Essay on Mahalaya Amavasya in Hindi | महालया अमावस्‍या क्यों मनाते हैं

महालया अमावस्‍या (Mahalaya Amavasya) – जब कोई अपने इस दुनिया को छोड़ कर चले जाते हैं तो उनकी याद आना स्‍वभाविक है । उनके साथ बिताया गया समय, उनके हमारे लिये किये गये कार्य, और कई सारी बातें  । लेकिन याद तो वहीं आतें है जिनके साथ हमने भी जीया है किन्‍तु जिनके साथ हमने नहीं जिया है, जिसे उनके जीवन काल में ही हम नहीं जानते वो भला कैसे याद आ सकते हैं किन्‍तु उनके द्वारा हमारे प्रति कुछ न कुछ योगदान रहा हो तो उसे जरूर याद किया जाता है ।

इसी कारण समाज अनेक महापुरुषों को साल में कम से कम एक बार किसी न किसी रूप में याद कर ही लेता है । इसी प्रकार अपनी धार्मिक मान्‍यता, आस्‍था के अनुसार अपने पूर्वजों को महालया पक्ष में याद करते हैं ।

 भारतीय संस्‍कृति में अपने मृतक पूर्वजों को जिन्‍हें जानते हों या जिन्‍हें न भी जानते हों उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्‍यक्‍त करने की एक प्रथा प्रचलित है । इस प्रथा  को ‘महालया पक्ष’ या पितृ पक्ष कहते हैं । भारतीय संस्‍कृति में 16 संस्‍कारों की चर्चा है जिसमें पहला संस्‍कार गर्भ धारण संस्‍कार और सोलहवां संस्‍कार अंतिम संस्‍कार है । प्रथम संस्‍कार में जीव की न ही देह होती है न ही जीवन अर्थात जीवन का आधार तत्‍व आत्‍मा । 

इस पहले संस्‍कार में देह की कामना करके आत्‍मा को निमंत्रण दिया जाता है । जबकि अंतिम संस्‍कार में देह तो होता है किन्‍तु उस देह में जीवन नहीं होता । बीच के सभी संस्‍कारों में देह एवं जीवन दोनों होता है । पहला एवं अंतिम संस्‍कार से इस बात की पुष्टि होती है कि जीवन का आधार तत्‍व आत्‍मा का अस्तित्‍व देह के पहले भी था और देह के बाद भी । जो देह हमारा पूर्वज रह चुका है वह नश्‍वर होने के कारण नष्‍ट हो गया है किन्‍तु उस देह में जो आत्‍मा थी वह तो वह अनश्‍वर होने के कारण आज भी विद्यमान है । इन्‍हीं मृत आत्‍माओं को याद करने का पर्व ‘महालया पक्ष’ है ।

महालया अमावस्‍या Mahalaya Amavasya

ऐसा भी नहीं कि अपने पूर्वजों को याद करने की प्रथा केवल भारतीय संस्‍कृति में है । यह प्रथा विश्‍व के ज्‍यादतर संस्‍कृति में प्रचलित है । जैसे ईसाई धर्म के अनुसार ‘ऑल सोल्‍स डे’ (all soul’s day) मनाने की परम्‍परा है, मैक्सिको में 10 नवम्‍बर को अपने पूर्वजों को याद किया जाता है । चीनी संस्‍कृति में भी यह परम्‍परा है ।

 ‘महालया पक्ष’ प्रतिवर्ष भाद्र पूर्णिमा से अश्विन मास के अमावस्‍या तक मनाया जाता है । अश्विन मास के अमावस्‍या को ही महालया अमावस्‍या कहते हैं । इसे अश्विन मास के कृष्‍ण पक्ष भर पूरे दिन मनाया जाता है इसलिये इसे पितृ पक्ष भी कहते हैं । इसका समापन अमावस्‍या के दिन होता है इस लिये पूरे पक्ष को ही महालया अमावस्‍या के नाम से जाना जाता है । 

