Putthandu festival is special for Tamil community- तमिल समुदाय के लिए खास है पुत्थांडु का पर्व

नए साल का जश्न हर मुल्क, क्षेत्र और समुदाय के लिए खास होता है। जहाँ जॉर्जियन कैलेंडर के अनुसार पूरी दुनिया में नए साल का जश्न 1 जनवरी को मनाया जाता है, वहीं हिन्दुस्तान में नव वर्ष चैत्र और वैशाख माह ( मार्च और अप्रैल महीना) में मनाया जाता है।

देश के हर राज में नव वर्ष का पर्व अलग-अलग दिनों में विभिन्न नामों और परंपराओं के अनुसार मनाते हैं। हिंदी नव वर्ष का पर्व चैत्र नवरात्री के पहले दिन, तो बैसाखी, पाहेला बेषाख सहित कई राज्यों में नव वर्ष वैशाख माह में मनाया जाता है। इसी कड़ी में एक नाम है तमिल नव वर्ष ‘पुत्थांडु’ का पर्व

तमिल नव वर्ष को पुत्थांडु या पुत्थुवरुशाम कहा जाता है। तमिल कैलेंडर के अनुसार तमिल नव वर्ष चिथिरई माह (अप्रैल महीना) के पहले दिन और जॉर्जियन कैलेंडर के अनुसार यह पर्व 14 जनवरी को मनाया जाता है। जिस समय तमिल समुदाय पुत्थांडु के रूप में तमिल नव वर्ष का महोत्सव मनाता है, उसी दिन उत्तर भारत में बैसाखी, केरल में विशु और पूर्वी भारत में पाहेला बेषाख के रूप में पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ नव वर्ष का त्योहार मनाया जाता है।

जहाँ दुनिया में सभी नव वर्षों के त्योहार पर भव्य आयोजन किया जाता है, वहीं दक्षिण भारत में मुख्य रूप से तमिलनाडू में पुत्थांडु के पर्व को पारिवारिक समारोह के तौर पर मनाया जाता है। पुत्थांडु के दिन सार्वजनिक छुट्टी होती है, जिसमें परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे के साथ मिल-जुल कर पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार पुत्थांडु का त्योहार मनाते हैं।

पुत्थांडु का पर्व तमिलनाडू और पुदुचेरी के बाहर भी दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों सहित श्रीलंका, मलेशिया, मॉरिशस, लॉओस, कंबोडिया और सिंगापुर में भारतीय मूल के तमिल समुदीयों द्वारा खासे उत्साह के साथ मनाया जाता है।

Importance of puthandu in tamil community | Putthandu festival | तमिल समुदाय में पुत्थांडु का महत्व

 पुत्थांडु का पर्व
Putthandu festival

तमिल नव वर्ष का दिन तमिलनाडू में सार्वजिक छुट्टी के तौर पर मनाया जाता है। तमिल समुदाय में पुत्थांडु को परिवार के साथ मनाने की प्रथा है। इस दिन लोग सुबह स्नान के बाद घरों और मंदिरों में विधिवत पूजन के बाद पारंपरिक पकवान खाते हैं। जिसके सभी लोग पुत्थांडु का पूरा दिन अपने परिवार के सदस्यों के साथ मौज-मस्ती करते हुए बिताते हैं।

पुत्थांडु के दिन ही असम, पश्चिम बंगाल, केरल, मणिपुर, बिहार, उड़ीसा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में हिन्दी नव वर्ष, बैसाखी, पाहेला बेषाख और उगादि के रूप में नए साल का जश्न मनाया जाता है। इन सभी राज्यों में नव वर्ष का जश्न अपनी-अपनी परंपराओं के अनुसार पूरे रीति-रिवीजों के साथ मनाया जाता है।

वहीं पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार सहित दक्षिण पूर्वी एशियाई देश लाओस, कम्बोडिया, सिंगापुर और थाईलैंड में भी 14 अप्रैल को ही विभिन्न रीति-रिवाजों के अनुसार बहुत धूम-धाम के साथ नए साल का जश्न मनाया जाता है।

