- Surdas Biography in Hindi – surdas ka jivan parichay
- surdas ka jivan parichay – सूरदास जीवनी
- सूरदास की जन्मतिथि – surdas life story in hindi
- सूरदास का जन्मस्थान (surdas birth place)
- क्या जन्मांध थे सूरदास? (surdas blind)
- सूरदास के गुरु बने वल्लभाचार्य (surdas guru)
- सूरदास की रचनाएं (surdas granth)
- सूरदास की रचनाओं की विशेषता (surdas rachnaye)
- सूरदास के जीवन पर बनी फिल्म (surdas film)
Surdas Biography in Hindi – surdas jeevani in hindi
“चरन कमल बंदौ हरि राई
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कछु दरसाई॥
बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चले सिर छत्र धराई
सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बंदौं तेहि पाई॥“
भक्तिकाल को भारत का स्वर्णकाल माना जाता है। यही वो दौर था, जब दक्षिण भारत से शुरू हुआ भक्ति आंदोलन बेहद कमसमय में समूचे देश में आग की तरह फैल गया। नतीजतन देश में शिव, वैष्णव, सूफी, निरगुण भक्ति जैसी अनगिनत भक्ति शाखाओं का आरंभ हुआ। इसी कड़ी में मीराबाई, संत कबीर, सलीम चिश्ती, गुरु नानक जैसे कई मशहूर कवियों और संतों ने भक्तिकाल को स्वर्णकाल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी फेहरिस्त में एक नाम भक्तिकाल के मशहूर कवि और भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त सूरदास का भी शामिल है। surdas biography in Hindi
Surdas Biography in Hindi – surdas ka jivan parichay
नाम | सूरदास |
जन्मतिथि | 1478 से 1483 के बीच |
जन्मस्थान | सीही, फरीदाबाद, हरियाणा |
पिता | रामदास सारस्वत |
गुरु | वल्लभाचार्य |
समय | भक्ति काल |
साहित्यिक रचनाएं | सूरसागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी |
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surdas ka jivan parichay – सूरदास जीवनी
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सूरदास की जन्मतिथि – surdas life story in hindi
सूरदास के जन्म को लेकर साहित्यकारों में खासे मतभेद हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार सूरदास का जन्म 1478 से 1483 के बीच हुआ था। वहीं वल्लभ संप्रदाय के मुताबिक वल्लभाचार्य सूरदास से महज दस दिन बड़े थे, जिसके अनुसार सूरदास का जन्म 1540 में हुआ था। इसके अलावा प्रसिद्ध कवि रामचन्द्र शुक्ला ने भी सन् 1540 को सूरदास की जन्मतिथि के रूप में मान्यता दी है। (surdas life history)
सूरदास का जन्मस्थान (surdas birth place)
सूरदास के जन्मस्थान के संबंध में भी साहित्यकारों के विभिन्न विचार हैं। कुछ जानकारों के अनुसार सूरदास का जन्म आगरा – मथुरा सड़क के समीप रुनकता गांव में हुआ था।
वहीं कुछ इतिहासकारों के मुताबिक सूरदास का जन्म हरियाणा के फरीदाबाद जिले में सीही गांव में हुआ था और सूरदास के जन्म के पश्चात उनका परिवार रुनकता गांव में आकर बस गया था।
क्या जन्मांध थे सूरदास? (surdas blind)
अपनी अनोखी रचनाओं से इतिहास के पन्नों पर अमिट छाप छोड़ने वाले सूरदास देखने में अस्मर्थ थे। हालांकि सूरदास की आंखों की रोशनी जन्म के बाद गई या फिर वे जन्म से अंधे थे, इस विषय पर साहित्यकारों में भारी मतभेद हैं।
हिन्दी साहित्य के मशहूर कवि हजारीप्रसाद द्विवेदी (surdas hajari Prasad diwedi) का मानना है कि “सूरदास की रचना सूरसागर के कई पदों में उन्होंने स्वंय को जन्म से अंधा और अभागे कर्मों वाला बताया है।“
वहीं श्याम सुंदर दास के अनुसार “सूर वास्तव में जन्मांध नहीं थे, क्योंकि शृंगार तथा रंग-रुपादि का जो वर्णन उन्होंने किया है वैसा कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता।” (surdas jivan parichay)
इसके अलावा सूरदास श्रीनाथ की “संस्कृतवार्ता मणिपाला’, श्री हरिराय कृत “भाव-प्रकाश” और श्री गोकुलनाथ की “निजवार्ता’आदि ग्रंथों में सूरदास को जन्म से अंधा नहीं माना गया है, जिसका कारण सूर द्वारा भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी के रूप के सजीव चित्रण को माना गया है।
सूरदास के गुरु बने वल्लभाचार्य (surdas guru)
वल्लभ संप्रदाय की कथाओं के अनुसार सूरदास जन्म से अंधे थे, जिसके कारण महज छह साल की उम्र में उनके परिवार ने उनका बहिष्कार कर दिया था। ऐसे में सूरदास मथुरा के निकट यमुना नदी के किनारे गऊघाट नामक स्थान पर एक कुटिया बनाकर रहते थे।
