- नाग पंचमी मनाने की तिथि – Date to celebrate Nagpanchami
- नाग पंचमी मनाने की मान्यताएँ – Believes behind celebrating Nagpanchami
- नाग पंचमी मनाने की परम्पराएँ – Rituals of Celebrating Nagpanchami
- दंगल-कुश्ती नाग पंचमी का पहचान – Dangal-Wrestling Nag Panchami’s identity
- नाग पंचमी पर कुछ विशेष – Something Special on Nag Panchami
- Reference
नाग पंचमी पर्व (Nagpanchmi) – सृष्टि स्वयं में अनुशासित है। प्रकृति अपने आप में संतुलित है। यह संतुलन तब तक बना रहता है जब तक मनुष्य इसमें आवश्यकता से अधिक हस्तक्षेप न करे। इसी संतुलन को बनाये रखने के लिये हमारे मनिषियों ने हमारी संस्कृति को इस प्रकार विकसित किया है कि प्रकृति का संतुलन बना भी रहे और मनुष्य अपनी श्रेष्ठता भी बनाये रखे।
भारतीय संस्कृति में प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने के लिये जड़-जीव, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी सभी को सम्मान देने की परम्पंरा को विकसित किया गया है। यही परंपरा हमारे तीज-त्यौहार में देखने को मिलती हैं। वट-सावत्री में बरगद वृक्ष का, देव उत्थानी एकादशी में तुलसी पौधे का, अन्न कूट पर्व में गौवंश की पूजा का विधान करके पशु और वृक्षों का सम्मान किया गया है। इसी कड़ी में नागपंचमी पर्व में नाग की पूजा की परंपरा है ।
नाग पंचमी मनाने की तिथि – Date to celebrate Nagpanchami
भारतीय तीज-त्यौहार हिन्दू पंचाग के अनुसार मनाये जाते हैं। इसी पंचाग के अनुसार प्रति वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का पर्व पूरे भारत में श्रद्धा और विश्वास पूर्वक मनाया जाता है ।
नाग पंचमी मनाने की मान्यताएँ – Believes behind celebrating Nagpanchami

किसी भी पर्व को मनाने का कोई न कोई कारण या कथाएँ प्रचलित होती हैं। अधिकांश पर्वो के मनाने के पीछे एक ही कारण होता है किन्तु नाग पंचमी मनाये जाने के संबंध में कई कथाएँ प्रचलित हैं। जिसमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार है-
1. नाग हिन्दू धर्म के अधिष्ठाता देवों से जुड़ा हुआ है। भगवान बिष्णु शेष नाग के सैय्या पर विश्राम करते हैं, तो वहीं आदि देव महादेव का श्रृंगार ही सर्पो से होता है। भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार माना जाता है। इन सब कारणों से नाग को एक देवता के रूप में प्रतिष्ठित करके उनकी पूजा का विधान किया गया है ।
2. ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन से जो विष प्राप्त हुआ। श्रावणशुक्ल पंचमी के ही दिन उस विष को भगवान भोलेनाथ ने पान किया था इसी समय विष की कुछ बूँदे उनके गले पड़े सर्पो के मुख पर भी चली गई। इससे सर्प जहरिले हो गये इससे पहले सर्प जहरिले नहीं थे। इसी जहरिले सर्पो से रक्षा के लिये इस दिन नागों की पूजा का विधान हो गया।
3. ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण् द्वारा कालिया नाग का मान मर्दन इसी दिन किया गया था । अंत में श्री कृष्ण द्वारा कालिया को आर्शीवाद के रूप में इस दिन उनकी पूजा होने का वरदान दिया। इस कारण इस दिन नाग पंचमी मनायी जाती है ।
4. इन मान्यताओं के अतिरिक्त कई कथाएँ प्रचलित हैं जिसमें एक महिला द्वारा एक सांप को मारने से बचाने के बदले वह सर्प, उस महिला को अपनी बहन मान कर उनकी रक्षा करता है, उन्हें धन-धान्यं देकर सुख-सुविधा प्रदान करता है।
नाग पंचमी मनाने की परम्पराएँ – Rituals of Celebrating Nagpanchami
ऐसे तो सामान्य रूप से नाग पंचमी के दिन शिवालय में जाकर नाग की पूजा करते हैं किंतु भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरीके से नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है ।
उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में लोग अपने घर के मुख्य दरवाज़े पर या पूजा घर पर गोबर से या गेरू से या ऐपन से नाग आकृति बना कर पूजा अर्चना करते हैं तो कहीं-कहीं मूंज की रस्सी पर सात गाँठ लगा कर इसे नाग मान कर पूजा अर्चना कि जाती है।