भारत सहित अन्य देशों में वैशाख के पहले दिन ही नव वर्ष मनाने के पीछे कुछ इतिहासकारों का मत है कि सभी देशों में एक साथ नव वर्ष मनाने की यह परंपरा सदियों पहले सिंधु घाटी सभ्यता के समय से चली आ रही है। सिंधु घाटी सभ्यता के बाद अस्तित्व में आए एशिया के दक्षिण पूर्वी देशों में यह सदियों पुरानी यह परंपरा महज कुछ बदलावों के साथ वर्तमान में भी उतनी ही अविरल बनी हुई है।

Celebration of Putthandu- पुत्थांडु का जश्न

Putthandu festival

तमिल सौर्य कैलेंडर पर आधारित चिथिरई माह के पहले दिन (14 अप्रैल) मनाया जाने वाले तमिल नव वर्ष को तमिल समुदाय पुत्थांडु और पुत्थुवरुशाम के नाम से विख्यात है, वहीं केरल सहित दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में इसे विशु भी कहा जाता है। हालांकि विशु और पुत्थांडु के पर्व के ज्यादातर रिवाज मिलते-जुलते हैं।

विशु की तरह पुत्थांडु के दिन भी सभी पारिवारिक सदस्य मिल-जुल कर घर की सफाई करते हैं और पूरे घर को सजाते हैं। इस दिन घरों के मिख्य द्वार, मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर रंग-बिरगें कच्चे चावल से खूबसूरत कोलम (रंगोली) बनाना काफी शुभ माना जाता है।

इस दिन तमिल समुदाय के सभी लोग एक-दूसरे को ‘पुत्थांडु वाझथुगल’ कहकर नए साल की शुभकामनाएँ देते हैं। सभी लोग सुबह स्नान के बाद नए वस्त्र पहन कर घरों में पूजा-अर्चना करते हैं, वहीं कुछ लोग आस-पास के मंदिरों में भी भगवान की उपासना करते हैं। पुत्थांडु के पर्व पर मदुरै में स्थित प्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर एक भव्य प्रदर्शनी लगायी जाती है, जिसे ‘चित्तिरई पोरुतकाटची’ कहते हैं। इस प्रदर्शनी को देखने के लिए दूर-दूर से बड़ी तदाद में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है।

वहीं कुम्बकोण्म के पास स्थित थिरुवदईमरुदुर में काफी बड़ी कार रेसिंग का आयोजन होता है। पुत्थांडु के दिन थिरुवदईमरुदुर की कार प्रतियोगिता काफी मशहूर है।इसके अलावा तमिलनाडू में तिरुचिरापल्ली और कांचीपुरम सहित कई अन्य जगहों पर भी पुत्थांडु का त्योहार काफी धूम-धाम से मनाया जाता है।

वहीं श्रीलंका में  पुत्थांडु के दिन को नए वित्तीय लेन-देन के लिए खासा शुभ माना जाता है। इस दिन कई लोग वित्तीय लेन-देन की रसम भी करते हैं, जिसे काई-विशेषम कहा जाता है। काई-विशेषम की रसम के अनुसार बच्चे सभी बड़ो से पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते हैं और बड़े आशीर्वाद के साथ बच्चों को पॉकेट मनी के रूप में कुछ पैसे देते हैं।

पुत्थांडु का दिन किसान समुदाय के लिए खास होता है। ज्यादातर किसान इस दिन खेतों की जुताई कर नई फसल का शुभारंभ करते हैं। श्रीलंका में इस प्रथा को अरपुदु कहते हैं, जिसमें पुत्थांडु के दिन किसान अपने-अपने खेतों को जोतने के बाद उसमें खाद डाल कर मिट्टी को उपजाऊ बनाने का कवायद है।

पुत्थांडु के पर्व पर श्रीलंका में कई जगहों पर पोर-थिंकई (नारियल युद्ध) नामक प्रतियोगिता आयोजित कराई जाती है।नारियल की लड़ाई वाली इस प्रतियोगिता में बड़ी सख्यां में युवक हिस्सा लेते हैं। वहीं श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी भाग में तमिल सुदाय के लोग बैल दौड़ प्रतियोगिता भी आयोजित करते हैं।

