बहन का संबंध बहुत ही मधुर और पवित्र होता है।
बाल्यकाल का आपस में नोक-झोक, साथ-साथ हँसना-रोना, खेलना-कूदना इसी संबंध में होता है इसी संबंध को और अधिक मजबूत करने, इस संबंध को स्थाई स्मृति में बनाये रखने के लिये हमारी संस्कृति में दो पर्व प्रचलित है एक है भैया दूज और दूसरा रक्षाबंधन ।

रक्षाबंधन जैसे कि अपने नाम से अपना अर्थ दे रहा है कि रक्षा के लिये बंधन अर्थात अपनी रक्षा के लिये बंधन में लेना । इस पर्व में बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र अर्थात सूत या धागा बांधती हैं, जिसे आज कल राखी कहते हैं ।
रक्षाबंधन कब मनाते है – When is Rakshabandhan Celebrated?
रक्षाबंधन का पर्व प्रत्येक वर्ष हिन्दी महिना सावन के पूर्णिमा को मनाया जाता है । इसे श्रावण पूर्णिमा कहते हैं । श्रावण पूर्णिमा को शुभ मुहुर्त में बहने अपने भाई का मांगलिक पूजन करने के पश्चात माथे पर तिलक करके उनकी कलाई पर राखी बांधती हैं ।
रक्षाबंधन की परम्पराऍं – Rituals of Rakshabandhan
रक्षाबंधन मनाने की कई परम्पराएं हमारे देश में प्रचलित है किन्तु मुख्य रूप से यह भाई-बहनों का ही पर्व है । इस दिन प्रत्येक बहन प्रात: ही स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर साज-सज्जा कर तैयार हो जाती हैं और भाई को राखी बांधने के लिये पूजन की थाली सजाती हैं । इस थाली में रोली, कुमकुम, चंदन, अक्षत, पुष्प और राखी सजाती है। शुभ मुहुर्त में अपने भाई को ऊँचे आसन में बिठाकर विधिवत पूजन करती है। पहले माथे पर कुमकुम, चंदन, रोली का टिका लगाती हैं फिर अक्षत का टिका लगाती हैं । सिर फूल चढ़ाती हैं, फिर आरती उतारती हैं और अंत में भाई के दाहनी कलाई पर रक्षासूत्र या राखी बांधती हैं ।
राखी बांधने के पश्चात बहन भाई को उनकी रूचि के अनुसार मिष्ठान या पकवान खिलाती हैं । इसके बदले में भाई तत्कालिक रूप से कुछ न कुछ उपहार देता है किन्तु जीवन भर बहन की रक्षा करने की भावना प्रधान होती है ।
वास्तव में बहने भाई को भगवान कृष्ण के रूप में पूजा करती हैं और भाई से कामना करती हैं कि जिस प्रकार भगवान कृष्ण ने अपनी बहन द्रौपदी का जीवन पर्यन्त रक्षा की उसी प्रकार उसका भाई भी बहन की रक्षा करे ।
इस मुख्य परम्परा के साथ-साथ और भी कुछ परम्पराएं प्रचलित है जिसमें कुछ प्रमुख इस प्रकार है-
1.उत्तराचंल, उड़ीसा, महाराष्ट्र, केरल तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में श्रावण पूर्णिमा के दिन जनेउ धारण करने वाले ब्राह्मण तर्पणादि करके पुराने जनेउ को जल में विर्सजित करके नवीन यज्ञोपवित धारण करते हैं ।
2. समुद्र तटीय कुछ क्षेत्रों जैसे महाराष्ट्र में इसे नारियल पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है । इस पर्व में इस दिन समुद्र देव को यज्ञोपवित और नारियल भेट कर समुद्र देव को प्रसन्न करते हैं ।
3. देश के विभिन्न क्षेत्रों में वृत्तीवान ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवित देकर अथवा उनकी कलाई में रक्षा सूत्र बांध कर दक्षिणा लेते हैं ।
4. जैन धर्म के अनुसार इसी दिन बिष्णुकुमार नामक मुनी ने 700 जैन मुनियों की रक्षा की थी जिसके स्मृति में इस दिन धर्म एवं देश की रक्षा करने की प्रतिज्ञा दुहराई जाती है ।
