‘असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योर्तिगमय’
पवमान मंत्र के नाम से प्रसिद्ध यह भारतीय उपनिषद का ध्येय वाक्य है । इस मंत्र में असत्य से सत्य की ओर और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की कामना ईश्वर से की गई है । पूरी भारतीय संस्कृति में सत्य को ही ईश्वर माना जाता है और ज्योति को ईश्वर का बिम्ब माना जाता है ।
व्यवहरीक रूप से अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का अर्थ हर प्रकार के सांसारिक दुखो से निवृत्ति का कामना करते हुये सुख, आनंद रूपी प्रकाश की कामना करना है ।
सत्य की विजय और दुखों के विनाश पर दीप जला कर प्रकाश करके अपनी खुशियों को प्रदर्शित करने का पर्व ‘दीपावली’ भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है । इस पर्व को भारत के बहुसंख्यक हिन्दूओं के अतिरिक्त सिक्ख, बौद्ध, जैन धर्म द्वारा भी श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है । इस पर्व को भारत का प्रमुख पर्व माना जाता है ।
इस पर्व की खुशी इतनी अधिक होती है इसके खुशी से कोई अलग नहीं हो सकता यही कारण है कि देश के अन्य धर्म ईसाई, मुस्लिम धर्म के लोग भी इस पर्व की खुशी में सरोबर देखे जा सकते हैं । यह पर्व आस्था के साथ-साथ खुशियों का पर्व है । जिसमें बच्चों से बुर्जर्गो तक महिला-पुरूष सभी को आनंद का अनुभव होता हैं ।
दीपावली का पर्व भारत के सीमा से बाहर भी नेपाल, श्रीलंका म्यनमार, मारिशस, गुयाना, सिंगापुर जैसे कई देशों में मनाया जाता है । इस पर्व की चमक पूरे विश्व में देखी जा सकती है विशेषकर ब्रिटेन, आस्टेलिया, अमेरिका जैसे देश जहां भारतीय मूल के लोगों के साथ अन्य लोग भी इस पर्व को खुशी-खुशी मनाते हैं ।
दीपावली कब मनाया जाता है – When is Diwali celebrated?
दीपावली वास्तव में पॉंच पर्वो का एक समूह है जिसे पॉंच दिनों तक मनाया जाता है । इन पॉंचों दिनों के मध्य में लक्ष्मी पूजा को दीवाली कहते हैं । इसी के नाम पर इस पूरे पर्व समूह का नाम दीपावली पड़ गया है । दीपावली का पर्व विक्रमसंवत के काल गणना के अनुसार चंद्रमास कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल द्वितिया तक पूरे पॉंच दिनों तक चलता है ।
किन्तु मुख्य पर्व कार्तिक माह के अमावस्या तिथि को मनाई जाती है, जो ग्रेगोरी कलेण्डर के अनुसार अक्टूबर-नवम्बर के मध्य पड़ता है । पॉंचों दिनों के पर्व को अलग-अलग नाम से जाना जाता है ।
पहले दिन- %A ार्तिक माह के कृष्ण त्रय8Bदशी को धनतेरस,
दूसरे दिन- कार्तिक कृष्ण के चौदहवीं तिथि को यमचतुर्दश या नरक चौदस और
तीसरे दिन- कार्तिक अमावस्या को मुख्य त्यौहार के रूप में दीपावली मनाया जाता है, इसे दिवाली भी कहते हैं ।
चौथे दिन- कार्तिक शुक्ल एकम को अन्नकूट या गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है अंतिम
पॉंचवें दिन- कार्तिक शुक्ल द्वितिया को भाईदूज के नाम से मनाया जाता है ।
दीपावली क्यों मनाया जाता है – Why is Diwali Celebrated?
