What is GDP? जीडीपी क्या है–
Full form of GDP – जीडीपी को किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के विकास स्तर को समझाने के लिए प्रयोग किया जाता है। जिस देश की जीडीपी अधिक होती है उस देश की अर्थव्यवस्था को अच्छा समझा जाता है और अगर जीडीपी मे गिरावट आए तो उस देश की अर्थव्यवस्था मे गिरावट समझी जाती है। जिसके लिए उस देश की सरकार को जिम्मेदार समझा जाता है। क्योंकि सरकार ही अपने देश की आर्थिक नीति का निर्धारण करती है। और अगर यह नीति गलत हो तो इसके लिए पूरे देश को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
जीडीपी शब्द का उपयोग सबसे पहले अमेरिका के अर्थशास्त्री साइमन के द्वारा 1935-44 के बीच किया गया था। इस समय के दौरान विश्व की बड़ी- बड़ी बैंकिग संस्थाएं देश के आर्थिक विकास को मापने के लिए कार्य कर रही थी। लेकिन तब तक ऐसा संभव नही था कि किसी देश की अर्थव्यवस्था को समझ कर दूसरों को समझाया जा सके।
इसी समय के दौरान अमेरिका की संसद मे जिसे कांग्रेस कहा जाता है अर्थशास्त्री साइमन ने जीडीपी के बारे मे कई तर्क दिए जिसके पक्ष मे अधिकांश लोग सहमत हुए। तभी से अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोश (IMF) ने इसका उपयोग करना शुरु कर दिया था। और फिर धीरे- धीरे सभी देशों ने इस शब्द का उपयोग करना शुरु कर दिया।
Full form of GDP in Hindi जीडीपी का फुल फॉर्म क्या होता है?
Full form of GDP | Gross domestic product |
GDP in Hindi | सकल घरेलू उत्पाद |
Ministry | Ministry of Statistics and Programme Iplementation |
GDP & CO, address | 96P, LGF, Sector 30, Gurugram, Haryana 122001 |
Official website | mospi.nic.in |
जीडीपी का फुल फॉर्म होता है “ग्रोस डोमेस्टिक प्रोडक्ट” (Gross domestic product) जिसे हिन्दी मे सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है। इसका उपयोग किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को मापने के लिए किया जाता है।
किसी भी देश की सीमा के अंदर उत्पादित वस्तु और सेवा का बाजार मे मूल्य कितना है। अगर इसका मूल्य अधिक है तो देश मे विदेशी मुद्रा अधिक आएगी जिससे देश के विकास की गती तेज हो जाती है और यदि उस देश की उत्पादित वस्तु का मूल्य कम है तो उस देश की आर्थिक स्थिति सही नही है।
(Gross domestic product)- जीडीपी का उपयोग किसी भी देश की आर्थिक स्थिति को मापने के लिए किया जाता है। यह आर्थिक स्थिति मापने का पैमाना है। हर तीन महीने मे देश की आर्थिक स्थिति को मापा जाता है। जीडीपी के अंतर्गत कृषि, उधोग व सेवा ये तीनो चीज़ें आती है। जब इन क्षेत्रो मे उत्पादन बढ़ता है और घटता है। इसके आधार पर ही जीडीपी दर तय की जाती है।
How do GDP come out जीडीपी कैसे निकालें
“ग्रोस डोमेस्टिक प्रोडक्ट” (Gross domestic product) निकालने के लिए इस सूत्र का प्रयोग किया जाता है।
सकल घरेलू उत्पाद = नीजी खपत + सकल निवेश + सरकारी निवेश + सरकारी खर्च + ( निर्यात- आयात) जीडीपी डिफ्लेटर (अपस्फीतिकारक) की ज़रुरत होती है।
इस सूत्र का उपयोग करके मुद्रा स्फीति को मापा जाता है। इसकी गणना करने के लिए वास्तविक जीडीपी मे से अवास्तविक (नामिक) जीडीपी को विभाजित किया जाता है और इसे 100 से गुणा किया जाता है।
GDP (कुल घरेलू उत्पाद) = उपभोग (consumption) + कुल निवेश
GDP = C + I + G + (X – M)
जीडीपी प्रस्तुत कैसे करें
जीडीपी का फुल फॉर्म होता है “ग्रोस डोमेस्टिक प्रोडक्ट”। अब हम जानेंगे की इसको प्रस्तुत कैसे करते हैं उत्पादन की कीमतें महंगाई के साथ कम ज्यादा होने के कारण जीडीपी को दो तरह से प्रस्तुत किया जाता है। वो इस प्रकार है-
1. कॉन्टैंट प्राइस
2. करेंट प्राइस
1. कॉन्टैंट प्राइस– सांख्यिकी विभाग उत्पादन व सेवाओं के संपूर्ण मूल्यांकन के लिए एक आधार वर्ष तय किया जाता है। फिर इस वर्ष के दौरान जो भी कीमतें हैं उन्हे आधार बनाया जाता है। और फिर उसके आधार पर ही उत्पादन की कीमत और तुलनात्मक वृद्धि दर तय होती है। इस प्रकार यह किसी भी देश को जीडीपी को सही प्रकार से मापने की एक प्रक्रिया है।
