- नवरात्रि पर्व क्या है | What is Navratri? | essay on Navratri in Hindi
- नवरात्रि पर्व क्यों मनाते हैं – Why is Navratri celebrated?
- नवरात्रि पर्व मनाने की पीछे पौराणिक कारण – Believes behind celebrating Navratri
- नवरात्रि पर्व मनाने के पीछे व्यवहारिक या वैज्ञानिक कारण – Practical or Scientific reasons behind celebrating Navratri
- नवरात्रि पर्व मनाने की परम्पराएं – Traditions of celebrating Navratri
- सांस्कृतिक रूप से नवरात्र पर्व पर निम्न परम्पराएं प्रचलित हैं – Culturally the following traditions are prevalent on Navratri festival
- नवरात्रि पर्व का महत्व – Importance of Navratri
- Essay on Navratri | निबंध- मेरा प्रिय त्योहार नवरात्र हिंदी में | Durgapuja Essay in hindi
भारतीय संस्कृति में स्थूल से सूक्ष्म, जड़ से चेतन, एकाकी साधना से सार्वजनिक उत्सव तक हर चीज को महत्व दिया गया है । भारतीय जन मानस, अध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक रूप से सबल हो इसका उपाय भारतीय संस्कृति, रीति-रिवाज, तीज-त्यौहार में हमारे मनिषियों ने कर रखा है ।
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मन एवं तन दोनों को शक्ति मिल सके इसके लिये शक्ति उपासना का पर्व, ‘नवरात्रि का पर्व’ का विधान किया गया है जिसमें शक्ति के अक्षय एवं आदि स्रोत शक्तिपुंज जगत माता जगदम्बे की अराधना की जाती है ।
‘नवरात्रि का पर्व’ एक मात्र ऐसा पर्व है जिसे वर्ष में एक बार नहीं दो-दो बार मनाया जाता है । पहले बार हिन्दू नववर्ष के प्रारंभ में वासंतीय नवरात्रि के रूप में वर्षप्रतिपदा अर्थात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से रामनवमी तक और दूसरा शारदीय नवरात्रि के रूप में अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से दुर्गानवमी तक । ऐसे तो मॉं जगदम्बे की इस अराधना पर्व का वर्ष में चार बार का विधान है । दो बार को गुप्त नवरात्रि और दो बार को प्रकट नवरात्रि कहते हैं ।
गुप्त नवरात्रि पहले आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष के एकम से नवम तक तथा दूसरा गुप्त नवरात्रि माघ मास के शुक्ल पक्ष के एकम से नवम तक मनाया जाता है । वासंतीय एवं शारदीय नवरात्रि को प्रकट रूप से मनाया जाता है । ऐसे तो साधक चारों नवरात्र में माता की शक्ति अराधना करते हैं किन्तु आम भक्त शारदीय नवरात्रि एवं वासंतीय नवरात्रि को श्रद्धा और विश्वास पूर्वक हर्षोल्लास से मनाते हैं ।
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नवरात्रि पर्व क्या है | What is Navratri? | essay on Navratri in Hindi
सकल सृष्टि का अक्षय शक्तिपुंज मॉं भगवती जगत जननी जगदम्बे को माना गया है । ऐसे तो मॉं अपने भक्तों के सम्मुख भांति-भांति के नाम से जानी जाती हैं किंतु मॉं के नौ रूपों की विशेष पूजा की जाती है । ऐसे तो ये नौ रूप मॉं के विभिन्न शक्तियों का प्रतिक है । किन्तु इन नौ रूपों से मातृ शक्ति के संपूर्ण जीवन को व्यक्त किया जा सकता है ।
पहला रूप– ’शैलपुत्री’ को यह जन्म ग्रहण करती हुई कन्या के रूप में ।
दूसरा रूप– ‘ब्रह्मचारणी’ को कौमार्य अवस्था तक के कन्या के रूप में ।
तीसरा रूप– ‘चंद्र घंटा’, को विवाह के पूर्व चंद्रमा के समान निर्मल होने पर नव युवती के रूप में ।
चौथा रूप- को नव जीवन के लिये गर्भ धारण करने पर ‘कूष्माण्डा’ के स्वरूप में ।
पॉंचवां रूप- संतान जन्म देने के बाद ‘स्कन्द माता’ के रूप में ।
छठवां- संयम व साधना करने वाली स्त्री ‘कात्यायनी’ स्वरूप में ।
सातवां- अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने पर ‘कालरात्रि’ के रूप में ।
आठवां- कुटुंब के लिये उपकार करने से ‘महागौरी’ के रूप में ।
और अंत में स्वर्ग प्रयाण करने के पूर्व संतान को सिद्धि प्रदान करने वाली ‘सिद्धिदात्री’ के रूप में ।
इन्हीं नौ रूपों की नौ दिनों तक विशेष रूप से पूजा की जाती है । इसलिये माता के इस शक्ति अराधना के पर्व को ही नवरात्रि का पर्व कहते हैं ।
नवरात्रि पर्व क्यों मनाते हैं – Why is Navratri celebrated?