चूँकि यह पॉंच पर्वो का समूह है प्रत्येक पर्व को मनाने का अपना-अपना एक अलग कारण है । नेपाल, लंका जैसे कुछ देश भारत के समान पांच दिनों तक मनाते हैं शेष स्थान पर केवल दिवाली को ही विशेष तौर से मनाते हैं । भारत में पांच दिनों के पर्व मनाने के अपने पौराणिक कारण हैं जिसके अनुसार-
- धनतेरस के दिन आयुर्वेद के जनक भगवान धनवंतरी के जन्म दिवस के रूप में धनतेरस का पर्व मनाते हैं । मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान धनवंतरी की पूजा करने से स्वास्थ्य धन की प्राप्ति होती है ।
- चौदस के दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक दैत्य का संहार किया था इसके याद में इस पर्व को मनाते हैं । एक दूसरी कथा के अनुसार इस दिन रन्तिदेव नामक राजा ने नरक चतुर्थी का व्रत कर नरक से बचने का उपाय किया । इसी कारण इस दिन नरक से बचने के लिये यमराज की पूजा करने का विधान है ।
- कार्तिक अमावस्या के दिन समुद्रमंथन से धन की देवी माता लक्ष्मी प्रकट हुई थी । इस कारण उसके प्रकटोत्सव के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है । लोग इस दिन माता लक्ष्मी को प्रसन्न कर धन-धान्य की कामना करते हैं ।
- कार्तिक शुक्ल एकम को अन्न कूट या गोवर्धन पूजा के रूप में मनाते हैं क्योंकि मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान कृष्ण ने इन्द्र के प्रकोप से गोकुल को बचाने के लिये गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगलियों में उठा लिया था ।
- कार्तिक शुक्ल द्वितिया को भाई दूज के रूप में मनाते हैं । मान्यता के अनुसार इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना के यहॉं बहुत दिनों बाद भोजन किये थे । इस खुशी में यमुना को वरदान दिये कि इस दिन जो भी भाई-बहन एक साथ तुम्हारे जल में स्नान करेंगे उसे यमलोक नहीं जाना पड़ेगा ।
दीपावली मनाने का विशेष कारण – Special reason for celebrating Diwali
- लोकमान्यता के अनुसार दीपावली का पर्व भगवान राम द्वारा रावण वध करके चौदह वर्षो बाद अयोध्या आग मन होने पर अयोध्यावासियों द्वारा दीप जला कर भगवान का स्वागत किया गया पूरे पांच दिनों तक अयोध्या में यह उत्सव चलता रहा । तब से लेकर आज तक पांच दिनों तक दीप जला कर, पटाके जला कर उसी प्रकार खुशी मनाते हैं जिस प्रकार अयोध्या में भगवान राम का स्वागत किया गया ।
इसी कारण को प्राय: सभी लोग दीपावली मनाने का सही कारण मानते हैं । किन्तु व्यवहार में इस दिन भगवान राम की पूजा से अधिक माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है जो इस दिन माता लक्ष्मी के प्रकटोत्सव के रूप मनाने के कारण को इंगित करता है ।
- जैन धर्म के अनुसार इस दिन भगवान महावीर का निर्वाण दिवस है । इसलिये इसे इसी रूप में मनाते हैं ।
- सिक्ख धर्म के अनुसार इस दिन अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था ।
दीपावली किस प्रकार मनाया जाता है – How is Diwali celebrated?
दीपावली का पर्व वर्षा ऋतु के समाप्ति और शरद ऋति के आगमन के समय मनाया जाता है । इस कारण बरसाती गंदगी को साफ करने के लिये घरों, दुकानों आदि की साफ-सफाई, रंग-रोगन करके घरों को सजाया जाता है । पूरे वर्ष में कम से कम एक बार दीपावली के अवसर पर घरों की साफ-सफाई की जाती है । घरों को सजाया जाता है ।
पर्व प्रारंभ होने पर प्रतिदिन घरों के आंगन में, घरों के बाहर मुख्य द्वार के पास रंगोली बनाई जाती है । घरों में रोशनी किया जाता है । बच्चे पटाके जला कर आतिशबाजी करते हैं ।
धन तेरस के दिन लोग नये-नये समान खरीदते हैं विशेष कर इस दिन बर्तन ख़रीदा जाता है । हर कोई अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ नये समान जैसे भड़वा-बर्तन, मोटर-गाडी, सोने-चांदी के गहने आदि खरीदते हैं । शाम के समय घरों में रोशनी किया जाता है । मुख्य द्वार के पास तेरह की संख्या में मिट्टी का दीपक जलाया जाता है ।
नरक चौदस के दिन संध्या के समय घर के सामने चौदह की संख्या में दीपक जला कर यमदेव की पूजा कर नरक से बचाने के लिये प्रार्थना करते हैं ।