2. करेंट प्राइस- जीडीपी के उत्पादन मूल्य मे महंगाई की दर को जोड़ने पर आर्थिक उत्पादन की मौजूदा कीमत प्राप्त होती है। इसका मतलब होता है कि आपको कॉन्टैंट प्राइस जीडीपी को तात्कालिक महंगाई की दर से जोड़ना होता है।

आधार वर्ष (बेस इयर) क्या होता है
आधार वर्ष मे मान लीजिए वर्ष 2010 मे 100 रु की सिर्फ तीन वस्तुएँ बनी तो कुल जीडीपी हुई 300 रुपये। अब वर्ष 2016 तक इस वस्तु का उत्पादन सिर्फ दो रह गया लेकिन कीमत हुई 150 रुपये और नॉमिनल जीडीपी हुई 300 रुपये। अब देखने वाली बात यह है कि यहां तरक्की हुई या नही। अब यही चीज़ जानने के लिए बेस इयर या आधार वर्ष का फार्मूला काम करता है। यह जानने के लिए 2010 की कॉन्टैंट प्राइस के अनुसार जीडीपी 100 रुपये थी जिसके अनुसार वास्तविक जीडीपी हुई 200 रुपये। इससे ये पता चलता है कि जीडीपी मे गिरावट हुई।
सी एस ओ के द्वारा मुख्य रुप से आठ औधोगिक क्षेत्रों के आकड़े देखे जाते हैं। कृषि, बिजली, खनन, कंस्ट्रक्शन, रक्षा, मैन्यूफैक्चरिंग, व्यापार और अन्य सेवाएं। और इन आकड़ों के अनुसार डबल्यू पी आई और सीपीआई का प्रयोग करके जीडीपी निकाली जाती है।
भारत मे जीडीपी आंकड़ों के तय करने वाली संस्था
जीडीपी तय करना एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि इसी पर पूरे देश का आर्थिक विकास तय किया जाता है। भारतीय सरकारी संस्था (सी एस ओ) यानी केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (Central statistics office) द्वारा पूरे देश के उत्पादन और सेवाओं के द्वारा जीडीपी के आंकड़ें तय किए जाते है। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय पूरे देश के संपूर्ण उत्पादन और सेवाओं का आंकड़ा जुटाता है। और फिर इसी आधार पर जीडीपी तय को तय करता है। इसमे भी कई सूचकांक होते हैं जैसे औधोगिक उत्पादन सूचकांक (आई आई पी) एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सी पी आई)।
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नॉमिनल जीडीपी और रियल जीडीपी मे अंतर
GDP की गणना दो प्रकार से की जाती है। नॉमिनल GDP और रियल GDP इसलिए इनके अंतर को जानना बहुत ही ज़रुरी होता है। इसलिए हम आपको इनके बारे मे जानकारी दे रहे हैं। जो इस प्रकार है।
नॉमिनल GDP
जब एक संपूर्ण वर्ष के अंदर उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की गणना बाजार मूल्यों या करेंट प्राइस के आधार पर की जाती है। तो GDP का मूल्य प्राप्त होता है। उसे ही नॉमिनल GDP कहा जाता है। इसमे मुद्रास्फ़ीति की मुद्रा भी शामिल की जाती है।
रियल GDP
रियल GDP का अर्थ होता है। एक साल मे उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों की गणना आधार वर्ष के मुख्य या फिर स्थिर प्राइस पर की जाए। तो GDP का मूल्य प्राप्त हो जाएगा।
अगर क्रय शक्ति के आधार पर देखा जाए तो भारत, दुनिया भर की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और स्थिर प्राइस के आधार पर भारत दुनिया की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
आम लोगों से GDP संबंध

देश के आर्थिक विकास और स्थिति के साथ GDP का सीधा संबंध होता है। इसलिए GDP का असर आम लोगों पर भी पड़ता है। अगर GDP के आकड़े अच्छे नही होंगे तो यह देश की आर्थिक तंगी को दर्शाएगा। और इसके साथ अगर GDP कम होती है तो लोगों की औसत आय मे भी कमी होती है। इसके साथ ही लोग गरीबी रेखा के नीचे आ जाते हैं। और नौकरियाँ भी कम उपलब्ध होती हैं, इसलिए कंपनियां अपने वर्कर्स को निकाल ने लगती हैं। और फिर लोगों की बचत और निवेश भी कम हो जाता है।
जीडीपी GDP पर भरोसे को लेकर आलोचनाएं
GDP को लेकर लोगों को बीच यह आलोचना रहती है कि इसे जीवन स्तर का पैमाना नही माना जा सकता। लेकिन इसमे एक अच्छी बात है कि हर तीन महीने मे या फिर समय- समय पर ज़ारी किया जाता है। और इसमे कई चीज़े शामिल नही होती हैं जैसे देश से बाहर होने वाले नागरिकों या कंपनियों की आय इसके साथ ही इसमे बाजार से बाहर हो रहे लेन- देन को भी नही मापा जा सकता।
इस लेख मे हमने आपको GDP से संबंधित सभी जानकारी देने की कोशिश की है। इस लेख को पड़ने के बाद आपको पता चल गया होगा की GDP का फुल फॉर्म (Gross domestic product) होता है और यह कैसे काम करता है।