हर त्योहार की तरह पुत्थांडु के दिन भी तमिल समुदाय पारंपरिक पकवान के साथ नव वर्ष मनाते हैं। पुत्थांडु पर बनने वाले भोजन को मंगाई-पछड़ी कहते हैं। मंगाई-पछड़ी काफी हद तक उगादि (तेलगू नव वर्ष) और विशु (केरल नव वर्ष) पर बनने वाले पारंपरिक भोजन पछड़ी की तरह ही होता है।

पछड़ी की तरह मंगाई-पछड़ी भी कई चीजों मसलन नीम की पत्ती, मिर्च, कच्चा आम, नमक और हल्दी से बनाया जाता है। जिसके कारण इसका स्वाद थोड़ा मीठा, तीखा, खारा और नमकीन होता है।

मंगाई-पछड़ी का प्रसाद बनाने के पीछे तमिल समुदाय की मान्यता है कि इसके विभिन्न स्वाद की तरह ही आगामी वर्ष में लोग हर तरह के विभिन्न अनुभवों ( सुख, दुख, काम, क्रोध) को खुशी-खुशी और मिल-जुल कर स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। पछड़ी के अलावा तमिल नव वर्ष के दिन घरों में कई तरह के पकवान और मीठाईयाँ भी बनाई जाती हैं।

वहीं मलेश्या और सिंगापुर सहित एशिया के अन्य दक्षिण-पूर्वी देशों में भी भारतीय मूल के तमिल समुदाय पुत्थांडु का पर्व पूरी श्रद्धा और विधि-विधान के साथ 14 अप्रैल को मनाया जाता है। हालांकि उगादि और पाहेला बेषाख भी इसी दिन मनाया जाता है, इसीलिए तमिल, कन्नड़, तेलगु और बंगाली मूल के लोग नव वर्ष का पर्व 14 अप्रैल को ही मिल-जुल कर अपने-अपने रीति-रिवाजों के अनुसार मनाते हैं।

पुत्थांडु, उगादि और पाहेला वैषाख का पर्व एक ही पड़ने के कारण इस दिन सभी हिंदू मंदिरों में भारी सख्यां में भक्तों का जमावड़ा लगता है। सूरज की पहली किरण के साथ श्रद्धालु मंदिर में दर्शन और पूजा-पाठ के लिए एकत्रित होने लगते हैं। इन मंदिरों और धारमिक स्थलों को बेहद खूबसूरतीके साथ सजाया जाता है और प्रत्येक समुदाय अपनी-अपनी परंपराओं के अनुसार पूजा सम्पन्न करते हैं।

यहाँ पढ़ें : उगादि के रूप में मनाया जाता है तेलगु नव वर्ष

New year in other states of the country- देश के दूसरे राज्यों में नया साल

https://www.youtube.com/watch?v=mw9QrwdLCEY
Putthandu festival

अमूमन भारत में भी दुनिया के दूसरे देशों की तरह 1 जनवरी को नए साल का जश्न बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है, लेकिन स्वदेशी नव वर्ष पर दृष्टिपात करें तो चैत्र माह (मार्च महीना) के नवरात्री में पहले न को समूचे देश और खासकर उत्तप भारत में हिंदी नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। चैत्र नवरात्री के पहले दिन को मनाया जाने वाला हिंदी नव वर्ष हिंदू कैलेंडर पर आधारित है।

इसके अलावा देश के कई राज्यों में नए साल का जश्न अलग-अलग तिथियों और परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है। इस फाहरिस्त में सबसे मशहूर है पंजाब और हरियाणा में मनाया जाने वाला बैसाखी का पर्व। बैसाखी का महोत्सव खासतौर पर उत्तर भारत में पंजाबी और हरियाणवी मूल के लोगों द्वारा बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है।