अमावस्या के दिन लक्ष्मी की पूजा की जाती है । दीपावली का यही मुख्य दिवस होता है। इस लिये आज का दिन विशेष होता है । लोग ख़रीददारी भी करते हैं । शाम के समय घरों में माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित कर अपने सामर्थ्य अनुसार पंचोपचार, षोडषोपचार पूजा करते हैं । नाना प्रकार से भोग लगाते हैं विशेष कर बताशों का प्रसाद चढ़ाया जाता है ।
पूरे परिवार में, गॉंव में, देश में खुशी का माहौल होता है । लोग एक दूसरे घर दीपक दान करते हैं । देवालयों में, प्रतिष्ठानों में रोशनी करते हैं, दीपक जलाते हैं । अमावस्या का अंधियारा इस जगमगाती रोशनी से जैसे गायब हो जाता है । चारों ओर पटाकों का शोर मन को आहलादित करता है । आज का दृश्य इतना मनोहारी होता है कि बस देखने वाला ही इसका अनुभव कर सकता है शब्दों में व्यक्त करना कठिन है ।
चौथे दिन गोधन की पूजा की जाती है । इस दिन गाय के गोबर से गौशला में पुतला बनाते हैं जो गोवर्धन पर्वत का प्रतिक होता है । इस प्रतिक रूपी गोवर्धन का और गौधन का एक साथ पूजा किया जाता है । ग्रामीण क्षेत्रों में इसी पर्व को बड़ा पर्व के रूप में मनाया जाता है क्योंकि कृषि प्रधान लोगों के लिये गौधन का महत्ता अधिक होता है ।
पांचवे दिन भैय्या दूज या भाई दूज के रूप में मनाया जाता है । इस दिन बहने अपने भाइयों के रूचि के कलेवा बनाती हैं फिर भाइयों की पूजा करके उसे स्नेह से भोजन करातीं हैं । इसके बदले में भाई अपने बहन को उपहार भेंट करते हैं । इसी दिन यमुना नदी में भाई-बहन एक साथ हाथ पकड़ कर डुबकी भी लगाते हैं ।
दीपावली पर्व का महत्व – Importance of Diwali
दीपावली को व्यापक क्षेत्र में व्यापक जन समुदाय द्वारा मनाया जाता हैं । भारत ही नही भारत के बाहर भी इस पर्व का विशेष महत्व है । मुख्य रूप से यह पर्व लोगों में ख़ुशियाँ भरता है । लोग इस त्यौहार पर बहुत ज्यादा प्रसन्न होते हैं । अपने आर्थिक स्थिति के अनुसार हर कोई इस पर्व को अपने-अपने तरीके से मनाते हैं किन्तु एक बात सभी में समान रूप से देखी जा सकती है सभी में ख़ुशियाँ एक समान होती है ।
धार्मिक दृष्टिकोण से इस पर्व का विशेष महत्व होता है । मर्यादा पुरूषोत्तम राम जो भारतीय जीवन का आदर्श पुरूष के राज्योत्सव चीरस्थाई बनाने के लिये इस पर्व को मनाया जाता है । ‘राम राज्य’ की कल्पना आज भी की जाती है । जीवन के लिये आवश्यक सभी मूलभूत आवश्यकताओं के लिये उनके अराध्य देव की पूजा का विधान इस पर्व में देखने को मिलता है ।
मनुष्य जीवन के लिये सबसे पहले स्वास्थ्य चाहिये जिससे वह पुरूषार्थ कर सके इसके लिये स्वास्थ्य के देवता धनवंतरी की पूजा की जाती है । नरक चौदक नरक न जाने की कामना से की जाती है जो लोगों को सतकर्म करने की प्रेरणा देती है ।
जीवन धन के बिना संभव नहीं है । जीवन के हर छोटे-बडे आवश्यकता की पूर्ति धन से ही संभव है इस महत्व के साथ धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है । कृषि प्रधान देश में आजीविका का मुख्य साधन कृषि होने के कारण अन्नकूट का पर्व मना कर गोधन की पूजा की जाती है । अंत में भाई-बहनों के स्नेह को बनाये रखने के लिये भाईदूज मनाया जाता है ।
सामाजिक समरसता के दृष्टिकोण से यह पर्व महत्वपूर्ण है । हांलाकि यह पर्व हिन्दूओं का पर्व है किन्तु व्यवहार में इसे सभी धर्मों के द्वारा मिलजुल कर मनाया जाता है । इससे भाईचारा बढ़ता है । लोग एक दूसरे के सहयोग के लिये तत्पर होते हैं । इस प्रकार इस पर्व से विविधता में एकता का मूल मंत्र स्थापित होता है ।
सांस्कृतिक रूप से भी यह पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि विशाल भारत के भू-भाग क्षेत्र में अलग-अलग प्रकार से दीपोत्सव मनाया जाता है । देश से बाहर भी इस पर्व को मनाने के कारण विविध संस्कृतियों के दर्शन एक साथ हो जाते हैं।
आर्थिक दृष्टिकोण से इस पर्व का विशेष महत्व है । त्यौहार के पहले घरों मे सफाई, रंगाई की जाती है जिसके लिये बाजार में रौनक होता है । इस पर्व का पहला दिन धनतेरह खरीददारी करने का ही पर्व है । दीपावली के दिन भी ख़रीददारी की जाती है । एक अनुमान के अनुसार लोगों द्वारा सालभर में किये जाने वाले खरीदी के लिये किये जाने वाले व्यय राशि के 20 से 25 प्रतिशत इसी पर्व के आसपास व्यय होता है । इसी कारण व्यापार जगत भी इस पर्व को विशेष रूप से मनाता है ।
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