- Jagannath Rath Yatra Essay In Hindi | जगन्नाथ रथ यात्रा पर निबंध | चार धाम में से एक धाम पुरी | Puri is one of the four Dhaams
- जगन्नाथ मंदिर का संक्षिप्त इतिहास | Short History of Jagannath Temple | essay on Jagannath Puri Rath Yatra in hindi
- जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा महोत्सव क्या है- What Is Jagannath Rath yatra Festival?
- रथ निर्माण की परम्परा – Chariot Construction Tradition
- जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा महोत्सव की परम्परा – Tradition of Rath Yatra Festival
- जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का धार्मिक महत्व – Religious Significance of Rath Yatra
- रथ यात्रा पर निबंध l Essay On Rath Yatra In Hindi l Rath Yatra Essay In Hindi l Calligraphy Creators
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा महोत्सव क्या है- What Is Jagannath Puri Rath Festival? भारत के ओडिसा राज्य के पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ जगत का स्वामी होता है। इस प्रकार इस मंदिर के मुख्य अधिष्ठाता भगवान जगन्नाथ को विश्व के स्वामी कर्ता-धर्ता के रूप में स्वीकार किया जाता है। यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है। भगवान जगन्नाथ के साथ बलभ्रद (भगवान कृष्ण का बड़ा भाई बलराम) एवं सुभद्रा (भगवना कृष्ण की बहन) की प्रतिमा स्थापित है ।
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इसी मंदिर का विश्व प्रसिद्ध महोत्सव है ‘रथ यात्रा’। (Jagannath Rath Yatra) इस रथ यात्रा महोत्सव में विभिन्न धर्मावलंबी हिन्दू, जैन, बौद्ध अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार सम्मिलित होते हैं तो वहीं पूरे विश्व के पर्यटक बड़ी संख्या में इस महोत्सव को देखने आते हैं ।
यद्यपि रथयात्रा महोत्सव का मुख्य आयोजन पुरी में ही होता किंतु इसके साथ ही इसी दिन भारत के विभिन्न भागों में रथयात्रा महोत्सव का आयोजन किया जाता है। विभिन्न मंदिरों, शहरों यहाँ तक की गाँव-गाँव में रथ-यात्रा महोत्सव का आयोजन बड़े ही धूमधाम से किया जाता है। इस प्रकार यह महोत्सव एक स्थानीय महोत्सव न होकर अखिल भारतीय स्तर पर एक पर्व के रूप में मनाया जाता है ।
इस महोत्सव के संबंध में जानने से पहले इस मंदिर का इतिहास और महत्व का एक बार अवलोकन कर लेते हैं ।
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Jagannath Rath Yatra Essay In Hindi | जगन्नाथ रथ यात्रा पर निबंध | चार धाम में से एक धाम पुरी | Puri is one of the four Dhaams
आदि शंकराचार्य ने भारतीय संस्कृति को चिरस्थाई बनाने के लिये लगभग 500 ईसा पूर्व चार पीठों की स्थापना की। उत्तर दिशा में बदरिकाश्रम में ज्योतिर्पीठ, पश्चिम में द्वारिका शारदापीठ, दक्षिण में शृंगेरीपीठ, पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी गोवर्द्धन पीठ । इनके संगत क्रमशः बद्रीनाथ, द्वारिकानाथ, रामेश्वर और जगन्नाथ चार पावन धाम हैं ।

इस प्रकार जगन्नाथ पुरी भारतीय संस्कृति के चार पीठ में से एक एवं चार धामों में से एक है। किंतु पुरी धाम शेष अन्य धामों से अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ वर्ष भर अन्य धामों की तुलना में अधिक लोग आते रहते है।
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जगन्नाथ मंदिर का संक्षिप्त इतिहास | Short History of Jagannath Temple | essay on Jagannath Puri Rath Yatra in hindi
इस वर्तमान मंदिर का निर्माण का ही लगभग 125 वर्षो का इतिहास रहा है । इस मंदिर का निर्माण कलिंग राजा अनन्तवर्मन चोड़गंग ने 1078 में प्रारंभ कराया जिसे 1197 में अनंग भीम देव ने पूर्ण कराया । इस मंदिर के निर्माण संबंधी एक कथा बहुत लोक प्रचलित है और यह मान्यता मंदिर निर्माण से पहले की है।
जिसके अनुसार एक बार राजा इंद्रद्युम्न को स्वप्न आया कि स्वप्न में भगवान बिष्णु का आदेश हुआ कि पुरी के समुद्र किनारे जायें वहाँ दारू लकड़ी का गठ्ठा मिलेगा, इससे मेरी मूर्ति बनाकर स्थापित करायें। जब राजा ने इस स्वप्न के अनुसार पुरी समुद्र किनारे जाकर देखा तो सचमुच उसे दारू लकड़ी का एक गठ्ठा मिल गया। अब उसे विश्वास हो गया कि भगवान विष्णु ने सचमुच सपने में आकर आदेश दिया है।
