- First day of Navratri and the start of Hindi new year- नवरात्री का पहला दिन और हिन्दी नव वर्ष का आरंभ
- Time calculation method- काल गणना की पद्धति
- Scientific Importance of Hindi New Year- हिन्दी नव वर्ष का वैज्ञानिक महत्व
- Importance of Hindi New Year- हिन्दी नव वर्ष का महत्व
- How is Hindi New Year celebrated? – कैसे मनाया जाता है हिन्दी नव वर्ष?
- New year celebration in the Country- देश में नए साल का जश्न
- New year festival in different Countries of the world- दुनिया के विभिन्न देशों में नए साल का पर्व
कहावत है कि परिवर्तन संसार का नियम है और अगर यही परिवर्तन सकारात्मक हो तो शायद ही कोई होगा जो इसे अपनाने से गुरेज करेगा। नए साल की अवधारणा भी इसी तरह के सकारात्मक बदलाव की झलक है। नया साल किसी भी मुल्क, जाति, धर्म, नस्ल और समुदाय के लिए नए कल आगाज होता है। जिससे से न सिर्फ लोगों में बल्कि प्रकति में भी नवीन ऊर्जा का संचार होता है। यही कारण है कि दुनिया के हर देश में नए साल का जश्न बेहद खास होता है।
दुनिया का हर समुदाय न सिर्फ नए साल को अपनी परंपरा के अनुसार मनाता है बल्कि यह अलग-अलग दिनों पर भी मनाया जाता है। 1 जनवरी को ज्यादातर देशों में मनाया जाने वाला नया साल जॉर्जियन कैलेंडर पर आधारित होता है लेकिन अगर भारत की बात करें तो यहाँ जार्जियन कैलेंडर के नए साल के अलावा हिन्दी नया साल भी मनाया जाता है।
दरअसल हिन्दू पंचाग के मुताबिक चैत्र मास (मार्च) के नवरात्री के पहले दिन को हिन्दी नया साल माना गया है। विविधताओं से परिपूर्ण भारत में हिन्दी नव वर्ष किसी समुदाय विशेष का त्योहार नहीं बल्कि पूरे देश का पर्व है। कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से अरूणाचल तक देश के हर कोने में हिंदी नए वर्ष का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
First day of Navratri and the start of Hindi new year- नवरात्री का पहला दिन और हिन्दी नव वर्ष का आरंभ
चैत्र माह (मार्च-अप्रैल) में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्री के नौ दिवसीय पर्व का आगाज होता है। नवरात्री के पहले दिन को नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। हिन्दी नव वर्ष की अवधारणा का जिक्र पुराणों में मिलता है। भागवत पुराण के अनुसार चैत्र में ही शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन ही आदिशक्ति दुर्गा ने ब्रह्म देव को सृष्टि के निर्माण का आदेश दिया था और सभी देवी-देवताओं को उनके गुणों के अनुसार सृष्टि के संचालन का कार्य सौंपा था।
इसीलिए यह दिन न सिर्फ आदिशक्ति दुर्गा को समर्पित नवरात्री का आरंभ है बल्कि हिन्दी नव वर्ष के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। पुराणों में हिन्दी नव वर्ष से ही सृष्टि का आरंभ माना जाता है। यही कारण है कि हर साल नवरात्री के पहले दिन को हिन्दी नव वर्ष मनाने की कवायद प्रचीन काल से चली आ रही है और यह परंपरा आज भी देश के हर कोने में उतने ही उत्साह पूर्वक मनायी जाती है।
इसके अलावा मान्यता यह भी है कि महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना कर पंचांग की रचना की थी। यानी हिन्दी नव वर्ष से ही पंचाग का आंरभ भी माना जाता है। वर्तमान में भारत सरकार का पंचांग शक संवत भी इसी दिन से शुरू होता है।
Time calculation method- काल गणना की पद्धति