इसे मनाने के पीछे कई धारणाएं प्रचलित है । एक धारणा के अनुसार मृत आत्‍मा अपने जीवन काल में अपने देह से जो भी कार्य किया है वह कार्य दो भागों में बंट जाता है एक अच्‍छे कार्य जिसे पुण्‍य कर्म कहा गया तथा दूसरा बुरे काम जिसे पाप कर्म कहा गया । 

मृतात्‍मा जिसे जीव भी कहते हैं, अपने जीवन काल में और जीवनकाल के पश्‍चात भी इन कर्मो का परिणाम पाता है । पुण्‍य कर्म से उसे सुख भोग अर्थात स्‍वर्ग की प्राप्ति होती है और पाप कर्म से  दुख भोग अर्थात नर्क की प्राप्ति होती है । 

इस भोगफल का समय समाप्‍त होने के पश्‍चात ही उसे अगला जीवन नया देह मिलता है । बिना देह का जीव केवल भोगफल प्राप्‍त कर सकता है चाहे सुख मिले चाहे दुख । वह कोई कर्म नहीं कर सकता । लेकिन उस जीव के निमित्‍त उनके वंशज जो अभी जीवित हैं कुछ कर्म कर सकते हैं । यदि उस जीव का वंशज कोई सतकर्म करेगा तो उसका दुख कम हो जाता है । 

इसी मान्‍यता के आधार वंशज अपने पूर्वज के प्रसन्‍नता के लिये तर्पण आदि कर्म करते हैं । जब पूर्वज की आत्‍मा तृप्‍त होती है तो वह अपने वंशज को आर्शीवाद देता है ।

एक धारणा के अनुसार हमारे पूर्वज अपने जीवन काल में हमारे लिये कोई न कोई प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष कार्य किये होते जिनसे हमारा जीवन सुगम हुआ है । उनके इस उपकार के प्रति कृतज्ञता दिखाने के लिये यह पर्व मनाया जाता है । इससे पूर्वजों का आशीष प्राप्‍त होता है ।

महालया अमावस्‍या मनाने की परम्‍पराएं – Traditions of celebrating Mahalaya Amavasya

इस परम्‍परा के अनुसार हमारे पूर्वज हिन्‍दी महीने के जिस तिथि को देह त्‍याग किये होते हैं, पितृपक्ष के उसी तिथि को उसके निमित्‍त श्राद्ध या तर्पण किया जाता है । जैसे कोई पूर्वज एकम तिथि को देह त्‍याग किया है तो उसके निमित्‍त पितृ पक्ष अर्थात अश्विन मास के एकम को उस पूर्वज के लिये श्राद्ध किया जाता है । 

हमारे पूर्वजों की सूची कितनी लंबी है किसी को ठीक-ठीक पता नहीं हो सकता । निश्चित रूप से प्रत्‍येक तिथि में कोई न कोई पूर्वज देह त्‍यागा किया ही होगा । इसलिये पितृ पक्ष के प्रत्‍येक तिथि को अपने पूर्वजों का तर्पण करके उनका श्राद्ध करते हैं । उनके याद में उनकी रूचि का भोजन गरीबों को कराया जाता है । उनके रूचि के सामान दान किये जाते हैं ।

 देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में कुछ भिन्‍नता के साथ इसे किया जाता है । कुछ क्षेत्रों में तर्पण की क्रिया की जाती है और महालया अमावस्‍या के दिन विशेष पूजन कर गरीबो को अथवा ब्राह्मणों को दान दिया जाता है ।

मध्‍य भारत के राज्‍यों में पितृपक्ष में अपने घर के छप्‍पर के ठीक नीचे लगभग छप्‍पर के लंबाई के बराबर और एक हाथ की चौड़ाई में प्रतिदिन गोबर पानी से लिप कर उस पर चावल आटे से चौक बनाया  जाता है । फिर इस पर पुष्‍प बिखेर दिया जाता है । यह क्रिया पितरो के स्‍वागत के लिये किया जाता है । कुछ मान्‍यता के अनुसार पितर कौआ के रूप में मुंडेर में बैठता है इसलिये छप्‍पर के नीचे उनका स्‍वागत किया जाता है । 