कुछ क्षेत्रों में नाग पंचमी के पूर्व संध्या पर चना भिगा दिया जाता है और ब्राह्मण या वृद्धा के यहाँ धान छोड् दिया जाता है इसी धान को सुबह इक्कठा करके इससे लाई या लावा बनवाया जाता है। फिर इस लावा को दूध में मिला कर गाँव के बाहर बाग-बगीचे के किनारे, नदी-तलाबों के किनारे जहाँ-जहाँ बिन या बिल हो वहाँ-वहाँ छोड़ दिया जाता है ।
कुछ क्षेत्रों में गुड़िया सिलाने की परम्पराएँ प्रचलित हैं जिसमें अविवाहित कन्या गुड़िया बनाती हैं जिसमें लहरदार रेखाएँ होती हैं, गुड़िया को कृष्ण कथा के पूतना का प्रतिक माना जाता है तथा लहरदार रेखाओं को कालिया नाग का प्रतिक । फिर इस गुड़िया को गाँव के लड़के छड़ी से पीटते हैं, उसे पीटना पूतना वध और कालिया नाग मर्दन का प्रतिक माना जाता है। फिर लड़कियाँ श्रृंगार करके उसे गाँव में बने गुड़िया तालाब मे विसर्जन करने जाती हैं, इसे ही गुड़िया सिलाना कहा जाता है। गुड़िया विसर्जन करने के पश्चात लड़कियाँ झूला झूलती हैं।
वहीं कुछ राज्यों में स्कूली बच्चें अपने स्लेट पर पेसिंल से नाग की प्रतिमा बना कर और साथ में दूध, नारियल, आदि पूजन सामग्री लेकर स्कूल जाते हैं और स्कूल में सामूहिक रूप से पूजा कराई जाती हैं।
महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में नागपंचमी के पर्व को एक बहुत बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है। वहीं केरल में शेषनाग की पूजा की जाती है दक्षिण भारत के कुछ इलाकों मे सर्पो की देवी, मनसा देवी की पूजा की जाती है ।
सर्पदंश से पीड़ित रोगियों के उपचार करने वाले तांत्रिक इसी दिन विशेष अनुष्ठान करते हैं। इस अनुष्ठान में स्वयं को सर्पदंश से बचाने का तांत्रिक उपाय करते हैं, आध्यात्मिक शक्ति अर्जित करते हैं और इसी दिन पूरे वर्ष जितने विषदंश रोगियों के उपचार किये होते हैं उनसे नाग की पूजा करा कर जिस मंत्र से रोगियों को बांधा होता है उस मंत्र से मुक्त करते हैं, इसे स्थानीय भाषा में ‘भार छोड़ना’ कहते हैं ।
दंगल-कुश्ती नाग पंचमी का पहचान – Dangal-Wrestling Nag Panchami’s identity
नाग पंचमी के दिन देश के अधिकांश भागों में दंगल या कुश्ती का आयोजन करने की परंपरा है। इस एक दिन के आयोजन के लिये पूरे साल भर इसकी तैयारी की जाती है। इस दिन गांव में एक अखाड़ा बनाया जाता है कुश्ती की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है जिसमें गाँव के पहलवान के अतिरिक्त दूसरे गाँवों से पहलवान भाग लेते हैं ।
पूरे गाँव के छोटे-बडे सभी इस प्रतियोगिता को देखने आते हैं। यह आयोजन पूरे मौज-मस्ती के साथ किया जाता है। विजेता पहलवान को कोई खिताब और पुरस्कार दिया जाता है। लेकिन इस परंपरा में अब कमी देखी जा रही है। स्कूलों, व्यायाम शालाओं में भी इस दिन कुश्ती का आयोजन किया जाता है। अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग आयोजन किए जाते हैं।

स्कूलों का आयोजन अब लगभग बंद होने के कगार पर आ गया है किन्तु व्यायाम शालाओं में यह आयोजन अभी तक धूमधाम से मनाया जाता है। शहरों में व्यायाम शालाओं में अब कुश्ती का चलन बढ़ गया है। बहुत पहले से चला आ रहा यह दगंल मानों नागपंचमी की पहचान बन चुका है ।
नाग पंचमी पर कुछ विशेष – Something Special on Nag Panchami
भारत में ऐसे तो नाग के अनेक मंदिर है किंतु उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के साथ नागचंद्रेश्वर का मंदिर है यह मंदिर वर्ष में केवल एक बार नागपंचमी के पर्व पर ही खुलता है ।
ऐसे तो भारत में अनेक पर्वो पर अनेक मेले लगते हैं किन्तु नागपंचमी के पर्व पर खरगोन के नागलवाड़ी में नागपंचमी के दिन मेला लगता है।
दक्षिण भारत के शिवालिक पर्वत पर मनसा देवी का मंदिर है मान्यता के अनुसार यह नागों की देवी है जो शिवअंश से प्रकट हुई तथा वासुकि की बहन है। नागपंचमी के दिन मनसा देवी की विशेष पूजा अर्चना होती है ।
इस प्रकार नागपंचमी का पर्व स्वयं को सर्पदंश से बचाने का पर्व होने के साथ-साथ अपनी आस्था प्रकट करने और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने का पर्व है । इस पर्व को पूरे देश में श्रद्धा और विश्वास के साथ उत्साह पूर्वक मनाया जाता है ।
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