- Special festival of Tamil Hindus- तमिल हिंदुओं का खास त्योहार
- Worshipping Murugan- मुरुगन की अराधना का पर्व
- Mythological significance- पौराणिक महत्व
- Story of Kavadi Attam-कावड़ी अत्तम की कहानी
- Thaipusam in India-भारत में थाईपुसम
- Thaipusam is celebrated in many Countries- कई देशों में मनाया जाता है थाईपुसम
भारत में सभ्यताओं का इतिहास काफी पुराना है। जिनके मूल में हमेशा वो सांस्कृतिक परंपराएं रहीं हैं, जिसका प्रत्येक समुदाय आज तक निर्वहन करता आया है। इसी तरह त्योहार भी इन सभ्यताओं के अभिन्न अंग रहे हैं। आधुनिक काल में मनाए जाने वाले हर त्योहार का जिक्र वेदों और उपनिषदों में मिलता है। कुछ त्योहारों को समूचा देश मिल-जुल कर मनाता है, तो कुछ त्योहार किसी क्षेत्र और समुदाय के लोगों में ही प्रख्यात होता है। इसी कड़ी में एक नाम दक्षिण भारत के मशहूर त्योहार थाईपुसम का भी है।
Special festival of Tamil Hindus- तमिल हिंदुओं का खास त्योहार
तमिलनाडू में हर साल मनाए जाने वाला थाईपुसम मुख्य रूप से तमिल समुदाय का त्योहार है। थाईपुसम शब्द थाई और पुसम को मिला कर बना है। तमिल कैलेंडर के अनुसार थाई माह (जनवरी-फरवरी) में पूर्णिमा की रात से इस त्योहार की शुरूआत होती है। इस रात आसमान में चमकने वाले वाले पुष्य तारे को तमिल भाषा में पुसम कहा जाता है। पूर्णिमा की रात से शुरू हुआ यह पर्व अगले 10 दिनों तक चलता है।
थाईपुसम तमिल हिंदुओं के खास त्योहारों में से एक है, जिसे देश-विदेश में फैले तमिल समुदाय द्वारा धूम-धाम से मनाया जाता है। भारत में यह त्योहार प्रमुख रूप से तमिलनाडू और केरल के कुछ भाग में मनाया जाता है, वहीं श्रीलंका, मलेशिया, मॉरिशस, सिंगापुर, दक्षिण अफीका, इंडोनेशिया सहित कई देशों में थाईपुसम के दौरान भव्य आयोजन किए जाते हैं।
Worshipping Murugan- मुरुगन की अराधना का पर्व
थाईपुसम भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का पर्व है। कार्तिकेय तमिल समुदाय के लोकप्रिय देवता है, जिन्हें दक्षिण भारत में मुरुगन के नाम से पुकारा जाता है।
इस दिन मुरुगन के मंदिर में लाखों की तदाद में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। मान्यता है कि पीला रंग मुरुगन का सबसे पसंदीदा रंग है। इसीलिए थाईपुसम के दिन भक्त रंग के कपड़े पहनते हैं और मुरुगन को पीला फूल चढ़ा कर उनकी अराधना करते हैं।
इस दौरान कुछ लोग कावड़ यात्रा भी निकालते हैं, जिसे तमिल परंपरा में ‘छत्रिस’ कहा जाता है। इस छत्रिस में दूध के बर्तन या मटके बँधे होते हैं। यही नहीं कई भक्त मुरुगन के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा दर्शाने के लिए अपनी त्वचा, जीभ या गाल में सुई से छेद कर और कठोर छत्रिस यात्रा कर मुरुगन के दर्शन करने जाते हैं।
थाईपुसम के आगाज के साथ ही मंदिर मुरुगन के जयघोष से गूंज उठते हैं। इस दौरान भव्य कार्यक्रमों का आयोजन करने के साथ ही लोक नृत्य का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें लोग “वेल वेल शक्ति वेल” का जाप करते हैं।
Mythological significance- पौराणिक महत्व
भारत में मनाए जाने वाले ज्यादातर त्योहारों के तार वेदों और पुराणों के पन्नों से जुड़े होते हैं। यही कारण है कि वैदिक काल से चली आ रही परंपराओं का लोग पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ पालन करते हैं। थाईपुसम भी इन्हीं त्योहारों में से एक है।
स्कन्द पुराण में थाईपुसम और इसकी पौराणिक कथाओं का उल्लेख मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवताओं और असुरों में युद्ध का आरंभ हुआ, जिसमें असुरों ने देवताओं को परास्त कर दिया। दरअसल असुरों के राजा तारकासुर ने शिव की घोर तपस्या कर महादेव से राजत्व और अमर रहने का वरदान प्राप्त किया था। तारकासुर को मिल वरदान के कारण उसे शिवपुत्र के अलावा कोई नहीं मार सकता था।
यही कारण है कि देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ने पर तारकासुर को परास्त करना देवताओं के लिए असंभव बन गया और इस युद्ध में असरों की विजय हुई।