अब वह राजा इस लकड़ी से भगवान की विग्रह बनाने के लिये एक कुशल शिल्पी का तलाश करने लगे एक दिन अचानक एक बुढ़ा व्यक्ति उसके सम्मुख आकर कहने लगा कि इस गठ्ठे से मैं भगवान का विग्रह बना सकता हूँ किंतु मेरी एक शर्त है कि मैं यह काम एक बंद कमरे में करूँगा और जब तक मेरा कार्य पूर्ण न हो जाये कोई भी कमरे में प्रवेश न करें, काम के बीच में यदि कोई कमरे में आ जायेगा तो उसी दिन मैं काम छोड़ दूँगा।
राजा ने उसकी शर्त स्वीकार कर ली। व्यक्ति ने एक बंद कमरे में अपना कार्य प्रारंभ कर दिया । कमरे से बाहर से उनके औजारों की ध्वनि सुनाई पड़ती थी। कुछ दिनों पश्चात कमरे से ध्वनि आनी बंद हो गई। तो राजा को आशंका हुई कि कहीं शिल्पी को तो कुछ नहीं हो गया? आखिर ध्वनि क्यों नहीं आ रही है? इसी आशंका के चलते वह स्वयं कमरे में दाखिल हो गया।
कमरे में दाखिल होते ही उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा -कमरे में तीन मूर्ति आधी बनी रखी थी । तीनों मूर्तियों का केवल चेहरा और धड़ ही बना था हाथ-पैर बनना बाकी था किंतु बनाने वाला शिल्पी वहाँ नहीं था।
राजा को यह समझने में समय नहीं लगा कि यह शिल्पकार और कोई नही देवताओं का शिल्पकार स्वयं विश्वकर्माजी है जो अपने शर्त के अनुसार मेरे कमरे मे आते ही काम छोड़ कर चले गयें हैं। उन्हें कमरे में प्रवेश करने का बहुत ही दुख हुआ इसी बीच नारदजी ने एक ब्राह्मण के रूप प्रकट होकर बताया कि यह भगवान की ही इच्छा थी। प्रभु स्वयं इसी रूप में रहना चाहते हैं।
भगवान की इसी रूप में पूजा होगी। तब से आज तक महानीम (दारू) की लकड़ी से बिना हाथ-पैर के प्रभु के विग्रह बना कर पूजा की जा रही है ।
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जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा महोत्सव क्या है- What Is Jagannath Rath yatra Festival?

चार धामों में से एक धाम जगन्नाथ धाम में प्रतिवर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा महोत्सव का आयोजन किया जाता है ।
जिसमें जगन्नाथ मंदिर के प्रमुख तीनों विग्रह जगन्नाथ, बलभद्र, सुभ्रदा को मंदिर से बाहर निकाल कर तीन अलग-अलग विशाल रथ में आरूढ करा कर लगभग 5-6 किमी की दूरी पर स्थित गुंडचा मंदिर जनकपुर तक यात्रा कराई जाती है, इसे ही रथ यात्रा कहते हैं। इस महोत्सव में देश विदेश के करोड़ो श्रद्धालु भक्त, पर्यटक भाग लेते हैं ।
रथ निर्माण की परम्परा – Chariot Construction Tradition
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा महोत्सव –Jagannath Rath yatra Festival रथ यात्रा के लिये रथ निर्माण की प्रक्रिया बसंत पंचमी (मार्च-अप्रैल) से प्रारंभ होती है। इस दिन से मंदिर समिति रथ के लिये लकड़ी का चयन प्रारंभ करती है। इसके लिये एक स्वस्थ एवं शुभ महानीम लकड़ी का चयन करते है जिसे स्थानीय भाषा में दारू कहा जाता है। लकड़ी चयन के पश्चात रथ बनाने की प्रक्रिया अक्षय तृतीया (अप्रैल-मई) से प्रारंभ होती है। कुल तीन रथ बनाये जाते हैं, तीनों रथों की एक निश्चित ऊँचाई होती है।
जगन्नाथ जी के रथ की ऊँचाई 45.6 फीट, बलभद्र जी के लिये 45 फीट और सुभद्राजी का रथ 44.6 फीट होता है। इस रथ निर्माण में केवल और केवल लकड़ी का ही उपयोग होता है किसी प्रकार के धातु के कील आदि का उपयोग नहीं होता। इन तीनों रथों को विशेष रंगों के वस्त्रों से सजाया जाता है।
जगन्नाथ जी के रथ को लाल-पीले, बलभद्र जी के रथ को लाल-हरा एवं सुभद्राजी के रथ को नीले-लाल रंग के कपड़ों से सजाया जाता है। रथ निर्माण के पश्चात जगन्नाथ जी के रथ को नंदीघोष या गरूड़ ध्वज, बलभद्रजी के रथ को तालध्वज एवं सुभद्रजी के रथ को दर्पदलन या पद्पध्वज कहते हैं ।
रथ निर्माण प्रक्रिया पूर्ण होने पर ‘छर पहनरा’ नामक अनुष्ठान किया जाता है । इस अनुष्ठान में पुरी गजपती राजा पालकी में सवार होकर यहाँ तक आते है और तीनों रथों की विधिवत पूजा अर्चन करने के पश्चात सोने की झाडू से मण्डप, रथ और रथ के सामने के रास्ते को बुहारते हैं।
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा महोत्सव की परम्परा – Tradition of Rath Yatra Festival