रक्षाबंधन की व्यापकता – Rakshabandhan Prevalence

रक्षाबंधन का पर्व जाति धर्म के बंधन को तोड़कर व्यापक हो गया है । यद्यपि यह हिन्दू धर्म के पौराणिक कथाओं के अनुसार मनाने का प्रचलन प्रारंभ हुआ किन्तु यह जैन, बौद्ध, सिक्ख धर्म के साथ-साथ ईसाई एवं मुस्लिम धर्मों के अनेक लोगों के द्वारा मनाये जाने लगा है ।
वास्तव में मूलत: यह सहोदर भाई-बहनों के मध्य प्रारंभ हुई होगी लेकिन कालांतर में यह मुँह बोली बहनों द्वारा भाइयों को राखी बांधे जाने से घर से परिवार, परिवार से समाज, समाज से धर्म की सीमायें लांघकर आज व्यापक हो गई है । वास्तव में लक्ष्मी-बली, कृष्ण-द्रौपदी सहोदर भाई-बहन नहीं थे जिनके समृति में यह पर्व चल पड़ा । इसलिये यह न्याय संगत भी है ।
रक्षाबंधन का पर्व इतना व्यापक हो गया है कि इस एक दिन के पर्व के लिये बाजार के हिस्से का बहुत बड़ा व्यवसाय मिल गया है । राखी रक्षासूत्र से बदल कर विभिन्न रूपों में बाजार में आने लगे हैं । राखी का बाजारीकरण हो चुका है । बहुत लोगों का सालभर का रोजगार केवल इस एक दिन के पर्व पर ही टिका है । इस पर्व का व्यवसाय देश की सीमा से बाहर तक पहुँच चुका है । चीन देश का बना हुआ राखी भी देश में बहुत प्रचलित है ।
रक्षाबंधन पर्व पर सरकारें भी विभिन्न सुविधायें बहनों को उपलब्ध कराती हैं । डाक सेवा जिससे बहने अपने दूरस्थ भाइयों को राखी भेज सकें । कई सरकारें रक्षाबंधन के दिन बहनों के लिये सरकारी मेट्रो या बसों को निशुल्क कर देती हैं ।
रक्षाबंधन मनाने के कुछ पौराणिक कारण – Traditional Reasons of celebrating Rakshabandhan
रक्षाबंधन मनाने के पीछे कई-कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है जिसमें से दो कथाएं प्रमुख है जो इस प्रकार है-
1. स्कन्ध पुराण के अनुसार दैत्यों के राजा बली एक बार देवताओं पर विजय प्राप्त करने और स्वर्ग को देवताओं से छिनने के उद्देश्य से 100 यज्ञ का संकल्प लेकर यज्ञ प्रारंभ कर दिया उसका 99 यज्ञ पूरा हो गया तब 100 वें यज्ञ पर देवताओं को डर लगने लगा, उन्हे अपना स्वर्ग अपने हाथ से जाता हुआ दिखने लगा । इस भय से सभी देवता भगवान बिष्णु के शरण में गये ।
देवताओं के बहुत अनुनय-विनय से भगवान बिष्णु वामन अवतार लेकर दैत्य राजा बली के यज्ञ शाला में पहुँचे । बली दैत्य होने के साथ-साथ एक महादानी भी था । इसी कारण भगवान छोटे कद का ब्राह्मण बालक के रूप में उनके सामने गये और अपने लिये तप करने के लिये केवल तीन पग भूमि दान में मांगी ।
राजा बली जब दान देने के लिए संकल्प बद्ध हो गये तब उन्होंने विराट रूप धारण कर लिया और एक पग में सारी धरती को और दूसरे पग में आसमान को माप लिया तीसरे पग के लिये कोई स्थान नहीं बचा तब वामन ने बली से पूछा तीसरा पग कहां रखूँ तो बली ने बड़े ही विनम्रता के साथ तीसरा पग अपने सिर पर रखने का अनुरोध किया ।
इस अनुरोध पर भगवान ने तीसरा पग उनके सिर पर रख दिया जिससे बली रसातल में चला गया । बली के दानशिलता और विनम्रता से भगवान वामन अति प्रसन्न हुये बदले में उनसे वरदान मांगने को कहां इस पर बली ने कहा- प्रभु जब भी मैं अपने घर से बाहर निकलूँ आप का दर्शन होवे और बाहर से जब भी अपने घर में प्रवेश करूँ आप का ही का दर्शन होवे ।
