योगा पर निबन्ध | essay on yoga in Hindi

सफलता तीन चीजों से मापी जाती है – धन, प्रसिद्धी और मन की शांति

धन और प्रसिद्धी पाना आसान है, लेकिन मन की शांति केवल योग से ही मिलती है।

भारतीय संस्कृति से योग का जुड़ाव सदियों पुराना है। शायद यही कारण है कि इतिहास ने ढ़ेरों करवटें लीं, समय बदला, सम्राज्य बदले, शासक बदले, सीमाएं बदलीं और परिस्तिथियां भी बदलीं, लेकिन कुछ चीजों का महत्व जस का तस बरकरार रहा और बदलते समय में वही चीजें भारतीय सभ्यता की शान बनकर उभरी। योग भी भारतीय संस्कृति की एक ऐसी ही सभ्यता का उदाहरण है।

योगा हर इसांन के जीवन में एक अहम भूमिका निभाता है। वहीं योग का भारतीय संस्कृति से भी सदियों पुराना नाता रहा है। योगा का जिक्र सर्वप्रथम वेदों में मिलता है, जिनके अनुसार, वैदिक काल में सूर्योदय के समय योगा करने का प्रचलन था।

इसके बाद चौथी शताब्दी में पणिनि ने संस्कृत के युज शब्द से योगा को नाम दिया, जिसका अर्थ होता है जोड़े रखना। वहीं योगा को पहली बार पन्नों पर उतारने का काम  वेद व्यास द्वारा योगसूत्र के रुप में किया गया। योगसूत्र में व्यास ने क्रिया योग का जिक्र करते हुए रोजमर्रा के कार्यों में योगा को सबसे अहम स्थान दिया है।

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इसी कड़ी में योगा भारतीय संस्कृत में काफी प्रसिद्ध हो गया। प्राचीन ग्रंथों में योग का अभ्यास करने वाले पुरुषों को योगी और महिलाओं को योगिनी कहा जाने लगा। योगा सिर्फ मानसिक और शारीरिक गतिविधियों के लिए ही नहीं है, बल्कि यह खुद को पहचानने और परमात्मा से जुड़ने का एकमात्र साधन भी है। योग गुरु पंतजलि के शब्दों में-

योग मन को शांति में स्थिर करना है। जब मन स्थिर हो जाता है , हम अपनी आवश्यक प्रकृति में स्थापित हो जाते हैं , जोकि असीम चेतना है। हमारी आवश्यक प्रकृति आम तौर पर मस्तिष्क की गतिविधियों द्वारा ढक  दी जाती है।

हिन्दू धर्म ग्रंथों से परे योग के महत्व को महायान बौद्ध ग्रंथों और इस्लाम धर्म के धार्मिक ग्रंथ कुरान शरीफ में भी दर्शाया गया है। हिन्दू धर्म में जहां ध्यान लगा कर बैठे भगवान शिव को आदियोगी की संज्ञा दी गयी है, तो ब्रह्मा को भी योग की मुद्रा में और विष्णु को योगनिद्रा में दर्शाया गया है। वहीं बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध की ज्यादातर आकृतियां योगमुद्रा में ही मौजूद हैं।

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वास्तव में योगा का जिक्र भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही मिलना शुरु हो जाता है। योगा के उद्भव को लेकर अमूमन दो मत हैं। पहले मत के अनुसार योगा की पहल भारतीय उपमहाद्वीप पर सर्वप्रथम आर्यों द्वारा की गयी, जिसे बाद में ग्रंथों में पिरोया गया और इसका प्रचार-प्रसार बौद्ध धर्म ने किया। वहीं दूसरे मत के अनुसार योगा की पहल भारत की ही देन है।

योगा से जुड़ी लेखिनियों की बात करें तो ऋगवैदिक काल में सबसे पहले उपनिषदों में योगा का जिक्र हुआ। जिसके बाद 500 ईसा.पूर्व से 200 ईसा.पूर्व के बीच योगा नवउदित बौद्ध धर्म और जैन धर्म का भी हिस्सा बन गया। भगवत गीता में भी योग का जिक्र करते हुए लिखा है कि-

योग को दृढ संकल्प और अटलता के साथ बिना किसी मानसिक संदेह या संशय के साथ किया जाना चाहिए। कर्म योग में कभी कोई प्रयत्न बेकार नहीं जाता, और इससे कोई हानि नहीं होती। इसका थोड़ा सा भी अभ्यास जन्म और मृत्यु के सबसे बड़े भय से बचाता है।

5वीं शताब्दी में योग गुरु पंतजलि द्वारा रचित पंतजलीयोगसूत्र में इसका उल्लेख किया गया। जिसमें उन्होंने योगा के आठ सूत्रों को विस्तार से पिरोया है। ये आठ सूत्र यम, नियम, आसन, प्रणायाम, प्रत्यहारा, धरना, ध्यान और समाधि हैं। पंतजलि के अनुसार, योग मन को स्थिर करने की क्रिया है।

प्राचीनकाल में योगा अपने चरम पर होने के बाद मध्यकाल में लगातार कई विदेशी आक्रमण के चलते इसकी चमक थोड़ी फीकी पड़ गयी, क्योंकि विदेशी शासकों ने योगा के प्रति कुछ ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई।

हालांकि शासकों से परे भक्ति आंदोलन के दौरान कई वैष्णव और अलवर संतों ने योगसूत्र का उपयोग अपनी लेखनियों में करते हुए वियोग रस, भक्ति रस और वैराग्य रस को तवज्जो दी। सूरदास द्वारा रचित गोपी-उद्धव संवाद इसी काल में लिखे वैराग्य रस का एक हिस्सा है।

