गुरुभक्त आरुणि, उपमन्यु और वेद की कथा | aruni upmanyu aur ved ki katha in hindi
भूमि ऋषि वन में अपने आश्रम में रहते थे। उनके तीन शिष्य थे आरुणि उपमन्यु और वेद। आरुणि आश्रम में ही रहता था।
एक दिन आरुणि जंगल से लकड़ियां इकट्ठी करके आश्रम लौट रहा था। ठंड का मौसम था। अचानक तेज बारिश होने लगी। खेतों में पानी भर गया। जब वह एक खेत से निकल रहा था तभी उसने देखा कि खेत के दूसरे छोर पर पानी को अंदर घुसने से रोकने के लिए मिट्टी का बांध बना था। आरुणि ने देखा कि पानी उस बांध पर रुक नहीं पा रहा था और धीरे-धीरे खेत में पानी घुसने लगा था।

आरुणि समझ गया कि अगर पानी रिसने से नहीं रोका गया तो पूरे खेत में पानी भर जाएगा और फसल चौपट हो जाएगी। उसने जल्दी से आश्रम जाकर लकड़ियां वहां रख आने का निश्चय किया। लकड़ियां रखकर वह वापस खेत में आ गया। उसने बांध पर कुछ मिट्टी और घास फूस रखने की कोशिश की लेकिन पानी का तेज बहाव नहीं रोक पाया।
इस बीच आश्रम में आरुणि के वापस न लौटने से बॉम्बे ऋषि को चिंता होने लगी। अंधेरा होने लगा था। रात भी हो गई तो अन्य शिष्यों के साथ ऋषि उसे ढूंढने निकल पड़े। जब ऋषि ने आरोपी का नाम पुकारा तो उन्हें हल्का सा उत्तर सुनाई पड़ा।
जब लोग उसके पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि पानी का बहाव रोकने के लिए आरुणि बांध पर लेटा हुआ था। वह ठंड से कांप रहा था। उसके गुरु को अपने शीशे की लगन देखकर बहुत प्रसन्नता हुई। ऋषि आरुणि को वापस आश्रम ले आए और उसे कपड़े उड़ा कर आराम से लेट आया। उन्होंने घोषणा कर दी कि आरोही अपनी लगन के कारण नाम कम आएगा।
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