भगवान ने अपने वचन का मान रखने के लिये उसे वरदान देते हुये स्वयं को राजा बली का चौकीदार बना लिया । भगवान रसातल में राजा बली के दरवाजे पर बैठे रहते जिससे आते-जाते बली उसको देख सके ।
उधर बिष्णु धाम में बहुत दिनों से अपने पति को न पाकर मॉं लक्ष्मी बहुत दुखी रहने लगी । नारद मुनी ने मॉं लक्ष्मी को सुझाव दिया कि रसातल में जाकर वह राजा बली को अपना भाई स्वीकार कर लें और एक भाई के रूप में जब बली कोई उपहार देना चाहे तो वह बदले में अपने स्वामी को मांग ले ।
माता लक्ष्मी ने ऐसा ही किया । रसातल में जाकर वह राजा बली के कलाई पर एक रक्षासूत्र बांध कर भैया कहकर अभिवादन की । इससे बली भी प्रसन्न हुआ और माता लक्ष्मी को बहन के रूप में स्वीकार कर कुछ उपहार देना चाहा तब माता लक्ष्मी बोली यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते तो अपने उस चौकीदार को दे दीजिये जो रात-दिन आपके दरवाजे पर बैठा रहता है ।

राजा बली को कुछ आश्चर्य हुआ किंतु वह समझ गया कि यह स्वयं माता लक्ष्मी हैं जिन्होनें अपने पति के लिये मुझे भाई के रूप स्वीकार किया है । वह तत्काल भगवान बिष्णु को वचन से मुक्त कर देते हैं । वह दिन श्रावण मास का पूर्णिमा था । इसी स्मृति के कारण प्रति वर्ष श्रावण पूर्णिमा को रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है ।
2. श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार- एक बार युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में राजषु यज्ञ कर रहे थे इस यज्ञ में प्रथम पूज्य के रूप भगवान कृष्ण को स्वीकार किया गया किन्तु यह बात शिशुपाल को अच्छी नहीं लगी । वह भगवान कृष्ण का अपमान करते हुये गाली देने लगे । वास्तव में शिशुपाल, कृष्ण की मौसी का लड़का था । कृष्ण अपनी मौसी से वचनबद्ध था कि वह शिशुपाल के 100 अपराध को क्षमा कर देगा । इसलिये वह चुपचाप शिशुपाल के गाली को सुनते रहे और गिनते रहे ।
जैसे ही शिशुपाल ने 101 वीं गाली दी कृष्ण ने तत्काल अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया । इस घटना में सुदर्शन चक्र के घर्षण के कारण भगवान की अंगुली में चोट आने से रक्त बहने लगा । इस रक्त को देखते ही महारानी द्रौपदी ने अपने राजसी वस्त्र को फाड़ कर भगवान के अंगुली में बांध दी जिससे रक्त प्रवाह बंद हो गया। भगवान कृष्ण द्रौपदी को बहन मानते ही थे ।
इस वस्त्र के बदले ही भगवान ने बाद में द्रौपदी के चिरहरण के समय रक्षा की । इस दिन भी संयोग से श्रावण पूर्णिमा थी । इसलिये इस दिन को एक बहन अपने भाई की कलाई में रक्षासूत्र बांध कर अपनी सुरक्षा का वचन लेती है ।
रक्षाबंधन का अपना धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ इनका ऐतिहासिक, राजनैतिक, सामाजिक महत्व भी है । इतिहास में कई घटनायें हैं जिसमें रानीयो ने अपने राज्य के शत्रुओं को राखी बांधकर राज्य की रक्षा की । राजनीतिक दल भी आम जनता के बीच रक्षापर्व मनाती हैं । राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जैसे सामाजिक संस्था रक्षाबंधन पर्व मना कर समाज को एक सूत्र में बांधने की प्रयास करती है ।
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