श्रीमद्देवीभागवत के अनुसार सभी प्रकार के शक्तियों को देने वाली एक मात्र शक्ति जगदम्बा ही हैं जिनकी शक्ति के बल पर ही ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना करते हैं, बिष्णुजी सृष्टि का पालन करते हैं और शिव शंकर सृष्टि का संहार करते हैं । सृष्टि की सारी शक्ति उन्हीं से उत्पन्न होती हैं और उन्हीं पर विलिन हो जाती है । इसलिये मॉं जगदम्बा को शक्तिपुंज और शक्ति का आदि स्रोत कहा गया है ।
मॉं के इस अराधना पर्व से तन एवं मन दोनों को शक्ति प्राप्त होती हैं । साधक अध्यात्म शक्ति बढ़ाने तो साधारण लोग भौतिक सुख-समृद्धि की कामना से इस पर्व को मनाते हैं ।
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नवरात्रि पर्व मनाने की पीछे पौराणिक कारण – Believes behind celebrating Navratri
ऐसे तो इस पर्व को मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं किन्तु प्रमुख से दो कथाएं प्रचलित हैं ।
पहले कथा के अनुसार- एक महाबलशाली दैत्य महिषासुर हुये जो अपने तप के बल पर यह वरदान प्राप्त किया था वह स़ष्टि के किसी भी जीव, देव, दानव, मनुष्य आदि के द्वारा मारा न जाये केवल उनकी मृत्यु किसी नारी के हाथों ही हो । इस प्रकार के वरदान से वह स्वयं को अमर समझता था और इसी घमंड में वह देवताओं को स्वर्ग से भगा दिया, मनुष्यों पर नाना प्रकार के अत्याचार करने लगे । उनके अत्याचार से सभी मनुष्य और देवता व्याकुल हो गये । व्याकुल होकर दर-दर भटक रहे देवता उस दैत्य के संहार के उद्देश्य से आदि शक्ति मॉं जगदम्बा के शरण में गये । सभी देवताओं ने बहुत ही दीन भाव से मॉं को पुकारा ।
पुत्रों के इस दारूण दुख से द्रवित होकर निर्भय होने का आर्शीवाद देकर महिषासुर के आतंक से बचाने का आश्वासन दिया । सभी देवताओं ने अपने-अपने शस्त्र मॉं को सौप दिये जिससे अजय महिषासुर का आसानी से वध किया जा सके । सभी देवों की शक्ति, शुक्ति पुंज में विलिन हो गई । इसके पश्चात महिषासुर और मां अम्बे के मध्य अनवरत नौं दिनों तक युद्ध हुआ और अंत में वह दैत्य मॉं के हाथों मारा गया । इसी के याद में नौं दिनों तक इस पर्व को मनाया जाता है ।
एक दूसरी मान्यता के अनुसार- भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करते समय रावण पर विजय प्राप्त करने के लिये मॉं की अराधना की है । इस कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने राम को रावण को मारने के लिये दुर्लभ नील कमल के 108 पुष्पों की सहायता से चण्ड़ी पूजन करने को कहा और दुर्लभ नीलकमलों की स्वयं व्यवस्थ कर दी ।
रामजी समुद्रतट पर चण्डी पूजन करने लगे । इस बात की जानकारी जैसे ही रावण को मिली उन्होंने अपनी माया से दुर्लभ नील कमल में से एक नील कमल को गायब कर दिया जिससे राम का पूजन सफल न हो और देवी कुपित हो जाये।
