अमूमन शिक्षक की परिभाषा को कुछ शब्दों में समेटना लगभग नामुमकिन सा है। शिक्षक की परिभाषा महज विद्यालय या शिक्षण संस्थानों तक सीमित नहीं है बल्कि हर वो इंसान जिससे हमे कुछ नया और अच्छा सीखने को मिलता है, वो हमारी जिंदगी में शिक्षक की भूमिका निभाता है।
कहा जाता है कि, हर बच्चे की पहली शिक्षक उसकी मां होती है। दरअसल जन्म के बाद मां ही वो पहली शख्सियत होती है, जो हमें दुनिया के तौर-तरीकों, समाज के नियमों और परिवार के रिश्तों से रुबरु कराती है। जिंदगी के शुरुआती दिनों में बच्चा माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों से बहुत कुछ सीखता है।
वहीं कुछ समय बाद घर से बाहर निकलने पर एक बच्चे का सबसे पहला सामना अध्यापक से होता है। हर बच्चे के स्कूल का पहला दिन लगभग एक जैसा ही होता है, जहां एक तरफ नए लोगों से मिलने की उत्सुकता होती है, तो पहली बार माता-पिता के बिना अकेले दुनिया का सामना करने का डर भी सताता है। मशहूर दार्शिनिक अरस्तु इस विषय में लिखते हैं-
“जो बच्चों को अच्छी तरह से शिक्षित करते हैं उन्हें उन लोगों की तुलना में ज्यादा सम्मानित किया जाना चाहिए जो उन्हें पैदा करते हैं, क्योंकि इन्होंने केवल उन्हें जीवन दिया है लेकिन शिक्षक उन्हें जीवन जीने की कला सिखाते है।“
भारतीय संस्कृति में गुरु को हमेशा से भगवान का दर्जा दिया जाता है। वैदिक काल से लेकर वर्तमान समय तक गुरु और शिष्य की परंपरा भारतीय विरासत का अमूल्य हिस्सा रही है। जिसके प्रमाण कई पौराणिक ग्रंथों में भी मिलते हैं।
रामचरितमानस में भगवान राम को उनके भाईयों के साथ गुरुकुल जाकर गुरु वशिष्ठ से शिक्षा प्राप्त करने का जिक्र किया गया है। तो वहीं गीता में भी शिक्षक के योगदान को सर्वोच्च माना गया है।
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मौर्य साम्राज्य की नींव रखने वाले प्रसिद्ध अर्थशास्त्री चाणक्य से लेकर जीरो की खोज करने वाले आर्यभट्ट तक भारतीय इतिहास में प्राचीन काल भी कई महान शिक्षकों का गवाह रहा है। यहां तक कि प्राचीन काल में समूची दुनिया को जीतने वाला सिकन्दर महान भी गुरु को ही अपने जीवन का आधार बताते हुए कहता है कि-
“मैं जीने के लिए अपने पिता का ऋणी हूँ, पर अच्छे से जीने के लिए अपने गुरु का।“
कालांतर में तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय में दुनिया के महान शिक्षकों की उपस्थिति के कारण न सिर्फ देश-विदेश से लाखों की तादाद में विद्यार्थी यहां पढ़ने आते थे बल्कि अपनी कुशल शिक्षा व्यवस्था के माध्यम से भारत को विश्व गुरु कहा जाता था।
भारत में सदियों से कई साम्राज्य बनते और बिखरते रहे, लेकिन गुरु का महत्व जस का तस कायम रहा। मध्यकाल में भक्ति आंदोलन के दौरान एक बार फिर गुरुओं की भूमिका अपने शिखर पर थी। इस दौरान कई संतों ने गुरु को भगवान से भी ऊपर बताया। कबीरदास के शब्दों में-
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताये।।
हालांकि समय-समय पर बदलते वक्त के साथ शिक्षकों की भूमिका में भी काफी बदलाव देखने को मिला। भारत में ब्रिटिश राज्य स्थापित होने के बाद जहां एक तरफ शिक्षा का आधुनिकीकरण हो गया और पश्चिमी शिक्षी को बढ़ावा मिलने लगा, वहीं अंग्रेजी मिशनरियों ने देश के उच्चवर्ग को ही शिक्षा के योग्य समझा।
आधुनिक काल में स्वामी विवेकानन्द, सावित्री बाई फूले और बाल गंगाधर तिलक जैसे अध्यापकों ने अंग्रेजी शिक्षा का विरोध करते हुए शिक्षा के भारतीयकरण को बढ़ावा दिया।
बेशक वर्तमान में देश की शिक्षा व्यवस्था प्राचीन भारत की अपेक्षा फीकी पड़ी गयी है, लेकिन भारत आज भी शिक्षकों की फेहरिस्त में किसी से पीछे नहीं है। भारत आज भी डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और आनन्द कुमार जैसे शिक्षकों की सरजमी कहलाता है, जिन्होंने देश की शिक्षा व्यवस्था में अपना अमूल्य योगदान दिया है। देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के लिए शिक्षकों के योगदान का जिक्र करते हुए डॉक्टर ए.पी.जे अब्दुल कलाम कहते हैं कि-
