- Importance of Akshaya Tritiya | अक्षय तृतीया पर निबंध और महत्व | Akshaya Tritiya essay in Hindi
- Mythological significance of Akshaya Tritiya- अक्षय तृतीया का पौराणिक महत्व
- Akshaya Tritiya Puja- अक्षय तृतीया का पूजन
- Natural significance of Akshaya Tritiya-अक्षय तृतीया का प्राकृतिक महत्व
- Akshaya Tritiya festival in different regions of the Country- देश के विभिन्न क्षेत्रों में अक्षय तृतीया का पर्व
बैसाख के महीने (अप्रैल महीना) में हिन्दू नव वर्ष के आगाज के साथ ही पूरे भारत में त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है। हिन्दी नए साल के दस्तक देते ही देश का हर कोना त्योहारों के नूर से जगमगा उठता है। बैसाख के पहले दिन को देश के कई राज्यों में नव वर्ष के पर्व के रूप में मनाया जाता है। वहीं बैसाख माह के मशहूर त्योहारों में एक नाम अक्षय तृतीया का भी है, जिसे पूरे देश में खासे उत्साह के साथ मनाया जाता है।
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हिन्दू कैलेंडर के अनुसार बैसाख माह (अप्रैल महीना) की तीसरे दिन मनाए जाने वाले अक्षय तृतीया को ‘अक्ति’ और ‘अखा तीज’ भी कहा जाता है। यह पर्व ज्यादातर हिन्दू और जैन समुदाय के लोगों द्वारा भारत और नेपाल में काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
अक्षय तृतीया शब्द अक्षय ( कभी न खत्म होने वाला) और तृतीया (वैशाख माह की तृतीया तिथि को पड़ने वाला) से मिलकर बना है, जिसका मतलब कभी न खत्म होने वाली सुख-समृद्धि से हैं। अक्षय तृतीया के दिन हिन्दू धर्म और जैन धर्म में व्रत रखने की पंरपरा है। इस दिन व्रत रखने के महत्व का कल्विक पुस्तक में विस्तार से उल्लेख मिलता है।
अमूमन अक्षय तृतीया के दिन कोदेवी अन्नपूर्णा की जयंती के उलक्ष्य में मनाया जाता है। लेकिन इसके अलावा भी इस दिन का विशेष महत्व है। पौराणिक ग्रंथो की मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया के ही दिन नर-नारायण जोद्देवा जयंती,बसवेश्वर जयंती, हयग्रीव जयंती और भगवान विष्णु के छठें अवतार भगवान परशुराम जयंती के तौर पर मनाया जाता है।
मान्यता है कि अक्षय तृतीया के ही दिन ऋषि व्यास ने प्राचीन महाकाव्य महाभारत लिखना आरंभ किया था। इस महाकाव्य की रचना में भगवान गणेश ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
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Importance of Akshaya Tritiya | अक्षय तृतीया पर निबंध और महत्व | Akshaya Tritiya essay in Hindi
अक्षय तृतीया का पर्व इसलिए भी खासा महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन देश में स्थित कई मंदिरों के कपाट खुल जाते हैं। इस फेहरिस्त में पहला नाम देवभूमि उत्तराखण्ड में स्थित बद्रीनाथ मंदिर का है। बद्रीनाथ मंदिर का द्वार दीपावली के दिन बंद कर दिया जाता है, जिसे हिन्दू नव वर्ष के बाद वैशाख माह की तृतीया यानी अक्षय तृतीया के दिन खोला जाता है।
हिन्दू धर्म में मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही नर-नारायण की जोड़ी ने अवतार लिया था।ऐसा माना जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु के छठें अवतार परशुराम भी अवतरित हुए थे। जिसके कारण अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम की भी उपासना की जाती है।
वहीं उत्तर प्रदेश में वृंदावन के श्री बांकेबिहारी मंदिर में स्थित विग्रह के चरण को पूरे साल ढ़क कर रखा जाता है। श्रद्धालुओं कोविग्रह के चरणों के दर्शन करने का सुअवसर साल में सिर्फ एक दिन यानी अक्षय तृतीया के ही दिन प्राप्त होता है। जिसके चलते अक्षय तृतीया के दिन मथुरानगरी में श्रद्धालुओं का बड़ी सख्यां में जमावड़ा लगता है।
अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भागीरथी की लोखों वर्षों की तपस्या के फलस्वरूप इसी दिन गंगा धरती पर अवतरित हुईं थीं। इसीलिए माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है।
हिन्दू धार्मिक ग्रंथ महाभारत में अक्षय तृतीया का जिक्र मिलता है। महाभारत के अनुसार भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को अक्षय तृतीया का महत्व समझाते हुए कहा था कि, ‘बैसाख माह की तृतीया तिथि को किया गया दान और प्रसाद कभी क्षय नहीं होता है इसीलिए इस तिथि को अक्षय तृतीया का नाम दिया गया है।’
Mythological significance of Akshaya Tritiya- अक्षय तृतीया का पौराणिक महत्व
धार्मिक महत्व के अलावा अक्षय तृतीया का पौराणिक महत्व भी है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जब सभी युग- कृतिका, त्रेता, द्वापर और कलियुग एक साथ आते हैं, तो ‘महायुग’ कहलाते है। ये चार युग महान युग के चार चरण माने जाते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही कृतयुग (सतयुग) का अंत और त्रेतायुग का आरंभ माना जाता है।
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Akshaya Tritiya Puja- अक्षय तृतीया का पूजन
हिन्दू धर्म में अक्षय तृतीया के दिन स्नान-दान के साथ विशेष पूजा की जाती है। इस दिन सूर्योदय के समय नदी में स्नान करने की परंपरा है। स्नान के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात पंखा, चावल, नमक, घी, चीनी, इमली, फल और कपड़े आदि दान किए जाते हैं। साथ ही अक्षय तृतीया के दिन महत्वपूर्ण रूप से जौ खाया जाता है। इस दिन कपड़े, लोहा और गहनों की खरीददारी के अलावा शुभ काम जैसे गृह प्रवेश, वित्तीय लेन-देन को भी बहुत शुभ माना गया है।
अक्षय तृतीया का दिन पूर्वजों के ऋण को उतारने के दिन के रूप में जाना जाता है।इस दिन देवी-देवताओं के पूजन के अलावा पितरों का श्राद्ध भी किया जाता है। इस दिन मिट्टी के बर्तन में पानी भर कर उसमें कई सुगंधित प्रकृतिक पदार्थ मिलाने के बाद ब्राह्मणों को दान किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्वज तृप्त होते हैं।
इसके अलावा महाराष्ट्र में ज्यादातर महिलाएँ चैत्र के महीने (मार्च महीना) में आदिशक्तिमाता गौरी की स्थापना और पूजन करती हैं। महाराष्ट्र में इसे गोरी उत्सव या हल्दीकुंकु समारोहकहा जाता है।
इस समारोह में सभी महिलाएँ पूजा स्थल पर एकत्रित होकर नारियल के फूल की माला, आम के बौर और पान एक-दूसरे को देते हुए सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। चैत्र में आरंभ हुए गौरी उत्सव का वैशाख की तृतीया यानी अक्षय तृतीया के ही दिन अंतिम दिन होता है। इसीलिए महाराष्ट्र में इस दिन माता गौरी की विशेष उपासना की जाती है।
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Natural significance of Akshaya Tritiya-अक्षय तृतीया का प्राकृतिक महत्व
अक्षय तृतीया के दिन का महज पौराणिक ही नहीं बल्कि प्राकृतिक महत्व भी हैं। खासकर कृषि संस्कृति में इस दिन को बेहद खास माना गया है। यही कारण है कि देश के कई क्षेत्रों में भगवान कृष्ण के दाऊ भइया यानी बलराम को कृषि संस्कृति के संरक्षक के रूप में पूजा जाता है।
दरअसल अक्षय तृतीया तक ज्यादातर रबी फसलों की कटाई हो जाती है और खेत खाली हो जाते हैं। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन को खरीफ फसलों की शुरूआत का दिन माना जाता है। जिसकी शुरूआत खेतों की जुताई के साथ आरंभ होती है।