इधर रामजी की चण्ड़ी पूजा चलती रही अंत में जब देखा कि एक नीकमल कम पड़ रहा है तो बानरी सेना देखकर भयभीत हो गये कि अब क्या होगा तभी श्रीराम ने सोचा कि दुनिया उसे ‘कमल नयन नवकंच लोचन’ कहते हैं अर्थात उनके स्वयं का नेत्र नीकमल के ही समान है ।
इसलिये उन्होंने मन में ठान लिया कि एक पुष्प जो कम पड़ रहा है उसके स्थान पर वह अपने एक नेत्र को ही मॉं को अर्पित कर देंगे । ऐसा सोच कर जैसे ही वह अपने ऑंख निकालने के लिये तैयार हुए ठीक उसी समय मॉं चण्ड़ी प्रकट हो गई और उसे रावण पर विजय प्राप्त करने का आर्शीवाद दिया ।
चूँकि रामजी की यह पूजा नौं दिनों तक चली थी फिर दस दिन बाद वह लंका जीतने में सफल हुये थे । इसी याद में नौरात्री का पर्व मनाया जाता है । यही कारण है शारदीय नवरात्र के ठीक दूसरे दिन दशहरा का पर्व मनाया जाता है । वासंतीय नवरात्र के अंत में रामनवमी का पड़ना इस बात को सिद्ध कर रहा है कि किसी न किसी रूप श्री राम एवं मॉं जगदम्बा के पूजा में संबंध है ।
नवरात्रि पर्व मनाने के पीछे व्यवहारिक या वैज्ञानिक कारण – Practical or Scientific reasons behind celebrating Navratri
चैत्र मास सर्दी एवं गर्मी मौसम का संधि काल होता है वही अश्विन महिना बरसात एवं सर्दी मौसम का संधि बेला या संक्रमण काल होता है । वैज्ञानिक रूप इन दोनों मौसमों के संक्रमण काल में संक्रमित रोगों का भय अधिक रहता है । इस समय खान-पान एवं रहन-सहन को व्यवस्थित करके रोगों से बचा जा सकता है । इसी समय नवरात्रि पर्व मनाये जाने से लोगों का जीवन संयमित हो जाता है । व्रत करने से खान-पान व्यवस्थित हो जाता है तथा संयमित दिनचर्या से रहन-सहन इस प्रकार रोग होने की आशंका कम हो जाती है ।
नवरात्रि पर्व मनाने की परम्पराएं – Traditions of celebrating Navratri
नवरात्रि पर्व को पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है । किसी भी राज्य का नवरात्रि उत्सव दूसरे राज्य से कम नहीं होता । किंतु पश्चिम बंगाल का दुर्गा पूजा और गुजरात का गरबा विश्व प्रसिद्ध है । नवरात्रि पर्व देश की सीमा से बाहर भी उत्साह पूर्वक प्रवासी भारतीयों के द्वारा विश्वभर में मनाया जाता है ।
इस पर्व को पूरे नौ दिनों तक मनाया जाता है । इस उत्सव को दो भागों में मनाया जाता है अध्यात्मिक या धार्मिक रूप में एवं दूसरा सांस्कृतिक रूप में । अध्यात्मिक एवं धार्मिक रूप से इस पर्व पर निम्नानुसार परम्पराएं प्रचलित हैं-
1. देश-विदेश के प्रख्यात 51 शक्ति पीठों में विशेष धार्मिक एवं तांत्रिक अनुष्ठान किये जाते हैं ।
2. प्रत्येक देवी मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं । देवी शक्ति के प्रतिक के रूप में नौ दिनों तक अखण्ड़ घृत या तेल की ज्योति जलाई जाती है ।
3.अनेक भक्त इस पर्व पर नौ दिनों तक निराहार या फलाहार व्रत करते हैं । अनेक भक्त दुर्गासप्तसती जैसे देवी स्त्रोतों का श्रद्धा पूर्वक पाठ करते हैं ।