युद्ध में पराजित होने के बाद दवताओं ने महादेव से मदद की गुहार लगाई। देवताओं के आग्रह पर महादेव और आदिशक्ति पार्वती की शक्तियों से स्कंद नामक एक महान योद्धा का जन्म हुआ। जिन्हें कार्तिकेय के नाम से जाना गया।
कार्तिकेय को महादेव ने स्वयं युद्ध का प्रशिक्षण दिया। जिसके बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया और पुनः शांति का स्थापना की। कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति नियुक्त कर दिया गया। तब से थाईपुसम भगवान कार्तिकेय की विजय और बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।
तमिल मान्यताओं के अनुसार भगवान मुरुगन महादेव के ज्ञान तथा प्रकाश का प्रतीक हैं, जो अपने पिता के सभी नियमों का पालन करते हैं। साथ ही मुरुगन जीवन में किसी भी तरह के संकटों से मुक्ति पाने की शक्ति प्रदान करते हैं। थाईपुसम के त्योहार का मुख्य मकसद लोगो को इस बात का संदेश देना है कि यदि ईश्वर में भक्ति को बनाते हुए अच्छे कर्म किए जाएं तो बड़े से बड़े संकटो पर विजय हासिल की जा सकती है।
भगवान मुरुगन के प्रति समर्पित यह त्योहार जीवन में नयी खुशहाली लाने का कार्य करता है। थाईपुसम का पर्व न सिर्फ देश औरविदेशों में भी बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। थाईपुसम के दिन भगवान मुरुगन के भक्तों की इस कठोर भक्ति को देखने के लिए कई विदेशी सैलानी भी आते है।
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Story of Kavadi Attam-कावड़ी अत्तम की कहानी
थाईपुसम मनाने के पीछे स्कंद पुराण वर्णित कार्तिकेय की कथा के अलावा भी एक कथा खासी प्रख्यात है, जिसे ‘कावड़ी अट्टम’ कथा के नाम से जाना जाता है।
इस कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अगस्त ऋषि को भारत के दक्षिणी भाग में दो पर्वत स्थापित करने का आदेश दिया। भगवान शिव के आज्ञानुसार अगस्त ऋषि ने दक्षिण भारत के एक घने जंगल में शक्तिगीरी पर्वत और शिवगीरी पर्वत स्थापित किया। पर्वत स्थापित करने के बाद इन्हें सही जगह पर ले जाने का काम अपने शिष्य इदुमंबन को सौंप दिया।
ऋषि अगस्त के जाने के बाद उनके शिष्य इदुमंबन ने पर्वतों को उठाना चाहा लेकिन वे अपनी जगह से ठस से मस नहीं हुए। तब इदुमंबन ने ईश्वर से सहायता मांगी। आखिरकार इदुमंबन ने पर्वतों को उठा लिया। काफी दूर तक चलने के बाद दक्षिण भारत के पालनी नामक स्थान पर इदुमंबन विश्राम करने के लिए रूके।
कुछ देर आराम करने के बाद जब इदुमंबन पर्वतों को फिर से उठाना चाहा लेकिन वे फिर नहीं उठे तो उन्होंने एक राहगीर से मदद माँगी। उस राहगीर ने मदद से इंकार किया तो इदुमंबन ने उसको का आह्ववाहन दिया। दोनों में भयंकर युद्ध छिड़ गया, जिसमें इदुमंबन की मृत्यु हो गई।
दरअसल वह राहगीर कोई और नहीं बल्कि भगवान कार्तिकेय थे, जो अपने अनुज गणेश से एक प्रतियोगिता हारने के बाद क्रोध में कैलाश छोड़ कर दक्षिण भारत के पालनी नामक स्थान पर चले आए थे।
इदुमंबन की मृत्यु के बाद भगवान शंकर स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने इदुमंबन को फिर से जीवित कर दिया। तब इदुमंबन ने पालनी नामक स्थान को कार्तिकेय को समर्पित कर दिया।साथ ही उन्होंने आशीर्वाद दिया कि, जो व्यक्ति भी इन पर्वतों पर बने मंदिर में कावड़ी लेकर जायेगा, उसकी इच्छा अवश्य पूरी होगी।
यह कथा दक्षिण भारत में ‘कावड़ी अट्टम की कथा’ के नाम से मशहूर है। मान्यता है कि इस घटना के बाद हर साल थाईपुसम के दस्तक देते ही लाखों की तदाद में भक्त तमिलनाडु के पिलानी स्थित भगवान मुरुगन के मंदिर में कावड़ ले कर जाते हैं। इसी दिर परिसर में इंदुमबन की समाधि भी बनी हुई है। माना जाता है कि इदुमंबन की समाधि के दर्शन के बिना भगवान मुरुगन की पूजा अधूरी होती है अर्थात उनकी समाधि के दर्शन के बाद ही थाईपुसम की पूजा पूरी मानी जाती है।
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Thaipusam in India-भारत में थाईपुसम