अक्षय तृतीया के बाद अमूमन बारिश शुरू हो जाती है। इसीलिए कई किसान इसी दिन को शुभ मानते हुए अपने खेतों की जुताई करते हैं और खेत में खाद डालकर मिट्टी को ज्यादा उपजाऊ बनाते हैं। जिसके कारण इस पर्व का खेती के लिए विशेष महत्व है।
महाराष्ट्र के कोंकण में अक्षय तृतीया के दिन खेतों में खरीफ फसलों के बीज बोने का रिवाज है। यहाँ मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन बीज बोना काफी शुभ होता है और इस दिन बोये बीजों से प्रचुर मात्रा में अनाज पैदा होता है। हालांकि इस मान्यता का एक वैज्ञानिक मत यह भी है कि महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में बारिश काफी ज्यादा होती है। जिसके कारण मानसून आने के बाद यहाँ के खेतों की उपजाऊ मिट्टी में बीज बोना लगभग असंभव हो जाता है।
इसीलिए यहाँ मानसून आने के पहले अक्षय तृतीया के दिन ही खेतों की जुताई कर बीज छिड़क दिए जाते हैं। कोंकण के अपवाद को छोड़ दें तो देश के बाकी हिस्सों में अक्षय तृतीया के दिन सिर्फ खेतों की जुताई होती, बीज नहीं बोये जाते हैं।
अक्षय तृतीया का प्राकृतिक महत्व महज खेतों और फसलों तक ही सीमित नहीं है बल्कियह पेड़-पौधों पर भी उतना ही लागू होता है। देश के कई क्षेत्रों में ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर लगाए गए बाग में फलों की पैदावर अच्छी-खासी होती है। साथ ही अक्षय तृतीया के दिन आयुर्वेद के पौधे लगाना भी काफी शुभ होता है।
Akshaya Tritiya festival in different regions of the Country- देश के विभिन्न क्षेत्रों में अक्षय तृतीया का पर्व
अक्षय तृतीया के पर्व के कई महत्व होने के कारण यह त्योहार पूरे भारत में अलग-अलग मान्यताओं और विभिन्न रिवाजों के साथ मनाया जाता है। उत्तर भारत में अक्षय तृतीया के पर्व पर भगवान परशुराम की जयंती पूरे भक्ति-भाव के साथ मनायी जाती है। अक्षय तृतीया के दिन यहाँ गंगा की पवित्र जलधारा में डुबकी लगाना, अन्न और धन का दान करना तथा तीर्थ यात्रा करने की परंपरा है। साथ ही इस दिन ब्राह्मणों को जौ और चने के आटे से बना सत्तू खिलाने का भी रिवाज हैं।
उड़ीसा में अक्षय तृतीया को ‘मुथी चौहान’ कहते हैं। उड़ीसा की पारंपरिक मशहूर जगन्नाथ रथयात्रा का आरंभ मुथी चौहान के दिन से ही होता है। साथ ही इस दिन राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में कई रथयात्राएँ भी निकाली जाती हैं। अक्षय तृतीया का किसानों में भी खासा महत्व है। इस दिन उड़ीसा में ज्यादातर किसान सुख-समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं, जिसके बाद खेतों में नए अनाज बोए जाते हैं। इसके अलावा अक्षय तृतीया के दिन उड़ीसा में पत्तेदार सब्जियों और मांस का सेवन करना निषेध माना जाता है।
दक्षिण भारत में अक्षय तृतीया के दिनभगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के साथ धन के देवता कुबेर की भव्य पूजा करने का रिवाज है। वहीं पश्चिम बंगालव्यापारिक समुदाय मेंअक्षय तृतीया के पर्व को काफी शुभ दिन माना जाता है। पश्चिम बंगाल में इस दिन प्रथम पूज्य गणेश और माता लक्ष्मी की विशेष उपासना की जाती है। ज्यादातर व्यापारी इस दिन नए कारोबार का शुभारंभ करते हैं, तो कई व्यापारी महत्वपूर्ण वित्तिय लेन-देन के लिए अक्षय तृतीया के दिन को ही चुनते हैं।
राजस्थान में भी अक्षय तृतीया के दिन को काफी शुभ माना जाता है। जिसके कारण राजस्थान के कई क्षेत्रों में अक्षय तृतीया के दिन शादी-विवाह और गृह प्रवेश जैसे शुभ काम करने का रिवाज है। इस दिन राजस्थान में कई विवाह समारोह का आयोजन काफी आम बात है।
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References
2020, Akshaya Tritiya, Wikipedia
2020, अक्षय तृतीया, विकिपीडिया