भारतीय सभ्यता दुनियी की सबसे पुरातन और हजारों साल पुरानी परंपरा है। जिसमें समय-समय पर गणना पद्धति में आवश्यकता के अनुसार बदलाव होते रहे हैं। हिन्दी नव वर्षभी वास्तव में काल गणना की एक पध्दति है। काल गणना की विभिन्न पद्धतियों में कल्प, मन्वतंर युग आदि के बाद ही नव वर्ष का उल्लेख मिलता है।
प्राचीन ग्रंथो में नव वर्ष मनाने का जिक्र 2000 साल पुराना है। इतिहास में भी लगभग 100 ईसा पूर्व उत्तर पश्चिम भारत और आज के अफगानिस्तान में शासन करने वाले हिन्दू-सिथियनों द्वारा भी हिन्दी नव वर्ष मनाए जाने के साक्ष्य मिलते हैं।
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Scientific Importance of Hindi New Year- हिन्दी नव वर्ष का वैज्ञानिक महत्व
हिन्दी नव वर्ष का पौराणिक तथा एतिहासिक महत्व होने के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी है। दरअसल 21 मार्च को ही पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है। जिसके कारण 21 मार्च की तारीख को रात और दिन बराबर होते हैं।
12 माह का एक वर्ष, 7 दिन का एक सप्ताह रखने की परंपरा भी हिंदी कैलेंडर के मुताबिक ही शुरू हुई है, जिसमें गणना सूर्य-चंद्रमा की गति के आधार पर किया जाता है। हिंदी कैलेंडर की इसी पध्दति का अनुसरण अंग्रेजों और अरबियों ने भी किया। इसके साथ ही देश के अलग-अलग कई प्रांतों में इसी आधार पर कैलेंडर तैयार किए गए हैं।
Importance of Hindi New Year- हिन्दी नव वर्ष का महत्व
हिन्दी नव वर्ष का पर्व पौराणिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक दृष्टि के अलावा कई और रूपों में खासा महत्वपूर्ण है। नव वर्ष के यह तिथि कई मायनों में खास है।
आध्यात्मिक दृष्टि से इसी तिथि को ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक रूप सेगुप्त वंश के महान सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया और इन्हीं के नाम पर नव वर्ष को विक्रम संवतभी कहा जाता है। साथ ही हिन्दू पंचाग को संवत का नाम देते हुए सी दिन से विक्रम संवतका आरंभ माना गया है।
वहीं राजा विक्रमादित्य की ही तरह शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में एतिहासिक जीत हासिल की थी और दक्षिण भारत में शासन स्थापित करने के लिए विक्रम संवत का दिन ही चुना था।
हिन्दू ग्रंथ रामचरितमानस में हिन्दी नव वर्ष को ही प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन कहा गया है। जिसके कारण यह दिन अत्यतं महत्वपूर्ण हो जाता है। साथ ही इस दिन से शक्ति और भक्ति के प्रतीक नौ दिवसीय नवरात्रीके पर्व का आगाज होता है, जिसका जश्न समूचे देश में नौ दिनों तक बेहद धूम-धाम से मनाया जाता है। इसके अलावा महाभारत के अनुसारपांडव पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ था।
सिख समुदाय के लिए भी यह दिन कई मायनों में खास है। दरअसल गुरु नानक के उत्तराधिकारी और सिखों के दूसरे गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस भी इसी दिन मनाया जाता है।
आधुनिक काल में स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना करते हुए कृणवंतो विश्वमआर्यम का संदेश दिया था।
वहीं सिंधी समुदाय की मान्यता है कि प्रसिद्ध समाज सुधारक वरूणावतार भगवान झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए थे। हिन्दी नव वर्ष के दिन ही महर्षि गौतम की जयंती भा मनाई जाती है।
How is Hindi New Year celebrated? – कैसे मनाया जाता है हिन्दी नव वर्ष?