“अच्छा शिक्षक वह है जो बच्चों को प्यार करता है तथा पढ़ाने में उसे आनन्द आता है। उसे औसत विद्यार्थी को अपना प्रदर्शन सुधारने में मदद करनी चाहिए, उसे अपने व्यवसाय को एक लक्ष्य की तरह लेना चाहिए, जिसमें वह किसी विद्यार्थी को केवल पढ़ाता ही नहीं हो बल्कि वह एक समझदार नागरिक पैदा कर रहा हो जो भविष्य में देश में परिवर्तन लाने वाला हो।“
वास्तव में शिक्षक एक मार्गदर्शक के साथ-साथ जीवन को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक अच्छा शिक्षक कभी दोस्त बनकर प्यार से समझाता है, तो कभी गलती करने पर बेझिझक फटकार लगाने से भी गुरेज नहीं करता है। मशहूर वैज्ञानिक एलबर्ट आइंस्टीन के शब्दों में-
“रचनात्मक अभिव्यक्ति और ज्ञान में प्रसन्नता जगाना शिक्षक की सर्वोत्तम कला है।“
यह आवश्यक भी नहीं है कि दुनिया का हर शिक्षक जीवन में योगदान देता है। अगर हम शिक्षक से कुछ अच्छी बातें सीखते हैं तो कुछ शिक्षकों के बुरे गुणों से भी अछूते नहीं रह पाते हैं। यही कारण है कि ज्यादातर बच्चों को अपने शिक्षकों की आदतें और बात करने की शैली रटी होती है। विलियम आरथर के अनुसार शिक्षक कई प्रकार के होते हैं-
“एक औसत दर्जे का शिक्षक बताता है। एक अच्छा शिक्षक समझाता है। एक बेहतर शिक्षक कर के दर्शाता है। एक महान शिक्षक प्रेरित करता है।“
हाल में कोरोना वायरस की त्रासदी के चलते अब शिक्षकों की भूमिका महज विद्यालयों तक सिमट कर नहीं रह गयी है बल्कि डिजीटलीकरण के दौर ने अध्यापकों की संख्या और चुनौतियों में काफी वृद्धि भी की है। ऑनलाइन कक्षाओं ट्रेंड बढ़ने के बावजूद आज बच्चे सिर्फ स्कूल के अध्यापक पर निर्भर न होकर चीजों को समझने के बड़े पैमाने पर इंटरनेट की सहायता ले रहे हैं, जहां लाखों की तादाद में लोग किसी न किसी रुप में एक-दूसरे को शिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं।
देश में शिक्षकों की अहम भूमिका को सम्मानित करने के लिए पांच सितम्बर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। भारत सरकार ने 1962 में जाने-माने शिक्षक और देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णनन को सम्मानित करने के लिए उनकी जन्म तिथि पांच सितम्बर को शिक्षक दिवस घोषित कर दिया था। इस दिन स्कूलों में रंगा-रंग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है और सभी बच्चे शिक्षकों को उपहार भेंट करते हुए शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं देते हैं। teachers day
यही नहीं हिन्दू पंचाग के मुताबिक, अषाढ़ मास की पूर्णवासी को गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाया जाता है। यह पर्व न सिर्फ भारत बल्कि नेपाल में भी हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने भी 1994 में पांच अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस (world teachers day) घोषित किया था। इसके अलावा अर्जेंटीना में 11 सितम्बर, आस्ट्रेलिया में अक्टूबर के आखिरी शुक्रवार, चीन में 10 सितम्बर, इंडोनेशिया में 25 नवम्बर, सिंगापुर में सितम्बर के पहले शुक्रवार, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, अरमेनिया, कनाडा, रुस, पाकिस्तान और सऊदी अरब में 5 अक्टूबर, तुर्की में 24 नवम्बर और अमेरिका में मई के पहले सप्ताह को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है।
शिक्षक दिवस पर कविता | Poem on teacher day
माताएं देतीं नवजीवन, पिता सुरक्षा करते हैं।
लेकिन सच्ची मानवता, अध्यापक जीवन में भरते हैं।।
सत्य न्याय के पथ पर चलना, अध्यापक हमें बताते हैं।
जीवन संघर्षों से लड़ना, अध्यापक हमें सिखाते हैं।।
गुरु ईश से बढ़कर हैं, यह कबीरदास जी कहते हैं।
क्योंकि गुरु ही भक्तों को, ईश्वर तक पहुंचाते हैं।।
जीवन में यदि कुछ पाना है, तो अध्यापक का सम्मान करो।
शोभा झुक कर आदर से, तुम बच्चों इन्हें प्रणाम करो।।
Essay on my favourite teacher in hindi | निबंध – मेरे प्रिय शिक्षक हिन्दी में | My favourite teacher #myfavouriteteacher #teachersday
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