उत्तराखंड में पुत्थांडु को बिखोती महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। बिखोती के दिन यहाँ सुबह-सुबह पवित्र नदियों में डुबकी लगायी जाती है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि भागीरथी की घोर तपस्या के बाद बिखोती के ही दिन गंगा धरती पर उतरी थीं। इसीलिए कई राज्यों में यह दिन गंगा के उद्भव के रूप में मनाया जाता है।

असम में पुत्थांडु के ही दिन बोहाग बिहू या रंगली बिहू मनाया जाता है। असम में बोहाग बिहू को नव वर्ष की शुरुआत माना जाता है। वहीं उड़ीसा में इसी दिन मनायी जाने वाली महाविषुव संक्रांति उड़िया नए साल का प्रतीक है।

बिहार और नेपाल के मिथल क्षेत्र में, नया साल जुर्शीतल के नाम से मनाया जाता है। जुर्शीतल के दिन यहाँ लाल चने का सत्तू और जौ के आटे से बना भोजन किया जाता है।

यहाँ पढ़ें : थाईपुसम का पर्व

New year celebration in other countries- दुनिया के अन्य देशों में नव वर्ष का जश्न

तमिल नव वर्ष को दिन यानी 14 अप्रैल को ही दक्षिण पूर्वी एशिया के कई देश भई नव वर्ष का पर्व मनाते हैं। श्रीलंका में जहाँ तमिल समुदाय पुत्थांडु के रूप में नव वर्ष मनाता है,वहीं सिंहला समुदाय अपनी परंपराओं के अनुसार ‘अलुथ अवुरुथु’ के नाम से नव वर्ष का त्योहार मनाया जाता है।

कम्बोडिया में नव वर्ष का पर्व ‘चोल चनम थमे’ के रूप में नव वर्ष का पर्व मनाया जाता है और लाओस में नव वर्ष के त्योहार को ‘सोंगकान’ के नाम से मनाते हैं। इसके अलावा 14 अप्रैल को ही थाईलैंड में भी नया साल ‘सोंगकरान’ और म्यांमार में ‘थिनज्ञान’ के रूप में नए साल का जश्न मनाया जाता है।

Related Essay on Festivals

दीपावली पर निबंधदशहरा पर निबंध
धन तेरस पर निबंधमहानवमी पर्व पर निबंध
करवा चौथ पर निबंधनवरात्रि पर निबंध
शरद पूर्णिमा पर निबंधमहालया अमावस्‍या पर निबंध
विश्‍वकर्मा पूजा पर निबंधहलषष्‍ठी पर्व पर निबंध
ओणम पर निबंधरक्षाबंधन पर निबंध
गणेश चतुर्थी पर निबंधवरलक्ष्‍मी व्रत पर निबंध
कृष्ण जन्माष्टमी पर निबंधनाग पंचमी पर निबंध
गुरु पूर्णिमा पर निबंधजगन्नाथ रथ यात्रा पर निबंध
वट सावित्रि व्रत पर निबंधबसंत पंचमी पर निबंध
बैसाखी पर निबंधथाईपुसम पर निबंध
उगादी त्यौहार पर निबंधपुत्थांडु का पर्व पर निबंध
रामनवमी पर निबंधमकर संक्रांति पर निबंध
महाशिवरात्रि पर निबंधहोलिका दहन पर निबंध
होली पर हिन्दी निबंधभारतवर्ष का हिन्दी नव वर्ष
हनुमान जयंती पर निबंधबंगाली नव वर्ष पर निबंध
अक्षय तृतीया पर निबंधईद पर निबन्ध

Reference-
2020, Putthandu, Wikipedia
2020, पुत्थांडु का पर्व, विकिपीडिया

A Hindi content writer. Article writer, scriptwriter, lyrics or songwriter, Hindi poet and Hindi editor. Specially Indian Chand navgeet rhyming and non-rhyming poem in poetry. Articles on various topics especially on Ayurveda astrology and Indian culture. Educated best on Guru shishya tradition on Ayurveda astrology and Indian culture.

Leave a Comment