प्रतिदिन नदि या तालाब में जाकर तर्पण किया जाता है । घर के देवकक्ष में पितरो के निमित्‍त उड़द का बड़ा और चावल आटे के घोल में मीठा गुड़ मिलाकर बनाये जाने वाला व्‍यंजन चिला का भोग लगाया जाता है । इसे पितरों के निमित्‍त अग्नी में होम के रूप में समर्पित करते हैं । अंतिम दिन अर्थात महालया अमावस्‍या को इन व्‍यंजनों के अतिरिक्‍त खीर-पुड़ी का भी भोग लगाया जाता है ।

 पितृपक्ष में श्राद्धकर्ता को व्‍यसन से दूर ब्रह्मचर्य जीवन व्‍यतित करना चाहिये । इन दिनों मांसाहार वर्जित रहता है । क्षौर क्रिया अर्थात नाखून-बाल बनाना भी वर्जित होता है ।

महालया अमावस्‍या Mahalaya Amavasya

श्राद्ध तर्पण क्‍या है – What is Shraddha Tarpan?

 पितरो के लिये श्रद्धा पूर्वक किये जाने वाले मुक्ति कर्म को श्राद्ध तथा इस क्रिया को तर्पण कहते हैं । तर्पण एक प्राचीन परम्‍परा है जिसके अनुसार मृत आत्‍मा के वंशज, जीवित परिजन उनके लिये करते हैं । इस परम्‍परा में बहती हुई जल धारा अथवा तालाब के जल में खड़े होकर अपने हाथों में तील, जवा आदि लेकर हथेली में जल भर कर आप तृप्‍त हो जाएं, आप तप्‍त हो जाएं ऐसा तीन बार बोल कर हथेली के जल आदि को जल में गिरा दिया जाता है, इसी क्रिया को तर्पण कहते हैं ।

महालया अमावस्‍या का महत्‍व – Significance of Mahalaya Amavasya

वैदिक मान्‍यता के अनुसार पूर्वजों के द्वारा किये गये कार्यो का परिणाम आने वाली पीढी पर पड़ने वाले अशुभ प्रभाव को पितृदोष कहते हैं । पितृ दोष के कारण वंशानुगत मानसिक और शारीरिक रोग और शोक हो सकते हैं । श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करने से इस दोष का निवारण होता है । वंशज पितृदोष के कारण होने वाले कष्‍टों से मुक्‍त हो जाता है ।

श्राद्ध कर्म करने से पितृऋण से मुक्‍त हुआ जा सकता है । श्रद्धा पूर्वक किये गये श्राद्ध से पितृगण तृप्‍त होते ही होते हैं इनके अतिरिक्‍त ब्रह्मा, रूद्र, इंद्र, अश्विनीकुमार, सूर्य, अग्नि, अष्‍टवसु आदि देवताओं के साथ-साथ भूत प्राणी भी तृप्‍त होते हैं ।  ये सभी तृप्‍त होकर, प्रसन्‍न होकर श्राद्ध करने वाले को आयु, पुत्र, धन-धान्‍य, यश-कीर्ति आदि का आर्शीवाद देते हैं ।

इस क्रिया का व्यवहारिक महत्‍व यह होता है जब संतान अपने माता-पिता को अपने पूर्वजों को याद करते हुये देखता है । पूर्वजों के प्रति अपने माता-पिता श्रद्धा और विश्‍वास को देखता है तो उस संतान के बाल मन में अपने माता-पिता के प्रति सहज ही प्रेम और श्रद्धा पैदा हो जाता है । इससे परिवार में खुशी का माहौल बनता है । परिवार सुखमय होता है ।

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References
महालया अमावस्‍या Wikipedia
Mahalaya Amavasya Wikipedia

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