भारत में नव पर्व पर अलग-अलग प्रांतों में अपनी ससंकृति और परंपरा के अनुसार पूजा – पाठ किया जात है।पुरानी उपलब्धियों को याद करके नई योजनाओं की रूपरेखा तैयार कर नव वर्ष का अवधारणा को अमली जामा पहनाया जाता है।
नव वर्ष पूजा का विधान अमूमन हर क्षेत्र में भिन्न है लेकिन ज्यादातर जगहों पर इस दिन प्यार और मधुरता के प्रतीक शमी के पेड़ की पत्तियां एक-दूसरे को देते हुए सुख और समृद्धि की कामना करते हैं। साथ ही इस दिन कई प्रंतो में काली मिर्च, नीम की पत्ती, गुड़ या मिश्री, अजवाइन, जीरा मिलाकर चूर्ण बनाकर बांटा जाता है।
हर त्योहार की तरह हिन्दी नव वर्ष पर भी घरों में स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं तथा प्रत्येक क्षेत्र में स्थानीय व्यंजनों का स्वाद चखा जाता है।
इसके अतिरिक्त कई लोग नव वर्ष के अवसर पर अपने घरों की छत पर भगवा पताका फेहराते हैं, साथ ही घरों के चौखट पर आम के पत्तों को बाँधा जाता है।
वहीं कई जगहों परमंदिर तथा धार्मिक स्थलोंको रंगोली और फूलों से सजाने का प्रचलन भी है। हिन्दी नव वर्ष के दिन इन स्थलों में धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
एक ओर जहाँ इस दिन देश की कई जगहों पर रैलियां, कलश यात्राएं और शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं वहीं ज्यादातर जगहों पर कवि सम्मेलन, भजन संध्या और महाआरती का भी भव्य आयोजन किया जाता है।
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New year celebration in the Country- देश में नए साल का जश्न
भारत के विभिन्न हिस्सों में नए साल का जश्न अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है। ये तिथियां ज्यादातर मार्च और अप्रैल के महीने में ही पड़ती है। जहाँ पंजाब में 13 अप्रैल को बैशाखी के दिन नव वर्ष मनाया जाता है। वहीं सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार 14 मार्च को नए साल का उत्सव मनाया जाता है।
पश्चिम बंगालमें बांग्ला नव वर्ष, जिसे पोहेला बेषाख कहा जाता है, 14-15 अप्रैल को मनाया जाता है। पड़ोसी देश बांग्लादेश में भी इसी दिन नए साल का पर्व मनाया जाता है। तमिल नव वर्ष मार्च और अप्रैल के महीने में मनाया जाता है। तेलगु नव वर्ष का पर्व भी इसी समय मनाया जाता है।
आंध्रप्रदेश में नव वर्ष को उगादी के नाम से मनाया जाता है, जिसका अर्थ युग और आदि से मिलकर बना है।आंध्र प्रदेश में चैत्र महीने के पहले दिन पर उगादी का जश्न मनाया जाता है। वहीं कर्नाटक में कन्नड़ समुदाय चैत्र माह के पहले दिन ही मनाया जाता है। कर्नाटक में भी नव वर्ष को उगाड़ी कहा जाता है।
तमिलनाडु में 14 जनवरी को पोंगल के रूप में नया साल मनाया जाता है। वहीं कश्मीरी कैलेंडर में 19 मार्च को नवरेह के नाम से नव वर्ष मनाया जाता है। महाराष्ट्र में मार्च और अप्रैल के महीने में ही नव वर्ष का पर्व गुड़ी पड़वा के रूप मनाया जाता है।
उगादि और गुड़ी पड़वा के दिन ही सिंधी नव वर्ष चेटी चंड भी मनाया जाता है। मदुरै में चिरिथई माह (चैत्र महीने) में ही चिरिथई तिरूविजा के नाम से नए साल का जश्न मनाया जाता है।
वहीं मारवाड़ी नया साल दीपावली के दिन मनाया जाता है, तो गुजराती नया साल दीपावली के दूसरे दिन माना जाता है।यही नहीं इसी दिन जैन धर्म का नववर्ष भी होता है।
New year festival in different Countries of the world- दुनिया के विभिन्न देशों में नए साल का पर्व
सबसे पहले नव वर्ष का उत्सव 4000साल पहले बेबीलोन में मनाया जाता था। नए साल का ये जश्न 21 मार्च को, वसंत ऋतु के आगमन की तिथि के रूप में मनाया जाता था।
हालांकि प्राचीन रोम में पहली बार 1 जनवरी को नया साल मनाया गया था। रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने रोम में जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, जिसके बाद दुनिया में पहली बार 1 जनवरी को नए साल का जश्न मनाया गया था।
वहीं हिब्रू मान्यताओं में नव वर्ष का उस्तव ग्रेगरी कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा सृष्टि की रचना करने में लगभग सात दिन लगे थे। हिब्रू नव वर्ष 4 सितंबर से 4 अक्टूबर के बीच में मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त कई देशों में ग्रेगरी कैलेंडर के मुताबिक अलग अलग महीनों में भी नव वर्ष मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त इस्लाम में मुहर्रम के दिन नए साल का जश्न मनाया जाता है।
इस्लामी कैलेंडर के बारे में मान्यता है कि यह एक चन्द्र आधारित कैलेंडर है, जिसमें बारह महीनों में 33 वर्षों में सौर कैलेंडर को एक बार घूम लेता है। इसके कारण नव वर्ष प्रचलित ग्रेगरी कैलेंडर में अलग अलग महीनों में पड़ता है।
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Reference –
2020, Hindi New Year, Wikipedia
2020, हिन्दू नववर्ष, विकिपीडिया