इसी दौरान सूरदास की मुलाकात महान संत वल्लभाचार्य से हुई। सूरदास वल्लभाचार्य की कृष्ण भक्ति से खासे प्रभावित हुए और उन्होंने ने भी श्याम के रंग में रमने का मन बना लिया।(surdas vallabhacharya)
इसी के साथ सूरदास ने वल्लभाचार्य को गुरु के रूप में स्वीकार कर उनके साथ वृंदावन चले गए। जहां उन्होंने वल्लभाचार्य से कृष्ण भक्ति क कई गुण सीखे।
सूर की अद्भुत कृष्ण भक्ति का ही परिणाम था कि सूर का नाम वल्लभाचार्य के अष्टाचाप यानी आठ महत्वपूर्ण शिष्यों की फेहरिस्त में शामिल हो गया।
सूरदास की रचनाएं (surdas granth)
बतौर कवि सूरदास का नाम इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अमर हो गया है। सूरदास ने मुख्यतः तीन ग्रन्थों की रचना(surdaskirachna) की है, जिनमें न सिर्फ सूरदास की भक्ति की सम्पूर्ण झलक मौजूद है बल्कि कृष्णलीला का सैंदर्य चित्रण भी देखने को मिलता है।
साहित्य लहरी, सूरसागर, सूर की सारावली।
श्रीकृष्ण जी की बाल-छवि पर लेखनी अनुपम चली।।
सूरसागर –16वीं शताब्दी में सूरदास ने सूरसागर नामक ग्रन्थ की रचना की। सूरसागर सूरदास के प्रसिद्ध ग्रन्थों में से एक है, जिसमें सवा लाख पदों का संग्रहण किया गया था। हालांकि अब सूरसागर में सात से आठ हजार पद ही शेष हैं। (surdas sursagar)
इस ग्रन्थ में सूरदास ने कृष्ण और राधा की प्रेम लीला की मनमोहक झलक प्रस्तुत की है। इसी के साथ भगवान श्री कृष्ण के बाल्यकाल्य का भी अद्भुत वर्णन इसी ग्रन्थ में देखने को मिलता है।(surdas dohe)
मैया कबहुं बढ़ैगी चोटी।
किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहूं है छोटी॥
तू जो कहति बल की बेनी ज्यों ह्वै है लांबी मोटी।
काढ़त गुहत न्हवावत जैहै नागिन-सी भुई लोटी॥
काचो दूध पियावति पचि पचि देति न माखन रोटी।
सूरदास त्रिभुवन मनमोहन हरि हलधर की जोटी॥
इसके अलावा सूरसागर में महाभारत और रामायण की चुनिंदा कहानियों का भी जिक्र मौजूद है। वहीं राधा-कृष्ण के अतिरिक्त सूरदास ने गोपियों और ब्रज का भी बेहद खूबसूरत चित्रण पेश किया है।
सूरसारावली – सूरसारावली में भी सूरदास ने कृष्ण से संबंधित विभिन्न कहानियों को अंकित किया है। ब्रज की गलियों में कृष्ण की चंचलता से लेकर गीता के ज्ञान तक की कई रोचक कहानियां सूरसारावली का हिस्सा हैं।(sursaravali)
साहित्य लहरी – इस ग्रन्थ में सूर के 118 कूट पदों का संग्रह मौजूद है। साहित्य लहरी और सूरसारावली में सूरदास भगवान कृष्ण की लीलाओं मसलन बसंत ऋतु और ब्रज की होली को काफी खूबसूरती से पेश करते हैं। वहीं इन ग्रन्थों में ध्रुव और प्रह्लाद के किस्से भी शामिल हैं।(surdas sahityalehri)
सूरदास की रचनाओं की विशेषता (surdas rachnaye)
सूरदास की ज्यादातर रचनाएं मुख्य रूप से हिन्दी भाषा और ब्रज भाषा का मिला जुला स्वरूप है। जिनका पारसी और संस्कृत अनुवाद भी किया गया है। सूर की रचनाओं ने ब्रज भाषा को हिन्दी साहित्य की मुख्य भाषा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।(surdas language)
सूरदास एक महान भक्त होने के साथ-साथ बेहतरीन लेखक भी थे। यही कारण था कि सूरदास की कई रचनाओं को सिख धर्म के मशहूर ग्रन्थ गुरु ग्रन्थ साहिब (surdas guru granth sahib)में भी सम्मलित किया गया हैं। मशहूर कवि आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी सूर की कविताओं का जिक्र करते हुए कहते हैं कि-
“सूरदास जब अपने प्रिय विषय का वर्णन शुरू करते हैं तो मानो अलंकार-शास्त्र हाथ जोड़कर उनके पीछे-पीछे दौड़ा करता है। उपमाओं की बाढ़ आ जाती है, रूपकों की वर्षा होने लगती है।“
सूरदास के पदों में कभी उद्धव और गोपियों के बीच वियोग रस का वर्णन मिलता है, जहां गोपियां उद्धव से कृष्ण के वियोग की दास्तां बयां करती हैं, तो दूसरी तरफ कृष्ण के प्रति गोपियों का लगाव प्रेम रस की झलक प्रस्तुत करता है।वहीं कृष्ण के सौंदर्य को श्रृंगार रस के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।
ऊधौ तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेहतगा तै, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाँउ न बोरयौं, दृष्टि न रूप परागि।
सूरदास अबला हम भोरी, गुर चाटी ज्यौं पागी।
सूरदास के जीवन पर बनी फिल्म (surdas film)
साल | फिल्म | निर्देशक |
1939 | सूरदास | कृष्ण देव मेहरा |
1942 | भक्त सूरदास | चतुर्भुज दोषी |
1975 | संत सूरदास | रविन्द्र दवे |
1988 | चिंतामणि सूरदास | राम पहवा |
Reference-
15 March 2021, Surdas Biography in Hindi, wikipedia