कहने के लिये कह देते हैं यह एक महोत्सव है जिसे आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है किन्तु वास्तव में यह अपने आप में कई पर्व समेटे हुये है या यूँ कह सकते हैं कि इस महोत्सव के अंदर ही कई पर्व एवं परम्पराएं सम्मिलित हैं।
बसंत पंचमी को दारू (लकड़ी) का चयन, अक्षय तृतीया रथ निर्माण प्रारंभ करना, ‘छर पहनरा’ अनुष्ठान में रथ निर्माण पश्चात पूजा करना, आषाढ़ शुक्ल द्वितीया रथ यात्रा प्रारंभ करना गुंडीचा मंदिर में पहुँचकर आड़प-दर्शन, तीसरे दिन लक्ष्मीजी का रूष्ट होना पांचवे दिन लक्ष्मी को मनाने की परंपरा और अंत में दसवें दिन मुख्य मंदिर में भगवान का पुर्नस्थापना।
मुख्य आयोजन आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा आरम्भ से होती है। मुख्य मंदिर में विधिवत पूजा अर्चन पश्चात तीनों विग्रहों को उनके रथ में रखने के साथ ही ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भक्तगण इन रथों को खींचना शुरू करते हैं।
रथ को खींचते हुए मुख्य मंदिर से दूर लगभग 6 किमी गुंडचा मंदिर जनकपुर ले जाते हैं। यह रथ यात्रा मुख्य मंदिर एवं जनकपुर के बीच स्थित मुख्य मार्ग पर आयोजित किया जाता है जिसके दोनों ओर लाखों लोग भगवान की एक झलक पाने, रथ को खींचने का अवसर पाने के लिये ललायित रहते हैं। सड़क के दोनो किनारो के घर के छत भी भक्तों से भरे रहते हैं। जगह-जगह संकीर्तिन-नृत्य चलते रहते हैं ।
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा महोत्सव –Jagannath Rath yatra Festival पुरी नगर से गुजरते हुए गुंडीचा मंदिर पहुँचती है। इसी मंदिर में तीनों विग्रहों को 7 दिनों के लिये रखा जाता है। गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को ‘आड़प-दर्शन’ कहा जाता है।
इस मंदिर के बारे में लोक मान्यता है कि यहीं पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं का निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था। इस स्थान को भगवान का मौसी का घर भी कहा जाता है ।
एक लोक मान्यता के अनुसार भगवान के यहाँ रहने पर माता लक्ष्मी रूष्ट हो जाती हैं और तीसरे दिन यहाँ रथ के पहिये को तोड़ देती हैं। फिर पाँचवे दिन भगवान उसे मनाते है। इस परंपरा को संवादों के माध्यम से आज भी प्रदर्शित किया जाता है फिर सप्ताह भर बाद आषाढ़ शुक्ल दसमी को रथ यात्रा की वापसी यात्रा होती है इसे बहुड़ा कहा जाता है।

दसमी तिथि को श्री विग्रहों को रथ पर ही रहने दिया जाता है । ऐसी मान्यता है कि इसी दिन रात्री में देवता लोग आकर इन विग्रहों का पूजा अर्चन करते हैं। फिर अगले दिन एकादश के दिन विधिवत पूजा अर्चन पश्चात इन विग्रहों को मंदिर में पुनः प्रतिष्ठित कर दिया जाता है और इसी के साथ यह रथ यात्रा महोत्सव संपन्न होता है।
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का धार्मिक महत्व – Religious Significance of Rath Yatra
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा महोत्सव -Jagannath Puri Rath Festival – पुरी रथ यात्रा का अपना विशेष धार्मिक महत्व है। स्कन्ध पुराण के अनुसार जो व्यक्ति भगवान जगन्नाथ के रथ यात्रा को देखता है, रथ यात्रा के धूल-कीचड़ में भाव विभोर होता है वह जन्मोजन्म के बंधन क्रम से मुक्त हो जाता है। जो व्यक्ति भगवान जगन्नाथ मंदिर से गुंडीचा जनकपुर तक भगवान का कीर्तन करते हुये रथ यात्रा में सम्मिलित होता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है उसे बैकुण्ठ वास मिलता है ।
इस दिन को अत्यंत शुभ माना जाता है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में इस दिन भगवान सत्य नारायण की कथा पूजा का आयोजन किया जाता है। बिना मुहुर्त के काम करने वाले लोग इस दिन नये घर में गृह प्रवेश करते हैं। जो लोग पुरी यात्रा में सम्मिलित नहीं हो पाते ऐसे लोग अपने गाँव-शहर में रथ यात्रा का आयोजन कर भगवान जगन्नाथ को मन से स्मरण कर पूजा अर्चना करते हैं । लोगों की मान्यता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ को याद करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
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Reference
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा महोत्सव -Jagannath Puri Rath Festival Wikipedia
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा महोत्सव -Jagannath Puri Rath Festival Wikipedia in Hindi