वहीं मध्यकाल के दौरान बौद्ध धर्म में योग का महत्व फीका नहीं पड़ा, जिसका मुख्य कारण था भगवान बुद्ध का योगमुद्रा में बैठकर ध्यान लगाना। भगवान बुद्ध के अनुसार-

ध्यान से ज्ञान आता है; ध्यान की कमी अज्ञानता लाती है। अच्छी तरह जानो कि क्या तुम्हे आगे ले जाता है और क्या तुम्हे रोके रखता है, और उस पथ को चुनो जो ज्ञान की ओर ले जाता है।

15वीं और 16वीं शताब्दी में गुरुनानक द्वारा सिख धर्म की नींव रखने के बाद योग सिख धर्म का भी अभिन्न अंग बन गया। गुरु ग्रंथ साहिब में भी योग को रब तक पहुंचने का साधन करार दिया गया है।

हालांकि आधुनिक काल में 19वीं शताब्दी के अंत तक योगा ने फिर से उभरना शुरु किया। इस दैरान अंग्रेजी शासन का दौर होने के चलते कुछ ही समय में भारतीय संस्कृति का यह अमूल्य भाग पश्चिमी शिक्षा का हिस्सा बन गया। वहीं वेदांन्ता और स्वामी विवेकानन्द ने भी योग का खासा महत्व दिया है।

योगा का आशय सिर्फ साधना या ध्यान से नहीं है, बल्कि इसमें शारीरिक गतिविधियों से भी जुड़े कई आसन विद्यमान हैं। अमूमन योगा प्रणायाम जैसी शारीरिक व्यायाम से शुरु होकर मन की शांति के लिए ध्यान पर खत्म होता है। योगा के विषय में अमित रे कहते हैं-

योग एक धर्म नहीं है। यह एक विज्ञान है, सलामती का विज्ञान, यौवन का विज्ञान, शरीर, मन और आत्मा को एकीकृत करने का विज्ञान है।

20वीं शताब्दी को योगा के नवनिर्माण का युग भी कहा जा सकता है। इस दौरान सदियों से महज ध्यान तक सीमित योगा के नए आसनों का परिचय कराया गया। जिनमें, हाथ योग, सूर्य नमस्कार, अष्टंग विन्यास योगा, पावर योगा, सिद्धासन और पद्मासन का विकास होना शुरु हुआ।

जब आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मन की शांति महज एक कल्पना बनकर रह गयी है। ऐसे में योग ने एक बार फिर लोगों को रास्ता दिखाया है और आज आलम यह है कि बड़े बिजनेसमैन से लेकर आम विद्यार्थी तक सभी ने योग को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है।

योग के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए 2015 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने 21 जून को अतंर्राष्ट्रीय योगा दिवस घोषित कर दिया है। तब से हर साल 21 जून के दिन न सिर्फ भारत बल्कि समूचा विश्व अतंर्राष्ट्रीय योग दिवस खासे उत्साह के साथ मनाता है।

वहीं योगा के प्रति लोगों में बढ़ती जागरुकता और इसके सदियों पुराने इतिहास के मद्देनजर यूनेस्को ने भी योगा को 1 दिसम्बर 2016 को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का दर्जा दिया है।

भारत में भी 21 जून के दिन जगह-जगह भव्य योगा समारोह का आयोजन किया जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी समेत देश की कई दिग्गज हस्तियां हिस्सा लेती हैं। 2015 से हर साल आयोजित होने वाले विभिन्न योगा समारोहों में भारत सरकार का आयुष मंत्रालय महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2015 में पहली बार भारत ने इतिहास रचते हुए सबसे भव्य योगा कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली के राजपथ पर 84 देशों के गणमान्यों सहित 35,985 लोगों के साथ कुल 21 प्रमुख आसन किए थे। सूर्य नमस्कार से शुरु होने वाला यह आसन कुल 35 मिनट तक चला था।

जाहिर है योगा दिवस पर भारत के इस भव्य आयोजन ने योग के महत्व को वैश्विक पटल पर उजागर किया। इसका एक उदाहरण तब देखने को मिला जब योगा दिवस के दिन बुल्गेरिया के प्रधानमंत्री ने पीएम मोदी को वीडियो संदेश के जरिए अंतर्राष्ट्रीय योगा दिवस की बधाई दी।

वर्तमान में न सिर्फ सरकार बल्कि कई अन्य भारतीय भी योगा और आयुर्वेद के रुप में दुनिया को भारत की प्राचीन सभ्यता की झलक प्रस्तुत करने में जुटें है। योग गुरु बाबा रामदेव के नेतृत्व में पंतजलि ब्रांड इसी का एक उदाहरण है। बाबा रामदेव जीवन में योगा के महत्व का जिक्र करते हुए कहते हैं-

प्राणायाम बुनियादी सांस लेने का व्यायाम है जो ऑक्सीजन को तुम्हारे शरीर के सभी भागों तक पहुँचाने में मदद करता है जिससे न सिर्फ कोशिकाओं को फिर से जीवंत कर देता है बल्कि तुम्हारे अंदर बहुत सारी ऊर्जा भी भर देता है। मेरे अनुसार , एक इंसान को छः घंटे  सोना, एक घंटा योग , एक घंटा दैनिक दिनचर्या , दो घंटा परिवार के साथ जरुर व्यतीत करना चाहिए।

हाल में कोरोना वायरस महामारी के दौरान भी योगा ने दुनिया में अपना लोहा मनवाया है। इस दौरान दुनिया भर में लॉकडाउन लगने के कारण घरों में बंद कई लोगों ने योगा को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है।

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