दस दिनों तक चलने वाले थाईपुसम देश में मुख्य रूप से तमिलनाडू और केरल के कुछ भागों में मनाया जाता है। इस दिन तमिलनाडू में पिलानी स्थित श्री धांडायुथपानी मंदिर में भव्य आयोजन किया जाता है। यह मंदिर दक्षिण भारत में मुरुगन मंदिर के नाम से मशहूर है। इसके अलावा तमिलनाडू और केरल के कई मंदिरों में थाईपुसम का पर्व बेहद धूम-धाम से पूरे रीति-रिवाज के साथ मनाया जाता है।
इस दस दिवसीय महोत्सव को दक्षिण भारत में ब्रह्मोत्सव कहा जाता है। थाईपुसम के एक दिन पहले थिरुकल्याणम् यानी विवाह समारोह का भी आयोजन किया जाता है।
थाईपुसम के दौरान ‘तमिल हिंदु थीरोट्टम’की रसम अदा करते हैं। इस रसम में भगवान मुथुकुमारस्वामी थंगा गुथिराई वाहनम् (सोने का घोड़ा), पेरिया थंगा माइल वहनम् (सोने का मोर) औरथेपोट्टसवम् (फ्लोट फेस्टिवल) चढ़ा कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
इसके अलावा थाईपुसम का पर्व मदुरै के मीनाक्षी मंदिर, श्री मीनाक्षी सुन्देश्वरा थेपोट्टसवम् मंदिर, मयलापोर कपालेश्वर मंदिर में सहित दक्षिण भारत के कई मंदिरों में परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है।
Thaipusam is celebrated in many Countries- कई देशों में मनाया जाता है थाईपुसम
थाईपुसम का त्योहार जितनी धूम-धाम से भारत में मनाया जाता है, उतने ही हर्षोल्लास से दुनिया के कई देशों में भी मनाया जाता है।
मलेशिया में थाईपुसम के अवसर पर सार्वजिनक छुट्टी होती है। यहां स्थित बाटू गुफा, अरुलमिगु बालाथंडायुथपानी मंदिर, नट्टूकोट्टयी चेट्टियार मंदिर सहित कई जगहों पर न सिर्फ कई श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं बल्कि देश-विदेश से कई पयर्टक भी इस पर्व का लुत्फ उठाने आते हैं।
सिंगापुर में भारतीय मूल के तमिल हिन्दू सुर्योदय होते ही श्री श्रीनिवासा पेरुमल मंदिर में मुरुगन के दर्शन करने पहुँच जाते हैं। यहाँ से कई भक्त कावड़ लेकर चार किलोमीटर पर स्थित श्री थेंडायुथपानी मंदिर तक का सफर तय करते हैं। जहाँ मुरुगन को कावड़ में लाया गया दूध अर्पित किया जाता है।
अमूमन थाईपुसम दुनिया की कई जगहों पर बेहद धूम-धाम से मनाया जाता है लेकिन इस पर्व पर सबसे भव्य आयोजन मॉरिशस के कोविल मोंटेगने यानी श्री शिवा सुब्रमण्यम् थिरुकोविल मंदिर में किया जाता है। इसके अलावा पास में स्थित शेसेल्स तथा रियूनियन द्वीप पर भी थाईपुसम काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केप टाउन सहित कई देशों मसलन डरबन, फिजी के नाडी शहर में सहित दुनिया के कई देशों में थाईपुसम का त्योहार मनाया जाता है।
इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप खासकर मेदान में स्थित श्री सियोप्रमानेम नागारट्टर मंदिर में तमिल हिन्दू पूरे विधि-विधान के साथ मुरुगन का अराधना करते हुए थाईपुसम का पर्व मनाते हैं। थाईपुसम के मौके पर इंडोनेशिया के कैम्पंग मद्रास में स्थित श्री मारियाम्मान मंदिर पूरे 10 दिन तक 24 घंटे के लिए खुला रहता है।
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के मशहूर राज्य कैलीफोर्निया में भी भारतीय मूल के तमिल समुदाय थाईपुसम का पर्व मनाते हैं। कैलीफोर्निया में थाईपुसम मनाने का तरीका काफी अनोखा है। यहां लोग मंदिर में पूजा करने तो जाते ही हैं, साथ ही यहां थाईपुसम पर कई किलोमीटर तक पैदल चलने का अनूठा प्रचलन हैं।
कुछ लोग फ्रीमोंट से 74 किलोमीटर, कुछ सेन रेमोन से 34 किलोमीटर तो कुछ लोग वॉलनट क्रीक से 11 किलोमीटर तक चलकर कैलीफोर्निया के कॉनकार्ड स्थित शिव मुरुगन मंदिर पहुँचते हैं और भगवान मुरुगन की अराधना करते हैं। कई किलोमीटर तक चल कर शिव मुरुगन मंदिर पहुँचने की इस प्रथा में हर साल लगभग दो हजार लोग हिस्सा लेते हैं और पूरी श्रद्धा के साथ सभी परंपराओं को पूरा करते हुए भगवान मुरुगन से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
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Reference-
2020, Thaipusam, Wikipedia
2020, Thaipusam, Kavadi Aattam, Wikipedia