4.वासंतीय नवरात्र में कई राज्यों में घर पर ही अखण्ड ज्योति जलाई जाती है । साथ में गेहूँ उगाई जाती है जिसे जेवारा, ज्वारा आदि नामों से जाना जाता है ।लोग जेवारा को अपने कुल परम्परा के रूप में मनाते हैं ।
5.शारदीय नवरात्र में सार्वजनिक उत्सव के रूप मॉं दुर्गा के विभिन्न रूपों में प्रतिमायें स्थापित करके पूजा किया जाता है ।
सांस्कृतिक रूप से नवरात्र पर्व पर निम्न परम्पराएं प्रचलित हैं – Culturally the following traditions are prevalent on Navratri festival
1. वासंतीय एवं शारदीय नवरात्र सांस्कृतिक आयोजनों के दृष्टिकोण से कुछ अलग-अलग होता है । वासंतीय नवरात्र में मंदिरों में ही अनेक आयोजन किये जाते हैं जबकि शारदीय नवरात्र मंदिरों के साथ-साथ और मंदिरों से कहीं अधिक सार्वजनिक दुर्गा पण्डालों में सांस्कृतिक आयोजन किये जाते हैं ।
2. दोनों नवरात्रों में प्रतिदिन सामूहिक देवी गीत, जसगीत, जवारा गीत आदि गाये जाते हैं । यह गीत इतना हृदयस्पर्शी होता है कि कई लोग ज्यादतर महिलायें गीत में झूमने लगती हैं, इसी पारंपरिक भाषा देवी चढ़ना कहते हैं ।
3. शारदीय नवरात्र में शहर-शहर, गॉंव-गॉंव गरबा, डांडियां आदि का धूम होता है ।
4. शारदीय नवरात्र में गायन एवं नृत्य के कई-कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं ।
5. दोनों नवरात्र पर्व पर देश के विभिन्न देवी मंदिरों में पूरे नौ दिनों का विशाल मेला का आयोजन किया जाता है । पूरे नौ दिन चौबीस घंटे देवी मॉं के दर्शन के लिये लोगों का तांता लगा रहता है ।
नवरात्रि पर्व का महत्व – Importance of Navratri
सबसे लंबे समय तक मनाये जाने वाला यह एक मात्र पर्व है जिसे भारत के लगभग संपूर्ण भू भाग में मनाया जाता है । ऐसे तो और कई पर्व हैं जो नौ दिनों से अधिक दिनों तक मनाये जाते है जैसे 40 दिनों का बस्तर का दशहरा । ऐसे और कई पर्व है किन्तु इसे संपूर्ण भारत में नहीं मनाया जाता । देश के लगभग सभी देवीपीठों में नौ दिनों का मेला लगा रहता है । ये कुछ तथ्य है जो इसके महत्व को स्वयं उजागर करती हैं ।
इस पर्व में जितने लोग मौज-मस्ती से उत्सव मनाते है उससे कहीं अधिक लोग व्रत-नियम से इस पर्व को मनाते हैं । ऐसे-ऐसे लोग भी मॉं के व्रत करते दिख जाते हैं जो समान्य दिनों में नास्तिक बने रहतें हैं । इस पर्व को बच्चों से लेकर बुर्जुग तक श्रद्धा और उत्साह से मनाते हैं ।
इस प्रकार यह पर्व लोगों में धर्म, आस्था, श्रद्धा, विश्वास आदि अध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि करता है वहीं सांस्कृतिक आयोजनों से सामाजिक एकजुटता, सामाजिक समरसता को भी यह बढ़ावा देता है ।
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Essay on Navratri | निबंध- मेरा प्रिय त्योहार नवरात्र हिंदी में | Durgapuja Essay in hindi
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Reference
नवरात्रि Wikipedia
Navratri Wikipedia